Saturday, February 22, 2025

सर्ग ७ लस्टीटूटयूशन (लस्टस का सविंधान): दस आज्ञापत्र 62 to 68

सर्ग  ७ 
लस्टीटूटयूशन (लस्टस का सविंधान): दस आज्ञापत्र 
स्थल: लस्टोनिआ , महान लस्टस का दैवीय साम्रज्य 
लस्टस विश्व नेताओं को सम्बोधित कर रहा है और अपने दस आज्ञापत्र ज़ारी कर रहा है/

लस्टस :
वे सभी जिनकी आस्था 
अंधकार के साम्रज्य की शक्तियों में है 
स्वर्गदूतों के हमले से लड़ने के लिए ,
अपनी नयी प्रतिबद्धता और नवीनीकृत गौरव के साथ ,
इस दस आज्ञापत्रों का अनुपालन करेंगे, 
हमारे साम्राज्य का फैलाव सुनिश्चित करने के लिए 
प्रत्येक व्यक्ति तक 
चाहे उसमें कैसी भी सामर्थ्य हो/


धार्मिक स्थल बनाओ और लोगो में लड़ाई करवाओ 
रंगभेद और धार्मिक प्रतीकों के नाम पर /
हमारे राजदूतों की संख्या तो असीमित है 
जिन्हे ईसा और बुद्ध की धरती पर 
घृणा फ़ैलाने में व्यस्त रहना चाहिए,
 संवेदना के नाम पर 
और ईश्वर -प्रेमी लोगों को परिवर्तित कर 
कट्टर स्वर वाले और हत्यारे बनाने के लिए/



वे देश जहाँ पैगंबरों ने 
मानवता के उपदेश दिए 
और देवों का राज्य स्थापित किया 
उन्हें पूरी शक्ति से लक्षित किया जाना चाहिए/
बुराई का प्रचार इतना अधिक किया जाना चाहिए 
कि वह सच्चाई प्रतीत होने लगे/ 

पृष्ठ 62 

देवालयों में जाओ और धार्मिक ग्रंथ पढ़ो ,

और जुलूस निकालो,
 देवों को खुशी महसूस होने दो कि 
पीढ़ियाँ उनको सम्मान दे रही हैं,
उन्हें अपनी निष्क्रिय उड़ान  का आनंद लेने दो 
जबकि हम इनकी आत्मा को चूस लेंगे और केवल खाल बचेगी/


2 . 
 

हमारे साम्रज्य को केवल एक ही बात से खतरा है 
वह है प्यार 
अगर तुमने प्यार करना ही है, लस्टस से प्यार करो,
जोकि ईश्वर को सब से बड़ी चुनौती है 
और उसके शिथिल  साम्रज्य को 

आदम और हव्वा एक दूसरे से प्यार करते थे,
परन्तु ज्ञान का बीज बो कर 
जोकि घृणा का ही समानार्थक है 
हमारी योजना है कि इस अविश्वासी  विश्वास की फसल काटें/    


प्रेम  से विवाह की ओर, बुद्धिमानों का झुकाव होने दो ,
विवाह की ऐसी योजनाएं बनाओ 
कि असमान युगलों के सम्बन्ध सुनिश्चित करो 
उसके उपरांत, संतानोत्पति हेतु,
जोड़ों को कृत्रिम गर्भाधान की योजना बनाने दो 
और अंत  में , अवैध संतानों  को  धरती पर झूमने दो/


3. 

समाचारपत्रों को तुच्छ विचारों से भर दो ,
सुनिश्चित कर लो कि कोई खबर भी अच्छी खबर न हो /

उन्हे केवल वही रिपोर्टिंग करने दो जो कि बेतुकी हो,

और नेक काम तो  व्यवसाय से बाहर हैं/

 दानवों को बहुत ख़ुशी मिलती है जब वे देखते हैं कि 

नेताओं का अनुसरण तो देवालयों में भी किया जाता है 

 और देवताओं की अवहेलना कर दी  जाती है/

पृष्ट 63  

4. 

इस धरती पर जो नैतिककरण उपकरण है, उसे नष्ट कर दो,
और जो कुछ भी  महत्वपूर्ण है,  उसका अस्तित्व मिटा दो/
ज्ञान की बात सघन होनी चाहिए /
दिम्माग को मूर्खता से भी दो/
पुस्तकें ऐसी होनी चाहिए जिनमें कुछ भी विषयवस्तु न हो/
और डिग्रियाँ ऐसी जोकि प्रमाणित करें की इन में कुछ भी नहीं है/
विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि करो/
बिक्री को कई गुणा बढ़ा दो,]
और उन लोगो को शीर्ष ओहदे दो, जो सबसे निम्न रहने योग्य हैं/


5 . 

दम्पतियों में परस्पर विश्वास टूटना चाहिए 
एक लगातार विवाद की स्थिति कि किस सी बात और कर्म उचित हैं/
इस हद तक की अंततः उनका सम्बन्ध विच्छेद हो जाए 
मानवता  की कहानी को तनाव समाप्त करना अति आवश्यक है/
वास्तविक युद्ध तो अब घरों में लड़ा जाएगा/
यहीं पर तो अब खुदा का मक़बरा बनेगा/


6 . 

पाप स्वीकरोक्ति और  क्षमादान 
इसाईयों की रस्में हैं /
सदैव एक ऐसे अवसर की तलाश में रहो  
जहाँ तुम कोई विचलन ढूंढ सको /
इस तरह के प्रावधान आश्वस्त करते हैं कि 
साधारण निंदा से परे कोई सजा नहीं 
लोगों को और गलतियां करने के लिए साहस देते हैं 
नमक के आस्वादन के बाद, मिठास का स्वाद लेने के लिए/


7 . 

