Saturday, March 18, 2023

बात सिर्फ इतनी सी CONTENT LIST


 1. हम रहनुमा तुम्हारे

2. रेत के समन्दर से

3. तपती रेत 

4.रिश्तों की उम्र 

5. क्या शिक़वा करें गैरों से 

6. पुल 

7. भटके  राही 

8. अपनी माटी 

9. कहीं भी 

10. मैं मनमौजी 

11 . वही है सूर्य 

12. सांझ के अँधेरे में 

13. जड़ों से नाता 

14 . बोतलबंद पानी 

15 . दीवार

 16. उड़ान 
   
17. तिनका तिनका नेह 

18. पिता ऐसे होते हैं:1

19. पिता ऐसे होते हैं: 2

20. बचपन का दोहरान 

21 बहती नदिया 

22 . तुम इतना इतराया मत करो 

23.   एक दुआ 

24 . बात सिर्फ इतनी सी 

25 . बिन बुलाये मेहमान सरीखा 

26  दर्द का बिछौना 

27. चींटी की चाल से 

28 .  उलझन   

29  .सुरंग 

30 . सपनों का घर 

31 . मन विहग 

32 . बहता मन 
 
33 . कैसा गिला?

34  . खामोश हूँ 

35 . धरा 

36 .  याद रखिये उन्हें 

37  . यह कैसा सिलसिला 

38 . प्रहरी 

39 . ख़ामोशी 

40 . बयार और बहार 

41. अधूरी क़शिश 

42 .  सफ़र 

43 . सिमटते पँख 

44 . उदास 

45 .  विश्वास के धागे

46  . जीने की वजह 

47 . पूर्णता की चाह 

48 . रहन 

49 . असहज 

50 . अधूरी आरज़ू 

51. ब्रह्म -कमल 

52 . वक़्त कहीं खो गया है 

53 . हम ज़िंदगी से क्या चाहते हैं ? 

54 . मैं कहाँ थी 

55  . ज़िंदगी की किताब से 

56 . फॉसिल्स 

57 . हम कहाँ थे, हम कहाँ जा रहे हैं 

58 . कवि 

59 .  सपने हसीन क्यों होते हैं 

60 . क्या तुम सुन रही हो? माँ 

Wednesday, March 15, 2023

‘बात सिर्फ इतनी सी’ : भावों और अभावों के संवेदनात्मक शब्द-चित्र : डॉ. नीरज दइया



   भावों और अभावों के संवेदनात्मक शब्द-चित्र

डॉ. नीरज दइया


श्रीमती रजनी छाबड़ा कविता, अनुवाद और अंक-ज्योतिष के क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम है। यह मेरे लिए बेहद सुखद है कि उनके इस नए कविता संग्रह ‘बात सिर्फ इतनी सी’ के माध्यम से मैं आपसे मुखातिब हूं। उनके इस कविता संग्रह पर बात करने से पहले अच्छा होगा कि मैं यहां यह खुलासा करूं कि एक ही शहर बीकानेर में हम लंबे अरसे तक रहे, यहां उनका अंग्रेजी शिक्षिका के रूप में लंबा कार्यकाल रहा किंतु उनकी रचनात्मकता से परिचित होते हुए भी मेरी व्यक्तिशःमुलाकात नहीं हो सकी। पहली मुलाकात हुई बेंगलुरु में 14 नवंबर, 2014 को, जब मैं वहां साहित्य अकादेमी पुरस्कार अर्पण समारोह में भाग लेने गया। इसके बाद तो जैसे बातों और मुलाकातों का अविराम सिलसिला आरंभ हो गया।

  रजनी छाबड़ा जी ने मेरी राजस्थानी कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद किए किंतु 12 फरवरी, 2018 का दिन उन्होंने मेरे लिए अविस्मरणीय बना दिया। वह दिन मेरे लिए खास था कि मुझे साहित्य अकादेमी द्वारा मुख्य पुरस्कार मिला किंतु उनका सरप्राइज मेरे राजस्थानी कविता संग्रह का अंग्रेजी अनुवाद पुस्तक के रूप में मेरे हाथों में सौंपना बेहद सुखद अनुभूति देने वाला रहा। यह तो जानकारी मुझे थी कि वे मेरी कविताओं का अनुवाद कर रही हैं किंतु उन्होंने या डॉ. संजीव कुमार जी ने कुछ पहले बताया नहीं था।

