Saturday, January 18, 2025

चाहत

 चाहत  (सिराइकी में मेरी कविता)

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जे चाहत 

हिक गुनाह हे 

क्यूँ झुकदा हे 

आसमान ज़मीन ते 


क्यूँ घुम्दी हे ज़मीन 

सूरज दे गिर्द /


रजनी छाबड़ा 


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