चाहत (सिराइकी में मेरी कविता)
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जे चाहत
हिक गुनाह हे
क्यूँ झुकदा हे
आसमान ज़मीन ते
क्यूँ घुम्दी हे ज़मीन
सूरज दे गिर्द /
रजनी छाबड़ा
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