एक साथी रचनाकार-अनुवाद के रूप में समय के साथ हमारे संबंधों का सफर प्रगाढ़ होता चला गया और यह उनका अहेतुक स्नेह है कि मैं यहां उपस्थित हूं। ‘बात सिर्फ इतनी सी’ है पर आप और हम जानते हैं कि हर बात के पीछे उसका एक विस्तार समाहित होता है। हाल ही में प्रकाशित राजस्थानी कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद के दो संचयन मुझे बहुत महत्त्वपूर्ण लगते हैं, इन दोनों संकलनों के कवियों और कविताओं के चयन से लेकर अनुवाद तक सभी काम रजनी छाबड़ा ने किया है। आज हमारी क्षेत्रीय भाषाओं से अंग्रेजी-हिंदी भाषाओं द्वारा उनको व्यापक फलक देने वाले ऐसे अनेक कार्यों की महती आवश्यता है।

 ‘बात सिर्फ इतनी सी’ है पर आप और हम जानते हैं कि हर बात के पीछे उसका एक विस्तार समाहित होता है। रजनी छाबड़ा की कविता-यात्रा की बात करें तो इससे पहले उनके तीन कविता संग्रह- ‘होने से न होने तक’ (2016), पिघलते हिमखंड (2016) और ‘आस की कूँची से’ (2021) प्रकाशित हुए हैं। अनुवाद और अंक-शास्त्र की सभी किताबों का मैं साक्षी रहा हूं कि वे बहुत जिम्मेदारी और जबाबदारी के साथ कार्य करती हैं। उनके पहले कविता संग्रह ‘होने से न होने तक’ के विषय में लिखते हुए मैंने उस आलेख का शीर्षक ‘स्वजन की अनुपस्थिति का कविता में गान’ रखते हुए लिखा था- ‘संग्रह की कविताओं की मूल संवेदना में स्मृति का ऐसा वितान कि फिर फिर उस में नए नए रूपों में खुद को देखना-परखना महत्त्वपूर्ण है। जैसे इस गीत का आरंभ उसके होने से थाकिंतु उसका न होना भी अब होने जैसे सघन अहसास में कवयित्री के मनोलोक में सदा उपस्थित है।’

      मैंने रजनी छाबड़ा के भीतर शब्दों और अंकों को लेकर एक जिद और जुनून देखा है। वे कविता रचती हो या भाषांतरण में शब्दों को एक भाषा से दूसरी भाषा में ले रहा रही हो अथवा अंकों के गणितय रहस्यों में उलझ रही हो, एक समय में एक काम और उसे पूरी तन्मयता के साथ करती हैं। मैं यहां केवल उनके गुण गान नहीं कर रहा आपसे कुछ सच्चाइयां साझा कर रहा हूं। उनकी कविताओं में मुझे भावों और अभावों के संवेदनात्मक शब्द-चित्र नजर आते रहे हैं और इस संग्रह ‘बात सिर्फ इतनी सी’ में भी यह क्रम जारी है। सकारात्मक सोच और आशावादी दृष्टिकोण के साथ वे अपने स्त्री-मन को खोलते हुए किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रखती हैं। जो है जैसा है उसे शब्दों के माध्यम से चित्रात्मक ढंग से प्रस्तुत करने का उनका हुनर प्रभावित करता है। बेशक ‘बात सिर्फ इतनी सी’ है किंतु उसे उल्लेखनीय बना कर रजनी छाबड़ा जैसे अपने समय और समाज को कविताओं में रेखांकित करती रही हैं। ‘अपनी माटी’ कविता की पंक्तियां देखें- ‘कैसे भूल जाऊं/ अपने गांव को/ रिश्तों की/ सौंधी गलियों में/ वहां अपनेपन का/ मेह बरसता है।’ इस संग्रह की कविताओं में अपनेपन के मेह की अनुभूतियां पाठक महसूस कर सकेंगे और यही इन कविताओं की सार्थकता है कि यहां भाषा के आडंबर से दूर सरलता-सहजता से कवयित्री अपने अहसासों से प्रस्तुत करती हैं। ‘जुबान मैं भी रखती हूं/ मगर खामोश हूं/ क्या दूं/ दुनिया के सवालों का जवाब/ जिंदगी जब खुद/ एक सवाल बन कर रह गयी। (कविता- खामोश हूं) इस खामोशी में ही हमें सवालों के जवाब ढूंढ़ने हैं।

