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Friday, October 8, 2021
पाठकीय प्रतिक्रिया काव्य कृति : बिखराते रहना बीज
पाठकीय प्रतिक्रिया
काव्य कृति : बिखराते रहना बीज
लेखक : ओम प्रकाश गासो
प्रकाशक: मित्र मंडल प्रकाशन, बरनाला
पेपरबैक मूल्य रु ५०/- मात्र
कलम के सिपाही ओम प्रकाश गासो जी उम्र के उस मुकाम पर हैं , जहाँ पहुंच के अधिकाँश लोग केवल विश्राम की सोचते हैं/ परन्तु 88 वर्ष की वय में उनकी साहित्य रचना के प्रति कर्मठता देख कर अचम्भित हूँ/ कुछ समय पहले कवि व् अनुवादक तजिंदर चण्डहोक जी के माध्यम से गासो जी से परिचय हुआ/ तीन वर्ष पूर्व, तेजिंदर जी ने उन्हें मेरे हिंदी काव्य संग्रह ' होने से न होने तक' का उनके द्वारा किया गया पंजाबी अनुवाद 'होण तों ना होण तक' भेंट किया था/ बरनाला साहित्य जगत में माननीय गासो जी की सब 'बापू जी ' कह कर सम्बोधित करते है/ मेरी खुशी का पारावार न रहा जब बापू जी ने फ़ोन पर ही आशीर्वचन की झड़ी लगा दी/ मेरी काव्य कृति के बारे में विस्तार से चर्चा की और आशीर्वाद स्वरुप अपनी तीन कृतियां मुझे डाक से प्रेषित की/
कुछ समय पूर्व तेजिंदर जी ने मेरे एक और हिंदी काव्य संग्रह 'पिघलते हिमखंड' का पंजाबी अनुवाद 'पिघलदा हिमालया ' किया व् गासो जी को भी भेंट किया/ एक बार पुनः उनके आशीर्वचन की बौछार से अभिभूत हूँ/ इस बार काव्य संग्रह 'बिखराते रहना बीज ' व् एक उपन्यास ' मनुष्य की आँखे ' उन्होंने मुझे स्नेहाशीष भरे पत्र के साथ भेजी/ इस अनमोल खजाने को पाकर बहुत आनंदित हूँ/
बापू जी की काव्य रचना 'बिखराते रहना बीज ' की समीक्षा लिखने का दुःसाहस मैं नहीं कर सकती , परन्तु इसे पढ़ कर जिस आनंद लोक में विचरण किया व् उमड़ते हुए स्वाभाविक पाठकीय उदगारों को अवश्य सुधि पाठकों के साथ सांझा करना चाहूंगी/
पंजाबी साहित्य और संस्कृति के वट वृक्ष ओम प्रकाश गासो जी, हिंदी में भी समान अधिकार से रचते हैं/ उनकी भावनात्मक चेतना का संसार वृहद है/खुद उनके ही शब्दों में, '' कविता को संस्कृति और भावना कहा जा सकता है/''
"बीज , वृक्ष और छाया के तीन शब्दों में कविता है/'' बिखराते रहना बीज इसी मूल भाव का विस्तार है/ काव्य संग्रह से कुछ उद्धृत अंशों की झलक आप भी देखिये/
नील कंठ का विषपान
स्नेह का सन्देश
ब्रह्म रस
जीवन ज्योति जलाना
प्रकाशित होगा समय
समय रहते मेरे पास आना
बिखराना अमृत -बीज ( कविता २)
आकाश , पाताल और धरती
हरियावल परती /
समय की परतों ने परतों से कहा
बिखराते रहना बीज
सोपान बीज/(कविता 20)
दूज का चाँद
पूनम की प्रतीक्षा
प्रेम की भिक्षा
बाँटते बाँटते
बिखराते रहना अमृत ( कविता 66 )
यह रचनाएँ आस और विश्वास के ताने बाने से बुनी गयी है और मन पर अमिट छाप छोड़ने में समर्थ है/ कवि ने सामाजिक विषमताओं पर तो सटीक प्रहार किया ही है, पर आस का दामन नहीं छोड़ा/
अर्थ और शब्द से स्नेह का जन्म
जीवन- धारा ने जीवन को कहा
जीते रहो
बिखराते रहो जीवन बीज ( कविता 55 )
नितांत सरल भाषा में सहजता से जीवन की गहनता को उकरने वाले चितेरे को हार्दिक शुभ कामनाएं कि वे जीवन पथ पर यूं ही अपने उदगारों की संगत में बढ़ते रहे और मानवीय मूल्यों की सुरभि से पाठकों के जीवन की राह भी प्रशस्त करते रहें/
रजनी छाबड़ा
बहु भाषीय कवयित्री, अनुवादिका व् अंकशास्त्री