Sunday, January 12, 2025

मन दे बंद दरवाज़े / मन के बंद दरवाज़े ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )

 

मन दे बंद दरवाज़े / मन के बंद दरवाज़े ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


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एस तुं पेहले कि 

अधूरेपण दी क़सक 

तुहानकु चूर चूर करें 

सारी उमर हसण खेलण तुं 

मज़बूर कर देवें 

खोलो अपणे 

मन दे बंद दरवाज़े 

ते दूर कर सटो 

घुटन कुं 



दर्द दा वसेरा तां 

सभाँ दे दिल वेच हे 

दर्द नाल सभाँ दा 

पुश्तैनी रिश्ता हे 

कुझ अपणी आखो 

कुझ उंहा दी सुणो 

दर्द कुं सब मिलजुल के सहो 

एस तुं पहलां कि दर्द 

रिसदे रिसदे बण वंजें नसूर 

लगा के हमदर्दी दा मल्हम 

करो दर्द कुं कोसां दूर 


वंड घिनो 

सुख दुःख कुं 

मन कुं , ज़िंदगी कुं 

पियार दे अमृत नाल 

करो चा भरपूर 

खोल सटो मन दे बंद दरवाज़े 

ते घुटन कुं करो चा दूर /


 मन के बंद दरवाज़े 

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इस से पहले कि

 अधूरेपन की कसक 

तुम्हें कर दे चूर-चूर

 ता-उम्र हँसने से कर दे मज़बूर 

खोल दो

 मन के बंद दरवाज़े 

और घुटन को

 कर दो दूर 


दर्द तो हर दिल में बसता है

 दर्द से सबका पुश्तैनी रिश्ता है 

कुछ अपनी कहो 

कुछ उनकी सुनो 

दर्द को सब मिलजुल कर सहो

 इस से पहले कि दर्द

 रिसते-रिसते बन जाए नासूर 

लगाकर हमदर्दी का मरहम 

करो दर्द को कोसों दूर

 बाँट लो

 सुख-दुःख को 

मन को, जीवन को 

स्नेहामृत से कर लो भरपूर 

खोल दो मन के बंद दरवाजे 

और घुटन को कर दो दूर /


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