      रजनी छाबड़ा अपनी कविता ‘रेत के समंदर से’ में जिंदगी और रेत को समानांतर रखते हुए लिखती हैं कि रेत के कण जो फिसल गए वे पल कभी मेरे थे ही नहीं और उनका विश्वास है कि जो हाथों में है वही अपना है उस पर भसोसा किया जाना चाहिए, बेशक वह एक इकलौता रेत का कण जैसा ही क्यों ना हो। कवयित्री रेत में तपकर सोना होने की प्रेरणा देती हैं तो संबंधों में स्वार्थ से ऊपर उठकर रिश्तों को सांसों में बसा कर बचाकर जीने की बात करती हैं। ‘भटके राही’ कविता में वे लिखती हैं- ‘जब कोई किसी का/ पर्थप्रदर्शक नहीं बनता/ न कोई पूछता है/ न कोई बताता है/ सब का जब/ खुद से ही नाता है।’ ऐसे स्वार्थों की नगरी में भटके राही को तकनीक के साथ स्वयं के संसाधनों पर भरोसा करना होता है।

      इस अकारण नहीं है कि संग्रह की अनेक कविताओं में विभिन्न अहसासों की कुछ-कुछ कहानियां अंश-दर-अंश हमारे हिस्से लगती हैं क्योंकि पूर्णता का अभिप्राय जिंदगी में ठहर जाना या थम जाना है जो कवयित्री को मंजूर नहीं है। ‘पूर्णता की चाह’ कविता की इन पंक्तियों को देखें- ‘या खुदा!/ थोड़ा सा अधूरा रहने दे/ मेरी जिंदगी का प्याला/ ताकि प्रयास जारी रहे/ उसे पूरा भरने का...’ एक अन्य कविता ‘हम जिंदगी से क्या चाहते हैं’ कि आरंभिक पंक्ति देखें- ‘हम खुद नहीं जानते/ हम जिंदगी से क्या चाहते हैं/ कुछ कर गुजारने की चाहत मन में लिए/ अधूरी चाहतों में जिए जाते हैं।’ यह दुविधा और अनिश्चय ही हमारा जीवन है। 

      कवयित्री रजनी छाबड़ा का मानना है- ‘जो दूसरों के दर्द को/ निजता से जीता है/ भावनाओं और संवेदनाओं को/ शब्दों में पिरोता है/ वही कवि कहलाता है।’ मैं यहां यह लिखते हुए गर्वित हूं कि रजनी छाबड़ा के अपने इस कविता संग्रह तक आते आते सांसारिक विभेदों के सांचों से दूर एक मनुष्यता का रंग हमारे समक्ष प्रस्तुत करती हुई सच के धरातल को अंगीकार करती हैं। उन्हीं की पंक्तियों का सहारा लेकर अपनी बात कहूं तो- ‘नहीं जीना चाहती/ पतंग की जिंदगी/ लिए आकाश का विस्तार/ जुड़ कर सच के धरातल से/ अपनी जिंदगी का खुद/ बनना चाहती हूं आधार।’ यह स्वनिर्मित आधार ही इन कविताओं की पूंजी है और मैं स्वयं इस पूंजी में शामिल होने के सुख से अभिभूत हूं।

      अंत में रजनी जी को बहुत-बहुत बधाई देते हुए यहां शुभकामनाएं व्यक्त करता हूं कि वे अपने कविता के प्याले में थोड़े-थोड़े शब्दों के इस सफर को सच के धरातल से अभिव्यक्त करती रहेंगी। हमें उनके आने वाले कविता संग्रहों में रिश्तों की सौंधी गलियों में अपनेपन के मेह के अहसास को तिनका-तिनका सहेज कर सुख मिलेगा।

           