ईश्वर ने दैवीय संतुलन के साथ इस ब्रह्माण्ड की रचना की थी 
उसने रसायनों को पुनर्मिश्रण करते हुए 
मस्तिष्क की संरचना 
मानव की विचार प्रक्रिया को  भंग करने के लिए/

पृष्ठ  64 

प्रत्येक प्राणी और मानवीय शरीर के प्रत्येक अंग की, 
अपनी आवश्यकताएं होती हैं 
अगर आपूर्ति होते रहे तो सब सही और उम्दा 
अगर प्रतिदिन का आहार न मिले ,तो अव्यवस्था 
अगर सेक्स की भूख शांत न हो तो 
काया और मन तूफ़ान मचा देते हैं/
और पीसने का  संतुलन ही बिगाड़ देते हैं/


8 . 

मनुष्य केवल एक पैकज है, 
एक सौदे केअलावा कुछ भी नहीं /
हमें  क्रूर स्वभाव और असंयमी  उमंग वाले 
 मनुष्य चाहिए/
हमारे संसार की शासिका ग्रेडा है (चंचल माँ )
लोलुपता की देवी,
वासना, आकांक्षा और क्रूर जुनून 
हमारा स्थायी पंथ/



9. 

देवालयों से पुजारियों को हटा दो 

पाठशालाओं से अध्यापकों को हटा दो/
और विश्वविद्यालयों से , अरे!
दार्शनिकों और प्रोफेसरों को/
हमें तो  कट्टर पेशेवर चाहियें
जो ऐसी ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा दें 
जोकि सिखाये कैसे ईश्वर को धोखा दिया जाये 
और नर्क की स्तापना की जाये 
और वे सभी ज्ञान प्रणालियाँ जिन से 
आत्मा की आग के गंध आती है 
उन्हें तो कचरापात्र में पड़े रहना चाहिए/


10. 

 यदि आप प्राकृतिक वृति को विफल कर सकते हो,
आप देवताओ को कोसों दूर रख सकते हो/
 पक्षी, जानवर, नदियाँ, हवाएँ ,

पृष्ठ 65 
स्वयं के एक तर्कसंगत स्थान पर रह सकेंगे/
ऐसा ही वनस्पति का प्रकरण है/
चाहे कोई वृक्ष काटो या कोई फल तोड़ गिराओ 
बिल्कुल भी  कोई आवेश होता ही नहीं]. 
इस पुरातन संसार का अब नवीनीकरण होना चाहिए/
उनमें भी , उनके उच्च दर्जे के होने का एहसास पैदा करो,
जानवरों को, पक्षियों को और लचीले वृक्षों को सूचित करो 
आज के बाद, कुछ भी मुफ्त में नहीं दिया जायेगा./


समूहगान

टांगो और बाहों पर शिक्षा केंद्रित करो 
सिर और आत्मा से इसे अक्षम करो/
आधुनिक समय के संसार में 
 पेशेवरों  की आवश्यकता है , न कि प्रोफेसरों की 
और दार्शनिकों की तो उस से भी कम/


शब्द आवाज़ नहीं करते 
फ़िर भी उन्हें बेवजह मत उछालो /
जैसे कि हम तक तक कदम नहीं बढ़ाते 
जब तक हम आश्वस्त न हो  जाएँ 
कि हमारे पैरों की नीचे की ज़मीन मजबूत है/



ईश्वर एक आध्यात्मिक सरंचना है/
अच्छाई का एक उत्कृष्ट रूप 
जिसकी सहस्त्रों परते हैं
साधुता की पहुंचते हुए 
और अंत में शुचिता की ओर/


बुराई भी अंतिम संस्करण है 

अच्छा न होने का/

दो विरुद्ध दिशाओं के एक बिंदु से 

बुराई और अच्छाई आगे बढ़ते हैं 

दोनों ही सदैव उपस्थित रहते हैं/

पृष्ट 66 

दानव कभी भी अधिक दूरी पर नहीं होते 
पलक झपकते ही 
 स्थिति पर काबू पा लेते हैं/
इस से पहले की आप कुछ सोच पाएं/
बुराई इतनी चुस्त है, इतनी बुद्धिमान, इतनी फुर्तीली 
और इसकी कार्यशैली इतनी तत्पर 
कि वे घर बैठे बैठे ,आपका काम कर देते हैं/
आपको कोई आर्डर फॉर्म भरने की आवश्यकता नहीं 
उनके कंप्यूटर उन्हें आपकी रूचि सेअवगत करा देते हैं 
और, वाह,आपको कॉल आ जाती है 
आपको जो चाहिए, आर्डर कीजिये 


आपको तो केवल निर्णय लेना है 
गगोल एंटर कीजिये और  एंटर का बटन दबा दीजिये/
अब आप वाणिज्यिक जीवों की दया पर निर्भर हैं/
वे जानते है की आपके लिए क्या सर्वाधिक अनुकूल है/ 
आपके अवतरण दिवस पर आपको ऑफर मिलते हैं 
कूपन्स इस आग को और उच्चण्ड करते हैं 
यह दानव की निःशुल्क सलाहकारी संस्था है/
आपकी इच्छा की अभिव्यक्ति के लिए/


यह शिष्टाचार और रीति की वजह से भी है कि 
उबासी लेते हुए या छींकते हुए देवताओं को याद करते हैं 
या अपने दिन की शुरआत करते हुए 
अन्यथा, उस समय,
 केवल दानव ही समय का लाभ उठाते हैं/


 पुराने अच्छे दिनों में , ऐसा समय भी था 
जब गाँव की एक ही चौपाल 
पूरी जनसंख्या की सेवा कर लेती थी  
इसकी ज़रूरतों के वक़्त /

