Saturday, January 18, 2025

मन दी पतंग : सिराइकी में मेरी कविता

 मन दी  पतंग :  सिराइकी में मेरी कविता 

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पतंग वांगु शोख़ मन 

आपणी चंचलता ते सवार 

नपणा चाह्न्दा हे 

पूरे आसमान दा  फ़ैलाव  

पहाड़, समंदर , उचियाँ इमारतां 

अन्वेखी कर के 

सब रुकवाटां 

क़दम अगे ही अगे वधावे 


ज़िंदगी दी थकान 

दूर करण वास्ते 

मुन्तज़र हाँ असां 

मन दी पतंग ते 

सुफ़नायें दे आसमान वास्ते 

जिथे मन घेन सके 

बेहिचक, सतरंगी उडारी   


पर क्यों पकडावां डोर 

पराये हथां वेच 

हर पल ख़ौफ़ज़दा 

रहवे मन 

रब जाणे,  कद कटीज़ वंजे 

कदों लुटीज़ वंजे 


शोख़ी नाल भरिया

 चंचल मन वेखे 

ज़िंदगी दे आईने 

पर सच दे धरातल ते 

टिके कदम ही देंदे 

ज़िंदगी कुं मायने /


रजनी छाबड़ा 





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