Saturday, October 3, 2009

हम वो नहीं

हम वोह नहीं
जो आँसू और आहें
ओड़े सो लेते हैं
हालात को
मजबूरी समझ
ढ़ो लेते हैं
हम वोह हैं
जो उजड़े चमन मैं
उम्मीदों
के बीज
बो लेते हैं
इस जनम मैं
विरह तो क्या
फिर मिलेंगे
अगले जनम मैं
यही सोच कर
स्वपन आंखों मैं लिए
हम अधजगी रातों मैं
सो लेते हैं.









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