समीक्षा
काव्य संग्रह : सांवर दइया की चयनित राजस्थानी कवितायेँ
चयन-अनुवाद : नीरज दइया
पेपरबैक: मूल्य रु. 200 /- मात्र
प्रकाशक : इंडिया नेटबुक्स , नोएडा
सांवर दइया आधनिक राजस्थानी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर / सशक्त कथाकार, कवि व् व्यंग लेखक के रूप में हिंदी व् राजस्थानी साहित्य जगत में उनकी विशिष्ट पहचान है/ राजस्थानी के साथ साथ हिंदी, अंग्रेज़ी और गुजराती भाषाओँ पर उनका अधिकार था/ उन्होंने जीवन के अंतिम वर्षों में साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत गुजराती निबन्ध संग्रह ' स्टेच्यू '{ अनिल जोशी ) का राजस्थानी अनुवाद भी किया जो साहित्य अकादेमी से वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ/ 1985 में उन्हें कहानी संग्रह पर साहित्य अकादमिक का मुख्य पुरस्कार मिला/ आधुनिक राजस्थानी कविता के इतिहास में सांवर दइया को प्रयोगशील कवि के रूप में विशेष रूप से पहचाना गया है/
मात्र 44 वर्ष की आयु में असमायिक निधन/ नश्वर शरीर दुनिया में न रहने के बाद भी, उनका साम्रज्य कायम है साहित्य प्रेमियों के दिलों पर/ उनकी कई रचनाएँ , उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो पायी / उन रचनाओं को साहित्यिक धरा पर लाने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं उनके सुपुत्र डॉ नीरज दइया / डॉ.नीरज विगत तीस वर्षों से राजस्थानी और हिंदी साहित्य के क्षेत्र में निरंतर सृजन, अनुवाद और संपादन के माध्यम से साहित्यिक योगदान दे रहें हैं/ साहित्य अकादेमी के मुख्य पुरस्कार और बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित डॉ.दइया , राजस्थानी भाषा, साहित्य व् संस्कृति अकादेमी, बीकानेर के अनुवाद पुरस्कार सहित अनेक मान सम्मान व् पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं/ परन्तु , अब तक डॉ. नीरज ने अपने पिताश्री की राजस्थानी कविताओं का हिंदी अनुवाद नहीं किया था/इसकी योजना अनायास ही बनी ,जब मैंने सांवर दईया जी की राजस्थानी व् हिंदी से चयनित कविताओं के अंग्रेज़ी अनुवाद-संचयन की योजना बनाई/ 'इन द आर्ट गैलरी ऑफ़ माई हार्ट ' मेरे द्वारा किया गया अंग्रेज़ी अनुवाद व् डॉ नीरज दइया द्वारा चयनित राजस्थानी कविताओं का हिंदी अनुवाद सांवर दइया जी की जयन्ती पर वर्ष 2021 में इंडिया नेटबुक्स ,नॉएडा द्वारा एक साथ प्रकाशित हुए/
सांवर दईया जी की कविताओं में राजस्थान की सुनहरी रेत की महक है/ यहाँ के परिवेश से उनका सांस्कृतिक जुड़ाव झलकता है/
कोख में बीज
सड़क के नहीं
मिट्टी के होता है
और वही थामती हैं पानी
दुनियावी रंगों का बयान, इतनी गहनता की बात, सीधे सरल शब्दों में अभिव्यक्ति में मन को छू जाती है और पाठक को मनन करने के लिए उकसाती है/
ज़रूरत है, इतना सा जान लें
यह दुनिया है बाज़ार
और हवा के होते हैं रंग हज़ार
मन की कोमल भावनाएं भी उतनी ही ख़ूबी से शब्दों में पिरोयी गयी हैं
एक बार तुम रो पड़ती हो
मनाने पर मुस्कुराती
आसूं पोंछती छिपती हो सीने में
हाथों की एक तयशुदा मुद्रा के साथ
--अच्छी आदत है आपकी !
इसी मुद्रा के पीछे पागल मैं
अभी तक लटकाएं हूँ
मन की आर्ट गैलरी में
नाक -कान -गला
काटने का तलाशते हैं मौका
धरती होती है रक्त -रंजित
लेकिन उनके होठों पर खिलती है
मुस्कुराहट
कवि निजता से ऊपर उठ , मांगता है ईश्वर से, तो भावी पीढ़ियों के लिए
युगों से अन्धकार में गुम
सुखों को खोज सकूं
भावी पीढ़ियों के लिए
वह आँख देना मुझे
डॉ नीरज ने राजस्थानी से हिंदी में अनुसृजन करते हुए, कविताओं के मूल भाव को सहेजे रखा है/ कविताओं के इस इंद्रधनुषी पुष्प -गुच्छ को अपनी कल्पना और सोच के उत्कृष्ट रंगों से सजा कर पाठकों के समक्ष रखा है/ इस उत्कृष्ट कृति के माध्यम से वह अपने पिताश्री के प्रति ऋण से उऋण हुए प्रतीत होते हैं/
दुनिया के सृजनहार से प्रार्थना हैं कि डॉ. नीरज दइया के साहित्य सृजन संसार को यूं ही निखारे रखे/
रजनी छाबड़ा
बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका
rajni.numerologist @ gmail .com
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