Wednesday, March 5, 2025

 रजनी छाबड़ा (जुलाई 3, 1955)

पत्नी : स्व. श्री सुभाष चंद्र छाबड़ा

राष्ट्रीयता : भारतीय

जन्मस्थान : देहली

सेवानिवृत व्याख्याता (अंग्रेज़ी)बहुभाषीय कवयित्री व् अनुवादिकाब्लॉगर, समीक्षक, Ruminations, Glimpses (U G C  Journals) की सम्पादकीय टीम सदस्य वर्ल्ड यूनियन ऑफ़ पोएट्स  की इंटरनेशनल डायरेक्टर 20ग्लोबल एम्बेसडर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड पीस (I H R A C),  स्टार एम्बेसडर ऑफ़ वर्ल्ड पोइट्री, सी इ. ओ व् सस्थापक www.numeropath. com 

 प्रकाशित पुस्तकें : 4  हिंदी काव्य संग्रह 'होने से न होने तक', 'पिघलते हिमखंड', 'आस की कूंची से', 'बात सिर्फ इतनी सी '  

इंग्लिश पोइट्री: Mortgaged, Maiden Step, A Pinch of Salt

अंकशास्त्र और नामांक -शास्त्र पर 13 पुस्तकें 

अनुदित पुस्तकें : Aspirations,  Initiation, A Night in Sunlight, Swayamprabha, Accursed, Haven to  Soul, A Handful of Hope. Merging with the Divine,  हिंदी से, Reveries पंजाबी से व् Purnmidam, Fathoming Thy Heart, Vent Your Voice, Language Fused in Blood, The Sun on Paper, In the Art Gallery of My Heart, Across the Border, Sky is the Limit,  Let the Birds Chirp राजस्थानी से,  Faces without Traces नेपाली से  इंग्लिश लक्ष्य भाषा में अनुदित; मेरे २ हिंदी काव्य संग्रह 'होने से न होने तकव् 'पिघलते हिमखंडमैथिली और पंजाबी में व् अंग्रेज़ी काव्य संग्रह Mortgaged बांग्ला और राजस्थानी में अनुदित व् चुनिन्दा कविताएँ 11 क्षेत्रीय भाषाओँ में अनुदित 

स्थानीय, राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काव्य सम्मेलनों में भागीदारी व् 9  अंतर्राष्ट्रीय काव्य संग्रहों में रचनाएँ सम्मिलित , 1991 से 2010 तक, आकाशवाणी, बीकानेर से निरंतर काव्य पाठ प्रसारण 

डिजिटल साहित्य में निरंतर योगदान , पोयम हन्टर्स डॉट.कॉम पर अनेकानेक कविताओं के वीडियो , किंडल बुक पब्लिशिंग से 45   इ बुक्स प्रकाशित

सम्मान : श्रीनाथद्वारा साहित्य मंडल , राष्ट्रीय स्तर सम्मान , 2001 , 

साहित्य सृजन अवार्ड, 2016  एस आर ऍम  यूनिवर्सिटी  चैन्नई , सत्यशील ज्ञानोदय द्वारा गंगा कावेरी काव्य समागम,राष्ट्रीय स्तर सम्मान , चेन्नई 2016 

प्राइड ऑफ़ वीमेन (आगमन संस्था , देहली ) 2018 , नारी गौरव सम्मान 2019 ( मेरठ से) व् स्टार एम्बेसडर ऑफ़ वर्ल्ड पोएट्री, 2019 (वर्ल्ड पोएट्री कॉन्फ्रेन्स , भटिंडा) 

टैगोर मेमोरियल अवार्ड, 2021 

अनुवाद रतन सम्मान, बी पी एल फाउंडेशन , नॉएडा, 2022 

वर्ल्ड पोएट्री कॉन्फ्रेन्स , पुणे 2024 में कवियित्री व् अनुवादिका के रूप में 


You tube channel : therajni 56

फ़ोन  : 9538695141

 e mail : rajni. numerologist @ gmail.com


Tuesday, March 4, 2025

मानसिक विद्रूपता का भयानक आईना दिखाता महाकाव्य 'लस्टस '

मुखबंध/ प्रस्तावना 

लस्टस 

मानसिक विद्रूपता का भयानक आईना दिखाता महाकाव्य 

मूल रचना अंग्रेज़ी  : डॉ.जे. एस. आनंद 

हिंदी अनुवाद :  रजनी छाबड़ा 

बुराई सदियों से अच्छाई पर हावी होने की कोशिश करती है और काफ़ी हद तक सफल भी रहती है,परन्तु, अंततः जीत का सेहरा किस के सिर पर बँधता है?

