Thursday, September 9, 2021

उड़ान


 

 

 उड़ान 

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नन्हे , मासूम  पाँखियों को 

ख़ुद ही उड़ना सिखाते हैं 

उनके जन्मदाता 

 

उड़ना सीखने के बाद भी 

पिंजरे में ही सिमट कर रहें 

अपने पँख समेटे हुए 

क्यों फिर उन्हें, यह कहें

 

जो जितनी ऊँची उड़ान भर सकता है 

अपने ऊँचे मुकाम पर पहुंचेगा ही 

पर विश्वास रखिये 

उड़ान सिखाने वाले को 

भूलेगा नहीं/

@ रजनी छाबड़ा

Friday, August 27, 2021

तुम इतना इतराया मत करो



तुम इतना इतराया मत करो 
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 तितली 

तुम इतना इतराया मत करो 

बेख़ौफ़ बगिया में 

आया जाया न करो

 

न जाने कब

कोई रीझ जाये 

तुम पर और 

तुम्हारी मासूम अदाओं पर 

 

और तुम बेक़सूर 

सिमट कर रह जाओ 

शोख रंगों के साथ 

किताबों के पन्नों में 

किसी का मन बहलाने को/

 

रजनी छाबड़ा

 

 

Sunday, July 25, 2021

 

*समय से सवाल करती  आस की कूंची ।

     कविता में  समय के साथ उसका स्वरूप, कथ्य , भाषा- शैली और प्रतिबद्धता बदलाव आता रहा हैं। समय के साथ समय और समाज से भी प्रभावित होती रही है कविता, यह बदलाव उचित भी है ।
 कविता का समकालीन दौर संवाद से भरा है । इस समय की कविता  प्रभावशाली होने के कारण कविताओं में आम आदमी के साथ गहरा रिश्ता बनाती हैं ।
   कवि - कर्म कठिन होता जा रहा है । समकालीन कविता आम आदमी की वेदना को अभिव्यक्त करती है ।
      जब भी कविता में नारी विमर्श एवं उसकी वेदना की बात की जाएगी रजनी छाबड़ा की कविता की गंभीरता को रेखांकित किया जाएगा । छाबड़ा की कविताओं में सरसता है । 
     आस की कूंची की कविताओं को पढ़ते हुए उनकी काव्य क्षमता का परिचय मिलता है, वे मूलतः अग्रेंजी की कवयित्री व् अनुवादिका हैं, परन्तु हिन्दी कविता में समसामयिक विषयों को भी बेबाक़ अभिव्यक्त करने का हुनर रखती है ।
     रजनी छाबड़ा की कविता में नारी वेदनाओं की पीड़ा, रिश्तों की कसौटी, प्रेम और अपनापन का एक अनूठा संगम है । उनकी कविता परम्परा भंजक नहीं हैं । करूणा  और मूल्य उनकी इन कविताओं में विद्यमान है । माँ, बेटी-बेटा और अपनों के दृश्य इनकी कविताओं में देखकर पाठक कवि से आत्मीयता का रिश्ता बनाता है ।
    अपने शहर के प्रति अनुराग, विश्वास, रिश्ते सहेजना, आधुनिक पीढ़ी, हिम्मत और टूटते सपनों को खुशियों से भरने जैसे मूल्यों के प्रति कवयित्री का आग्रह रहा है/ कोरोना काल में शब्दों की दोस्ती के साथ जीने का सफल प्रयास कोई व्यक्ति किस तरह करता है जो अपने आप में उपलब्धि है ।
रजनी छाबड़ा की कविताएं प्रचलित फार्मूले से अलग सामने खड़ी मौत को थमने, गैरो से भी शिकायत दर्ज नहीं करती, कवयित्री बीती कहानी बनना पसंद  नहीं करती बल्कि उम्मीद का दीपक जलाती है/ सतरंगी खुशियां बिखेरतीं हैं /
 रेत की दीवार सी जिंदगी पर उनकी यह कविता हौसला देती है:
*रेत की दीवार*
जिंदगी रेत की दीवार 
जमाने में 
आँधियों की भरमार 
जाने कब ठह जाये
यह सतही दीवार
फिर भी क्यों जिंदगी से 
इतना मोह,इतना प्यार
यह बात सही है  कि हिन्दी कविता मुखर होने के साथ-साथ बहुत तेजी से प्रगतिशील सोच के साथ  अपना मुकाम बना रही है । 
  आज मैं जब इस संग्रह से गुजर रहा हूँ तो ऐसा लग रहा है, जैसे आदमी सब कुछ भूलते हुए भी खुद के भीतर लौट जाना चाहता है । तभी रजनी छाबड़ा की कविता पाठक से सवाल करती है:-
 *बेगाने*
जिन आँखों में 
तैरा करते थे सपने 
अब उन आँखों में 
बस , वीराने नज़र आते हैं 
देखते हैं जब
अतीत की तस्वीरें 
हम खुद को ही 
बेगाने नज़र आते हैं ।

