सर्ग १
ज्ञान: खतरे का कार्यक्षेत्र
(रामायण से एक दृश्य , वन के परिवेश में)
सीता : प्रभु, देखिये न, कितना सुन्दर प्राणी है यह ?
यह सुनहरी मृग/
मेरा मन आकुल है इस सुन्दर जीव को पाने के लिए /
प्रभु , क्या आप इसे मेरे लिए ला देंगे?
राम : मुझे तो यह मायावी प्रतीत हो रहा है / भूल जाओ इसे /
सीता : यह मुझे बहुत आकर्षित कर रहा है, प्रभु/
क्या इस दुनिया में ऐसा कुछ है जो आपके लिए असम्भव हो?
राम : अगर तुम्हारी यही ज़िद है, मैं जाऊँगा इस जानवर को पकड़ने के लिए/
(राम प्रस्थान करते हैं , लक्ष्मण को सुरक्षा का ख़्याल रखने के लिए कहते हुए)
एक आवाज़ , एक चीख़ ,सीता के आतुर कानों तक पहुँचती है/
सीता: इतना समय बीत गया/ मेरे प्रभु जी वापिस नहीं आये/
लक्ष्मण, यह विचित्र चीख क्या है?
क्या तुम जा कर अपने भ्राता को खोजोगे ?
लक्ष्मण : मुझे तो यहीं रह कर, आपकी देखभाल करने के निर्देश दिए गए हैं, माता /
सीता : परन्तु , मैं चिंतित हूँ / जाओ और मेरे प्रभु की सुरक्षा सुनिश्चित करो/
लक्ष्मण: पर माते, मैं वचनबद्ध हूँ/
मैं नहीं जा सकता /
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सीता: मैं तुम्हे आदेश देती हूँ, लक्ष्मण /
( इस से वह विवश हो जाता है )
लक्ष्मण: अगर आपका यही आदेश है , मैं प्रस्थान करता हूँ/
मैं इस कुटिया के गिर्द एक रेखा खींच रहा हूँ/
इस दायरे से बहार आने का प्रयास मत कीजियेगा /
( लक्ष्मण प्रस्थान करते हैं/ और एक साधु का आगमन होता है/
साधु : भीक्ष्मदेह! (माते मुझे भिक्षा दें)
सीता : (उसे देख कर अचंभित होते हुए)
बाबा, आईये और भिक्षा ग्रहण कीजिये/
साधु: मैं यहाँ बैठ रहा हूँ/ आप यहाँ आईये और मुझे भिक्षा दीजिये/
सीता: परन्तु, बाबा, मैं वहाँ नहीं आ सकती/
साधु अग्नि रेखा को पार करने की कोशिश करता है / पर आग की एक लपट उसे रोक देती है/ तब वह उस दायरे से कुछ दूरी पर जा कर बैठ जाता है/
साधु: आपको ही बाहर आना पड़ेगा , माते/
अन्यथा,मैं आपको श्राप दे दूंगा/
भयभीत, सीता अब बाध्य हो गयी उस आग के दायरे से बाहर कदम बढ़ाने को /
और उसका अपहरण कर लिया गया, लंका अधिपति रावण के द्वारा, महादानव , जिसका ज्ञान दस मस्तिष्कों के बराबर था, सर्वाधिक बलशाली लंकापति/
सहगान :
सर्वाधिक बुद्धिमान , सर्वाधिक ज्ञानी
मनुष्य इस ब्रह्माण्ड का
कर रहा है अपवित्रीकरण
किया सीता का अपहरण
और अपने ही विनाश को दिया निमंत्रण
क्या ज्ञान की अति
अंततः मनुष्य से ऐसे अपराध करवाएगी
और अंत में अपने ही पतन की अदालत में खड़ा कर देगी ?
रावण इसी कलयुग की ही तो उत्पति है
अपने समय से कहीं आगे उत्पन्न हुआ
सम्पूर्ण रूप से उतर आधुनिक मनुष्य
जिसके प्रभुत्व में ज्ञान की परम शक्तियां होती हैं/
और उसकी लंका एक प्राचीन प्रारूप थी
न्यूयोर्क और रोम जैसे हमारे आधुनिक शहरों की
बदलते वक़्त के साथ साथ
उसे हम से जोड़ता है
उसका ज्ञान के प्रति घमंड
सत्ता के लिए उसकी लालसा
औरतों के प्रति उसकी वासना
और प्रभुत्व की असाधारण लोलुपता
उसका अंत क्या होता है ?
और क्या बदा होगा भाग्य में
इस प्राणी के, जिसने कि
लस्ट्स के हाथों में ही सौंप दिया हो
अपना सम्पूर्ण विश्वास ?