पृष्ट 67 
देवता तो अब स्वयं कोअल्पसंख्यक समझते हैं,
क्योंकि अब बुराई तो सब से ऊंची भावना है/
और, शैतान ने अब हर दिल में 
एक मंदिर बना लिया है/



लस्टस प्रेस कांफ्रेंस में 

लस्टीट्यूशन के दस आज्ञापत्रों के रूप में  घोषणा के उपरान्त, एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की जाती है/ संसार के विभिन्न चैनल्स महान लस्टस को घेर लेते हैं, अपने प्रश्नों के साथ / 'किलर इंस्टिंक्ट' और 'लस्ट' के संवाददाता प्रश्न पूछते हैं/


किलर इंस्टिंक्ट:

लस्टस, आपने कहा कि दानवों को 
मानव प्रजाति का संतुलन बिगाड़ना चाहिए/
आप ऐसा कैसे संभव कर पाएंगे?
और इस से दानवों के राज्य को क्या मदद मिलेगी?


लस्टस :

हमने ईडन का   संतुलन न  बिगाड़ने  का निर्णय लिया है/
 
इसकी बजाय , हमने अपना साम्राज्य बनाया है/

लस्टोनिआ /

यह हमारा स्वर्ग है, जहाँ हम मिलते हैं,

षड़यंत्र रचते हैं और आराम करते हैं/

हम मानवता की लय  को कैसे  बिगाड़ेंगे ?

सीधे सादी सी बात है, उन्हें सेक्स क्षुधातुर रख के 



किलर इंस्टिंक्ट:

सेक्स? क्या लस्टुनिआ में सेक्स पर कोई प्रतिबंध नहीं?
मानव  संसार में तो सेक्स एक वर्जित विषय है/
68 











Tuesday, February 18, 2025

लस्टस

 




ज़िंदगी के आख़िरी पड़ाव पर पहुंचे अशक्त  वृद्ध, SATAN( शैतान) को, जिसने सारी उम्र अमानवीय कृत्यों के माध्यम से अराजकता ही फैलायी है, अपने अँधेरे  साम्राज्य के द्वारा,   मौत की कगार पर खड़े हुए भी उसे यह चिंता सत्ता रही है कि  उसके बाद यह अधूरे काम कौन पूरे  करेगा/ अपने चचेरे भाई LUSTUS (लस्टस ) में उसे  सभी अमानवीय गुण दिखाई देते है, जो अपनी कूटनीतियों से मानव मात्र का जीना दूभर कर  देगा/ अतः , वह उसका राज्याभिषेक करते हुए, उसे लस्टोनिया का राजकुमार घोषित कर  देता है/  


मानवीय गुणों का हनन कर,  बुराई  फ़ैलाने का यह सिलसिला अभी भी जारी है/ और अधिक जानने के लिए पढ़िए  अंतर्राष्ट्रीय ख़्याति  प्राप्त लेखक व् चिंतक, डॉ. जरनैल सिंह आनंद का  इंग्लिश महाकाव्य  LUSTUS.  शीघ्र ही आपको इसका मेरे द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध होगा/

रजनी छाबड़ा 

बहु भाषीय  कवयित्री व् अनुवादिका 

Monday, February 10, 2025

A DATE WITH ETERNITY


 A DATE WITH ETERNITY


LUSTUS is a lucky chap. He was brought down from celestial spheres into Bengal by way of its translation into Bengali.


It has seen the beautiful landscape of Iran also   after its Persian translation by Dr Roghayeh Farsi, Professor of English, Univ of Neyshabur Iran.


Now, I am thankful to Dr Rajni Chhabra, noted poet, translator and Numerologist  who has decided to create it's Hindi Avataar. Trans- creating Lustus into Hindi is a great service to the cause of Indian literature for which I appreciate Dr Rajni Chhabra because translating an epic like Lustus is really a challenging  job with its Neo-Mythology and technical exoerim jientation.


I congratulate Dr Rajni Chhabra and look forward to its publication in Hindi

आह्वान

 

