मैं लम्हा लम्हा ज़िन्दगी
टुकडों मैं जी लेती हूँ
कतरा कतरा ही सही
जब भी मिले
जीवन का अमृत
पी लेती हूँ
वक्त के सागर की रेत से
अंजुरी मैं बटोरे
रेत के कुछ कण
जुड़ गए हैं
मेरी हथेली के बीचों
बीच
उन्ही
रेत के कणों
से सागर
एहसास
संजों
लेती हूं
मैं लम्हा लम्हा जिन्दगी
टूकडों मैं जी लेती हूँ
कतरा कतरा ही सही
जब भी मिले
तेरे
नह
का अमृत
पी लेती
हूँ
Friday, August 28, 2009
Tuesday, August 25, 2009
वो आईना न रहा
उभरता था
जिसमे
ज़िन्दगी का अक्स
वो आईना न रहा
वही हैं मंजिलें
वही हैं मूकाम
मंजिल
ओ
मूकाम का
वो मायना न रहा
रेत के समंदर से
ज़िन्दगी
रेत का समंदर
शोख सुनहली
रूपहली
रेत सा भेरा
आमंत्रित करता सा
प्रतीत होता है
एक अंजुरी ज़िन्दगी
पा लेने की हसरत
लिए
प्रयास करती हूँ
रेत को अंजुरी मैं
समेटने का
फिसलती सी लगती है
ज़िन्दगी
क्षणिक
हताश हो
खोल देती हूँ
जब अंजुरी
झलक जाता है
हथेली के बीचों बीच
एक इकलौता
रेत का कण
वो ज़िन्दगी के पल
कभी मेरे
थे
ही नहीं
मेरी ज़िन्दगी का
पल
तो
वो है
जो जुड़ गया
मेरी हथेली के बीचों बीच
एक इकलौता
रेत का कण
बन के
रेत का समंदर
शोख सुनहली
रूपहली
रेत सा भेरा
आमंत्रित करता सा
प्रतीत होता है
एक अंजुरी ज़िन्दगी
पा लेने की हसरत
लिए
प्रयास करती हूँ
रेत को अंजुरी मैं
समेटने का
फिसलती सी लगती है
ज़िन्दगी
क्षणिक
हताश हो
खोल देती हूँ
जब अंजुरी
झलक जाता है
हथेली के बीचों बीच
एक इकलौता
रेत का कण
जो फिसल
गएवो ज़िन्दगी के पल
कभी मेरे
थे
ही नहीं
मेरी ज़िन्दगी का
पल
तो
वो है
जो जुड़ गया
मेरी हथेली के बीचों बीच
एक इकलौता
रेत का कण
बन के
Monday, August 24, 2009
इंतज़ार
इंतज़ार
======
आ
तू
लौट आ
वरना
मैं यूँ ही
जागती रहूंगी
रात रात भर
चाँदनी रातों मैं
लिख लिख कर
मिटाती रहूंगी
तेरा नाम
रेत पर
और हर सुबह
नींद से
बोझिल पलकें लिए
सुर्ख,उनींदी
आंखों से
काटती
रहूंगी
कलेंडर से
एक और तारीख
इस सच का
सबूत
बनते हुए
कि
एक
और रोज़
तुझे
याद किया
तेरा नाम लिया
तुझे याद किया
तेरा नाम लिया
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आ
तू
लौट आ
वरना
मैं यूँ ही
जागती रहूंगी
रात रात भर
चाँदनी रातों मैं
लिख लिख कर
मिटाती रहूंगी
तेरा नाम
रेत पर
और हर सुबह
नींद से
बोझिल पलकें लिए
सुर्ख,उनींदी
आंखों से
काटती
रहूंगी
कलेंडर से
एक और तारीख
इस सच का
सबूत
बनते हुए
कि
एक
और रोज़
तुझे
याद किया
तेरा नाम लिया
तुझे याद किया
तेरा नाम लिया
क्षितिज के पास
क्षितिज के पास
कर रहे हो
इंतज़ार मेरा
जहाँ
दो जहाँ
मिल कर भी
नही मिलते
अधूरी हैं
तमन्नाये
अधूरी
मिलन की आरजू
फूल अब
खिल कर भी
नही खिलते
कर रहे हो
इंतज़ार मेरा
जहाँ
दो जहाँ
मिल कर भी
नही मिलते
अधूरी हैं
तमन्नाये
अधूरी
मिलन की आरजू
फूल अब
खिल कर भी
नही खिलते
Sunday, August 23, 2009
यादगार
खामोशी बोलती है
तेरी आंखों की जुबान से
अनकहे लम्हों की
कहानी बन जाती ही
हौले से
स्पर्श कर
पवन
खिला जाती ही
अधखिली कलि को
वो छूअन
ज़िन्दगी की रवानी
बन जाती ही
तेरी खुशबू ले कर
आती ही बयार
वो पल बन जाते हैं
ज़िन्दगी की यादगार
तेरी आंखों की जुबान से
अनकहे लम्हों की
कहानी बन जाती ही
हौले से
स्पर्श कर
पवन
खिला जाती ही
अधखिली कलि को
वो छूअन
ज़िन्दगी की रवानी
बन जाती ही
तेरी खुशबू ले कर
आती ही बयार
वो पल बन जाते हैं
ज़िन्दगी की यादगार
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