Saturday, August 8, 2009

झरोखे से

मन के बंद
अंधेरे कमरे में
तेरी यादों के झरोखे से
जब धूप छनी किरणे
आती हैं
दो पल को ही सही
अंधेरे में उजाले का
भरम जगा जाती हैं


रजनी छाबड़ा 

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