पिंजरे का पंछी
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पिंजरा ही है मेरा घर
अब तक मन को था
यही समझाया
उन्मुक्त उड़ान लेते
पंछी देख
आज मन क्यों भरमाया
ता उम्र पिंजरे में क़ैद पंछी
आज़ादी के लिए गिड़गिड़ाया
बहेलिये ने तरस खा पर
खोल दिया पिंजरे का दरवाज़ा
पंछी ने कोशिश की
पंख फ़ैला, ऊंची उड़ान लेने की
पर क्या गगन की ऊंचाई
छू पाया
सहम गया
उड़ते बाज़ को देख कर
पिंजरे में ही
वापिस बसने का मन बनाया/
जीने का जो अंदाज़
रहा बरसों
उस की क़ैद से
नहीं छूट पाया/
@रजनी छाबड़ा
२८/१०/२०२३
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