 LUSTUS, THE PRINCE OF DARKNESS 
BY  Dr. JERNAIL S AANAND 

TRANSCREATED BY RAJNI CHHABRA




 LUSTUS/लस्ट्स 


आह्वान

हे ! सरस्वती, मैं एक बार पुनः आपके पवित्र मंदिर में आया हूं /

मेरी लेखनी को नई ऊर्जा  दो 

मानव के पतन के कारण खोजने के लिए 

और लस्ट्स के उत्थान के 

बाध्य कर दिया जिसने प्रभु और उसके शक्तिवान फ़रिश्तों को 

आत्म -विश्लेषण के लिए , क्यों परास्त होना पड़ा मानव को दानव से 

और किसने विमुख  किया मानव को 

दैवीय शक्तियों से और बाध्य किया 

लस्ट्स के  दिन प्रतिदिन बढ़ते आधिपत्य और शक्ति की 

शरण में जाने के लिए। 


लस्ट्स जो इच्छुक था मानव के रवैये को देव के समक्ष उचित ठहराने का 

खिलवाढ़ कर  रहा था मानवीय मन की दुर्बलता के साथ 

सम्मान, स्वतंत्रता और इच्छा शक्ति की आड़ में 

और उसकी उच्च श्रेणी की  बौद्धिक वाकपटुता ने  

कैद कर  दी उनकी कल्पना शक्ति 

ताकि शीघ्र ही उन्हें यह आभास होने लगा 

यदि वे चाहते हैं कि मन-वांछित ही घटे 

केवल लस्टस और उसका राज्य ही है 

जो उन्हें बेलग़ाम आज़ादी दे सकते हैं/


प्रभु और उसकी दिनों-दिन क्षीण होती जा रही सेना

अपने बलपूर्वक रवैये के साथ जारी रखे हुए थी 

मृतकों की उपासना

और उनके अनुयायियों के लिए निर्धारित करती 

आचरण की एक सारणी 

जिससे आमआदमी साधारण खुशियों से भी वंचित हो जाता 


इस तरह, उन्होंने मुख मोड़ लिए मंदिरों से 

और भीड़ बढ़ ने लगी मदिरालयों, सिनेमाघरों 

रेस्त्रां और क्लुबों में 

लोग,जो मुक्ति चाहते थे 

कमरतोड़ काम के बोझ से 

एकत्रित होते खेल खेलने,  महिलाओं से मिलने के लिए 

और मदिरा पान व् मौज़ मस्ती  के लिए 

परन्तु, जैसे जैसे सामूहिक अर्थव्यवस्था की पकड़ 

बढ़ने लगी, राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था पर 

अधिकाधिक युवा धकेल दिए गए नौकरियों की ओर 

जहाँ न तो उन्हें खुशी मिलती, न आशा की कोई किरण 

केवल आकांक्षा परोसी जाते उन्हें 

मात्र स्व -केंद्रित अतिरंजित जुनून 

रुग्ण मानसिकता और निरंतर दर्द से युक्त /

इस सशक्त लोगों की सेना 

जो दानव के नाम पर जी रहे थे 

दिखने में धार्मिक लगते थे 

और प्रभु के प्रति पूर्णतः समर्पित 

मंदिरों में अर्चना करते 

धार्मिक स्थलों पे सजदे में सिर झुकाते 

स्पष्ट रूप से अपनी  दमित भावनाओं से मुक्ति पाने के लिए 

फिर भी, उनकी निष्ठा तो शैतान के प्रति ही थी 

मानवीय इच्छाओं की पूर्ण स्वतंत्रता में यकीन के साथ /


हे, सरस्वती! मुझे सामर्थ्य दो वर्णन करने की 

कैसे घटित होता है यह देवत्व को लूटने का काम 

कैसे  यह दुष्ट लोग इस संसार को बदल देते हैं 

आध्पित्य हो जाता हैं अन्धकार के साम्रज्य का, 


और कैसे दैवीय साम्राज्य के दुर्ग एक के बाद  एक 

लस्ट्स के  कोप के आगे  धराशायी होने लगते है, 

और किस तरह अंततः प्रभु प्रयास करता है 

अपने खोये स्वर्ग को पुनः प्राप्त करने के लिए। 



मुझे शक्तिदान दो इस अधार्मिक युद्ध के 

अनपेक्षित विवरण करने हेतु 

जोकि लस्ट्स और उसके समूह ने 

प्रभु पर थोपा 

जिसमें कितने ही फ़रिश्ते घातक रूप से घायल हुए 

और, अंत में दुर्गा का आह्वान किया गया 

दानवों  के नरसंहार के लिए 

 अराजकता के अंत के लिए 

और ईश्वरीय व्यवस्था के पुनर्स्थापन के लिए 



मूल रचना: डॉ. जे. एस. आनंद  

अनुवाद : रजनी छाबड़ा 


Sunday, February 9, 2025

किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ

किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ   ((सिराइकी में मेरी कविता )

********************

माँ , तूँ  कयी वारी आखिया कर दी हावें 

बबली, तूँ इतनी  चुप चुपिती क्यों हें 

कुझ दा  बोलिया कर 

मन दे दरवाज़े ते खड़का कर 

शब्दां दी  दस्तक नाल खोलिया कर 


हुण  जुबान तुं  ताला हटाया हे 

तूँ ही नहि सुणनं वास्ते 

ख़यालां दा जो काफ़िला 

तूँ छोड़ गयी हें 

मेडे दिल-दिमाग वेच 

वादा हे टेड़े नाल 

इवें ही अगे वधाये रखसां 


सारी दुनिया वेच टेडी झलक वेख 

सीधे सादे हरफ़ां दी पेशक़श 

साफ़ सुथरी नदी वरगा 

इवेन ही वगण देसां 


मेडी चुप्पी कुं होण 

जुबान मिल गयी हे 

किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ 


रजनी छाबड़ा 



Saturday, February 8, 2025

सिमटदे पर

 सिमटदे  प

***********

पहाड़, समंदर, उचियाँ इमारतां 

अणदेखी कर सारियां रुकावटां

अज़ाद उड्डण दी ख़्वाहिश नु 

आ गया हे 

अपणे आप ठहराव 


रुकणा  ही न जाणदे जो कदे 

बंधे बंधे चलदे हुण ओही पैर  


उमर दा आ गया हे ऐसा मुक़ाम 

सुफ़ने थम गए 

सिमटण लगे हेन पर  

नहीं भांदे हुण नवे आसमान 


 बंधी बंधी रफ़्तार नाल 

बेमज़ा हे ज़िंदगी दा सफ़र 

 अनकहे  हरफ़ां नु 

क्यूँ न आस दी कहाणी दे देवां 

रुके रुके कदमा नु 

क्यों न फेर रवानी दे देवां /


रजनी छाबड़ा 


सूटकेस

 मित्रों, आज आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ अंर्तराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त  कवि व् चिंतक  डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम SUITCASE का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/


सूटकेस
********
मैं ख़ुशी से भरपूर था
अपने शोख़ रंग के साथ और अचम्भित भी
विवाहोत्सव के दौरान, मैं भरा रहूंगा
पोशाकों और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों से
यह सूटकेस विवाह के अवसर के लिए ही था


विवाह के शुभ दिन
सूटकेस की खुशी का ठिकाना न था
पोशाकों और आभूषणों से भरपूर
थिरक रहा था कक्ष में
और तब, यहाँ वहां
अंत में ठहराव पाया ससुराल के घर में