उम्र के आख़िरी कग़ार पर खड़ा सेटन 'महादानव' (मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट का काल्पनिक मुख़्य पात्र ) यह सोच कर व्यथित हैं और व्यग्र है कि अथक परिश्रम से, उसके द्वारा स्थापित अराजकता के राज्य को उसके बाद कौन सम्भालेगा? सोच विचार के बाद उसके मन में अपने भतीजे लस्टस का ख़्याल आता है कि वह इस अन्धकार के साम्राज्य  का अधिपति बनने के लिए सुयोग्य पात्र है/ लस्टस का राज्याभिषेक धूमधाम से  कर दिया जाता है/ तदुपरांत, वह अपने नवगठित मंत्री मण्डल को निर्देश देता हैं कि किस प्रकार सब ओर अराजकता फैलाई जाये; इस हद तक कि लोग बुराई को ही अच्छाई समझने लगें/ नया संविधान लस्टीटयूशन बनाया जाता है और १० आज्ञापत्र भी जाऱी कर दिए जाते है, ताकि सुनियोजित ढंग से बुराई का प्रचार प्रसार किया जा सके और मानव जाति धर्म से विमुख हो जाये / भृष्टाचार का बोलबाला हो और भृष्ट लोग ही प्रशासन में मुख्य कार्यभार संभालें/

लस्टस यह बताते हुए बहुत गर्व महसूस करता है :
"पर हमारा समय उलटा है

जबकि लोगों को ईश्वर में कोई आस्था ही नहीं। 

जिसका अप्रत्यक्ष अभिप्राय यह है कि वे हमारे जाल में उलझ गए हैं/

वे देवालयों में तो जाते है, परन्तु मात्र दिखावे के लिए/

वे विश्वविद्यालयों में जाते हैं, केवल नकली ज्ञान के लिए/

वे भले हैं, पर नाम मात्र के लिए /

उन्हें ईसा मसीह में कोई आस्था नहीं,

क्षमादान, दान- पुण्य , पाप स्वीकरोक्ति 

यह सब फैशन में परिवर्तित हो गए हैं/"

देवगण अपने सिंहासन को हिलता डुलता महसूस करते हैं/ वे अपनी दुनिया में इतने व्यस्त और मस्त थे कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि कब मानव जाति  उनसे विमुख हो कर दानवों की ओर हो गयी है/ और अब उन्हें अपनी ही बनायी गयी धरती पर पैर रखने की मनाही है/

अंत में देवताओं और दानवों में वीभत्स युद्ध होता है/ संधि विराम की आवश्यकता पड़ती है और  नयी संधि योजना लागू की जाती  है/

तामसिक प्रवृतियाँ साँप के फन सी , हर युग में सात्विक प्रवृतियों को डसने के लिए आतुर रहती हैं/बुराईयों का यह अविरल प्रवाह कभी थम पायेगा क्या? क्या मानवीय गुणों , शुचिता और बुद्धिमता दिन वापिस आएंगे / 

अंतर्राष्ट्रीय ख़्याति  प्राप्त, महान चिंतक, आलोचक और  द्वि -भाषी कवि डॉ. जे. एस. आनंद ने अत्यंत रोचक ढंग से इस दार्शनिकता पूर्ण महाकाव्य को रचा है/ कटाक्ष, हास्य, चिंतन, सपाट-बयानी और गहन विचारों का सम्मिश्रण , पाठकों के अंतस को झकझोरता है/ कविश्री ने आह्वान किया :

हे ! सरस्वती, मैं एक बार पुनः आपके पवित्र मंदिर में आया हूं /

मेरी लेखनी को नई ऊर्जा  दो 

मानव के पतन के कारण खोजने के लिए 

और लस्टस  के उत्थान के 

बाध्य कर दिया जिसने प्रभु और उसके शक्तिवान फ़रिश्तों को 

आत्म -विश्लेषण के लिए , क्यों परास्त होना पड़ा मानव को दानव से 

और किसने विमुख  किया मानव को 

दैवीय शक्तियों से और बाध्य किया 

लस्ट्स के  दिन प्रतिदिन बढ़ते आधिपत्य और शक्ति की 

शरण में जाने के लिए। 


अराजकता, नैतिक पतन , व्याभिचार,  लोलुपता , संवेदनहीनता, 


कवि प्रार्थना  करता है, परम पिता परमेश्वर से :

