तितली
तुम इतना इतराया मत करो
बेख़ौफ़ बगिया में
आया जाया न करो
न जाने कब
कोई रीझ जाये
तुम पर और
तुम्हारी मासूम अदाओं पर
और तुम बेक़सूर
सिमट कर रह जाओ
शोख रंगों के साथ
किताबों के पन्नों में
किसी का मन बहलाने को/
रजनी छाबड़ा
तुम इतना इतराया मत करो
बेख़ौफ़ बगिया में
आया जाया न करो
न जाने कब
कोई रीझ जाये
तुम पर और
तुम्हारी मासूम अदाओं पर
और तुम बेक़सूर
सिमट कर रह जाओ
शोख रंगों के साथ
किताबों के पन्नों में
किसी का मन बहलाने को/
रजनी छाबड़ा
| Sat, Jul 24, 2:56 PM (1 day ago) | ||
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रजनी छाबड़ा (जुलाई 3, 1955)
पत्नी : स्व. श्री सुभाष चंद्र छाबड़ा
राष्ट्रीयता : भारतीय
जन्मस्थान : देहली
सेवानिवृत व्याख्याता (अंग्रेज़ी), बहुभाषीय कवयित्री व् अनुवादिका, ब्लॉगर, Ruminations, Glimpses (U G C Journals) की सम्पादकीय टीम सदस्य, W.U.P. की इंटरनेशनल डायरेक्टर 20, ग्लोबल एम्बेसडर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड पीस (I H R A C), स्टार एम्बेसडर ऑफ़ वर्ल्ड पोइट्री, सी इ. ओ व् सस्थापक www.numeropath.com ,
प्रकाशित पुस्तकें : 4 हिंदी काव्य संग्रह 'होने से न होने तक', 'पिघलते हिमखंड', आस की कूची से , बात सिर्फ इतनी सी ', इंग्लिश पोइट्री Mortgaged, Maiden Step, अंकशास्त्र और नामंक्-शास्त्र पर 13 पुस्तकें
अनुदित
पुस्तकें : राजस्थानी, हिंदी , पंजाबी व् नेपाली से २१ पुस्तकें इंग्लिश में प्रकाशित, मेरे २ हिंदी काव्य संग्रह 'होने से न होने तक' व् 'पिघलते हिमखंड' मैथिली और
पंजाबी में व् अंग्रेज़ी काव्य संग्रह Mortgaged बांग्ला और राजस्थानी में अनुदित व् चुनिन्दा कविताएँ 11 क्षेत्रीय भाषाओँ में अनुदित
स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काव्य सम्मेलनों में भागीदारी व् 7 अंतर्राष्ट्रीय काव्य संग्रहों में रचनाएँ सम्मिलित
किंडल बुक
पब्लिशिंग से ४५ इ बुक्स प्रकाशित
You tube
channel : therajni 56
e mail : rajni. numerologist @ gmail.com
उपहार पा कर ख़ुश होना हमारा विशिष्ट मानवीय स्वभाव है/ यह खुशनुमा एहसास और भी बढ़ जाता है , जब लेखक आशीष भरे वचनों के साथ, सस्नेह उपहार दें और अत्यन्त विनम्रता पूर्वक भी/
ऐसा ही खुशी भरा दिन है आज मेरे लिए/ पंजाबी और हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर मान्यवर ओम प्रकाश गासो जी ने आज मुझे हिंदी की २ नवीनतम काव्य कृतियाँ डाक से प्रेषित की/ कुछ दिनों पूर्व, तेजिंदर चण्डहोक जी ने उन्हें मेरे हिंदी काव्य संग्रह पिघलते हिमखंड का उनके द्वारा किया गया पंजाबी अनुवाद पिघलदा हिमालय भेंट किया था/ गासो जी को पुस्तक बहुत पसंद आयी / उनकी किताबों के साथ ही साथ उनका पत्र भी प्राप्त हुआ जिस में उन्होंने लिखा , " रजनी छाबड़ा की रचना पिघलता हिमालय पढ़ कर मैं पिघल गया / पिघल जाना पानी जैसा होता है ; मन में लहार सी उठी /'' उनके स्नेहिल व्यवहार से अभिभूत हूँ/ बरनाला साहित्य जगत में उन्हें सब बापू जी कह कर सम्बोधित करते हैं/
