Saturday, February 22, 2025

सर्ग ७ लस्टीटूटयूशन (लस्टस का सविंधान): दस आज्ञापत्र 62 to 68

सर्ग  ७ 
लस्टीटूटयूशन (लस्टस का सविंधान): दस आज्ञापत्र 
स्थल: लस्टोनिआ , महान लस्टस का दैवीय साम्रज्य 
लस्टस विश्व नेताओं को सम्बोधित कर रहा है और अपने दस आज्ञापत्र ज़ारी कर रहा है/

लस्टस :
वे सभी जिनकी आस्था 
अंधकार के साम्रज्य की शक्तियों में है 
स्वर्गदूतों के हमले से लड़ने के लिए ,
अपनी नयी प्रतिबद्धता और नवीनीकृत गौरव के साथ ,
इस दस आज्ञापत्रों का अनुपालन करेंगे, 
हमारे साम्राज्य का फैलाव सुनिश्चित करने के लिए 
प्रत्येक व्यक्ति तक 
चाहे उसमें कैसी भी सामर्थ्य हो/


धार्मिक स्थल बनाओ और लोगो में लड़ाई करवाओ 
रंगभेद और धार्मिक प्रतीकों के नाम पर /
हमारे राजदूतों की संख्या तो असीमित है 
जिन्हे ईसा और बुद्ध की धरती पर 
घृणा फ़ैलाने में व्यस्त रहना चाहिए,
 संवेदना के नाम पर 
और ईश्वर -प्रेमी लोगों को परिवर्तित कर 
कट्टर स्वर वाले और हत्यारे बनाने के लिए/



वे देश जहाँ पैगंबरों ने 
मानवता के उपदेश दिए 
और देवों का राज्य स्थापित किया 
उन्हें पूरी शक्ति से लक्षित किया जाना चाहिए/
बुराई का प्रचार इतना अधिक किया जाना चाहिए 
कि वह सच्चाई प्रतीत होने लगे/ 

पृष्ठ 62 

देवालयों में जाओ और धार्मिक ग्रंथ पढ़ो ,

और जुलूस निकालो,
 देवों को खुशी महसूस होने दो कि 
पीढ़ियाँ उनको सम्मान दे रही हैं,
उन्हें अपनी निष्क्रिय उड़ान  का आनंद लेने दो 
जबकि हम इनकी आत्मा को चूस लेंगे और केवल खाल बचेगी/


2 . 
 

हमारे साम्रज्य को केवल एक ही बात से खतरा है 
वह है प्यार 
अगर तुमने प्यार करना ही है, लस्टस से प्यार करो,
जोकि ईश्वर को सब से बड़ी चुनौती है 
और उसके शिथिल  साम्रज्य को 

आदम और हव्वा एक दूसरे से प्यार करते थे,
परन्तु ज्ञान का बीज बो कर 
जोकि घृणा का ही समानार्थक है 
हमारी योजना है कि इस अविश्वासी  विश्वास की फसल काटें/    


प्रेम  से विवाह की ओर, बुद्धिमानों का झुकाव होने दो ,
विवाह की ऐसी योजनाएं बनाओ 
कि असमान युगलों के सम्बन्ध सुनिश्चित करो 
उसके उपरांत, संतानोत्पति हेतु,
जोड़ों को कृत्रिम गर्भाधान की योजना बनाने दो 
और अंत  में , अवैध संतानों  को  धरती पर झूमने दो/


3. 

समाचारपत्रों को तुच्छ विचारों से भर दो ,
सुनिश्चित कर लो कि कोई खबर भी अच्छी खबर न हो /

उन्हे केवल वही रिपोर्टिंग करने दो जो कि बेतुकी हो,

और नेक काम तो  व्यवसाय से बाहर हैं/

 दानवों को बहुत ख़ुशी मिलती है जब वे देखते हैं कि 

नेताओं का अनुसरण तो देवालयों में भी किया जाता है 

 और देवताओं की अवहेलना कर दी  जाती है/

पृष्ट 63  

4. 

