Tuesday, November 22, 2016

मानुष

  •  बंगाली के ख्यातिनाम कवि काज़ी नज़रुल इस्लाम की सुप्रिसद्ध बंगाली कविता 'मानुष' का मेरे द्धारा किया गया हिंदी में अनुवाद/उन्होंने देशभक्ति पर आधारित १००० से अधिक गीत लिखे और विद्रोही कवि  के रूप में प्रसिद्ध हैं/मेरा यह अनुवाद कार्य बंगलादेश के प्रसिद्ध कवि श्यामल कुमार द्धारा मानुष कविता के इंग्लिश अनुवाद पर आधारित है/
  • मानुष 
आओ, हम समानता के गीत गुनगुनाएँ 
क्योंकि मनुष्य अन्य सभी प्राणियों से
अधिक श्रेष्ठ और अतुलनीय है 
यहाँ तक कि गुण स्वभाव में 
नहीं रखता कोई भेदभाव. 

हे आराधना करने वाले, द्धार खोलो 

पूजा का समय हो रहा है/
देववाणी का सपना देखता है पुजारी 
और जाग उठता है बेहिचक 
एक राजा या उसके जैसे ही उत्साह के साथ 

परन्तु यह आवाज तो थी 

एक चीथड़ों में लिपटे, दुबले पतले राही की 
"मुझे कुछ प्रसाद दो,
मैं भूखा हूँ सात दिन से/ "

अनायास ही द्धार बंद कर दिया गया 

उसकी आँखों के सामने ही 
चल दिया राही वहाँ से 
परन्तु भूख के माणक 
ज्वलंत होने लगे/
उस अँधियारी रात में 

उसने आह भर कर कहा 
" इस मंदिर का शासक तो वह पुजारी है 
प्रभु, तुम नहीं"

कल एक मस्ज़िद में 

एक पारंपरिक दावत थी 
एक बड़ी तादाद में गोश्त और रोटी को 
किसी ने छुआ तक नहीं था/
जिसे देख कर मुल्ला के चेहरे पर
मुस्कान खिल उठी थी /


उसी समय एक राहगीर , जिसके चेहरे पर 
एक अरसे की भुखमरी झलक रही थी 
उसके क़रीब आ कर बोला 
"अब्बा जान, आज सहित एक हफ्ते से भूखा हूँ 
मुझे कुछ खाना खाने की इजाजत दीजिये"


इस पर वह मुल्ला बहुत बेरुखी से उसके पास पहुंचा 
और बोला,"क्या बेकार की बातें करते हो 
अरे ! बदमाश, अगर तुम भूखे हो 
यहाँ से कहीं दूर चले जाओ 
राहगीर , क्या तुमने कभी अल्लाह की इबादत की है?"
"नहीं , अब्बा जान," उसने जवाब दिया /
दफा हो जाओ"  मुल्ला चिल्लाया /
सारा गोश्त और रोटी उठाते हुए,
मुल्ला से मस्जिद को ताला लगाया/


राहगीर चलता गया बुदबुदाते हुए
इस से पहले मैं  कभी एक दिन के लिए भी 
भूखा नहीं रहा था/
लगातार अस्सी साल तक 
ख़ुदा की इबादत न करने के बावजूद भी /
पर आज ही ऐसा हुआ /
हे! प्रभु साधारण आदमी को कोई अधिकार नहीं 
तुम्हारी मस्ज़िद या मन्दिर में आने का/
मुल्ला और पुजारियों ने बंद कर दिए हैं सब दरवाज़े /


कहाँ हैं चंगेज़, ग़ज़नी का महमूद और कल्पाहार 
सभी मन्दिरो, मस्जिदों के बन्द दरवाज़ों के ताले खोलो 
किसकी हिम्मत है कि दरवाज़े बंद करे
और मुख्य द्धार पर ताले लगा दे 
इस सब के द्धार खुले ही रहने चाहिए 
हथौड़े और छैनी उठाओ और शुरू करो अभियान/


उफ़ ! मंदिरो के शिखर पर चढे नकली लोग 
स्वार्थ की विजय के गीत गाते हैं 
मानव मात्र से घृणा करते हुए 
लगातार चूमते रहते हैं
 क़ुरान, वेद और बाइबल
तुम बलपूर्वक वापिस ले लो उनसे 
उन पुराणों और धार्मिक किताबों  से 
दूर कर दो उनके लब /


