मुखबंध/ प्रस्तावना
लस्टस
मानसिक विद्रूपता का भयानक आईना दिखाता महाकाव्य
मूल रचना अंग्रेज़ी : डॉ.जे. एस. आनंद
हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा
बुराई सदियों से अच्छाई पर हावी होने की कोशिश करती है और काफ़ी हद तक सफल भी रहती है,परन्तु, अंततः जीत का सेहरा किस के सिर पर बँधता है?
उम्र के आख़िरी कग़ार पर खड़ा सेटन 'महादानव' (मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट का काल्पनिक मुख़्य पात्र ) यह सोच कर व्यथित हैं और व्यग्र है कि अथक परिश्रम से, उसके द्वारा स्थापित अराजकता के राज्य को उसके बाद कौन सम्भालेगा? सोच विचार के बाद उसके मन में अपने भतीजे लस्टस का ख़्याल आता है कि वह इस अन्धकार के साम्राज्य का अधिपति बनने के लिए सुयोग्य पात्र है/ लस्टस का राज्याभिषेक धूमधाम से कर दिया जाता है/ तदुपरांत, वह अपने नवगठित मंत्री मण्डल को निर्देश देता हैं कि किस प्रकार सब ओर अराजकता फैलाई जाये; इस हद तक कि लोग बुराई को ही अच्छाई समझने लगें/ नया संविधान लस्टीटयूशन बनाया जाता है और १० आज्ञापत्र भी जाऱी कर दिए जाते है, ताकि सुनियोजित ढंग से बुराई का प्रचार प्रसार किया जा सके और मानव जाति धर्म से विमुख हो जाये / भृष्टाचार का बोलबाला हो और भृष्ट लोग ही प्रशासन में मुख्य कार्यभार संभालें/
लस्टस यह बताते हुए बहुत गर्व महसूस करता है :
"पर हमारा समय उलटा है
जबकि लोगों को ईश्वर में कोई आस्था ही नहीं।
जिसका अप्रत्यक्ष अभिप्राय यह है कि वे हमारे जाल में उलझ गए हैं/
वे देवालयों में तो जाते है, परन्तु मात्र दिखावे के लिए/
वे विश्वविद्यालयों में जाते हैं, केवल नकली ज्ञान के लिए/
देवगण अपने सिंहासन को हिलता डुलता महसूस करते हैं/ वे अपनी दुनिया में इतने व्यस्त और मस्त थे कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि कब मानव जाति उनसे विमुख हो कर दानवों की ओर हो गयी है/ और अब उन्हें अपनी ही बनायी गयी धरती पर पैर रखने की मनाही है/
अंत में देवताओं और दानवों में वीभत्स युद्ध होता है/ संधि विराम की आवश्यकता पड़ती है और नयी संधि योजना लागू की जाती है/
तामसिक प्रवृतियाँ साँप के फन सी , हर युग में सात्विक प्रवृतियों को डसने के लिए आतुर रहती हैं/बुराईयों का यह अविरल प्रवाह कभी थम पायेगा क्या? क्या मानवीय गुणों , शुचिता और बुद्धिमता दिन वापिस आएंगे /
मानव के पतन के कारण खोजने के लिए
और लस्टस के उत्थान के
बाध्य कर दिया जिसने प्रभु और उसके शक्तिवान फ़रिश्तों को
आत्म -विश्लेषण के लिए , क्यों परास्त होना पड़ा मानव को दानव से
और किसने विमुख किया मानव को
दैवीय शक्तियों से और बाध्य किया
लस्ट्स के दिन प्रतिदिन बढ़ते आधिपत्य और शक्ति की
शरण में जाने के लिए।
अराजकता, नैतिक पतन , व्याभिचार, लोलुपता , संवेदनहीनता,
कवि प्रार्थना करता है, परम पिता परमेश्वर से :
सृजना और कुशलक्षेम के देवताओ
लस्टस और उसके दानवों ने
मानवता का संतुलन बिगाड़ दिया है /
लोग विक्षिप्त हो गए हैं/
पुनर्विचार कीजिये उन्हें इस उत्तेजना के संसार से
वास्तविकता और स्थिरबुद्धिता के संसार में
कैसे वापिस लाया जाये /
मूल रचना इंग्लिश : डॉ.जे. एस. आनंद
हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा
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