इस धरती पर जो नैतिककरण उपकरण है, उसे नष्ट कर दो,
और जो कुछ भी  महत्वपूर्ण है,  उसका अस्तित्व मिटा दो/
ज्ञान की बात सघन होनी चाहिए /
दिम्माग को मूर्खता से भी दो/
पुस्तकें ऐसी होनी चाहिए जिनमें कुछ भी विषयवस्तु न हो/
और डिग्रियाँ ऐसी जोकि प्रमाणित करें की इन में कुछ भी नहीं है/
विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि करो/
बिक्री को कई गुणा बढ़ा दो,]
और उन लोगो को शीर्ष ओहदे दो, जो सबसे निम्न रहने योग्य हैं/


5 . 

दम्पतियों में परस्पर विश्वास टूटना चाहिए 
एक लगातार विवाद की स्थिति कि किस सी बात और कर्म उचित हैं/
इस हद तक की अंततः उनका सम्बन्ध विच्छेद हो जाए 
मानवता  की कहानी को तनाव समाप्त करना अति आवश्यक है/
वास्तविक युद्ध तो अब घरों में लड़ा जाएगा/
यहीं पर तो अब खुदा का मक़बरा बनेगा/


6 . 

पाप स्वीकरोक्ति और  क्षमादान 
इसाईयों की रस्में हैं /
सदैव एक ऐसे अवसर की तलाश में रहो  
जहाँ तुम कोई विचलन ढूंढ सको /
इस तरह के प्रावधान आश्वस्त करते हैं कि 
साधारण निंदा से परे कोई सजा नहीं 
लोगों को और गलतियां करने के लिए साहस देते हैं 
नमक के आस्वादन के बाद, मिठास का स्वाद लेने के लिए/


7 . 

ईश्वर ने दैवीय संतुलन के साथ इस ब्रह्माण्ड की रचना की थी 
उसने रसायनों को पुनर्मिश्रण करते हुए 
मस्तिष्क की संरचना 
मानव की विचार प्रक्रिया को  भंग करने के लिए/

पृष्ठ  64 

प्रत्येक प्राणी और मानवीय शरीर के प्रत्येक अंग की, 
अपनी आवश्यकताएं होती हैं 
अगर आपूर्ति होते रहे तो सब सही और उम्दा 
अगर प्रतिदिन का आहार न मिले ,तो अव्यवस्था 
अगर सेक्स की भूख शांत न हो तो 
काया और मन तूफ़ान मचा देते हैं/
और पीसने का  संतुलन ही बिगाड़ देते हैं/


8 . 

मनुष्य केवल एक पैकज है, 
एक सौदे केअलावा कुछ भी नहीं /
हमें  क्रूर स्वभाव और असंयमी  उमंग वाले 
 मनुष्य चाहिए/
हमारे संसार की शासिका ग्रेडा है (चंचल माँ )
लोलुपता की देवी,
वासना, आकांक्षा और क्रूर जुनून 
हमारा स्थायी पंथ/



9. 

देवालयों से पुजारियों को हटा दो 

पाठशालाओं से अध्यापकों को हटा दो/
और विश्वविद्यालयों से , अरे!
दार्शनिकों और प्रोफेसरों को/
हमें तो  कट्टर पेशेवर चाहियें
जो ऐसी ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा दें 
जोकि सिखाये कैसे ईश्वर को धोखा दिया जाये 
और नर्क की स्तापना की जाये 
और वे सभी ज्ञान प्रणालियाँ जिन से 
आत्मा की आग के गंध आती है 
उन्हें तो कचरापात्र में पड़े रहना चाहिए/


10. 

 यदि आप प्राकृतिक वृति को विफल कर सकते हो,
आप देवताओ को कोसों दूर रख सकते हो/
 पक्षी, जानवर, नदियाँ, हवाएँ ,

पृष्ठ 65 
स्वयं के एक तर्कसंगत स्थान पर रह सकेंगे/
ऐसा ही वनस्पति का प्रकरण है/
चाहे कोई वृक्ष काटो या कोई फल तोड़ गिराओ 
बिल्कुल भी  कोई आवेश होता ही नहीं]. 
इस पुरातन संसार का अब नवीनीकरण होना चाहिए/
उनमें भी , उनके उच्च दर्जे के होने का एहसास पैदा करो,
जानवरों को, पक्षियों को और लचीले वृक्षों को सूचित करो 
आज के बाद, कुछ भी मुफ्त में नहीं दिया जायेगा./


