टैगिंग और हाई लाइटिंग
नन्हा ,अबोध शिशु
जब नाज़ुक पैरों से
ठुनकता हुआ
घर आंगन में
पहला कदम उठता है
कभी सहारे के लिए
कभी अनुमोदन के लिए
माँ को देखता है
या जब नए नए बोल सीखता है
समर्थन के लिए माँ की ओर ताकता है
सहज स्वाभाविक है
जाने अनजाने यह प्रक्रिया
ज़िंदगी का अंग बन जाती है
शिक्षा प्राप्ति के दौर में भी
एक स्वभाविक चलन है
अभिव्यक्ति और अनुशंसा
ठीक ऐसे ही जैसे
हम कलमबद्ध करते हैं
नव- अंकुरित विचार
और प्रस्तुत करते है
पाठकीय टिप्पणी हेतु
सोशल मीडिया पर
कर देते हैं टैगिंग
व् हाइलाइटिंग/
अनुमोदन का सिलसिला
जाने-अनजाने
किसी न किसी बहाने
क़ायम रहता है
उम्र के हर दौर में/
रजनी छाबड़ा
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