एक व्यक्ति , जोकि उस महिला का पति है
झगड़ता है उस से बात-बेबात
वह अंदर जाती है
मुझे उठाती है और भर देती है
मुझे अपने ज़रूरी सामान से
और, अरे! वह तो घर से बाहर निकल रही है

पति मुझे पकड़ लेता है
ले जाता है घर के अंदर जबरन

औरत ने झपटा मारा उसके हाथ पर
और बाध्य किया उसे मुझे छोड़ने के लिए
मैं असमंजस में था , क्या मैं
भीतर की राह लूँ या बाहर की


एक दिन, मैंने महसूस किया
पति का जानवरों जैसे बेरहम बर्ताव
औरत को मैंने खामोशी से पड़े देखा
और पति समेट रहा था
उसके शऱीर को मुझ में
और धकेलता हुआ ले गया मुझे /

हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा


Friday, February 7, 2025

SUITCASE / सूटकेस ENGLISH POEM WITH HINDI TRANSLATION



सूटकेस
********
मैं ख़ुशी से भरपूर था
अपने शोख़ रंग के साथ और अचम्भित भी
विवाहोत्सव के दौरान, मैं भरा रहूंगा
पोशाकों और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों से
यह सूटकेस विवाह के अवसर के लिए ही था


विवाह के शुभ दिन
सूटकेस की खुशी का ठिकाना न था
पोशाकों और आभूषणों से भरपूर
थिरक रहा था कक्ष में
और तब, यहाँ वहां
अंत में ठहराव पाया ससुराल के घर में


एक व्यक्ति , जोकि उस महिला का पति है
झगड़ता है उस से बात-बेबात
वह अंदर जाती है
मुझे उठाती है और भर देती है
मुझे अपने ज़रूरी सामान से
और, अरे! वह तो घर से बाहर निकल रही है

पति मुझे पकड़ लेता है
ले जाता है घर के अंदर जबरन

औरत ने झपटा मारा उसके हाथ पर
और बाध्य किया उसे मुझे छोड़ने के लिए
मैं असमंजस में था , क्या मैं
भीतर की राह लूँ या बाहर की


एक दिन, मैंने महसूस किया
पति का जानवरों जैसे बेरहम बर्ताव
औरत को मैंने खामोशी से पड़े देखा
और पति समेट रहा था
उसके शऱीर को मुझ में
और धकेलता हुआ ले गया मुझे /

हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा

 SUITCASE

Jernail Singh Anand
How happy I was
Bright in colour and all agog
There is marriage and I will remain
Filled with clothes and other objects
Of beauty.
It was a marriageable suitcase.

On the day of marriage,
The suitcase was bubbling with joy.
Filled with clothes and jewellery
Dancing in this room
And then, that,
And finally resting in the in-laws house.
Every day, two or three times,
She comes and picks me up,
And opens,
And then places her clothe in me.
I can hear some talk
Which is not clear.
A man, who is the lady's husband
Fights her over nothings,
She goes in,
Picks me up and fills me
With her necessary things
And lo, she is moving out.

The husband catches hold of me,
And forces me inside the house,
The lady clutched his hand
And forced him to leave me.
I was not sure, whether I was
To remain inside or move out.

One day, I found myself
Handled brutally by the husband
It was night,
I saw the lady lying silently.
And the husband was packing her
Body in me, and wheeled me away


Dr Jernail S Anand, author of175 plus books, is President, International Academy of Ethics, and Laureate of prestigious international awards, the Seneca Award, (Italy)The Charter of Morava,(Serbia),Franz Kafka Award (Germany, Ukraine & Chek Rep) and Maxim Gorky ,(Russia) Award. His name adorns the Poets' Rock in Serbia.(ethicsacademy.co.in) .





अदृश्य बाग़बान / डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम Invisible Gardener का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/



 

मित्रों, आज आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ अंर्तराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त  कवि व् चिंतक  डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम Invisible Gardener का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/



अदृश्य बाग़बान 
*************


बागबान 

छटनीं करता है 

उन शाखओं की 

जो अधिक बढ़ जाती हैं 

और उन शाखों को भी 

जो नष्ट कर रही हों 

सौंदर्य और आकार 

साथ ही साथ हटा देता है 

उस विस्तार को जो 

अस्तव्यस्त कर रहा हो  

इसके प्रारूप को 



पत्तों के ढेर 

जो काट  डाले  गए  कैंची से 

और बागबान की  

सौंदर्य बोध सनी पैनी आँख 

अक़्सर याद दिलाती हैं मुझे 

उन लाखों करोड़ों लोगों के 

नरसंहार की 

धरा के विभिन्न महाद्वीपों में 


मानव के इस संसार में 

इतना अत्याचार !

जीवन की ज़ागीर  से 

कितनों को ही

रवाना कर  दिया जाता है 

हज़ारों  मानवीय और अमानवीय 

बहानों की आड़ में 


प्रकृति में भी 

झंझावात आते हैं (बिनबुलाये ?)

तटों को ले जाते हैं अपनी आग़ोश में 

और जाते जाते पीछे छोड़ जाते है 

कुछ बेरहम निशानियाँ 

कचरे के ढेर में बदल देते हैं 

हज़ारों घर और चूल्हे 

मवेशियों के सिर, शरीर और अस्थियाँ 


अदृश्य बागबान जानता है 

कौन उसकी सृष्टि का रूप 

विद्रुप कर रहा है 

यह झंझावात 

प्राकृतिक और मानव रचित 

यह तो कार्यरत 'ब्यूटी सैलोन ' हैं 

मूल रूप को क़ायम रखने के लिए /


रजनी छाबड़ा 



THE INVISIBLE GARDENER 

***************************

Dr Jernail S Aanand 


The gardener

prunes 

branches which outgrow 

and also those which destroy 

beauty and form

and growth which is unwanted 

and disturbs its design.