समूहगान

टांगो और बाहों पर शिक्षा केंद्रित करो 
सिर और आत्मा से इसे अक्षम करो/
आधुनिक समय के संसार में 
 पेशेवरों  की आवश्यकता है , न कि प्रोफेसरों की 
और दार्शनिकों की तो उस से भी कम/


शब्द आवाज़ नहीं करते 
फ़िर भी उन्हें बेवजह मत उछालो /
जैसे कि हम तक तक कदम नहीं बढ़ाते 
जब तक हम आश्वस्त न हो  जाएँ 
कि हमारे पैरों की नीचे की ज़मीन मजबूत है/



ईश्वर एक आध्यात्मिक सरंचना है/
अच्छाई का एक उत्कृष्ट रूप 
जिसकी सहस्त्रों परते हैं
साधुता की पहुंचते हुए 
और अंत में शुचिता की ओर/


बुराई भी अंतिम संस्करण है 

अच्छा न होने का/

दो विरुद्ध दिशाओं के एक बिंदु से 

बुराई और अच्छाई आगे बढ़ते हैं 

दोनों ही सदैव उपस्थित रहते हैं/

पृष्ट 66 

दानव कभी भी अधिक दूरी पर नहीं होते 
पलक झपकते ही 
 स्थिति पर काबू पा लेते हैं/
इस से पहले की आप कुछ सोच पाएं/
बुराई इतनी चुस्त है, इतनी बुद्धिमान, इतनी फुर्तीली 
और इसकी कार्यशैली इतनी तत्पर 
कि वे घर बैठे बैठे ,आपका काम कर देते हैं/
आपको कोई आर्डर फॉर्म भरने की आवश्यकता नहीं 
उनके कंप्यूटर उन्हें आपकी रूचि सेअवगत करा देते हैं 
और, वाह,आपको कॉल आ जाती है 
आपको जो चाहिए, आर्डर कीजिये 


आपको तो केवल निर्णय लेना है 
गगोल एंटर कीजिये और  एंटर का बटन दबा दीजिये/
अब आप वाणिज्यिक जीवों की दया पर निर्भर हैं/
वे जानते है की आपके लिए क्या सर्वाधिक अनुकूल है/ 
आपके अवतरण दिवस पर आपको ऑफर मिलते हैं 
कूपन्स इस आग को और उच्चण्ड करते हैं 
यह दानव की निःशुल्क सलाहकारी संस्था है/
आपकी इच्छा की अभिव्यक्ति के लिए/


यह शिष्टाचार और रीति की वजह से भी है कि 
उबासी लेते हुए या छींकते हुए देवताओं को याद करते हैं 
या अपने दिन की शुरआत करते हुए 
अन्यथा, उस समय,
 केवल दानव ही समय का लाभ उठाते हैं/


 पुराने अच्छे दिनों में , ऐसा समय भी था 
जब गाँव की एक ही चौपाल 
पूरी जनसंख्या की सेवा कर लेती थी  
इसकी ज़रूरतों के वक़्त /

पृष्ट 67 
देवता तो अब स्वयं कोअल्पसंख्यक समझते हैं,
क्योंकि अब बुराई तो सब से ऊंची भावना है/
और, शैतान ने अब हर दिल में 
एक मंदिर बना लिया है/



लस्टस प्रेस कांफ्रेंस में 

लस्टीट्यूशन के दस आज्ञापत्रों के रूप में  घोषणा के उपरान्त, एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की जाती है/ संसार के विभिन्न चैनल्स महान लस्टस को घेर लेते हैं, अपने प्रश्नों के साथ / 'किलर इंस्टिंक्ट' और 'लस्ट' के संवाददाता प्रश्न पूछते हैं/


किलर इंस्टिंक्ट:

लस्टस, आपने कहा कि दानवों को 
मानव प्रजाति का संतुलन बिगाड़ना चाहिए/
आप ऐसा कैसे संभव कर पाएंगे?
और इस से दानवों के राज्य को क्या मदद मिलेगी?


लस्टस :

हमने ईडन का   संतुलन न  बिगाड़ने  का निर्णय लिया है/
 
इसकी बजाय , हमने अपना साम्राज्य बनाया है/

लस्टोनिआ /

यह हमारा स्वर्ग है, जहाँ हम मिलते हैं,

षड़यंत्र रचते हैं और आराम करते हैं/

हम मानवता की लय  को कैसे  बिगाड़ेंगे ?