सृजना और कुशलक्षेम के देवताओ 

लस्टस और उसके दानवों ने 

मानवता का संतुलन बिगाड़ दिया है /

लोग विक्षिप्त हो गए हैं/

पुनर्विचार कीजिये उन्हें इस उत्तेजना के संसार  से 

वास्तविकता और स्थिरबुद्धिता के  संसार में 

कैसे वापिस लाया जाये /


लस्टस महाकाव्य की मूल भाषा इंग्लिश है/ हिंदी और इंग्लिश में मौलिक काव्य रचना के अतिरिक्त  मैंने अब तक हिंदी, पंजाबी, राजस्थानी और नेपाली से २१ काव्य संग्रह लक्ष्य भाषा अंग्रेज़ी में अनूदित किये हैं/ परन्तु मुझे आपको यह बताते हुए हर्ष हूँ रहा हैं कि लस्टस मेरा द्वारा इंग्लिश से हिंदी में अनुदित प्रथम महा काव्य है/ इसे इंग्लिश में पढ़ने के बाद, मेरे मन में यह विचार उमड़ा कि क्यों न मैं उसका अनुवाद हिंदी में  कर दूँ , ताकि विस्तृत स्तर पर हिंदी भाषी इसका आनंद ले सकें और सम्भवतः कुछ हिंदी के कवि अन्य भारतीय भाषों में उसका अनुवाद कर दें/

आशा है आपको मेरा यह प्रथम प्रयास पसंद आएगा/ मैं आभारी हूँ डॉ. आनंद की कि उन्होंने मुझे इस अनुवाद कार्य के योग्य समझा और मुझे यह सुअवसर प्रदान किया/

प्रकाशक महोदय और उनकी टीम का हार्दिक धन्यवाद, मेरी रचना को इतना खूबसूरत पुस्तकाकार देने के लिए/

रजनी छाबड़ा 
बहु भाषीय कवयित्री और अनुवादिका 























मूल रचना इंग्लिश : डॉ.जे. एस. आनंद 

हिंदी अनुवाद :  रजनी छाबड़ा 


Friday, February 28, 2025

LUSTUS : A WORLD CLASSIC IN DRAMATIC POETRY



 By Blessings of Goddess of Muse, my translation project of LUSTUS has  been completed in seventeen days.

Lustus is a World Classic in Dramatic Poetry, originally composed in English by internationally acknowledged , versatile poet and thinker Dr. J.S. Anand and I have trans-verted into Hindi to render wider approach to readers.

Will be sent for publishing very soon, hopefully.

So, countdown is about to begin.

Rajni Chhabra.

Multi -lingual Poetess and translator.




 लस्टस 

 मानसिक विकृतियों की दास्ताँ 

मानसिक विद्रूपता का भयानक आईना दिखाता नाटकीय एकालाप ' लस्टस '

मूल रचना इंग्लिश : डॉ.जे एस आनंद 

हिंदी अनुवाद :  रजनी छाबड़ा 


माँ सरस्वती की अनुकम्पा से LUSTUS का हिंदी रूपांतर मात्र 17 दिन में पूर्ण हो पाया/  शीघ ही प्रकाशित होने की आशा है /

Thursday, February 27, 2025

आभार

आभार 

*******

माँ की गोद में ठुनकता अबोध शिशु 

जिसने प्रभु आशीष से पाया 

अपने  सिर पे माँ  का साया 


माँ के स्तन से अमृत पान करता 

तृप्त होता, मंद मंद मुस्कुराया 

स्मित मुस्कान चेहरे पर लिये,

माँ की आंखों में देख मुस्काया/


क्या उसे किसी ने यह 

आभार प्रकट करने का सलीका सिखाया ?

यह ज़ज़्बा जन्मजात होता है /

मंद पड़ जाता है, 

दुनियावी तौर -तरीक़े सीखने के बाद?



