तुम्ही बताओ ना
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मेरी नींद को पंख लगे जब
क्या तुम्हारी भी संग
उड़ा ले गयी
या फिर अधजगी रातों में
तारे गिनने की रस्म
मैं इकतरफा निभा गयी
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मेरी नींद को पंख लगे जब
क्या तुम्हारी भी संग
उड़ा ले गयी
या फिर अधजगी रातों में
तारे गिनने की रस्म
मैं इकतरफा निभा गयी
aisee kavityen aisee kalpnayen hairaan kar jatee hain
ReplyDeleteचिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है.
ReplyDeleteआपने बहुत बहुत अच्छी रचना लिखी है. जारी रहें.
मेरी शुभकामनाएं.
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महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
या फिर अधजगी रात में
ReplyDeleteतारे गिनने की रस्म
मैं इकतरफा निभा गयी
...
waah
kya baat hai
Kitna dard chhupa hai
bahot khoob likhti hain aap
keep exploring
thanx,Syed seraj jee
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