Wednesday, July 7, 2021

ठहरा पानी


ठहरा पानी 

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वक़्त की झील का 

ठहरा पानी 

कोई लहरें नहीं

न हलचल , न रवानी 

 

कोई सरसराती 

गुनगुनाती 

हवा नहीं 

कोई चटक धूप 

न कोई दैवीय अनुभूति 

न मंदिरों से 

कोई मंत्रों के गूंज 

 

ज़िन्दगी कुछ ऐसी ही 

बेरंग हो गयी है 

कोरोना काल में 

 

मन तरसता है 

बच्चों को स्कूल जाते हुए

देखने  के लिए

 या पार्क में 

मौज़ मस्ती से खेलते हुए 

 

मन तरसता है 

सुनसान पड़ी  सड़कों पर 

फिर से उमड़ता 

यातायात देखने के लिए 

शॉपिग कॉम्प्लेक्स के 

फिर से देर रात तक 

व्यस्त रहने की झलक के  लिए 

 

आमजन  घूम सके उन्मुक्त 

घर की कैद से होकर मुक्त 

अपने प्रियजन से , चाह कर भी 

न मिल पाने की मज़बूरी 

न जाने कब दूर होगी 

यह कसक, यह दूरी 

 

मैं करती हूँ प्रभु को आह्वान 

लौटा दे हमें , वो बीते दिन 

तन -मन की आज़ादी 

बीते वक़्त का कर दे दोहरान /

 

रजनी छाबड़ा

 

 

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