सीधे सादी सी बात है, उन्हें सेक्स क्षुधातुर रख के 



किलर इंस्टिंक्ट:

सेक्स? क्या लस्टुनिआ में सेक्स पर कोई प्रतिबंध नहीं?
मानव  संसार में तो सेक्स एक वर्जित विषय है/
68 











Tuesday, February 18, 2025

लस्टस

 




ज़िंदगी के आख़िरी पड़ाव पर पहुंचे अशक्त  वृद्ध, SATAN( शैतान) को, जिसने सारी उम्र अमानवीय कृत्यों के माध्यम से अराजकता ही फैलायी है, अपने अँधेरे  साम्राज्य के द्वारा,   मौत की कगार पर खड़े हुए भी उसे यह चिंता सत्ता रही है कि  उसके बाद यह अधूरे काम कौन पूरे  करेगा/ अपने चचेरे भाई LUSTUS (लस्टस ) में उसे  सभी अमानवीय गुण दिखाई देते है, जो अपनी कूटनीतियों से मानव मात्र का जीना दूभर कर  देगा/ अतः , वह उसका राज्याभिषेक करते हुए, उसे लस्टोनिया का राजकुमार घोषित कर  देता है/  


मानवीय गुणों का हनन कर,  बुराई  फ़ैलाने का यह सिलसिला अभी भी जारी है/ और अधिक जानने के लिए पढ़िए  अंतर्राष्ट्रीय ख़्याति  प्राप्त लेखक व् चिंतक, डॉ. जरनैल सिंह आनंद का  इंग्लिश महाकाव्य  LUSTUS.  शीघ्र ही आपको इसका मेरे द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध होगा/

रजनी छाबड़ा 

बहु भाषीय  कवयित्री व् अनुवादिका 

Monday, February 10, 2025

A DATE WITH ETERNITY


 A DATE WITH ETERNITY


LUSTUS is a lucky chap. He was brought down from celestial spheres into Bengal by way of its translation into Bengali.


It has seen the beautiful landscape of Iran also   after its Persian translation by Dr Roghayeh Farsi, Professor of English, Univ of Neyshabur Iran.


Now, I am thankful to Dr Rajni Chhabra, noted poet, translator and Numerologist  who has decided to create it's Hindi Avataar. Trans- creating Lustus into Hindi is a great service to the cause of Indian literature for which I appreciate Dr Rajni Chhabra because translating an epic like Lustus is really a challenging  job with its Neo-Mythology and technical exoerim jientation.


I congratulate Dr Rajni Chhabra and look forward to its publication in Hindi

आह्वान

 

