Wednesday, October 12, 2016

सिर्फ़ अपना


सिर्फ़ अपना

खुशियों पर अमूनन
ज़माने का पहरा होता है/

गम सिर्फ अपना होता है
जब बहुत गहरा होता है/


ਸਿਰਫ ਆਪਣਾ 

ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਤੇ ਅਕਸਰ 
ਜ਼ਮਾਨੇ ਦਾ ਪਹਿਰਾ ਹੁੰਦਾ ਹੇ 

ਗਮ ਸਿਰਫ ਆਪਣਾ ਹੁੰਦਾ ਹੇ 
ਜਦੋਂ ਬੋਹੜ ਗਹਿਰਾ ਹੁੰਦਾ ਹੇ 



Tuesday, October 11, 2016

क़िरदार

वक़्त के लंबे सफर में
क़िरदार यूं बदल जाते हैं
वो जो कल चला करते थे
थामे अंगुली हमारी
वही आज हमें
राह दिखाते हैं/

Saturday, August 13, 2016

अविश्वसनीय परन्तु अत्यन्त दुखद समाचार की हम सबके अतिप्रिय राजस्थानी व् हिंदी भाषा के सुप्रसिद्ध कवि व आलोचक ओम पुरोहित जी कागद जी का आज सड़क दुर्घटना में आकस्मिक , असामयिक निधन हो गया/ परमात्मा उनकी आत्मा को  शांति दे व् उनके परिवार को एवम  समस्त साहित्य जगत को यह सदमा सहने की शक्ति दे/
ओम जी गत 2  वर्षों से मेरे फेसबुक मित्र थे और मई में मेरे बीकानेर प्रवास के दौरान मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था/ मेरे निवास स्थान पर पधारे थे/ सरल स्वभाव और सादगी पूर्ण व्यक्तित्व/ उनकी मिलनसारिता से बहुत प्रभावित हुए , मैं और मेरे परिवार के सदस्य/ मेरे दोनों हिदी काव्य संग्रह की समीक्षा भी उन्होंने लिखी थी और मैंने  भी इन दिनों उनकी कुछ चुनिंदा हिंदी व् राजस्थानी कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था /  आत्मीय लगाव था  उनसे/ उनकी कमी हमेशा महसूस होगी/

आप सब के साथ उनका जीवनवृतांत व् साहित्यिक उपलब्धियाँ सांझा कर रही हूँ;ओम जी ने कुछ समय पहले  यह सब जानकारी मुझे मेल भेजकर उपलब्ध करवाई क्योँकि में उनकी रचनाओं के अनुवाद कार्य के प्रोजेक्ट में उनकी साथ थी/ अपने उत्कृष्ट लेखन के माध्यम से ओम जी हमेशा हमारे साथ रहेंगे/

