Friday, September 18, 2009

हसरत

यह हसरत ही रही
ज़िन्दगी की राहों मैं
साथ तेरा होता
पार कर जाते
हँसते हुए
सहरा दर सहरा
गर हाथों मैं
हाथ तेरा होता

मिली रहती गर
तेरे चश्म-ऐ करम
की छाओं
मेरे धुप से सुलगते
आँगन मैं
खुशनुमा हवाओं का
बसेरा होता

मुझे मिली हैं नसीब मैं
जो स्याह दर स्याह रातें
गर तुम साथ होते
स्याह रातों के बाद
उजला सवेरा होता

ज़िंदगी है मेरी
तेरी अधूरी किताब
होता गेर
तेरे मेरे बस मैं
मुकमल यह अफसाना
मेरा होता

















-

No comments:

Post a Comment