Tuesday, January 14, 2025

दीवार( सिराइकी में मेरी कविता )

 दीवार  ( सिराइकी में मेरी कविता )

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घर दे वेह्ड़े वेच 

दीवार चनीज़ वेंदी हे 

जदूं दिलां वेच 

दरार पे वेंदी हे 


बटवारे दा  दरद 

सेंहदी मज़बूर माँ 

किंदे नाल रवें 

किथे वंजे 


दीवार दे दूजे सिरे 

गूँजदी बच्चे दी किलकारी 

अगे वधंण वासते बैचैन क़दम 

ऱोक घिनदी है जबरन 


पर किया रोक सकसी 

आपणे मन दी उडारी 


मन दे पँख लगा 

घुम आउंदी हे 

दीवार दे दूजे पार 

उनींदरी रातां वेच 
  
सुफ़ने सजा के 

 देंदी हे 

अपणी  बेवज़ह ज़िंदगानी कुं 

हेक वज़ह /


रजनी छाबड़ा 

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