इस कविता संग्रह में कवयित्री अपने अनुभवों की व्यंजना के साथ ही  इन रचनाओं में नये बिम्बों और नये प्रतीकों के कारण संप्रेषणीय की समस्या से मुक्त नज़र आती है,  इसलिए संग्रह  पाठक के साथ आत्मीयता का रिश्ता बनाता है ।
 कवयित्री  रचना प्रक्रिया में सहजता के कारण पाठकों के समक्ष विषय-वस्तु को सरलता से प्रस्तुत करती है ।
    रजनी छाबड़ा की यह कविताएं समय से सवाल करती है कि उसके दर्द को कोई तो महसूस करे। 
मैं रजनी छाबड़ा के नये कविता संग्रह के लिए शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ  ।

*राजेन्द्र जोशी*
कवि - कथाकार 
9829032181

Mukti Sanstha

Sat, Jul 24, 2:56 PM (1 day ago)


to me

Saturday, July 24, 2021

bio data in Hindi For AAS KEE KOONCHEE

 

रजनी छाबड़ा (जुलाई 3, 1955)

पत्नी : स्व. श्री सुभाष चंद्र छाबड़ा

राष्ट्रीयता : भारतीय

जन्मस्थान : देहली

सेवानिवृत व्याख्याता (अंग्रेज़ी), बहुभाषीय कवयित्री व् अनुवादिका, ब्लॉगर, Ruminations, Glimpses (U G C  Journals) की सम्पादकीय टीम सदस्य W.U.P. की इंटरनेशनल डायरेक्टर 20, ग्लोबल एम्बेसडर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड पीस (I H R A C),  स्टार एम्बेसडर ऑफ़ वर्ल्ड पोइट्री, सी इ. ओ व् सस्थापक www.numeropath.com ,

 प्रकाशित पुस्तकें : 4 हिंदी काव्य संग्रह 'होने से न होने तक', 'पिघलते हिमखंड', आस की कूची से , बात सिर्फ इतनी सी ', इंग्लिश पोइट्री Mortgaged, Maiden Step, अंकशास्त्र और नामंक्-शास्त्र पर 13 पुस्तकें 


अनुदित पुस्तकें : राजस्थानी, हिंदी , पंजाबी व् नेपाली  से २१  पुस्तकें इंग्लिश में प्रकाशितमेरे २ हिंदी काव्य संग्रह 'होने से न होने तक' व् 'पिघलते हिमखंड' मैथिली और पंजाबी में व् अंग्रेज़ी काव्य संग्रह Mortgaged बांग्ला और राजस्थानी में अनुदित व् चुनिन्दा कविताएँ 11 क्षेत्रीय भाषाओँ में अनुदित 

स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काव्य सम्मेलनों में भागीदारी व् 7 अंतर्राष्ट्रीय काव्य संग्रहों में रचनाएँ सम्मिलित 

किंडल बुक पब्लिशिंग से ४५  इ बुक्स प्रकाशित

You tube channel : therajni 56

e mail : rajni. numerologist @ gmail.com

 

Friday, July 23, 2021

उपहार पा कर  ख़ुश  होना हमारा विशिष्ट मानवीय स्वभाव है/ यह खुशनुमा एहसास और भी बढ़ जाता है , जब लेखक आशीष भरे वचनों के साथ, सस्नेह उपहार दें और अत्यन्त विनम्रता पूर्वक भी/ 

ऐसा ही खुशी भरा दिन है आज मेरे लिए/ पंजाबी और हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर मान्यवर ओम  प्रकाश गासो जी ने आज मुझे हिंदी की २ नवीनतम काव्य कृतियाँ डाक से प्रेषित की/ कुछ दिनों पूर्व, तेजिंदर चण्डहोक जी ने उन्हें मेरे हिंदी काव्य संग्रह पिघलते हिमखंड का उनके द्वारा किया गया पंजाबी अनुवाद पिघलदा हिमालय भेंट किया था/ गासो जी को पुस्तक बहुत पसंद आयी / उनकी किताबों के साथ ही साथ उनका पत्र भी प्राप्त हुआ जिस में उन्होंने लिखा , " रजनी छाबड़ा की रचना पिघलता हिमालय पढ़ कर मैं पिघल गया / पिघल जाना पानी जैसा होता है ;  मन में लहार सी उठी /''  उनके स्नेहिल व्यवहार से अभिभूत हूँ/ बरनाला साहित्य जगत में उन्हें सब बापू जी कह कर  सम्बोधित करते हैं/

बापू जी की आभारी हूँ ,उनके आशीर्वचन और अमूल्य उपहार के लिए/

Thursday, July 15, 2021

                      इन दिनों 

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ज़िन्दगी  की आपाधापी में

 उलझा इन्सान , इन दिनों 

विषम परिस्थितयों  से उंबरने की 

स्वयं तलाशता हैं राह 

कोविड के इस दौर में 

 नहीं रह  सकता किसी के सहारे 

मनोबल  ही उसका सच्चा सहारा 

उसकी अचूक ढाल 

जिस से  दुःख करता हैं किनारा

रजनी छाबड़ा 


ठहरा पानी 

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वक़्त की झील का 

ठहरा पानी 

कोई लहरें नहीं

न हलचल , न रवानी 

 