रजनी छाबड़ा







Wednesday, February 26, 2025

Canto 11 page 100 to 104

 वह अपने ज्ञान की जादुई छड़ी हिलाता है 

और  सारा संसार झुक जाता है 
उसके उपहास पर/
जबकि आप तीखी नज़रों से देख रहे होते हैं 
अपने पवित्र सिंहासन पर बैठे 
आपका क़बीला  जो सीमित होता जा रहा है, उस से बेखबर।



(देवदूतों और महादूतों , देवता और देवियों में बहुत हलचल मची है/) 

ब्रह्मा 

इस रहस्य्मयी आवाज़ ने जो कहा 
स्पष्ट करती हैं व्यापक उलट-फेर को 

 दानवों से  निपटने में हमें बहुत परेशानी हुए है/

हमें तो अज्ञानता के आनंद में यकीन है 
जो जनमानस को आंदोलित करने में असफल रहा/

अत्याधिक् संख्या में लोग जब देवालयों में जाते है 
उन्हें देख कर एक राहत भरी भ्रान्ति होती है /
परन्तु वास्तिविक तथ्य तो चौंकाने वाले हैं/

क्या यह वास्तविकता है या मात्र विस्मरण ?



क्योंकि हमने अपनी  रण नीतियों की समीक्षा ऐसे नहीं की 
जैसे कि दानवों ने की 
सेटन के बाद की अवधि प्रबोधन की अवधि है/
ज्ञान ने सब मकड़ी के जाले हटा दिए हैं 
आध्यतमिकता की ओर झुके हुए लोगों 
के दिमाग  से 
और प्राचीन अतीत की मृत शाखाओं को फ़ेंक दिया है 
हमअपनी शक्तियों का राग अलापते रहते हैं 
जिनका प्रयोग हमने उस समय किया था 
जब सेटन ने विद्रोह किया था /
हमारी सफलता के बाद 
हम केवल आराम फरमाते रहे है/
हम बहुत लापरवाही से उनके विश्वास के साथ खेलते रहें है/
और अब परिणाम सामने हैं 
पृष्ठ ९९ 

दुश्मन ने तो अपनी शक्ति समेकित कर ली है 
और हमारे सैनिकों को अपनी ओर परिवर्तित कर लिया है/
हमें भौचंक्का करते हुए 
जिस समय हम अतीत की अपनी जीतों का 
जश्न मनाने में व्यस्त थे 
जिनकी आज के युग में प्रांसगिकता पर सवाल उठाये जा रहें हैं /
पुराना संसार हमारा था 
पर इस संसार ने एक निर्णयात्मक मोड़ लिया है 
परम्परा से हट के 
पुराने फ्रेम से यह एक बहुत बड़ा बदलाव था 
जब नियंत्रण हमारे हाथों से फिसल गया 
और दानवों ने लगाम अपने हाथों में ले ली/


विष्णु 

1990 में संसार बदल गया 
जब कम्प्यूटर्स का प्रयोग किया जाने लगा 
ज्ञान को संसाधित करने के लिए/
और ज्ञान का  कृत्रिम प्रकाश इतनी तीव्र गति से फैला कि 
इसने प्रकाश के प्राकृतिक स्त्रोतों को सुखा दिया/
संसार ने अलविदा कह दी, बुद्विमता को 
धार्मिक ग्रंथों को और यहाँ तक की देवताओं को भी 
और दैवीय सजा के भय  से भी मुक्त हो गए /


अब कोई पाप के बारे में परेशान नहीं होता 
किसी को भी स्वीकारोक्ति की परवाह नहीं/
किसी को भी क्षमादान में यकीन नहीं/
दान अभी भी दिए जाता है, पर राजनेताओं  द्वारा 
ऐयाशी में इस्तेमाल हो जाते हैं/

( explanation needed)

हमारे मंदिरों को क्या हुआ है 
हमारे धर्मात्माओं को क्या हुआ है?
क्या हमने कभी चाहा था कि 
सब जगह संगमरमर लगा दें 
और प्रधान ही वास्तविक राजनीति करें?
ईसा के सुविचारों की किसने गलत व्याख्या की ?
ज़रा, गौर फरमाईये, आज कल किस तरह के लोग 
हमारे मंदिरों में जाते हैं 

