Thursday, April 13, 2023

प्रशंसनीय काव्य संग्रह बात सिर्फ इतनी सी :शकुन्तला शर्मा

 


प्रशंसनीय काव्य संग्रह

बात सिर्फ इतनी सी

सुप्रसिद्ध बहु-भाषीय कवयित्री, अंकशास्त्र की गहरी ज्ञाता एवं श्रेष्ठ अनुवादिका रजनी छाबड़ा  के इस काव्य संग्रह में भाव एवं कला का अद्भुत संगम है। जहां भाषा का शिल्प आकर्षित करता है वहीं कविताओं में दार्शनिकता जीवन के विभिन्न पहलुओं को  ऊर्जा से सींचती सी , प्रेरणा देती नजर आती है। रचनाओं में प्रकृति बोध, रिश्ते नाते, दुनियादारी, जीवन की विषमताओं व विडंबनाओं को बहुत गहराई से रेखांकित करती है। देखे, सुने और सहे हुए दर्द को शब्दों में ढालती चलती है / कवयित्री  की जीवन शैली को देखने की अद्भुत व पैनी दृष्टि है। जमीन से जुड़े भाव व प्रतीक कविताओं को ऊंचाईयां प्रदान करते हैं। शब्द संयोजन व्  शिल्प सौष्ठ प्रभावित करते हैं।अधूरी आरजू, ,खामोशी, दीवार, सिलसिला आदि कविताओं में कवयित्री का दृष्टि विस्तार काबिले तारीफ है।निश्चय ही साहित्य जगत में यह कृति अपना विशेष स्थान रखेगी। सकारात्मक दृष्टि कोण से पूर्ण इस काव्य संग्रह के लिए  हार्दिक शुभकामनाएं और बधाईयाँ । कवयित्री की लेखनी अनवरत चलती रहे।

इसी मंगल कामना के साथ


शकुन्तला शर्मा सहायक निदेशक (सेवा निवृत्त)

हिन्दी साहित्यकार चिंतक और  कवयित्री।


  

दामन गुलाब का

बहुत गहरा सच छिपा हुआ है इन पंक्तियों में। मानव स्वभाव विभिन्न हैं। जो कथनी और करनी का भेद नहीं रखते। उनका प्यार  औपचारिक नहीं बल्कि दिल से होता है। प्यार निभाने में दिक्कतें तो आती हैं और आयेंगी। सुख भी छिज जाता है। लेकिन सकारात्मक भूमिका कांटे महसूस कर के भी मुस्कुराना नहीं छोङती। फूल और कांटे का शाश्वत प्रतीक कविता को हृदयंगम बना देता है। कविता प्रभावित करती है।

सुरंग

यह कविता मंत्र कविता कही जा सकती है। मंत्र सिद्धि से कामना सिद्धि होती है। कवयित्री ने प्रतिष्ठित शाश्वत प्रतीकों के माध्यम से जीवन के सत्य को शब्दों में बुना है। पहाङ को चीर कर जैसे सुरंग रास्ता  देती है बनाती है ठीक उसी तरह जीवन के समीकरण कहते हैं। कठिनाइयों को पार करने के बाद ही जीवन सरल हो पाता है सुरंग रास्ता तो देती है पर सुरंग बनाने की मेहनत पर कवयित्री की पैनी पकङ है। कवयित्री प्रतीकों के माध्यम से  जीवन के गूढ़ अर्थ सामने लाने के लिए सिद्ध हस्त है। सहजता बङी कठिन होती है। यही सहजता रजनी छाबङा की कविताओं की मूल विशेषता कही जा सकती है। जैतो नीचो ह्वै चले तेतो ऊंचो होय।। जमीन से जुड़े भाव व प्रतीक कविताओं को ऊंचाईयां प्रदान करते हैं। शब्द संयोजन, शिल्प सौष्ठव कविता को मंत्र की तरह प्रभावित करते हैं। सुन्दर सहज लेखनी को हार्दिक नमन।


