नमक के आस्वादन के बाद, मिठास का स्वाद लेने के लिए/
Saturday, February 22, 2025
सर्ग ७ लस्टीटूटयूशन (लस्टस का सविंधान): दस आज्ञापत्र 62 to 68
नमक के आस्वादन के बाद, मिठास का स्वाद लेने के लिए/
Tuesday, February 18, 2025
लस्टस
ज़िंदगी के आख़िरी पड़ाव पर पहुंचे अशक्त वृद्ध, SATAN( शैतान) को, जिसने सारी उम्र अमानवीय कृत्यों के माध्यम से अराजकता ही फैलायी है, अपने अँधेरे साम्राज्य के द्वारा, मौत की कगार पर खड़े हुए भी उसे यह चिंता सत्ता रही है कि उसके बाद यह अधूरे काम कौन पूरे करेगा/ अपने चचेरे भाई LUSTUS (लस्टस ) में उसे सभी अमानवीय गुण दिखाई देते है, जो अपनी कूटनीतियों से मानव मात्र का जीना दूभर कर देगा/ अतः , वह उसका राज्याभिषेक करते हुए, उसे लस्टोनिया का राजकुमार घोषित कर देता है/
मानवीय गुणों का हनन कर, बुराई फ़ैलाने का यह सिलसिला अभी भी जारी है/ और अधिक जानने के लिए पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय ख़्याति प्राप्त लेखक व् चिंतक, डॉ. जरनैल सिंह आनंद का इंग्लिश महाकाव्य LUSTUS. शीघ्र ही आपको इसका मेरे द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध होगा/
रजनी छाबड़ा
बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका
Monday, February 10, 2025
A DATE WITH ETERNITY
A DATE WITH ETERNITY
LUSTUS is a lucky chap. He was brought down from celestial spheres into Bengal by way of its translation into Bengali.
It has seen the beautiful landscape of Iran also after its Persian translation by Dr Roghayeh Farsi, Professor of English, Univ of Neyshabur Iran.
Now, I am thankful to Dr Rajni Chhabra, noted poet, translator and Numerologist who has decided to create it's Hindi Avataar. Trans- creating Lustus into Hindi is a great service to the cause of Indian literature for which I appreciate Dr Rajni Chhabra because translating an epic like Lustus is really a challenging job with its Neo-Mythology and technical exoerim jientation.
I congratulate Dr Rajni Chhabra and look forward to its publication in Hindi
आह्वान
आह्वान
मेरी लेखनी को नई ऊर्जा दो
मानव के पतन के कारण खोजने के लिए
और लस्ट्स के उत्थान के
बाध्य कर दिया जिसने प्रभु और उसके शक्तिवान फ़रिश्तों को
आत्म -विश्लेषण के लिए , क्यों परास्त होना पड़ा मानव को दानव से
और किसने विमुख किया मानव को
दैवीय शक्तियों से और बाध्य किया
लस्ट्स के दिन प्रतिदिन बढ़ते आधिपत्य और शक्ति की
शरण में जाने के लिए।
लस्ट्स जो इच्छुक था मानव के रवैये को देव के समक्ष उचित ठहराने का
खिलवाढ़ कर रहा था मानवीय मन की दुर्बलता के साथ
सम्मान, स्वतंत्रता और इच्छा शक्ति की आड़ में
और उसकी उच्च श्रेणी की बौद्धिक वाकपटुता ने
कैद कर दी उनकी कल्पना शक्ति
ताकि शीघ्र ही उन्हें यह आभास होने लगा
यदि वे चाहते हैं कि मन-वांछित ही घटे
केवल लस्टस और उसका राज्य ही है
जो उन्हें बेलग़ाम आज़ादी दे सकते हैं/
प्रभु और उसकी दिनों-दिन क्षीण होती जा रही सेना
अपने बलपूर्वक रवैये के साथ जारी रखे हुए थी
मृतकों की उपासना
और उनके अनुयायियों के लिए निर्धारित करती
आचरण की एक सारणी
जिससे आमआदमी साधारण खुशियों से भी वंचित हो जाता
इस तरह, उन्होंने मुख मोड़ लिए मंदिरों से
और भीड़ बढ़ ने लगी मदिरालयों, सिनेमाघरों
रेस्त्रां और क्लुबों में
लोग,जो मुक्ति चाहते थे
कमरतोड़ काम के बोझ से
एकत्रित होते खेल खेलने, महिलाओं से मिलने के लिए
और मदिरा पान व् मौज़ मस्ती के लिए
परन्तु, जैसे जैसे सामूहिक अर्थव्यवस्था की पकड़
बढ़ने लगी, राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था पर
अधिकाधिक युवा धकेल दिए गए नौकरियों की ओर
जहाँ न तो उन्हें खुशी मिलती, न आशा की कोई किरण
केवल आकांक्षा परोसी जाते उन्हें
मात्र स्व -केंद्रित अतिरंजित जुनून
रुग्ण मानसिकता और निरंतर दर्द से युक्त /
इस सशक्त लोगों की सेना
जो दानव के नाम पर जी रहे थे
दिखने में धार्मिक लगते थे
और प्रभु के प्रति पूर्णतः समर्पित
मंदिरों में अर्चना करते
धार्मिक स्थलों पे सजदे में सिर झुकाते
स्पष्ट रूप से अपनी दमित भावनाओं से मुक्ति पाने के लिए
फिर भी, उनकी निष्ठा तो शैतान के प्रति ही थी
मानवीय इच्छाओं की पूर्ण स्वतंत्रता में यकीन के साथ /
हे, सरस्वती! मुझे सामर्थ्य दो वर्णन करने की
कैसे घटित होता है यह देवत्व को लूटने का काम
कैसे यह दुष्ट लोग इस संसार को बदल देते हैं
आध्पित्य हो जाता हैं अन्धकार के साम्रज्य का,
और कैसे दैवीय साम्राज्य के दुर्ग एक के बाद एक
लस्ट्स के कोप के आगे धराशायी होने लगते है,
और किस तरह अंततः प्रभु प्रयास करता है
अपने खोये स्वर्ग को पुनः प्राप्त करने के लिए।
मुझे शक्तिदान दो इस अधार्मिक युद्ध के
अनपेक्षित विवरण करने हेतु
जोकि लस्ट्स और उसके समूह ने
