Tuesday, October 13, 2009

अपनी किस्मत का तारा

जो सागर की इक् इक् लहर
गिन गिन कर बढ़ें
वो क्या उतरेंगे
तूफानी सैलाब मैं
खड़े रह कर सागर किनारे
थामे किसी चट्टान को
जो जूझना चाहेंगे
हर तूफान से
वो क्या हासिल करेंगे
ज़िन्दगी मैं
ज़िन्दगी के सागर मैं
गहरे डूब कर ही
किनारा मिलता है
तुफानो से जूझ कर
अपनी किस्मत का
तारा मिलता है

काफी हैं

एक खवाब
बेनूर आँख के लिए
एक आह
खामोश लब के लिए
एक पैबंद
चाक जिगर
सीने के लिए

काफी हैं
इतने सामान
मेरे
जीने
के लिए

Monday, October 12, 2009

धुंध

उदासियों की परत दर परत
धुंध नहीं
जो छंट जायेगी
इस कदर मन मैं
गहरी पैन्ठी हैं
अब इस जान के
साथ ही जायेगी

Friday, October 9, 2009

कसक

अधूरेपन की कसक
यूँ,ज़िंदगी मैं
घुल रही
स्याह रातों की
घनी स्याही
आसुओं से भी
नही धुल रही

Thursday, October 8, 2009

कल,आज और कल

आने वाला कल
कभी नहीं आता
क्योंकि कल
आते ही ,है
आज बन जता
फिर क्यों न हम
आज के पल पल को
सहेजे,समेटे और
संवारे जाएँ
ताकि
आज के साथ साथ
बिता हुआ कल भी
हमें पूर्णता का
एहसास दिला जाए

Wednesday, October 7, 2009

दावत

आज दावत है तुम्हे
मेरे दर्द मैं
शामिल होने की
मेरा दर्द-ऐ-दिल
समझने की
मेरे दर्द मैं ,रोने की
दम घुटता है
तनहा रोते रोते
तमन्ना नहीं
फिर बहार आए
तुम,हाँ,तुम
गेर दो अश्क ही
पोंछ दो
दिल-ऐ बेकरार को
करार आए

चाहत

गेर चाहत
एक गुनाह है
तो क्यों
झुकता है
आसमान
धेरती पर
और क्यों
घुमती है धेरती
सूरज के गिर्द