Tuesday, September 22, 2009

मन के बाज़ार मैं

टूट कर जुड भी जाएँ
तो दरार दिखती है
मन के बाज़ार मैं
फिर नही
वो शै
बिकती है

1 comment:

  1. संस्कारों की जक्र्हन
    पहराबंद
    उनमुक्त धड़कन
    अचकचाए
    शब्द
    झुकी पलकें
    जुबान खामोश
    रह गया कुछ
    अनसुना,अनकहा

    लम्हा वो बीत गया
    जीवन यूँ ही रीत गया

    gehraai smunder ki...unchaai...antriksh ki..lmbaai maa ke kad jesi senseval aals poem

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