असर
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रेत सुबह से लेकर
रात के आख़िरी प्रहर तक
कई रंग बदलती
सूरज के संग रहती
सुनहरी रंगत पाती
पूरा दिन
तपती -सुलगती
चाँद के संग रहती
पूरी रात
ठंडक पाती
ठंडक बरसाती
झरना बहता जब पहाड़ों से
उजली रंगत लिए
शीतल, मीठे जल से
सबकी प्यास बुझाये
पहुंचता जब मैदान में
नदी के स्वरूप में
वही पानी गंदला हो जाये
झरने का पानी
अपनी मिठास गंवाए
सोन -चिरैय्या उड़ती जब
खुले आसमान में
आज़ादी के गीत गुनगुनाये
क़ैद हो जाये जब पिंजरे में
सभी गीत भूल जाए/
- रजनी छाबड़ा
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