आदम :
उसने भव्य प्रबंध मेरे लिए किया था
मेरे स्वागत और देखभाल के लिए
जब मैं ठहरा उसके फार्म -हाउस पर (ईडन )
और यह सर्वथा निःशुल्क था, या पहले से ही भुगतान किया जा चुका था /
मुझे बिल्कुल भी आभास न था, कौन मेरे प्रति इतना दयालु था/
सब कुछ निःशुल्क था /
शीतल पेय और सुबह की चाय/
दोपहर के भोजन में ३६ व्यंजन और रात्रि-भोज में ? इतने ही /
दिन में, मुझे प्रसन्न रखने के लिए ,
हज़ारों विकर्षण या यूं कहें, आकर्षण
यहाँ सी. सी. टी. वी. कैमरे थे और भारी भरकम गार्ड्स
जो इर्द गिर्द ही खड़े रहते और करते सलाम
यह हरित सम्पदा का वैभव,
शीतल जल की झीलें और सुन्दर चेहरों के झुंड
व्यायामशाला, क्रीड़ा स्थल, गोल्फ रेंज और घुड़दौड़/
मैं स्वयं को पूर्णयतः सम्पन्न महसूस कर रहा था/
और जितना भी समय मैंने वहां बिताया
मुझे महसूस हो रहा था मेरा भरपूर ख्याल रखा जा रहा है/
मैं अत्यधिक आभारी था और
चाहता था उसे मिलना, उसका धन्यवाद करना/
परन्तु यह कभी संभव न हो पाया /
फिर भी, हर सुबह, जब मंद बयार मेरा स्वागत करती
मुझे सद्भावना भरा सन्देश मिलता /
मैं सारा दिन स्वतंत्र हूँ अपनी मनमानी करने के लिए/
मैं उपभोग कर सकता था उसके जंगलों का, उसकी नदियों का, उसके सागर का,
उसकी हवाओं का, उसके पहाड़ों का, उसके वृक्षों का और उन पर शोध कर सकता था
और नए नए अनुसन्धान कर सकता था /
परन्तु, कुछ सीमायें थी जिनके पार जाने की
मुझे अनुमति न थी/
उसके कुत्ते मुझ पर झपटने लगते/
उसके पहरेदार बहुत सख़्त थे /
मैं अक्सर उसका धन्यवाद करना भूल जाता
उन सुविधाओं के लिए जो उसने मुझे निशुल्कः दी थी /
मुझे उस से कोई शिक़वा न था ,
मैं इतना अधिक ख़ुश था उस फार्महाउस पर
परन्तु मुझे याद है कुत्ते मुझ पर झपट पड़ते
जब कभी भी मैं ग़लत व्यवहार करता
और मैं इतना अधिक उलझ गया था
अपने अनुसंधानों और परम्पराओं में कि
एक दिन ऐसा आया कि मैं स्मरणशून्य हो गया
और भूल गया कि यह फार्महाउस उसका है /
मैंने सोचा यह सब तो मेरा है, मैंने ही सब कुछ किया है /
आभार की भावना तो उड़नछू हो गयी
मैंने सोचा कि मैं यहाँ का स्थाई निवासी हूँ
और मनमर्ज़ी से जी सकता हूँ/
उनमुक्त इच्छा, उन्मुक्त आचरण
मैंने उसके कुत्तों को विष दे दिया/
उसके पहरेदारों की जान ले ली
और उन क्षेत्रों से भी परे देखने लगा
जिन पर 'वर्जित' चिन्हित था /
कौन था मैं? कैसे हुई मेरी उत्पति?
किसने मेरा यहाँ ठहराव सुनिश्चित किया?
किसने मुझे यह चेहरा, मेरा मस्तिष्क, मेरा रूपरंग दिया?
मेरे माता-पिता? मेरी संतति ?
मेरी पसंद और मेरी नापसंद ?
क्या मेरा चेहरा जिसे मैं अपना कहता था, मेरा है ?
अब तक, यह प्रश्न
मुझे क्रोधित करते हैं /
और अब मैं बिसरा चुका हूँ उस याद को
कि कभी मेरा कोई धनवान मित्र था
जिसने मुझे आमंत्रित किया था और
एक लम्बे अर्से तक आवाभगत की थी
और निशुल्कः /
(अपने उतर-आधुनिक अस्तित्व पर विचार करते हुए )
क्या मैं इस धरती पर भेजा गया था
मात्र समय मापने के लिए
वृद्ध होने के लिए
और अंततः एक दिन सभी को अलविदा कहने के लिए /
क्या वे लाखों लोग
बड़े किये गए थे, ग़ुलाम बनाने के लिए
कारख़ानों और निर्माण-स्थलों पर ,
केवल बोझ ढोने वाले जानवरों की तरह जीने के लिए/
यहां तक कि वो जो हाँकते हैं इन मज़दूरों को
जोकि दिन रात एक कर देते है, मेहनत करते हुए \
अपनी दौलत मापने में लगे रहते हैं
और गहरे घूंट भरते हैं
लाखों की मेहनत और विश्वास के दम पर
क्या वे किसी भी तरह उनसे बेहतर हैं ?