उन लोगो को यातनाएं दे रहे हैं वो, 
जो पुराणों से दूर हो गए 
और यह बनावटी लोग
ग्रन्थों की पूजा कर रहें हैं/
मेरी बात पर ध्यान दो 
पुराण मनुष्यों द्धारा रचे गए 
किसी पुराण से मनुष्य नहीं रचे/


आदम, दाऊद, ईशा, मूसा , अब्राहम, मुहम्मद 
कृष्णा,बुद्धा , नानक और क़बीर 
सब इस दुनिया की विभूतियाँ हैं/
हम उनकी संतान हैं और उनके रिश्तेदार हैं,
हमारी धमनियों और शिराओं में उनका रक्त बहता है/
यही नहीं, हमारी शारिरिक सरंचना भी उन जैसी है 


कोई नहीं जानता, वक़्त के किसी मोड़ पर 
हम भी बदल कर उन जैसे हो जाएँ /
प्रिय मित्रों, मेरी हँसी न उडाओं,
मेरा अस्तित्व कितना गहरा और अथाह है 
न तो मुझे मालूम है ,न किसी और को 
 कौन सा महान प्राणी, मुझ में ही बसता है/


हो सकता है कालकी मुझ में अवतरित हो रही हो 
और मेहदी ईशा तुम में 
किसी को किसी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी कहाँ /
किसी के पद, किस की पहुँच हो जाए/
तुम किसी भी भाई से नफरत कर रहे हो 
या किसी को ठोकरें मार रहे हो 
हो सकता है उस के मन में 
भगवान् जागृत हो रहें हों/ 
या यह भी हो सकता है कि 
वह कुछ भी नहीं हो,
संभव हैं वह दीन हीन जीवन जी रहा हो,
आहत और दुःखों से टूटा हुआ/
परन्तु यह शरीर मात्र ही इतना पवित्र हैं कि 
यह संसार के सब ग्रन्थों और पुराणों से ऊपर है/

हो सकता है वह अपने शुक्राणुओं से,अपने घर में 
उत्पन्न कर  रहा हो, एक ऐसा विलक्षण जीव 
जो दुर्लभ हो इतिहास में 
एक ऐसा उपदेश जो कभी किसी ने सुना न हो 
एक ऐसी महाशक्ति जो पहले कभी किसी ने देखी न हो 
संभवतः यही और वह इस झोपड़ें के अस्तित्व में हो/

कौन है वो ? चाण्डाल ?
तुम इस से इतना बचना क्यों चाह रहे हो?
कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे  देख तुम्हारा जी मितलाने लगे/
हो सकता है वो हरीशचंद्र हो या शिव, उस दाहगृह में /
आज वो चांडाल है,  हो सकता है 
कल एक महान योगी में बदल जाए /
तब तुम उसकी पूजा करोगे/

तुम किसकी अवहेलना कर रहे हो/
कौन किसको गतिमान करता है/
हो सकता है, चुपके चुपके , चोरी चोरी 
गोपाल आ गए हों चरवाहे के भेष में
या फिर बलराम ही आ गए हों किसान का रूप धर ,
या फिर पैगम्बर आ गए हो चरवाहे के रूप में/

यह सभी हमारे संचालन  कर्ता हो सकते हैं 
उन्होंने ही तो दिए हैं हमें शाश्वत  सन्देश/
जो लगातार हैं और हमेशा रहेंगे /

हो सकता है तुम्हारे आनंद का भाग काट दिया जाये 
तुम्हे भगवान से  दूर खदेड़ दिया जाये , दरबान के द्धारा /
उस अपमान का हिसाब किताब अभी बाकी है 
कौन जाने अपमानित भगवान ने तुम्हें माफ़ किया या नहीं /

मित्र! तुम लालची हो गए हो और तुम्हारी आंखो पर लोभ के पर्दे पड़े हैं/
अन्यथा तुम में स्वयं देखने की सामर्थ्य है/
तुम्हारी सेवा के लिए भगवन  खुद भारवाहक बन गया है 
चाहे कितना भी सीमित हो , दैवीय यातनाओं का  अमृत 
मनुष्य के पास 
क्या तुम इसे लूट लोगे 
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ?
मंदोदरी जानती है, तुम्हारी वासना के बारे में 
जानती है कहाँ छुपा रखा है तुमने
घातक तीर अपने महल में 

हर युग में 
इच्छाओं की मलिका ने 
धकेल दिया है तुम सरीखे क्रूर को 
मौत की खाई में /


रजनी छाबड़ा 

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