सी-107, वल्लभ गार्डन, पवनपुरी,

बीकानेर (राज.) 334003



‘बात सिर्फ इतनी सी’ : भूमिका ---डॉ.अंजु दुआ जैमिनी



 अधूरापन ही आकर्षक है

बात सिर्फ इतनी सी’ होती तो इतनी बड़ी न होती और बात जब बड़ी हो जाए तो दूर तक जाती है। कवयित्रीअंकज्योतिषी रजनी छाबड़ा जी के काव्य-संग्रह  ‘बात सिर्फ इतनी सी’ की बात की जाए तो दूर तक जाएगी। इस संग्रह की कविताएं नदिया के जल की तरह कल-कल करती अपने साथ बहाती चली जाती हैं। इनकी कविताओं के भाव बिना शोर बचाए अपने निशान छोड़ रहे हैं। इनमें एक संगीत बहता है जिसे सुन कर खुशी भी होती है और हल्की-हल्की पीर भी। पीर भी ऐसी जो मीठी-मीठी लगे। कहते हैं अगर मनचाहा सब मिल जाए तो मन खुश नहीं रहता। जहाँ थोड़ा शून्य हो वहीं शांति होती है। रजनी जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से मन की तरंगों का एक अदभुत संगीत बजाया है जिसकी स्वर लहरिया मंद्र से मध्यम और फिर तीव्र हो जाती है। इस गुंफित काव्यात्मकता से निकलने का मन ही नहीं होता।

इनकी कविताओं में सकारात्मकता हैउम्मीद हैनिराशा है और जिजीविषा भी है। सभी भावों को साथ लिए कविताओं में रूपकउपमाएंबिंब सजे हैं ; साथ ही कल्पना और यथार्थ का संतुलित सम्मिश्रण भी है। कवयित्री ने बचपन से यौवन और यौवन से परिपक्व अवस्था की धूप-छाँव को कविता में खूबसूरती से पिरोया है। जैसे सर्द दोपहर में दो टुकड़ा धूप मिल जाएजैसे किसी गर्म साँझ यकायक हवा चल पड़े और जैसे शुष्क दिवस झमाझम बरसात आ जाए बस वैसे ही इनकी काव्यात्मक पक्तियाँ मन को भिगो-भिगो जाती हंै। एक ठहराव है इनमेंगहराई है और साँझ की शीतल पवन के झकोरे हैं।

मुक्त छंद में गेयता की लहर है। ‘बात सिर्फ इतनी सी’ शीर्षक कविता में शोखी नहीं शिकायत है। श्रंगार रस के संयोग और वियोग दोनों भाव कविताओं में हैं । ‘पूर्णता की चाह’ कविता में जिजीविषा झांकती नजर आती है।

या खुदा/थोड़ा सा अधूरा/रहने दे/मेरी जिन्दगी का प्याला/ताकि प्रयास जारी रहे/उसे पूरा भरने का’ं

उपरोक्त पंक्तियां जीवन का फलसफा समेटे है कि अधूरापन ही आकर्षक है।

इसी भाव को लिए इनकी दूसरी कविता ‘अधूरी आरजू’ है-

कोई अधूरी आरजू लिए/सो जाइए/ताकि सुबह जागने की/कोई वजह तो हो।’

इन पंक्तियों में जीवन का गहन अर्थ है कि निरन्तरता ही जीवन है।

कोमल भाव लिए सशक्त कविताओं की रचयिता को मेरी अशेष शुभकामनाएँ।

-डाॅ. अंजु दुआ जैमिनी

साहित्यकार,

अध्यक्ष नई दिशाएँ हेल्पलाइन

फरीदाबाद

Tuesday, February 14, 2023

My Books on India Netbooks Stall No. 124, Hall 2, World Book Fair, Pragati Maidan

 My 15 Books will be shelved on India Netbooks Stall No. 124, Hall 2, World Book Fair, Pragati Maidan, Delhi, 25th February to 5th March, 2023









Another feather added to my cap will be FIRST FLIGHT, maiden poetry book of my Dear Grandson, Budding Poet, PRTYUSH CHHABRA 10+, student of Standard V, Ridge Valley School, Gurugram.

My Books @ Surya Prakashan Mandir, Stall 109, Hall 2 of World Book Fair


By Grace of Almighty , my three books will be shelved on  Surya Prakashan Mandir, Bikaner's, Stall No. 109, Hall 2 @ World Book Fait, Pragati Maidan, 25th February to 5th March, 2023

Saturday, January 28, 2023

आभास


आभास

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 पानी में 

नमक सा एहसास

मुझे है भाता 

अदृश्य रह के भी

अपनी उपस्थिति का

आभास कराता/


रजनी छाबडा



पाणी वेच 

नूण वरगा एहसास 

मेंकू लुभावंदा 

विखदा नहीं 

पर आपणा होवण  

जता वैंदा /



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