Tuesday, March 4, 2025

मानसिक विद्रूपता का भयानक आईना दिखाता महाकाव्य 'लस्टस '

मुखबंध/ प्रस्तावना 

लस्टस 

मानसिक विद्रूपता का भयानक आईना दिखाता महाकाव्य 

मूल रचना अंग्रेज़ी  : डॉ.जे. एस. आनंद 

हिंदी अनुवाद :  रजनी छाबड़ा 

बुराई सदियों से अच्छाई पर हावी होने की कोशिश करती है और काफ़ी हद तक सफल भी रहती है,परन्तु, अंततः जीत का सेहरा किस के सिर पर बँधता है?

उम्र के आख़िरी कग़ार पर खड़ा सेटन 'महादानव' (मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट का काल्पनिक मुख़्य पात्र ) यह सोच कर व्यथित हैं और व्यग्र है कि अथक परिश्रम से, उसके द्वारा स्थापित अराजकता के राज्य को उसके बाद कौन सम्भालेगा? सोच विचार के बाद उसके मन में अपने भतीजे लस्टस का ख़्याल आता है कि वह इस अन्धकार के साम्राज्य  का अधिपति बनने के लिए सुयोग्य पात्र है/ लस्टस का राज्याभिषेक धूमधाम से  कर दिया जाता है/ तदुपरांत, वह अपने नवगठित मंत्री मण्डल को निर्देश देता हैं कि किस प्रकार सब ओर अराजकता फैलाई जाये; इस हद तक कि लोग बुराई को ही अच्छाई समझने लगें/ नया संविधान लस्टीटयूशन बनाया जाता है और १० आज्ञापत्र भी जाऱी कर दिए जाते है, ताकि सुनियोजित ढंग से बुराई का प्रचार प्रसार किया जा सके और मानव जाति धर्म से विमुख हो जाये / भृष्टाचार का बोलबाला हो और भृष्ट लोग ही प्रशासन में मुख्य कार्यभार संभालें/

लस्टस यह बताते हुए बहुत गर्व महसूस करता है :
"पर हमारा समय उलटा है

जबकि लोगों को ईश्वर में कोई आस्था ही नहीं। 

जिसका अप्रत्यक्ष अभिप्राय यह है कि वे हमारे जाल में उलझ गए हैं/

वे देवालयों में तो जाते है, परन्तु मात्र दिखावे के लिए/

वे विश्वविद्यालयों में जाते हैं, केवल नकली ज्ञान के लिए/

वे भले हैं, पर नाम मात्र के लिए /

उन्हें ईसा मसीह में कोई आस्था नहीं,

क्षमादान, दान- पुण्य , पाप स्वीकरोक्ति 

यह सब फैशन में परिवर्तित हो गए हैं/"

देवगण अपने सिंहासन को हिलता डुलता महसूस करते हैं/ वे अपनी दुनिया में इतने व्यस्त और मस्त थे कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि कब मानव जाति  उनसे विमुख हो कर दानवों की ओर हो गयी है/ और अब उन्हें अपनी ही बनायी गयी धरती पर पैर रखने की मनाही है/

अंत में देवताओं और दानवों में वीभत्स युद्ध होता है/ संधि विराम की आवश्यकता पड़ती है और  नयी संधि योजना लागू की जाती  है/

तामसिक प्रवृतियाँ साँप के फन सी , हर युग में सात्विक प्रवृतियों को डसने के लिए आतुर रहती हैं/बुराईयों का यह अविरल प्रवाह कभी थम पायेगा क्या? क्या मानवीय गुणों , शुचिता और बुद्धिमता दिन वापिस आएंगे / 

अंतर्राष्ट्रीय ख़्याति  प्राप्त, महान चिंतक, आलोचक और  द्वि -भाषी कवि डॉ. जे. एस. आनंद ने अत्यंत रोचक ढंग से इस दार्शनिकता पूर्ण महाकाव्य को रचा है/ कटाक्ष, हास्य, चिंतन, सपाट-बयानी और गहन विचारों का सम्मिश्रण , पाठकों के अंतस को झकझोरता है/ कविश्री ने आह्वान किया :

हे ! सरस्वती, मैं एक बार पुनः आपके पवित्र मंदिर में आया हूं /

मेरी लेखनी को नई ऊर्जा  दो 

मानव के पतन के कारण खोजने के लिए 

और लस्टस  के उत्थान के 

बाध्य कर दिया जिसने प्रभु और उसके शक्तिवान फ़रिश्तों को 

आत्म -विश्लेषण के लिए , क्यों परास्त होना पड़ा मानव को दानव से 

और किसने विमुख  किया मानव को 

दैवीय शक्तियों से और बाध्य किया 

लस्ट्स के  दिन प्रतिदिन बढ़ते आधिपत्य और शक्ति की 

शरण में जाने के लिए। 


अराजकता, नैतिक पतन , व्याभिचार,  लोलुपता , संवेदनहीनता, 


कवि प्रार्थना  करता है, परम पिता परमेश्वर से :

सृजना और कुशलक्षेम के देवताओ 

लस्टस और उसके दानवों ने 

मानवता का संतुलन बिगाड़ दिया है /

लोग विक्षिप्त हो गए हैं/

पुनर्विचार कीजिये उन्हें इस उत्तेजना के संसार  से 

वास्तविकता और स्थिरबुद्धिता के  संसार में 

कैसे वापिस लाया जाये /


लस्टस महाकाव्य की मूल भाषा इंग्लिश है/ हिंदी और इंग्लिश में मौलिक काव्य रचना के अतिरिक्त  मैंने अब तक हिंदी, पंजाबी, राजस्थानी और नेपाली से २१ काव्य संग्रह लक्ष्य भाषा अंग्रेज़ी में अनूदित किये हैं/ परन्तु मुझे आपको यह बताते हुए हर्ष हूँ रहा हैं कि लस्टस मेरा द्वारा इंग्लिश से हिंदी में अनुदित प्रथम महा काव्य है/ इसे इंग्लिश में पढ़ने के बाद, मेरे मन में यह विचार उमड़ा कि क्यों न मैं उसका अनुवाद हिंदी में  कर दूँ , ताकि विस्तृत स्तर पर हिंदी भाषी इसका आनंद ले सकें और सम्भवतः कुछ हिंदी के कवि अन्य भारतीय भाषों में उसका अनुवाद कर दें/

आशा है आपको मेरा यह प्रथम प्रयास पसंद आएगा/ मैं आभारी हूँ डॉ. आनंद की कि उन्होंने मुझे इस अनुवाद कार्य के योग्य समझा और मुझे यह सुअवसर प्रदान किया/

प्रकाशक महोदय और उनकी टीम का हार्दिक धन्यवाद, मेरी रचना को इतना खूबसूरत पुस्तकाकार देने के लिए/

रजनी छाबड़ा 
बहु भाषीय कवयित्री और अनुवादिका 























मूल रचना इंग्लिश : डॉ.जे. एस. आनंद 

हिंदी अनुवाद :  रजनी छाबड़ा 


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