Thursday, February 17, 2022


रहन 
****
करबद्ध
सर
झुकाए
सिकुचा ,सिमटा सा
खड़ा था वह 
 झरोखे से
विकीर्णित
होती
किरणों के पास
अपनी कलाकृति के आगे

कैनवास दर्शा रहा था
क्षितिज छूने की आस में 
उन्मुक्त उड़ान
भरते विहग
और सामने पर कटे
पाखी सा
घायल
एहसास लिए
वह  कलाकार

रहन 
रख चुका था
अपनी अनुभूतियाँ
कल्पनाएँ
संवेदनाएं
अपनी कला के
सरंक्षक को

 शिक्षक दिवस 2012 पर राजस्थान शिक्षा विभाग से प्रकाशित काव्य संग्रह  'शब्दों की सीप ' मैं सम्मिलित मेरी कविता 'रहन '

रजनी छाबड़ा

No comments:

Post a Comment