ओम पुरोहित "कागद"
जलम- 05 जुलाई 1957, केसरीसिंहपुर (श्रीगंगानगर)
भणाई- एम.ए. (इतिहास), बी.एड. एवम राजस्थानी विशारद
छप्योडी पोथ्यां - [ हिन्दी ] :- धूप क्यों छेड़ती है (कविता संग्रह), थिरकती है तृष्णा (कविता संग्रह) आदमी नहीं है(कवितासंग्रह), कागज पर सूरज (कवितासंग्रह) मीठे बोलों की शब्दपरी (बाल कविता संग्रह), मरूधरा (सम्पादित विविधा), जंगल मत काटो (बाल नाटक), रंगो की दुनिया (बाल विविधा), सीतानहीं मानी (बाल कहानी),राधा की नानी (बाल कहानी), ज़ंगीरो की जंग ( साक्षरता कहानी)
छप्योडी पोथ्यां - [ राजस्थानी ] :-  अन्तस री बळत (कविता संग्रै), कुचरणी, (कविता संग्रै),सबद गळगळा (कविता संग्रै) , बात तो ही(कविता संग्रै), कुचरण्यां (कविता संग्रै), पचलड़ी (कविता संग्रै), आंख भर चितराम (कविता संग्रै) , भोत अंधारो है (कविता संग्रै)  मायड़ भाषा राजस्थानी [ भाषा विमर्ष ] ।
सम्पादन : राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर री मासिक पत्रिका "जागती जोत  " रो दो वर्ष ताईं सम्पादन , अणछपिया राजस्थानी कवियां री कवितावां रा सात संकलन "थार सपतक" रो सम्पादन , विविध रचना संकलन "मरुधरा" रो सम्पादन , विद्यालयी खेल स्मारिका " भटनेरिका , संगम , ज्वाला संदेश रो सम्पादन , जिला साक्षरता समिति रै समाचार पत्र "आखर भटनेर" रो सम्पादन 
पाठ्यक्रम : माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान री हायर सैकण्डरी री राजस्थानी पाठ्य पुस्तक में रचना संकलित  , साक्षरता पुस्तक "आखर मेडी़-1-2-3" रो अर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा री तीसरी अर पांचवीं कक्षावां री पाठ्य पुस्तकां रो लेखन "
प्रसारण : दूरदर्शन एवम आकाशवाणी सूं रचनावां रो लगोलग प्रसारण
पुरस्कार अर सनमान- राजस्थान साहित्य अकादमी रो ‘आदमी नहीं है’ कविता संग्रह माथै काव्य विधा रो सर्वोच्च पुरस्कार ‘सुधीन्द्र पुरस्कार’, राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रो कविता संग्रह ‘बात तो ही’ पर काव्य विधा का सर्वोच्च पुरस्कार । महाकवि कन्हैयालाल सेटिया मायड़ भाषा सम्मान, भारतीय कला साहित्य परिषद, भादरा खानीं सूं कवि गोपी कृष्ण ‘दादा’ राजस्थानी पुरस्कार, स्रुजन संस्थान , श्रीगंगानगर , जिला प्रशासन, हनुमानगढ़ सूं कई बार सम्मानित, सरस्वती साहित्यिक संस्था (परलीका) सूं सम्मानित ।
जुडाव : 1- राजस्थान साहित्य अकदमी , उदयपुर री सरस्वती सभा रा सदस्य रह्या । 2-राजस्थान भाषा, साहित्य एवम संस्कृति अकदमी , बीकानेर री उपसमिति में  सदस्य रह्या ।
सम्प्रति-  शैक्षिक प्रकोष्ठ अधिकारी , कार्यालय जिला शिक्षा अधिकारी [मा] , हनुमानगढ ।
            शिक्षा विभाग, राजस्थान 

 ब्लोग - www.omkagad.blogspot.com

















रजनी छाबड़ा

Sunday, July 17, 2016

सिमटते पँख

सिमटते पँख

पर्वत, सागर, अट्टालिकाएं
अनदेखी कर सब बाधाएं
उन्मुक्त उड़ने की चाह को
आ गया है
खुद बखुद ठहराव

रुकना ही न जो जानते थे कभी
बँधे बँधे से चलते हैं वहीँ पाँव

उम्र का आ गया है ऐसा पड़ाव
सपनों को लगने लगा है विराम
सिमटने लगे हैं पँख
नहीं लुभाते अब नए आयाम


बँधी बँधी रफ़्तार से
बेमज़ा है ज़िंदगी का सफ
अनकहे शब्दों को
क्यों न आस की कहानी दें
देरुके रुके क़दमों को
फिर कोई रवानी दें दे/


रजनी छाबड़ा
प्रातः ८.५५
१८/७/२०१६

Tuesday, June 28, 2016

http://www.globalrecorder.com/books-hidden/480-2016-06-28-05-41-59.html

Thursday, June 16, 2016

जानी मानी अंकशास्त्री रजनी छाबड़ा की नई पुस्तक पिघलते हिमखण्ड कूरियर से  मिली है।
यह उनका नया काव्य संग्रह है। इससे पहले नई दिल्ली में वर्ल्ड बुक फेयर में भी एक काव्य संग्रह का विमोचन हुआ था और उस आयोजन का साक्षी बनने का सौभाग्य मिला था।

रजनी जी को नई पुस्तक की सफलता की शुभकामनाएं

Selfy with पिघलते हिमखण्ड

 विनोद गौड़ 
संपादक  दैनिक भास्कर ,कुचामन सिटी , राजस्थान 

Wednesday, April 20, 2016

मेरे तृतीय  काव्य संग्रह 'पिघलते हिमखंड' को लोकार्पण आज हमारे बेंगलोर स्थित निवास स्थान पर सम्पन्न हुआ /इसे मेरा सौभाग्य मानती हूँ की तीनो काव्य संग्रह दिल्ली के प्रतिष्ठित प्रकाशन 'अयन प्रकाशन ' द्वारा क्रमश अक्टूबर २०१५,, जनवरी २०१६ और आज २० अप्रैल को प्रकाशित और लोकार्पित हुए और इन सभी की प्रथम प्रति मुझे 

श्री भूपाल सूद ( प्रकाशक महोदय) व् श्रीमती चन्द्र  प्रभा सूद के कर कमलों से प्राप्त हुई /