The hordes of leaves 

cut adrift by the scissors 

and sharp sense of beauty 

of the gardener 

often remind me of killings

of people in millions 

dotting the earth across continents 


There is so much injustice 

so much cruelty in the world of men, 

thousands are  despatched 

out of the domain of life 

for a thousand reasons 

human and inhuman.


In nature too, 

tempests arrive (uninvited?)

sweeping across human shores 

and while going off 

Reducing to rubble 

thousands of homes, and hearths

heads of cattle,  bodies and bones.

.


The invisible gardener

knows what is destroying 

the beauty of its creation 

these tempests, 

natural and human, 

are beauty saloons at work

to keep the original design intact.

Dr. J.S. Aanand 

Wednesday, January 29, 2025

बोतलबंद पाणी

 बोतलबंद पाणी 

*************

साफ़- सुथरे, ठन्डे पाणी वाले 

भरे -पुरे थींदे दरिया 

ओ पाणी दी मिठास 

असां कदे भुल  नहीं सकदे 


मुसाफ़रां वास्ते 

पियाऊ लगाएं वेंदे 

होण नयि मिलदा 

पियार रचिया 'गुड़ धानी '

ते बेमोल पाणी 


बदले महौल 

आ गया हे 

बोतलबंद पाणी 

नवे दौर दी 

इहो कहाणी /


रजनी छाबड़ा 




साडी रुक्सती तुं बाद 

***************


 इवेन वी किया जीवणा कि 

ज़िंदा रेहवणा मज़बूरी लगे 


क्यूँ न कर वंजिये 

कुझ इहो जया कि 

साडी रुक्सती तुं बाद 

एह दुनिया साढे बिना 

अधूरी लगे /



रजनी छाबड़ा 

Tuesday, January 28, 2025

असां ख़ुद नहीं जाणदे

 

 असां ख़ुद नहीं जाणदे 

*****************

असां ख़ुद नहीं जाणदे 

असां ज़िंदगी तुं किया चाह्न्दे हां 

कुझ कर गुजरण दी चाहत मन वेच समेटे 

अधूरी चाहतां नाल जिये वेंदे  हां 



उभरदी हे जद मन वेच 

लक़ीर तुं हट के, कुझ कर गुजरन दी चाहत 

संस्कारां दी लोरी सुणा के 

ऊस चाहत कुं सुलाए वेंदे हां 


सुनेहरी धुप नाल भरिया असमान सामने हे 

मन दे बंद हनेरे कमरे वेच सिमटे वेंदे हां 


चाह्न्दे हाँ ज़िंदगी वेच समन्दर वरगा फ़ैलाव 

हक़ीक़त वेच खू दे ड्डू वरगा जिये वेंदे हां  


चाह्न्दे हां ज़िंदगी वेच दरिया वरगी रवानगी

होर हंजु अखां वेच ज़ज़्ब कीते वेंदे हां 


चाह्न्दे हां फ़तेह करणा ज़िंदगी दी दौड़  

होर बैसाखियाँ दे सहारे चले वेंदे हां 


कुझ कर गुजरण दी हसरत 

कुझ न कर सकण  दी क़सक 

अजीब क़शमक़श वेच 

ज़िन्दगी जिए वेंदे हां 


असां ख़ुद नहीं जाणदे 

असां ज़िंदगी तुं किया चाह्न्दे हां 


 असां ज़िंदगी तुं किया चाह्न्दे हाँ 

कुझ कर गुजरण दी चाहत मन वेच समेटे 

अधूरी चाहतां नाल जिये वेंदे  हां 



उभरदी हे जद मन वेच 

लक़ीर तुं हट के, कुझ कर गुजरन दी चाहत 

संस्कारां दी लोरी सुणा के 

ऊस चाहत कुं सुलाए वेंदे हां 


सुनेहरी धुप नाल भरिया असमान सामने हे 

मन दे बंद हनेरे कमरे वेच सिमटे वेंदे हां 


चाह्न्दे हाँ ज़िंदगी वेच समन्दर वरगा फ़ैलाव 

हक़ीक़त वेच खू दे ड्डू वरगा जिये वेंदे हां  


चाह्न्दे हां ज़िंदगी वेच दरिया वरगी रवानगी

होर हंजु अखां वेच ज़ज़्ब कीते वेंदे हां 


चाह्न्दे हां फ़तेह करणा ज़िंदगी दी दौड़  

होर बैसाखियाँ दे सहारे चले वेंदे हां 


 

जड़ां नाल रिश्ता



जड़ां नाल रिश्ता 

************

बस्ती वेच रेह के वी 

महसूस थींदा हे वीराणा 

मन वेच हुण तक हे 

पेन्ड दी यादां दा आशियाना 


सनसन वेहंदी 

ठंडी हवा 

बगीचियाँ वेच 

कोयल दी  कूक 

दरिया दा 

साफ़  सुथरा , ठंडा  पाणी 

वगदा गुनगुणादे 

याद कर के 

दिल अमुझदा 


चुल्हे दी 

मधरी अग ते 

रेझा दिती दाल 

अंगारेया ते सिकि 

फुली फुली रोटियां 

सवांजणा ते कचनार 

डोली दी रोटी 

बेमिसाल 

ईना दी ख़ुश्बू ही 

भड़का देंदी भुख 


शहरी ज़िंदगी दी 

उलझनां वेच उल्झिया 

सारे दिन दी थकान तुं पस्त 

दो निवाले गले विच 

उतारण तुं  पैले 

कयीं वार ज़रूरत पैंदी हे 

'ऐपिटाईज़र ' दी 


नियाणे रोटी निगलदे 

टी. वी. वेच नज़रां धस्साए

उंहांकू होण परियां दे मुल्क  दियां 

कहाणियां कौण सुणावे 


ए. सी.  ते कूलर दी हवा  दा 

नयि कोई मुक़ाबला 

कुदरती हवा दे नाल 

खुली छत ते समणा  मुमकिन नयि 

नहीं वेख सकदे  होण 

तारियाँ दी अख- मिचौली 

चंदरमा दी रवानी 


वधिया होटल वेच 

आर्डर देने वक़त 

तुसां हजे  वी  मँगवादे हो 

धुएंदार 'सिज़्ज़्लर '