पृष्ठ 100 


क्या  उनमें से कोई एक भी वहाँ 
शांति और मोक्ष की तलाश में आया है?
क्या कितनी अप्रीतिकर स्थिति है !
हमे परस्पर चिंताएं और उम्मीदें 
सभी  गायब हो चुके हैं/


दानव जोश के गहरे नशे में धुत हैं,
इस कारण वे पूरी तरह से होश ,
सारे अनुपात, सारे संतुलन खो चुके हैं/
उनके आचरण में कोई शालीनता नहीं रही/
उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की है /
उच्च डिग्रियां धारक हैं /
फिर भी उनका आचरण तो देखो!
क्या वे केवल मुँह हैं? केवल पेट हैं/
केवल बाँहें है? केवल सिर है?
 पूर्ण मनुष्य नहीं?



इंद्र:
हम वंश-वृद्धि में  यकीन रखते हैं/
और हमने मनुष्यों को प्रजनन अंग प्रदान किये/
फिर भी, यह सब मानवता के बारे में नहीं था/
सेक्स जीवन का मात्र एक हिस्सा है/
फिर भी बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा/ 
और इन लोगों ने, आह!
इस आवेग को वर्जित किया/
और दानवों ने इस तंत्र का उपयोग किया/
अपनी अशिष्ट अभियांत्रिकी के लिए/
अब हर कोई काम-लोलुप है/
आदमी और औरत एक दोदरे को यूं निहारते हैं 
जैसे कि वे यौन संतुष्टि की वस्तु हों/
और क्योंकि यह वर्जित है 
एक गंभीर क्षति पहुंचाता है
मानवता के भावनात्मक और हार्मोनल संतुलन को /

पृष्ट 101 

और यह रहा परिणाम 
वे मनुष्य, जिनका संतुलन बिगड़ गया है/
वे सेक्स के लिए जुनूनी हो गए हैं, मनोरोगी ,
असामाजिक प्रवृति वाले व् बलात्कारी बन गए हैं/
हमारे छद्म संतों के बावजूद 
जो  दिखावटी नैतिकता का उपदेश देते हैं/



दानवों ने यह सुनिश्चित कर लिया है कि 
युवक व्यस्त रहें, अपने लिए अनुकूल दुल्हन ढूंढ़ने के लिए 
और लड़कियां सुयोग्य वर तलाशने में व्यस्त है,
और यह  मोहक और उत्तेजक नृत्य  जारी है/ 
 यदि कोई पति या पत्नी का गलत चुनाव कर लेता है 
 वह जीवन की सारी खुशियों से वंचित हो जाता है/



ऐसे लोगों से हम क्या उम्मीद रख सकते हैं?
भले आप उन्हें एक  ही सांस में सारे धार्मिक ग्रन्थ सुना दें,
चाहे कितनी ही बार गीता सुना दें ,
अगर उनमें शरीर की भूख बाकी  है, 
वे आत्माहीन हैं/



और इसी बिंदु पर दानवों ने हम पर प्रहार किया है/
पूरी जनसंख्या विक्षप्त हो गयी है/

रसोई से मुक्ति,
घर के बंधन से मुक्ति ,
बच्चे पैदा करने और उनको पालने से मुक्ति,
मुक्ति तो एक महान नाम है,
जिसे कि दानवों ने शर्मसारकर दिया है /



लस्टस ; (ईश्वर से)
 
महान रचेयता,
आपने एक बड़ी भूल कर दी 
आदम को वर्जित फ़ल खाने की छूट दे कर  
यही तो वह ज्ञान है 


पृष्ठ 102 

जिसे हमने अपने लाभ के लिए प्रयोग में लिया है/

क्या आप नहीं जानते थे 

आज्ञाकारिता और अवहेलना 
हाथों में हाथ मिला कर चलते हैं ?
अब, देखिये, वे सब लोग जिनका टीकाकरण किया गया था 

थोड़ी सी, बिल्कुल  थोड़ी सी या नाम मात्र की जानकारी के साथ 
आपके विरोध में सिर उठाये खड़े हैं/


हमारी सेनाओं की यह लम्बी कतारें देखिये/

हमारे दानव उनके पीछे खड़े हैं ,
परन्तु यहाँ पर लम्बी पंक्तियाँ हैं, अधिकारियों।
उद्योगपतियों, बेंकर्स, विक्रेता, 
सरकारी अफ़सर , कचहरी में काम करने वालों ,
भविष्यवाणी करने वालों, पैग़मबर , गुरु औए संतो की/