कोई सरसराती 

गुनगुनाती 

हवा नहीं 

कोई चटक धूप 

न कोई दैवीय अनुभूति 

न मंदिरों से 

कोई मंत्रों के गूंज 

 

ज़िन्दगी कुछ ऐसी ही 

बेरंग हो गयी है 

कोरोना काल में 

 

मन तरसता है 

बच्चों को स्कूल जाते हुए

देखने  के लिए

 या पार्क में 

मौज़ मस्ती से खेलते हुए 

 

मन तरसता है 

सुनसान पड़ी  सड़कों पर 

फिर से उमड़ता 

यातायात देखने के लिए 

शॉपिग कॉम्प्लेक्स के 

फिर से देर रात तक 

व्यस्त रहने की झलक के  लिए 

 

आमजन  घूम सके उन्मुक्त 

घर की कैद से होकर मुक्त 

अपने प्रियजन से , चाह कर भी 

न मिल पाने की मज़बूरी 

न जाने कब दूर होगी 

यह कसक, यह दूरी 

 

मैं करती हूँ प्रभु को आह्वान 

लौटा दे हमें , वो बीते दिन 

तन -मन की आज़ादी 

बीते वक़्त का कर दे दोहरान /

 

रजनी छाबड़ा

 ज़िन्दगी के धागे 
****************
विश्वास के धागे 
सौंपे हैं तुम्हारे हाथ 
कुछ उलझ से गए है 
सुलझा देना मेरे पालनहार 

तुम तो हो सुलझे  हुए कलाकार 
पर इन दिनों 
वक़्त ही नहीं मिलता तुम्हे 
बहुत उलझ गए हो 
सुलझाने में 
दुनिया की उलझने बेशुमार 

मेरे  लिए भी 
थोड़ी फुर्सत निकालो ना 
टूटने पाया न विश्वास मेरा 
तुम्ही कोई राह निकालो  ना 

कहते हैं दुनिया वाले 
खड़ी हूँ 
ज़िंदगी और मौत की सरहद पर 
तुम्हीं हौले हौले 
ज़िंदगी की ओर सरका दो ना 

ज़िंदगी हमेशा हसीन लगी हैं मुझे 
लिए यही  खुशगवार एहसास 
रहने दोगे न अपनों के संग 
क्या अब भी कर लूँ 
तुम पर यह विश्वास 

रजनी छाबड़ा 
बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका 

Wednesday, July 14, 2021

मन की बात मन से

 मन की बात  मन से 

एक लम्बे अरसे के बाद हिंदी में काव्य  रचना की की है/  लिखना मेरे नित्य कर्म नहीं,  परन्तु  जब भी अपने आस पास कुछ ऐसा घटित होता है जो मेरे अंर्तमन को झकझोर दे, उसे कलमबद्ध करने के लिए अनायास ही तत्पर हो जाती हूँ/ सामाजिक परिवेश की कुछ खामियां, कुछ अच्छाईयां दोनों ही गहरा असर छोड़ती हैं : या कुछ ऐसी स्मृतियाँ जो मन के पटल पर बार बार उभरती है, मुझे काव्य  रचना के लिए उकसाती हैं 

मैं लिखती नहीं

कागज़ पर मेरे ज़ज़्बात बहते है 

कह न पायी जो कभी दबे होंठों से 

वही अनकही कहानी कहते हैं 

आरंभिक कवितायेँ प्रकृति - सौंदर्य पर लिखी , जब में  श्रीनागर में अध्ययन रत थी और फिर एक लम्बे अंतराल के बात राजस्थान की सुनहरी धरा पर काव्य सृजन शुरू हुआ/ स्वैच्छिक सेवा निवृति के उपरान्त,  हिंदी, अँग्रेज़ी और पंजाबी में मौलिक सृजन के साथ ही हिंदी, पंजाबी , उर्दू और राजस्थानी से अंग्रेज़ी मैं अनुसृजन का सिलसिला भी अनवरत चल रहा है/

कोविड  19  विभीषिका के दौरान ज़िंदगी के कुछ अनदेखे पहलू देखे/ एक अलग ही दौर से गुजरना पड़ा / अपने आस पास के वातावरण सेअछूती नहीं रही/विषम परिस्थितियों के बावजूद , परमात्मा के प्रति विश्वास में कोई कमी नहीं आने पायी / इस मनस्थिति को भी कलमबद्ध  करने का प्रयास किया है/

विश्वास है कि आस और विश्वास के ताने बाने से बुना, मेरा  काव्य संग्रह  'आस के कूची से'  आपको पसंद आएगा /आप सभी सुधि पाठकों की प्रतिक्रिया जानने की उत्सुकता रहेगी /

 रजनी छाबड़ा 

बहु भाषीय कवयित्री, अनुवदिका व् अंकशास्त्री