दर्द

कविता में कवयित्री ने यह कहने की कोशिश की है कि जिन्दगी भर दर्द की कशमकश चलती रहती है। शायद यह शाश्वत सत्य है कि दर्द में जीना मुस्कुराना सोना उठना मनुष्य की नियति बन गया है। कवयित्री का बहुत बड़ा हौसला है कि दर्द कितना भी मिले मैं दर्द को शब्दों में बहा दूंगी। यही मनुष्य के लिए सात्विक प्रेरणा है। दर्द तो हमेशा का नया और पुराना साथी है उसे नकारा नहीं स्वीकारा जाना चाहिए। कवयित्री के प्रत्येक शब्द में मनुष्य के जीवन में व्याप्त दर्द को झकझोरने की ताकत समाई है। यही कविता का बीज मंत्र है सीखने की  प्रेरणा देता है। हल्की सी चुटकी के साथ। स्मरणीय है यह कविता। लेखनी को नमन।


अधूरी आरजू

 बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति की है कवयित्री ने। पूरी कविता में ऎसा महसूस होता है मानो कोई  धीरे से कानों में सरका रहा है कि सुबह उठो तब करलेना। अधूरेपन  से दुखी नहीं बल्कि प्रयास करते रहने से सपनें भी हकीकत में बदले जा सकते हैं। प्यार की थपकी देकर कर्म में प्रवृत्त करने वाले शब्द काबिलेतारीफ है। सर्व श्रेष्ठ भावानुभूति वाली यह कविता सबसे ज्यादा प्रेरक है। कवयित्री को बहुत बहुत साधुवाद। ऐसी कविताएँ साहित्य में नगीना कही जा सकती है। सहजता में संपुष्टता है।


बहती नदिया

 भावनाओं के ज्वार के साथ आकाश तक का विस्तार दिया है बहती नदिया नें। नारी के समानांतर नदिया भी है।  सरस और प्रवाहमान। नदी अनवरत बहती बहती समुद्र में विलीन हो जाती है नहीं है मलाल उसे कुछ खोने का। वह समर्पण की पराकाष्ठा तक अपने अस्तित्व की चिंता नहीं करती। ठीक इसी तरह नारी भी पूरा जीवन समर्पण में बिताती है। वह पूरे जीवन अपने अस्तित्व की चिंता ना करके पर सुख में अपने आपको विलीन कर देती है। त्याग और गुणों की खान नारी अपना जीवन पिता पति और बच्चों पर वार देती है। कविता में चाक्षुस बिम्ब नदी और नारी को सामने लाने में सफल हुआ है। कविता संक्षिप्त होते हुए भी नारी की अपरिमित शक्तियों  को अभिव्यक्त करने की आशातीत संभावना दे देती है। दिल में उतर जाती है। नदी और नारी का रूपक शास्त्रीय और प्रचलित है जोकि सरल और सुग्राह्य है। इस कविता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं व कृतज्ञता।


तिनका तिनका नेह 

 कवयित्री  की जीवन शैली को देखने की अद्भुत व पैनी दृष्टि है। चिङिया के द्वारा उसके बच्चों का पालन और फिर कालांतर में बच्चों द्वारा चिङिया का पालन पोषण भोजन,,,,, ।प्रकृति के कवयित्री का अवलोकन अध्ययन के साथ मानवीय धर्म की सापेक्षता। प्रकृति कभी प्रतिकूल नहीं चला करती।

बहुत सहज सरल अभिव्यक्ति के साथ दाय और प्रदाय का दायित्व बोध समता और समयबद्धता को साधारण रूपक में नत्थी कर दिया है। मानव को प्रेरित किया है। आज बहुत बङी समस्या उभर कर सामने आ रही है बच्चे अपना दायित्व भूल रहे हैं वे माता-पिता का सानिध्य ही नहीं चाहते। बहुत सुन्दर शब्दों में संदेश है कि  बङे होने पर चिङिया के बच्चे अपनीं मां के लिए चौंच में दाना लाकर देते हैं। वा ह वाह प्रकृति कितना सिखाती है मानव को। किसी तरह वह प्रकृति के प्रति कृतज्ञ बने।  उसने जीवन दिया है सहज किया है प्रकृति के सभी उपादान मनुष्य को प्रेरित करते हैं। वह सीखे देखे और जीवन सरल बनाये। कविता गूढ भावों से गुम्फित है। भाषा संवेदनशील और शिल्प  सुगठित है। सुन्दर  प्रेरक प्रसंग के लिए कवयित्री की कलम को सौ-सौ नमन।


शकुन्तला शर्मा सहायक निदेशक (सेवा निवृत्त)

हिन्दी साहित्यकार चिंतक और  कवयित्री।


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