यह हसरत ही रही
ज़िन्दगी की राहों मैं
साथ तेरा होता
पार कर जाते
हँसते हुए
सहरा दर सहरा
गर हाथों मैं
हाथ तेरा होता
मिली रहती गर
तेरे चश्म-ऐ करम
की छाओं
मेरे धुप से सुलगते
आँगन मैं
खुशनुमा हवाओं का
बसेरा होता
मुझे मिली हैं नसीब मैं
जो स्याह दर स्याह रातें
गर तुम साथ होते
स्याह रातों के बाद
उजला सवेरा होता
ज़िंदगी है मेरी
तेरी अधूरी किताब
होता गेर
तेरे मेरे बस मैं
मुकमल यह अफसाना
मेरा होता
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