प्रभु पर थोपा
जिसमें कितने ही फ़रिश्ते घातक रूप से घायल हुए
और, अंत में दुर्गा का आह्वान किया गया
दानवों के नरसंहार के लिए
अराजकता के अंत के लिए
और ईश्वरीय व्यवस्था के पुनर्स्थापन के लिए
मूल रचना: डॉ. जे. एस. आनंद
अनुवाद : रजनी छाबड़ा
Sunday, February 9, 2025
किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ
किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ ((सिराइकी में मेरी कविता )
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माँ , तूँ कयी वारी आखिया कर दी हावें
बबली, तूँ इतनी चुप चुपिती क्यों हें
कुझ दा बोलिया कर
मन दे दरवाज़े ते खड़का कर
शब्दां दी दस्तक नाल खोलिया कर
हुण जुबान तुं ताला हटाया हे
तूँ ही नहि सुणनं वास्ते
ख़यालां दा जो काफ़िला
तूँ छोड़ गयी हें
मेडे दिल-दिमाग वेच
वादा हे टेड़े नाल
इवें ही अगे वधाये रखसां
सारी दुनिया वेच टेडी झलक वेख
सीधे सादे हरफ़ां दी पेशक़श
साफ़ सुथरी नदी वरगा
इवेन ही वगण देसां
मेडी चुप्पी कुं होण
जुबान मिल गयी हे
किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ
रजनी छाबड़ा
Saturday, February 8, 2025
सिमटदे पर
सिमटदे पर
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पहाड़, समंदर, उचियाँ इमारतां
अणदेखी कर सारियां रुकावटां
अज़ाद उड्डण दी ख़्वाहिश नु
आ गया हे
अपणे आप ठहराव
रुकणा ही न जाणदे जो कदे
बंधे बंधे चलदे हुण ओही पैर
उमर दा आ गया हे ऐसा मुक़ाम
सुफ़ने थम गए
सिमटण लगे हेन पर
नहीं भांदे हुण नवे आसमान
बंधी बंधी रफ़्तार नाल
बेमज़ा हे ज़िंदगी दा सफ़र
अनकहे हरफ़ां नु
क्यूँ न आस दी कहाणी दे देवां
रुके रुके कदमा नु
क्यों न फेर रवानी दे देवां /
रजनी छाबड़ा
सूटकेस
मित्रों, आज आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ अंर्तराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त कवि व् चिंतक डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम SUITCASE का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/
Friday, February 7, 2025
SUITCASE / सूटकेस ENGLISH POEM WITH HINDI TRANSLATION
SUITCASE
अदृश्य बाग़बान / डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम Invisible Gardener का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/
मित्रों, आज आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ अंर्तराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त कवि व् चिंतक डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम Invisible Gardener का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/
अदृश्य बाग़बान
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बागबान
छटनीं करता है
उन शाखओं की
जो अधिक बढ़ जाती हैं
और उन शाखों को भी
जो नष्ट कर रही हों
सौंदर्य और आकार
साथ ही साथ हटा देता है
उस विस्तार को जो
अस्तव्यस्त कर रहा हो
इसके प्रारूप को
पत्तों के ढेर
जो काट डाले गए कैंची से
और बागबान की
सौंदर्य बोध सनी पैनी आँख
अक़्सर याद दिलाती हैं मुझे
उन लाखों करोड़ों लोगों के
नरसंहार की
धरा के विभिन्न महाद्वीपों में
मानव के इस संसार में
इतना अत्याचार !
जीवन की ज़ागीर से
कितनों को ही
रवाना कर दिया जाता है
हज़ारों मानवीय और अमानवीय
बहानों की आड़ में
प्रकृति में भी
झंझावात आते हैं (बिनबुलाये ?)
तटों को ले जाते हैं अपनी आग़ोश में
और जाते जाते पीछे छोड़ जाते है
कुछ बेरहम निशानियाँ
कचरे के ढेर में बदल देते हैं
हज़ारों घर और चूल्हे
मवेशियों के सिर, शरीर और अस्थियाँ
अदृश्य बागबान जानता है
कौन उसकी सृष्टि का रूप
विद्रुप कर रहा है
यह झंझावात
प्राकृतिक और मानव रचित
यह तो कार्यरत 'ब्यूटी सैलोन ' हैं
मूल रूप को क़ायम रखने के लिए /
रजनी छाबड़ा
THE INVISIBLE GARDENER
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Dr Jernail S Aanand
The gardener
prunes
branches which outgrow
and also those which destroy
beauty and form
and growth which is unwanted
and disturbs its design.
The hordes of leaves
cut adrift by the scissors
and sharp sense of beauty
of the gardener
often remind me of killings
of people in millions
dotting the earth across continents
There is so much injustice
so much cruelty in the world of men,
thousands are despatched
out of the domain of life
for a thousand reasons
human and inhuman.
In nature too,
tempests arrive (uninvited?)
sweeping across human shores
and while going off
Reducing to rubble
thousands of homes, and hearths
heads of cattle, bodies and bones.
.
The invisible gardener
knows what is destroying
the beauty of its creation
these tempests,
natural and human,
are beauty saloons at work
to keep the original design intact.
Dr. J.S. Aanand