क्या तुम सुन रही हो,माँ
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माँ, तुम अक्सर कहा करती थी
बबली, इतनी खामोश क्यों हो
कुछ तो बोला करो
मन के दरवाज़े पर दस्तक दो
शब्दों की आहट से खोला करो
अब मुखर हुई हूँ
तुम ही नहीं सुनने के लिए
विचारों का जो कारवां
तुम मेरे ज़हन में छोड़ गयी
वादा है तुमसे
यूं ही बढ़ते रहने दूंगी
सारी कायनात में
तुम्हारी झलक देख
सरल शब्दों की अभिव्यक्ति को
निर्मल सरिता सा
यूं ही बहने दूंगी
मेरा मौन अब स्वरित
हो गया है, माँ
क्या तुम सुन रही हो?
2. बात सिर्फ इतनी सी
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बगिया की
शुष्क घास परतनहा बैठी वह
और सामने
आँखों में तैरते
फूलों से नाज़ुक
किल्कारते बच्चे
बगिया का वीरान कोना
अजनबी का
वहाँ से गुजरना
आंखों का चार होना
संस्कारों की जकड़न
पहराबंद
उनमुक्त धड़कनअचकचाए
शब्द
झुकी पलकें
जुबान खामोश
रह गया कुछ
अनसुना,अनकहा
लम्हा वो बीत गया
जीवन यूँ ही रीत गया
जान के भी
अनजान बन
कुछ
बिछुडे ऐसा
न मिल पाये
कभी फिर
जंगल की
दो शाखों सा
आहत मन की बात
सिर्फ इतनी
तुमने पहले क्यों
न कहा
वह आदिकाल
से अकेलीवो अनंत काल
से उदास
और सामने
फूलों से नाज़ुक बच्चे
खेलते रहे/
Tumne us Akeli ke man ki Vedna ko Chitrath kiya hai .......... mano ek paripurn chitra aankho ke saamne utaar diya hai ....
ReplyDelete"अचकचाए
शब्द
झुकी पलकें
जुबान खामोश"
Mun ke Megh umad ghumad kar barsaa diye tumne yahaa
akelepan ke dard ko jis gahrai se apne mahsus aur abhivyakt kia vah abhibhut karne wala hai...sach me is dard ko akela sahn karne wala hi jan ta hai......bahut pyari rachna hai....amarjeet
ReplyDeleteआहत मन की बात
ReplyDeleteसिर्फ इतनी
तुमने पहले क्यों
न कहा
वेह आदिकाल
से अकेली
वो ananant काल
से उदास
और सामने
फूलों से नाज़ुक बच्चे
खेलते रहे
dil ke har kone har dhadkan ko choo lene waale shabd hain bahut khoob kaha hai