तंदूरी रोटी 

मखणी दाल 

मकई दी रोटी 

सरसों दा  साग 

देसी मखण ते मठ्ठा 

धुएं वाला रायता 

याद है हजे वी तुहानकु 

इंहा  दा ज़ायका 


रोज़ी रोटी दी जुग़ाड़ वेच 

किथे वी बसर करणा पवे 

नहि टूट सकदा 

जड़ां नाल रिश्ता 









Monday, January 27, 2025

MY PUBLISHED BOOKS BY INB


 


 

भटके मुसाफ़िर

 भटके मुसाफ़िर 

**************

हेक वक़्त 

एसा वी हाई 

भटके मुसाफ़िर 

रस्ता पुछ घिन्दे 

रस्ता चलदे 

अनजान लोगोँ तुं 

ते ओ वी ख़ुशी-ख़ुशी 

आपणा वक़्त देंदे 

रस्ता सुझावण वास्ते 


अज कल कोई किसे दा 

रहनुमां नयि बणदा 

न ही कोई पुछदा 

न ही कोई दसदा 

सब दा  होण 

अपणे आप नाल ही रिश्ता 


किसे  वी अनजान रस्ते ते 

अनजान शहर वेच भटक जावे कोई 

ग़ुम थीवण दा  कोई डर नयि 

'गूगल मैप'  सब दा  रखवाला 

भटकिया कुं रस्ता सुझावण वाला/



रजनी छाबड़ा 


 


अमूझने


अमूझने 

******

 अज कल 

उमर दे ठहरे पड़ाव  ते 

ज़िंदगी दी चाल हे 

सहज -सपाट 

वल यकायक 

क्यूँ थी वेंदे हाँ 

असां अमूझने 



शायद इहन वजाह नाल कि 

हेक लम्बे अरसे तुं 

कुझ नवा 

नहीं किता 

ढर्रे ते चलदी 

ज़िंदगी वेच 

करण वासते 

कुझ वी नयि बचिया /


रजनी छाबड़ा 

Sunday, January 26, 2025

जीवण दा वल

 जीवण दा  वल 

***********

जिथै मर्ज़ी 

किसे वी वेले 

जड़ तुं उखाड़ के 

नवे सिरे तुं 

ज़मीन वेच उगा घिनो 

दुबारा नवी ज़मीन वेच 

खिड़ वेंदी हे बिच्छु बूटी 

आपणी रंग बिरंगी 

शान दे नाल 

काश! जीवन दा  एह वल 

सांकु वी आ वंजे /


रजनी छाबड़ा 

यादां वेच

 

 यादां वेच

*******

होण  वी याद करदे ने 

मैंकु मैडे शहर दे बाशिन्दे 

ऐन उवेन हि जिवें

ओ मैडी यादां वेच वसदे ने 


नज़रां तुं दूर होवण नाल 

कोई दिल तुं दूर नयि थींदा /


रजनी छाबड़ा 



  


रिश्तियाँ दी उमर

 रिश्तियाँ दी उमर 

*************

मतलब दे रिश्तियाँ दी उम्र 

अमूनन निक्की होंदी हे 


इंहा  कुं परखण  वास्ते 

मतलब दी कसौटी होंदी हे 


बेमतलब रिश्ते  आपो -आप 

निभ वेंदे ने तमाम उमर 


इंहा रिश्तियाँ दी साह 

साडे साह वेच वस होंदी  हे/


रजनी छाबड़ा 



 मुक़्क़मल

********


मैडे रबा !

