पिता ऐसे होते हैं
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सिर्फ संवेदनाओं के धरातल पर ही नहीं
यथार्थ की धरती पर विचरते हैं पिता
थामे अंगुली , निज संतति की
सहजता से चलना सिखाते है
हर विपरीत स्थिति में भी
फूलों की सेज जुटाने को प्रयत्नरत
काँटों की ओर भी करते हैं इंगित
अश्क़ आँखों में जज़्ब कर
मुस्कुराने का हुनर सिखाते हैं
स्वावलम्बन का पाठ पढ़ाते है
सिर ऊंचा कर चलना सिखाते हैं/
अपने स्नेह की छतरी ताने
जीवन की कड़ी धूप से बचाते हैं
Wow, very nice expression. I feel short of appreciate words to praise your poem.
ReplyDeleteHearty thanks for your words of appreciation
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