बापू जी की आभारी हूँ ,उनके आशीर्वचन और अमूल्य उपहार के लिए/
इन दिनों
*********
ज़िन्दगी की आपाधापी में
उलझा इन्सान , इन दिनों
विषम परिस्थितयों से उंबरने की
स्वयं तलाशता हैं राह
कोविड के इस दौर में
नहीं रह सकता किसी के सहारे
मनोबल ही उसका सच्चा सहारा
उसकी अचूक ढाल
जिस से दुःख करता हैं किनारा
रजनी छाबड़ा
ठहरा पानी
**********
वक़्त की झील का
ठहरा पानी
कोई लहरें नहीं
न हलचल , न रवानी
कोई सरसराती
गुनगुनाती
हवा नहीं
कोई चटक धूप
न कोई दैवीय अनुभूति
न मंदिरों से
कोई मंत्रों के गूंज
ज़िन्दगी कुछ ऐसी ही
बेरंग हो गयी है
कोरोना काल में
मन तरसता है
बच्चों को स्कूल जाते हुए
देखने के लिए
या पार्क में
मौज़ मस्ती से खेलते हुए
मन तरसता है
सुनसान पड़ी सड़कों पर
फिर से उमड़ता
यातायात देखने के लिए
शॉपिग कॉम्प्लेक्स के
फिर से देर रात तक
व्यस्त रहने की झलक के लिए
आमजन घूम सके उन्मुक्त
घर की कैद से होकर मुक्त
अपने प्रियजन से , चाह कर भी
न मिल पाने की मज़बूरी
न जाने कब दूर होगी
यह कसक, यह दूरी
मैं करती हूँ प्रभु को आह्वान
लौटा दे हमें , वो बीते दिन
तन -मन की आज़ादी
बीते वक़्त का कर दे दोहरान /
रजनी छाबड़ा
मन की बात मन से
एक लम्बे अरसे के बाद हिंदी में काव्य रचना की की है/ लिखना मेरे नित्य कर्म नहीं, परन्तु जब भी अपने आस पास कुछ ऐसा घटित होता है जो मेरे अंर्तमन को झकझोर दे, उसे कलमबद्ध करने के लिए अनायास ही तत्पर हो जाती हूँ/ सामाजिक परिवेश की कुछ खामियां, कुछ अच्छाईयां दोनों ही गहरा असर छोड़ती हैं : या कुछ ऐसी स्मृतियाँ जो मन के पटल पर बार बार उभरती है, मुझे काव्य रचना के लिए उकसाती हैं
मैं लिखती नहीं
कागज़ पर मेरे ज़ज़्बात बहते है
कह न पायी जो कभी दबे होंठों से
वही अनकही कहानी कहते हैं
आरंभिक कवितायेँ प्रकृति - सौंदर्य पर लिखी , जब में श्रीनागर में अध्ययन रत थी और फिर एक लम्बे अंतराल के बात राजस्थान की सुनहरी धरा पर काव्य सृजन शुरू हुआ/ स्वैच्छिक सेवा निवृति के उपरान्त, हिंदी, अँग्रेज़ी और पंजाबी में मौलिक सृजन के साथ ही हिंदी, पंजाबी , उर्दू और राजस्थानी से अंग्रेज़ी मैं अनुसृजन का सिलसिला भी अनवरत चल रहा है/
कोविड 19 विभीषिका के दौरान ज़िंदगी के कुछ अनदेखे पहलू देखे/ एक अलग ही दौर से गुजरना पड़ा / अपने आस पास के वातावरण सेअछूती नहीं रही/विषम परिस्थितियों के बावजूद , परमात्मा के प्रति विश्वास में कोई कमी नहीं आने पायी / इस मनस्थिति को भी कलमबद्ध करने का प्रयास किया है/
विश्वास है कि आस और विश्वास के ताने बाने से बुना, मेरा काव्य संग्रह 'आस के कूची से' आपको पसंद आएगा /आप सभी सुधि पाठकों की प्रतिक्रिया जानने की उत्सुकता रहेगी /
रजनी छाबड़ा
बहु भाषीय कवयित्री, अनुवदिका व् अंकशास्त्री
1.याद करते हैं
कभी कभी
दो क़तरे नेह के
दे जाते हैं
सागर सा एहसास
कभी कभी
सागर भी
प्यास बुझा नहीं पाता
जाने यह प्यास का
कैसा सिलसिला
कैसा यह नाता
36. ऊँची उडान
50 . फुर्सत
ज़िन्दगी ने तो मुझे
कभी फुर्सत न दी
ऐ मौत !