 LUSTUS, THE PRINCE OF DARKNESS 
BY  Dr. JERNAIL S AANAND 

TRANSCREATED BY RAJNI CHHABRA




 LUSTUS/लस्ट्स 


आह्वान

हे ! सरस्वती, मैं एक बार पुनः आपके पवित्र मंदिर में आया हूं /

मेरी लेखनी को नई ऊर्जा  दो 

मानव के पतन के कारण खोजने के लिए 

और लस्ट्स के उत्थान के 

बाध्य कर दिया जिसने प्रभु और उसके शक्तिवान फ़रिश्तों को 

आत्म -विश्लेषण के लिए , क्यों परास्त होना पड़ा मानव को दानव से 

और किसने विमुख  किया मानव को 

दैवीय शक्तियों से और बाध्य किया 

लस्ट्स के  दिन प्रतिदिन बढ़ते आधिपत्य और शक्ति की 

शरण में जाने के लिए। 


लस्ट्स जो इच्छुक था मानव के रवैये को देव के समक्ष उचित ठहराने का 

खिलवाढ़ कर  रहा था मानवीय मन की दुर्बलता के साथ 

सम्मान, स्वतंत्रता और इच्छा शक्ति की आड़ में 

और उसकी उच्च श्रेणी की  बौद्धिक वाकपटुता ने  

कैद कर  दी उनकी कल्पना शक्ति 

ताकि शीघ्र ही उन्हें यह आभास होने लगा 

यदि वे चाहते हैं कि मन-वांछित ही घटे 

केवल लस्टस और उसका राज्य ही है 

जो उन्हें बेलग़ाम आज़ादी दे सकते हैं/


प्रभु और उसकी दिनों-दिन क्षीण होती जा रही सेना

अपने बलपूर्वक रवैये के साथ जारी रखे हुए थी 

मृतकों की उपासना

और उनके अनुयायियों के लिए निर्धारित करती 

आचरण की एक सारणी 

जिससे आमआदमी साधारण खुशियों से भी वंचित हो जाता 


इस तरह, उन्होंने मुख मोड़ लिए मंदिरों से 

और भीड़ बढ़ ने लगी मदिरालयों, सिनेमाघरों 

रेस्त्रां और क्लुबों में 

लोग,जो मुक्ति चाहते थे 

कमरतोड़ काम के बोझ से 

एकत्रित होते खेल खेलने,  महिलाओं से मिलने के लिए 

और मदिरा पान व् मौज़ मस्ती  के लिए 

परन्तु, जैसे जैसे सामूहिक अर्थव्यवस्था की पकड़ 

बढ़ने लगी, राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था पर 

अधिकाधिक युवा धकेल दिए गए नौकरियों की ओर 

जहाँ न तो उन्हें खुशी मिलती, न आशा की कोई किरण 

केवल आकांक्षा परोसी जाते उन्हें 

मात्र स्व -केंद्रित अतिरंजित जुनून 

रुग्ण मानसिकता और निरंतर दर्द से युक्त /

इस सशक्त लोगों की सेना 

जो दानव के नाम पर जी रहे थे 

दिखने में धार्मिक लगते थे 

और प्रभु के प्रति पूर्णतः समर्पित 

मंदिरों में अर्चना करते 

धार्मिक स्थलों पे सजदे में सिर झुकाते 

स्पष्ट रूप से अपनी  दमित भावनाओं से मुक्ति पाने के लिए 

फिर भी, उनकी निष्ठा तो शैतान के प्रति ही थी 

मानवीय इच्छाओं की पूर्ण स्वतंत्रता में यकीन के साथ /


हे, सरस्वती! मुझे सामर्थ्य दो वर्णन करने की 

कैसे घटित होता है यह देवत्व को लूटने का काम 

कैसे  यह दुष्ट लोग इस संसार को बदल देते हैं 

आध्पित्य हो जाता हैं अन्धकार के साम्रज्य का, 


और कैसे दैवीय साम्राज्य के दुर्ग एक के बाद  एक 

लस्ट्स के  कोप के आगे  धराशायी होने लगते है, 

और किस तरह अंततः प्रभु प्रयास करता है 

अपने खोये स्वर्ग को पुनः प्राप्त करने के लिए। 



मुझे शक्तिदान दो इस अधार्मिक युद्ध के 

अनपेक्षित विवरण करने हेतु 

जोकि लस्ट्स और उसके समूह ने 

प्रभु पर थोपा 

जिसमें कितने ही फ़रिश्ते घातक रूप से घायल हुए 

और, अंत में दुर्गा का आह्वान किया गया 

दानवों  के नरसंहार के लिए 

 अराजकता के अंत के लिए 

और ईश्वरीय व्यवस्था के पुनर्स्थापन के लिए 



मूल रचना: डॉ. जे. एस. आनंद  

अनुवाद : रजनी छाबड़ा 


Sunday, February 9, 2025

किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ

किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ   ((सिराइकी में मेरी कविता )

