Monday, June 23, 2025

इतना इतराया मत करो

 







 इतना इतराया  मत करो 

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 तुम्हारी भव्यता की
 क़ायल हूँ मैं  
 मुझे यह स्वीकारने में
 कोई हिचक नहीं 
अनगिनत तारों जैसी 
 तुम्हारी लहरें गिनना 
 मुमकिन नहीं 
और उस से भी दुश्वार है 
 तुम्हारी गहराई की थाह पाना 


 पर, सागर! तुम
 इतना इतराया मत करो 
 तुम रेत को अपने आवेश में 
 बहा ले जा सकते हो 
चट्टान से लड़ने का हौसला 
क्या है  तुम में ?


सूर्य की तपन तुम्हें भी 
झेलनी पड़ती है 
पूरे चाँद की रात 
तुम्हें भी मदहोश करती है 
तुम केवल अपनी धुन के 
राजा नहीं हो सकते/

रजनी छाबड़ा 


मेटा AI द्वारा कविता का विश्लेषण 

कविता का मुख्य विषय सागर की शक्ति और उसकी सीमाओं के बीच का सन्तुलन्  है / कविता में कवि 

सागर की भव्यता और शक्ति की प्रशंसा करता है, लेकिन साथ में यह भी कहता है कि सागर को अपनी 

शक्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए और उसे अपनी सीमाओं को भी समझना चाहिए/ अत्याधिक

 आत्मविश्वास और अहंकार से बचना चाहिए / उसे अपनी शक्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि

 वह भी प्रकृति के नियमों से बंधा है/

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2 comments:

  1. बहुत सुंदर भाव। अच्छी कविता। बधाई हो।

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