चौराहा ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )
कैड़ा रस्ता चुण्यै
पशेमानी दे चौराहे ते खड़े
असां नयि सोच सकदे
अतीत दियां कुझ हसीन यादां
कुंझ खट्टे मिठे तज़ुर्बे
बीत गए कल नाल जुड़ाव
अतीत दे धागियां वेच उलझे
आपणे आज कुं नयि जी सकदे असां
आ गया हे उमर दा ओ पड़ाव
अगे वधण तुं पहले ही
बंधी बंधी थी वैंदी हे चाल
नहीं कठा कर पांदे
आवण वाले कल दी
चुनौतियां दा सामना
करण दी हिम्मत
रब जाणे, क्या भेद छुपे होवण
आण वाले समे वेच
कल , अज ते कल दे
ताने बने वेच जकड़े
आपने आले दुवाले
अपनें ही कमां दे जाल वेच
मकड़ी वरगा उलझे
मुक्ति दा रस्ता
साकूं इ बणावणा पैसी
बीते समयाना दे कुंझ यादगार पल
अज दे कुझ सुनहरी पल
आवण वाले वक़त वास्ते कुझ जुगाड़
सहेज के आपणी राह -खर्ची
अगे वधदा चल
ओ मुसाफ़िर
रस्ता तेंकु आपणे आप रस्ता देसी
मंजिल तकण पहुँचण वास्ते /
चौराहा
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कौन सी राह चुनें
असमंजस के चौराहे पर खड़े
नहीं सोच पाते हैं हम
अतीत की कुछ हसीन यादें
कुछ खट्टे मीठे अनुभव
बीते कल से जुड़ाव
अतीत के धागों में उलझे
अपने आज को ही नहीं जी पाते हम
आ गया है उम्र का वह पड़ाव
आगे बढ़ने से पहले ही
बंधी बंधी हो जाती है चाल
नहीं बटोर पाते
आने वाले कल की
चुनौतियों का सामना
करने का साहस
जाने क्या रहस्य छुपे हों
भविष्य की आगोश में
भूत, वर्तमान और भविष्य के
ताने, बाने में जकड़े
अपने इर्द गिर्द व्यवस्तता के
अपने ही बनाये जाल में
मकड़ी से उलझे
मुक्त गति की राह अब
हमें ही बनानी होगी
अतीत के कुछ यादगार लम्हें
वर्तमान के कुछ स्वर्णिम पल
भविष्य की कुछ योजनाएँ
सहेज कर अपने पाथेय में
आगे बढ़ता चल
ओ! राही
राह तुम्हे खुद राह देगी
मंज़िल तक पहुँचने की
रजनी छाबड़ा
बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका
रजनी छाबड़ा
बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका
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