बसंत
वक़्त ने
जिन घावों पर
थी मरहम लगाई
मौसम ने उन्ही को
हरा करने की
रस्म दोहराई
मेरी पीड़ा का
न आदि है
न अंत
मुरझाये हुए
जख्मों का
फिर से हरा होना
बस यही है
मेरा बसंत
वक़्त ने
जिन घावों पर
थी मरहम लगाई
मौसम ने उन्ही को
हरा करने की
रस्म दोहराई
मेरी पीड़ा का
न आदि है
न अंत
मुरझाये हुए
जख्मों का
फिर से हरा होना
बस यही है
मेरा बसंत
exceelent creation
ReplyDeletehi,thanx for review, i will also look forwrd to ur comments on WOH AKELEE n ret ke samander se, in d same blog
ReplyDeleteEk Holi par bhi ho jaaye ,Kavita .......
ReplyDeleteJawani Ho Budha Ho , raeho Tayaar holi mai <
Hasi ko gale lagaao abki yaar holi mai ..
kyo kuchh bhaag khakar ham bhi kuch ungliyo ko harkat de .
ReplyDelete