Friday, September 18, 2009

पथिक बादल

एक पथिक बादल
जो ठहरा था
पल भेर को
मेरे आँगन
अपने स्नेह की
शीतल छाया ले कर
वक्त की बेरहम
आंधियां
जाने
ज़िंदगी के
किस मोड़ पे
छोड़ आयी
रह रह कर मन में
एक कसक
सी उभेरआए
काश! एक
मुठी आसमान
मेरा भी होता
कैद कर लेती उस में
पथिक बादल को
मेरे धुप
से
सुलगते आँगन में
संदली हवाओं का
बसेरा होता






















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