हो सकता है वे सोचते है कि
सारी प्रजाति में, वे सर्वोत्तम हैं ,
उन्हें वरद हस्त प्राप्त है
देवों का , जो उनसे कोई प्र्शन नहीं करते /
जो मनचाही कर सकते हैं
किसी के भी प्राण ले सकते हैं /
जिनके लिए कोई भी क़ानून नहीं है
और जिनके मुंह ख़ून का स्वाद लग चुका है
वे उतने ही है असम्बद्ध, जितने की वे
जो अभावों की पीड़ा को झेलते हैं
यह कोई दैवीय व्यवस्था नहीं थी
कि मनुष्य असमान और अन्यायी हों
और इस दुनिया में
केवल विजेता हों और शिकार हों /
यदि मैं इस संघर्ष के एक अंश के रूप में पैदा हुआ हूँ
और भरपेट भोजन जुटाने में असमर्थ रहता हूँ
यदि मेरे पास पर्याप्त धन है
और फ़िर भी धनोपार्जन
हावी रहता है मेरे दिल-ओ -दिमाग पर ?
यदि केवल जीवित रहना ही मेरा परम लक्ष्य है
मैं खुद हैरान हूँ कि मैं प्रासंगिक हूँ या अप्रासंगिक ?
क्या प्रभु ऐसी गलतियाँ कर सकते हैं
कि मानव मात्र दुःख भोगने के लिए ही पैदा हुआ है
या फिर केवल दूसरों को दुःख देने के लिए ही पैदा हुआ है
क्या हमें इतनी बेशक़ीमती ज़िन्दगी
केवल अपना पेट भरने के लिए मिली है और, कुछ भी नहीं
सिवाय इसके की एक दिन हम यूं ही मर जाएँ निरर्थक ?
दैवीय वाणी :
नदियों और पहाड़ों से पूछो
कैसे कायम रखते हैं वे
अपनी मर्यादा और उत्तेजनाहीनता
वे शान्तिप्रद जीवन में यकीन रखते हैं /
मानवता की सहस्त्रों वस्तुएँ प्रदान करते हैं
और कोई भेद-भाव नहीं करते/
पक्षियों की प्रजाति में अनुपात का तीव्र बोध होता है
आवश्यकता से अधिक एक भी दाना नहीं खाते ,
भविष्य के लिए एक भी दाना संग्रहित नहीं करते /
वे प्रकृति का ही एक अंश है, ख़ुश और आनंदित
और सदैव उचित संतुलन में रहते है/
मानव प्रजाति की शांति भंग होती है
क्योंकि वे इस प्रवाह को भंग करते हैं
और शाश्वत संतुलन को बिगाड़ते हैं /
केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है
जो शांत-प्रिय लोगों की दयालुता पूर्ण जाति से विदा हो जाता है
और इस ग्रह के संतुलन को नष्ट करने में लिप्त है/
सूर्य के प्रकाश को दबोचना चाहता है, पानी का स्वामीतित्त्व चाहता है/
हवा को झपटना चाहता है और सारी खुशियां क़ैद करना चाहता है /
वह सनकी इंसान !
हवा पर हुकूमत जताना चाहता है
घोटाले करता है
और भगवान का प्रचार करता है /
गायक :
हे देवों, अरे दानवों
मेरा तुम से कोई सम्बद्ध नहीं
मैं दीवाना हूँ ,
क्या मैं लीयर हूँ?
अरे नहीं. मैं मेकबेथ हूँ।
नहीं, नहीं, नहीं, मैं फ़ॉस्टस हूँ/
फ़ॉस्टस,जो दानवों के पास गया
क्या मैं एक दानव हूँ ?
सेटन ! तुम कहाँ हो?
मुझे कुछ धुंधला धुंधला याद है
मैंने विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी
कोई नौकरी नहीं
कोई ज्ञान नहीं
कोई प्यार नहीं
केवल अधिक से अधिक पाने की ललक,
किस लिए? किसके लिए?
क्या मैं इस दुनिया में केवल आजीविका कमाने के लिए आया हूँ
और उधार की किश्तें चुकाते चुकाते मरने के लिए आया हूँ
अपने बच्चों का भरण -पोषण करने के अलावा क्या और कुछ भी नहीं ?
अरे .... मंदिर, मस्ज़िद , गिरिजाघरो
जहां वे चर्चा करते हैं राजनीति पर
हे,... देवगण
क्या आप भी शैतान में यकीन रखते हैं?
यह जन्म, यह संसार, यह शिक्षा ,
यह प्यार, यह करुणा ,
यह धनवान संसार और बेचारा मैं
क्या यह सब अप्रासंगिक हैं /
क्या मुझ में विषमता है ?
एक मूर्खता है ?
हे बैकेट !
मुझे समझने में मदद करो
गोडोट कौन था और वह आया या नहीं?
मैं जा रहा हूँ
अरे गायको , अरे कवियो, अरे दार्शनिक लोगो
सुनो !
तुम्हारा आदमी अप्रासंगिक है /
वह मरने के लिए ही पैदा हुआ है/
केवल मरने के लिए /
कुछ भी नहीं करने के लिए/
हा हा हा हा हा हा
दानवों ! तुम्हे सलाम
तुम्हे सलाम , हे,सेटन!
और तुम्हारे सगे सम्बन्धियों को, हे लस्टस !
मेरे पास करने लायक कुछ नहीं,
विचारने लायक कुछ नहीं,
करने लायक कुछ नहीं ,
मुझे तो बस नष्ट ही होना है /
हा हा हा हा हा हा
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