तू ही कुछ मोहलत दे
अता करने है अभी
कुछ क़र्ज़ ज़िंदगी के
अदा करने हैं अभी
कुछ फर्ज़ ज़िंदगी के
अधूरी हैं तमन्ना अभी
मंज़िल को पाने की
पेशतर इसके कि
खो जाऊं
गुमनुमा अंधेरों में
चंद चिराग़
रोशन करने की
ऐ मौत! तू ही
कुछ मोहलत दे/
ज़िंदगी ने तो मुझे
कभी फुरसत न दी
ऐ मौत! तू ही
कुछ मोहलत दे
51. पक्षपात
दोष लगेगा
उस पर
पक्षपात का
गर ज़रा सा
भी दुःख
न वह देगा मुझे
मैं भी तो
एक ज़र्रा हूँ
उसकी कायनात
का
उसी कारवां
की एक मुसाफिर
सुख दुःख की
छावों मैं
चलते हैं
जहां सभी
अछूती रही
गर
दुनिया के
दस्तूर से
क्या
रूस्वाँ न होगा
मेरा
मुक्कदर
लिखने वाला
52 . इन दिनों
ज़िन्दगी की आपाधापी में
उलझा इन्सान , इन दिनों
विषम परिस्थितयों से उंबरने की
स्वयं तलाशता हैं राह
कोविड के इस दौर में
नहीं रह सकता किसी के सहारे
मनोबल ही उसका सच्चा सहारा
उसकी अचूक ढाल
जिस से दुःख करता हैं किनारा
53 . ठहरा पानी
वक़्त की झील का
ठहरा पानी
कोई लहरें नहीं
न हलचल , न रवानी
कोई सरसराती
गुनगुनाती
हवा नहीं
कोई चटक धूप
न कोई दैवीय अनुभूति
न मंदिरों से
कोई मंत्रों की गूंज
ज़िन्दगी कुछ ऐसी ही
बेरंग हो गयी है
कोरोना काल में
मन तरसता है
बच्चों को स्कूल जाते हुए
देखने के लिए
या पार्क में
मौज़ मस्ती से खेलते हुए
मन तरसता है
सुनसान पड़ी सड़कों पर
फिर से उमड़ता
यातायात देखने के लिए
शॉपिग कॉम्प्लेक्स के
फिर से देर रात तक
व्यस्त रहने की झलक के लिए
आमजन घूम सके उन्मुक्त
घर की कैद से होकर मुक्त
अपने प्रियजन से , चाह कर भी
न मिल पाने की मज़बूरी
न जाने कब दूर होगी
यह कसक, यह दूरी
मैं करती हूँ प्रभु को आह्वान
लौटा दे हमें , वो बीते दिन
तन -मन की आज़ादी
बीते वक़्त का कर दे दोहरान
54 . वीरान बाग़
फूलों से लहलाहते बाग़ में
फूलों सरीखे नाज़ुक, शोख
किलकारते बच्चे खेला
करते थे
झूले कम पड़ जाते थे
और
खेलने की जगह भी
सीमित सी
सुनसान, वीरान सा वही बाग़
सूनी
आँखों से इंतज़ार करता है उनका
झूलों
की बारी के लिए अब कोई होड़ नहीं
कोई
छुप्पा छुपी, पकड़न पकड़ायी, कोई
दौड़ नहीं
सूना पड़ा, उदास सा बाग़
बरबस याद दिलाता है
मुझे
१९६४ में स्कूल में
पढी गयी
स्वार्थी दानव की
कहानी
लॉकडाउन से थम सी गयी
है
बचपन की रवानी
58 . वीराँगना
वक़्त के अंधेरों से
मत घबरा,ऐ मन
बादलों के
आख़िरी छोर पर
झलकती बिजली का
तू कर आंकलन
खिलती है जब
शबनमी धूप
सर्द हवाओं के बाद
उसकी नाज़ुक नाज़ुक
छुअन से होता है
गुलशन का
कोना कोना आबाद
सुख और दुःख
संग संग सहने में ही
जीवन की सहजता है
काँटों का लम्बा सफर
तय कर के ही
ग़ुलाब शान से
महकता है/
61. आस की कूची
आस की कूची से
ज़िंदगी के कैनवास पर
आओ कुछ चित्र उकेरे
खुशियों के रंग बिखेरें
प्यार की लालिमा सा रक्तिम
और सुनहरे दिनों सा पीला रंग
अम्बर से विस्तार का नीला
और खुशहाली का हरा रंग
सपनों का नारंगी और
मन आँगन की शुचिता का धवल रंग
दूर रहे बैंजनी विषाद
जीवन सब का रहे आबाद