Saturday, October 3, 2009

पैबंद

जाम आसूंओं के
लबालब पिए हैं
आह उभरे न कभी
होटों पर
होंट इस कदर
सिल लिए हैं
तार तार चाक
गिरेबान को
तेरी यादों के
पैबंद लगा लिए हैं

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