इन्हे पूछिए की वे हमारी तरफ क्यों हो गए हैं?
हमने उब्जे केवल आज़ादी की पेशकश की 
और उन्होंने आपका साथ छोड़ा , आपके आदर्शों को , आपकी नेकी 
और आपकी भव्यता को मँझदार में छोड़ दिया/


इन ग़रीब  औरतों से पूछो,

जिन्हे भरपेट भोजन नसीब नहीं होता,
कि उन्हें क्या चाहिए?
क्या  उनमें से कोई भी मोक्ष चाहता है/ याकि, यहाँ तक कि भगवान ?


आवाज़ें :

नहीं, नहीं, नहीं 
हमें भोजन चाहिए/ हमें फ़्रिज चाहिए/ हमें कारें चाहिए/
हम विदेश देखना चाहते हैं/ 

युवकों से पूछिए/ वे क्या चाहते है?

पृष्ठ 103 

आवाज़ें 
आज़ादी, प्यार, सैक्स , मौज-मस्ती, मदिरा, नशीली औषधियाँ 

लस्ट्स :

क्या तुम्हे भगवान् नहीं चाहिए ? क्या तुम्हे स्वर्ग चाहिए?


आवाज़ें :
हम जीना चाहते हैं, हम मरना नहीं चाहते/
भूख़ और ज़रूरत यही सच्चाई हैं /
भगवान तो मात्र कपोल कल्पना है /
ज़िंदगी अमूर्त नहीं/


हे, साधुओ ! यहाँ आओ और बताओ 
आपकी समस्या क्या है/
आपने भगवान से मुँह क्यों मोड़ लिया/


आवाज़ें :

हमें शक्ति चाहिए और शक्ति आती है
बंदूक की दुनाली से 
और केवल राजनेता के पास ही बंदूक होती है/


लस्टस :

भगवान, अब मुझे दिखाईये , कितने लोग 
आपकी ओर से लड़ने वाले हैं?



भगवान :
लस्टस , यह कौरवों की सेना है 
लाखों की तादाद में, जो भूसे में यकीन रखते थे,
ख़ुद भूसा  बन गए/
और राख़ का ढेर हो गए/
वे हमें हमारी नेकी के रास्ते से 
पथभृष्ट नहीं कर सकते/
हमने केवल जानकारी नहीं दी, 
परन्तु बुद्धिमता भी दी 
जिसे इस लोगों ने नहीं खरीदा/

पृष्ठ १०४ 





 


 


Tuesday, February 25, 2025

महाकाव्य लस्टस का एक अंश, आप सभी सुधि पाठकों के अवलोकन हेतु

महाकाव्य लस्टस का एक अंश, आप सभी सुधि पाठकों के अवलोकन हेतु 

(मूल लेखन इंग्लिश में : डॉ. जे.एस.  आनंद 

हिंदी अनुवाद :  रजनी छाबड़ा 


लस्टस : 

 हमारे अस्तित्व को कोई ख़तरा नहीं है/

क्योंकि हम अदृश्य हैं/

हम अमूर्त हैं/

हम आभासी वास्तविकता हैं/

हम लोगों के दिलों में बसते हैं /

हम उनके विश्वास में जीते हैं/

हम अमर हैं/  

निडर /

और उतने ही शाश्वत 

और चिरस्थायी  जितना कि भगवान /


( लस्टस मंच से नीचे आ जाता है/)


दैवीय वाणी :

भगवान उनके गर्व के अभिकथन सुन रहे हैं/

और उनके स्वयं -निर्मित संसार में

इन्हे इस विश्वास की घुड़सवारी करने दे रहें है/


कौन जानता  है कि 

आज का सूर्य किस प्रतिशोध के साथ उदित होगा/

वही सूर्य जो कल कोमलता से अस्त हो गया था/

Saturday, February 22, 2025

लस्टस मानसिक विकृतियों की दास्ताँ



लस्टस 

 मानसिक विकृतियों की दास्ताँ 


मानसिक विद्रूपता का भयानक आईना दिखाता नाटकीय एकालाप ' लस्टस '