********************

माँ , तूँ  कयी वारी आखिया कर दी हावें 

बबली, तूँ इतनी  चुप चुपिती क्यों हें 

कुझ दा  बोलिया कर 

मन दे दरवाज़े ते खड़का कर 

शब्दां दी  दस्तक नाल खोलिया कर 


हुण  जुबान तुं  ताला हटाया हे 

तूँ ही नहि सुणनं वास्ते 

ख़यालां दा जो काफ़िला 

तूँ छोड़ गयी हें 

मेडे दिल-दिमाग वेच 

वादा हे टेड़े नाल 

इवें ही अगे वधाये रखसां 


सारी दुनिया वेच टेडी झलक वेख 

सीधे सादे हरफ़ां दी पेशक़श 

साफ़ सुथरी नदी वरगा 

इवेन ही वगण देसां 


मेडी चुप्पी कुं होण 

जुबान मिल गयी हे 

किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ 


रजनी छाबड़ा 



Saturday, February 8, 2025

सिमटदे पर

 सिमटदे  प

***********

पहाड़, समंदर, उचियाँ इमारतां 

अणदेखी कर सारियां रुकावटां

अज़ाद उड्डण दी ख़्वाहिश नु 

आ गया हे 

अपणे आप ठहराव 


रुकणा  ही न जाणदे जो कदे 

बंधे बंधे चलदे हुण ओही पैर  


उमर दा आ गया हे ऐसा मुक़ाम 

सुफ़ने थम गए 

सिमटण लगे हेन पर  

नहीं भांदे हुण नवे आसमान 


 बंधी बंधी रफ़्तार नाल 

बेमज़ा हे ज़िंदगी दा सफ़र 

 अनकहे  हरफ़ां नु 

क्यूँ न आस दी कहाणी दे देवां 

रुके रुके कदमा नु 

क्यों न फेर रवानी दे देवां /


रजनी छाबड़ा 


सूटकेस

 मित्रों, आज आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ अंर्तराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त  कवि व् चिंतक  डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम SUITCASE का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/


सूटकेस
********
मैं ख़ुशी से भरपूर था
अपने शोख़ रंग के साथ और अचम्भित भी
विवाहोत्सव के दौरान, मैं भरा रहूंगा
पोशाकों और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों से
यह सूटकेस विवाह के अवसर के लिए ही था


विवाह के शुभ दिन
सूटकेस की खुशी का ठिकाना न था
पोशाकों और आभूषणों से भरपूर
थिरक रहा था कक्ष में
और तब, यहाँ वहां
अंत में ठहराव पाया ससुराल के घर में


एक व्यक्ति , जोकि उस महिला का पति है
झगड़ता है उस से बात-बेबात
वह अंदर जाती है
मुझे उठाती है और भर देती है
मुझे अपने ज़रूरी सामान से
और, अरे! वह तो घर से बाहर निकल रही है

पति मुझे पकड़ लेता है
ले जाता है घर के अंदर जबरन

औरत ने झपटा मारा उसके हाथ पर
और बाध्य किया उसे मुझे छोड़ने के लिए
मैं असमंजस में था , क्या मैं
भीतर की राह लूँ या बाहर की


एक दिन, मैंने महसूस किया
पति का जानवरों जैसे बेरहम बर्ताव
औरत को मैंने खामोशी से पड़े देखा
और पति समेट रहा था
उसके शऱीर को मुझ में
और धकेलता हुआ ले गया मुझे /

हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा


Friday, February 7, 2025

SUITCASE / सूटकेस ENGLISH POEM WITH HINDI TRANSLATION



सूटकेस
********
मैं ख़ुशी से भरपूर था
अपने शोख़ रंग के साथ और अचम्भित भी
विवाहोत्सव के दौरान, मैं भरा रहूंगा
पोशाकों और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों से
यह सूटकेस विवाह के अवसर के लिए ही था


विवाह के शुभ दिन
सूटकेस की खुशी का ठिकाना न था
पोशाकों और आभूषणों से भरपूर
थिरक रहा था कक्ष में
और तब, यहाँ वहां
अंत में ठहराव पाया ससुराल के घर में


एक व्यक्ति , जोकि उस महिला का पति है
झगड़ता है उस से बात-बेबात
वह अंदर जाती है
मुझे उठाती है और भर देती है
मुझे अपने ज़रूरी सामान से
और, अरे! वह तो घर से बाहर निकल रही है

पति मुझे पकड़ लेता है
ले जाता है घर के अंदर जबरन

औरत ने झपटा मारा उसके हाथ पर
और बाध्य किया उसे मुझे छोड़ने के लिए
मैं असमंजस में था , क्या मैं
भीतर की राह लूँ या बाहर की


एक दिन, मैंने महसूस किया
पति का जानवरों जैसे बेरहम बर्ताव
औरत को मैंने खामोशी से पड़े देखा
और पति समेट रहा था
उसके शऱीर को मुझ में
और धकेलता हुआ ले गया मुझे /

हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा

 SUITCASE

Jernail Singh Anand
How happy I was
Bright in colour and all agog
There is marriage and I will remain
Filled with clothes and other objects
Of beauty.
It was a marriageable suitcase.

