*लस्टस: मानवीय संवेदनाओं और नैतिकता का संवाद*
---
'लस्टस' अंग्रेजी में डॉ.जे. एस. आनंद द्वारा रचित बहुचर्चित महाकाव्य है, जिसका हिंदी रूपांतरण रजनी छाबड़ा ने किया है। कवि और अनुवादक दोनों के प्रति मेरा बहुत सम्मान रहा है। ये अपने अपने क्षेत्र के दो बड़े नाम हैं, जिनकी कीर्ति भाषाओं और भौगोलिक सीमाओं से बहुत आगे पहुंच चुकी है। अनेक क्षेत्रों में कार्य करते हुए स्वयं को निरंतर गतिशील रखना ही बहुत बड़ी बात है। एक उम्र के बाद जब संसार ही अपनी महत्ता क्षीण करने लगता है, उस दौर में भी कुछ नया करने रचने का
जुनून मेरे लिए प्रेरणास्रोत है। मूल कवि डॉ.जे. एस. आनंद और अनुवादक रजनी छाबड़ा दोनों ही ऐसे नाम है जिनके बारे में परिचयात्मक रूप से कुछ कहना यहां उद्देश्य नहीं है, किंतु मैं आभारी हूं कि इस कृति और अनुवाद के बारे में लिखने का मुझे अवसर मिला है।विश्व साहित्य में जॉन मिल्टन के 'पैराडाइज़ लॉस्ट' का बड़ा महत्त्व है और यह एक परंपरा निर्मित करने वाला महाकाव्य माना जाता है। मैं इसी परंपरा में कृति 'लस्टस' को देखता हूं। धर्म कोई भी हो किंतु उसमें निहित मानवता के मूल्यों और लक्ष्यों में अत्यधिक समानता देख सकते हैं। मुझे यह आश्चर्यजनक प्रतीत होता है कि सात समंदर पार भी साहित्य में बहुत सारी बातें हमें संवेदित करने में सक्षम हैं। रचनात्मक दृष्टि से बाइबिल अथवा अन्य ग्रन्थों की कथाओं के गहन और रूपकात्मक वर्णन अनेक रचनाओं में हम देख सकते हैं, जिसमें मानवता के उत्पत्ति, पाप और उद्धार की कथाएं वर्णित है। ये विषय कभी पुराने नहीं होते इनका महत्त्व सर्वकालिक और सर्वदेशीय होता है। यही कारण है कि 'लस्टस' को पढ़ते हुए मैं इसके भावों और संवेदनाओं के सागर में बहता चला गया।
किसी भी रचना में मूल लेखक का महत्त्व निर्विवादित स्वीकार्य है, किंतु जब मूल भाषा से एक रचना अन्य-अन्य भाषाओं में प्रकाशित होती है तो उस में हमें किंचित श्रेय अनुवादक को भी देना चाहिए। किसी रचना को स्रोत भाषा द्वारा अथवा किसी माध्यम भाषा द्वारा अनुवादक जिस किसी भाषा में ले जाता है, वह असल में उस रचना में अपनी भाषा में फिर से प्राण-प्रतिष्ठा करता है। किस रचना के अनुवाद का सुख मूल लेखन सरीखा उत्साहित करने वाला होता है। इसे कमतर आंकने वालों की भी कमी नहीं है किंतु हम विचार करें कि किसी रचना पर मुग्ध होना और उसमें भीतर और भीतर प्रवेश करते चले जाना, इस हद तक कि वह अनुवाद के लिए चयनित करने के विकल्प का जन्म हो तो मुझे यह बात बेहद रोमांचकारी लगती है। मैं ऐसे में अनुवादक के कार्य की तुलना वास्को डि गामा से करने को अतिश्योक्ति नहीं मानता, क्योंकि अनुवादक असल में एक खोज ही तो करते हुए हमारे सामने एक नए रचनात्मक संसार को खोलता है। यह एक खोज भर ही नहीं है वरन वह हमें किसी श्रेष्ठ रचना में उसके लेखकीय दृष्टिकोण को बचाते हुए उस में हमे प्रवेश करने का मार्ग भी सुलभ कराता है। अस्तु मैं इस कृति के लिए मूल लेखक से पहले अनुवादिका रजनी छाबड़ा जी को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।
वैसे तो अनुवादक और मूल लेखक से बड़ी कृति ही होती है, जो दोनों की रचनात्मकता को उजागर कर एक मुक्कमल पहचान देती है।
साहित्य केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि मानवीय चेतना, अनुभव और भावनाओं का प्रतिबिंब होता है। जब कोई विचार लेखक की अंतरात्मा से निकलकर किसी बिंब प्रतीक को चयनित कर लेखनी से कागज़ पर उतरता है, तो वह संवाद का एक माध्यम बनाता है। यह संवाद तब अधित प्रभावी हो उठता है जब वह दूसरी भाषा, संस्कृति और पाठक वर्ग तक पहुँचता है। ऐसे में अनुवाद की भूमिका केवल शब्दांतरण की नहीं, बल्कि अर्थ, भाव और संस्कृति के संप्रेषण की होती है।
'लस्टस' कृति शिक्षा, समाज, नैतिकता, संस्कृति और आत्मबोध जैसे अनेक विषयों को केंद्र में रखते हुए अपने पाठकों को न केवल विषय की गहराई में ले जाने वाली है वरन यह आत्मचिंतन और पुनरावलोकन की प्रेरणा भी देती है। पुस्तक की भाषा सहज और प्रवाहमयी है, जो इसकी विषयवस्तु से हमें जोड़ने में सफल कही जा सकती है।
वैश्विक समय में भाषाई सीमाएं भले ही धुंधली हो रही हों, लेकिन भावों की सूक्ष्मता को यथावत रूप में प्रस्तुत करना आज भी हरेक अनुवादक के लिए हर बार एक चुनौती के रूप में सामने आता है।
यह अनुवाद के माध्यम से एक विमर्श को जन्म देना है। यह अपने पाठक को सोचने-समझने के साथ-साथ प्रश्न उठाने और समाज के प्रति अपनी भूमिका पर विचार करने को प्रेरित करने वाली कृति है। यहां सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक संदर्भों का विश्लेषण न केवल ज्ञानवर्धक है, बल्कि संवेदनशीलता और समझ भी विकसित करने वाला भी है।
कृति ने समस्याओं की पहचान के साथ समाधान की दिशा में बढ़ने के संकेत और सूत्र भी दिए हैं। यह कृति केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि एक सामाजिक विचार का दस्तावेज़ भी है। अनुवादक की समर्पित भाषा-समझ ने लेखक की अंतर्दृष्टि को आत्मसात करते हुए इसे एक ऐसा रूप दिया है जो न केवल पठनीय, बल्कि संग्रहणीय भी है।
● *डॉ. नीरज दइया*
कवि , अनुवादक, आलोचक व् व्यंग्यकार
साहित्य अकादेमी मुख्य पुरस्कार व् साहित्य अकादेमी , बाल साहित्य पुरस्कार विजेता
ईमेल : neerajdaiya @gmail .कॉम
No comments:
Post a Comment