On the day of marriage,
The suitcase was bubbling with joy.
Filled with clothes and jewellery
Dancing in this room
And then, that,
And finally resting in the in-laws house.
Every day, two or three times,
She comes and picks me up,
And opens,
And then places her clothe in me.
I can hear some talk
Which is not clear.
A man, who is the lady's husband
Fights her over nothings,
She goes in,
Picks me up and fills me
With her necessary things
And lo, she is moving out.

The husband catches hold of me,
And forces me inside the house,
The lady clutched his hand
And forced him to leave me.
I was not sure, whether I was
To remain inside or move out.

One day, I found myself
Handled brutally by the husband
It was night,
I saw the lady lying silently.
And the husband was packing her
Body in me, and wheeled me away


Dr Jernail S Anand, author of175 plus books, is President, International Academy of Ethics, and Laureate of prestigious international awards, the Seneca Award, (Italy)The Charter of Morava,(Serbia),Franz Kafka Award (Germany, Ukraine & Chek Rep) and Maxim Gorky ,(Russia) Award. His name adorns the Poets' Rock in Serbia.(ethicsacademy.co.in) .





अदृश्य बाग़बान / डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम Invisible Gardener का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/



 

मित्रों, आज आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ अंर्तराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त  कवि व् चिंतक  डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम Invisible Gardener का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/



अदृश्य बाग़बान 
*************


बागबान 

छटनीं करता है 

उन शाखओं की 

जो अधिक बढ़ जाती हैं 

और उन शाखों को भी 

जो नष्ट कर रही हों 

सौंदर्य और आकार 

साथ ही साथ हटा देता है 

उस विस्तार को जो 

अस्तव्यस्त कर रहा हो  

इसके प्रारूप को 



पत्तों के ढेर 

जो काट  डाले  गए  कैंची से 

और बागबान की  

सौंदर्य बोध सनी पैनी आँख 

अक़्सर याद दिलाती हैं मुझे 

उन लाखों करोड़ों लोगों के 

नरसंहार की 

धरा के विभिन्न महाद्वीपों में 


मानव के इस संसार में 

इतना अत्याचार !

जीवन की ज़ागीर  से 

कितनों को ही

रवाना कर  दिया जाता है 

हज़ारों  मानवीय और अमानवीय 

बहानों की आड़ में 


प्रकृति में भी 

झंझावात आते हैं (बिनबुलाये ?)

तटों को ले जाते हैं अपनी आग़ोश में 

और जाते जाते पीछे छोड़ जाते है 

कुछ बेरहम निशानियाँ 

कचरे के ढेर में बदल देते हैं 

हज़ारों घर और चूल्हे 

मवेशियों के सिर, शरीर और अस्थियाँ 


अदृश्य बागबान जानता है 

कौन उसकी सृष्टि का रूप 

विद्रुप कर रहा है 

यह झंझावात 

प्राकृतिक और मानव रचित 

यह तो कार्यरत 'ब्यूटी सैलोन ' हैं 

मूल रूप को क़ायम रखने के लिए /


रजनी छाबड़ा 



THE INVISIBLE GARDENER 

***************************

Dr Jernail S Aanand 


The gardener

prunes 

branches which outgrow 

and also those which destroy 

beauty and form

and growth which is unwanted 

and disturbs its design.


The hordes of leaves 

cut adrift by the scissors 

and sharp sense of beauty 

of the gardener 

often remind me of killings

of people in millions 

dotting the earth across continents 


There is so much injustice 

so much cruelty in the world of men, 

thousands are  despatched 

out of the domain of life 

for a thousand reasons 

human and inhuman.


In nature too, 

tempests arrive (uninvited?)

sweeping across human shores 

and while going off 

Reducing to rubble 

thousands of homes, and hearths

heads of cattle,  bodies and bones.

.


The invisible gardener

knows what is destroying 

the beauty of its creation 

these tempests, 

natural and human, 

are beauty saloons at work

to keep the original design intact.

Dr. J.S. Aanand