थोड़ा जिहा अधूरा रैहवण दे 

मैडी ज़िंदगी दा पियाला 

ताकि क़ोशिश ज़ारी रहवे 

हिंकु पूरा भरण वास्ते 


जदूं पियाला 

भर वैंदा हे लबालब 

डर रेह्न्दा हे 

इन्दे छलकन दा 

विखरन दा 

हिंदे वेच कुझ होर बूंदा 

समेटण दा बणन 


जो जुनून 

मुक़्क़मल बणन दी 

कोशिश वेच हे 

ओ मुक़्क़मल वेच किथे 


लबालब पियाले वेच 

होर भरण दे गुंजाईश नी  

रेहँदी ज़िंदगी तुं 

होर कोई फ़रमाइश नी 


मुक्कमलपन बणा देंदा 

रजीया होइया ते बेखबर  

मुक्कमल थीवण दी चाह देंदी 

क़ोशिश  कुं निख़ार 


 मेंकु थोड़े जहे 

अधूरेपण नाल ही जीवण दे 

बूँद बूँद ज़िन्दगी पीवण दे 

लगातार कोशिशां -भरी 

ज़िंदगी जीवण दे /

रजनी छाबड़ा 

Saturday, January 25, 2025

क़िरदार

 क़िरदार 

*******

वक़्त दे लंबे सफर विच 

क़िरदार ईवेन

बदल वेंदे ने 

ओ , जो कल 

चलदे रहे 

पकड़े उंगली साडी 

ओ ही , हुण अगे वध 

सांकु रस्ता सुझांदे /


रजनी छाबड़ा 

Friday, January 24, 2025

संझिआ दे अँधेरे वेच


संझिआ  दे अँधेरे वेच 

****************

 संझिआ 

दे झुटपुट

 अँधेरे वेच 

दुआ वास्ते हथ जोड़ 

किया मंगणा 

टुट्दै होए तारे तुं 

जो अपणा ही वज़ूद 

नयि रख सकदा क़ायम 


मंगणा ही हे, तां मंगो 

डुबदे हुए सूरज तुं 

जो अस्त हो के वी 

नहीं थिंदा पस्त 

अस्त थिंदा हे ओ 

हक नवे सवेरे वास्ते 

अपणी सुनहरी किरणा नाल 

रोशन करण वास्ते 

सारी ख़ुदाई /


रजनी छाबड़ा 

तुसां ही दसो

 तुसां ही दसो 

***********

मैडी नेंदर कुं पंख लगे जदों 

किया तुहाडी वी नाल 

उड़ा लै  गयी


या फ़ेर उन्दरियाँ रातां वेच 

तारे गिनण दी रस्म 

में हेक्तरफा निभा गयी /


रजनी छाबड़ा 

मेले वेच एकले

मेले वेच एकले 

***********

निगाहां दे आख़िरी सिरे तायीं 

जद बैचैन निगाहां तलाशदियां हेन तैंकु 


और तुसां किथे वी विखाई नहीं  देंदे आस पास

हौर वी गहरा थी वेंदा है, मेले वेच एकले 

भीड़ वेच तनहाई दा  एहसास /


रजनी छाबड़ा 

Thursday, January 23, 2025

हेक गुमशुदा औरत

हेक गुमशुदा औरत 

**************

शिक़वा नहि परायां नाल 

मैडे अपणेइयाँ ने ही ख़स घिदी  

मैडे तुं मैडी आपणी पछाण 


धी , नुं , कवार , माँ 

इंहा, रिश्तियाँ  वेच गुमीया 

मैडा मैं किथे 


कल राह चलदे सदिया मैंकु 

बचपन दी हाणी ने जद सदिया मैडा नां 

खुलण लगे बंद यादां दे झरोखें 

धुप छणी किरणाँ वेच उभरइया 

धुँधला धुँधला जिहा मैडा नां 


मैं वी कदी मेँ सी 

माँ -बाबुल दी सोनचिड़ी 

जोश, ख़ुशी नाल भरपूर 

उडदी राहँदी घर, चौबारे 

पेंड दी गलियां वेच दूर दूर 


मैडी आज़ादी दे किस्से थए मशहूर  

किरक वरगी चुभण लग पई 

रिश्तेदारां दी नज़रां वेच 

मैडी पंख पसारी आज़ादी 


मशवरा दिता गया, मैडे पंख नोचण दा 

खूबसूरत बहांनियाँ वेच उलझा के 

करवा दिति गयी कच्ची उमर वेच 

मैडी शादी  


पढ़ाई लिखाई बन के रह गयी ख़्वाब 

समझाया गया मैंकु 

घर दी सेवा करण वेच ही हे मेडा सवाब 

जद तक सुती रई अपणी पहचान दी चाह 

तद तक कुझ साल रही गृहस्थी विच ख़ुश 


हुण बच्चे अपणी ज़िंदगी वेच रमे 

घोट कुं नयि कामकाज तुं फुर्सत 


बलदी रेत वरगा मन मेरा 

हर पल सुलगदा 

तपदे रेगिस्तान वेच 

ख़ाली मटके वरगा मैडा मन 

तलाशदा फ़िरदा

रुंज वेच मैडी पहचान 


मैं फलाणे दी धी, फैलाने दी नुं 

फलाणे दी कवार ते फलाणे दी मां 

इना रिशताएँ दे  वाझालोरे वेच

किथे हां मैं 


कया शिक़वा करान गैरां नाल 

मैडे आपणयां ने ही खस  घिधी 

मैडे तुं मैडी पहचान /


रजनी छाबड़ा 



पुल

 पुल 

****

इंसान इंसान दे वेच 

हेक अजनबीपन जीया क्यूँ हे 

क्यूँ समेटे रखदे हाँ, असां अपणे आप कुं 

आपणे ही बणाएं क़िले वेच 

बणा घिन्दे हां ,आपणे आले दुवाले 

कछुवे जीहा हेक सुऱक्षा कवच 

ख़ौफ़ ते बेइतबारी नाल भरे 

सहमे सहमे , डरे डरे 

ज़रा जही अनजान आवाज़ सुणदे ही 

सिमट वेंदे हाँ ऊस कवच वेच 


हेक वार , सैर्फ  हेक वार 

कर वनजो पार,बेइतबारी दी दीवार 

गैरां दे सुःख दुःख साँझा कर 

ढहा सटो दूरीयां दी दीवार 


तुसां ओ  एंट बण के वेखौ 

जेहढ़ी दीवार वेच नहिय 

पुल वेच चिणी वैसी 

ज़िंदगी डा वल , तुहानकु 

आपो आप आ वैसी /


रजनी छाबड़ा 

घर

 घर 

****

पियार ते अपणापां 

जदूं दीवारां दी 

छत बण वैंदा हे 


ओ मक़ान 

घर अखवांदा हे/


रजनी छाबड़ा  


फैशन


फैशन 

*****


जे जिसम दी नुमाईश ही 

फैशन हे 

असां  डाढे अभागे हां 


जानवर ऐस दौड़ वेच 

असां तुं अवल्ल निकल गए/


रजनी छाबड़ा 


नवीं पछाण

 

नवीं पछाण 

*********


अँधेरे कु 

आपणे आप  वेच समेटे 

जिवें दीवा बणांदा हे 

अपनी रोशन पछाण 



ईवेन ही  तुसा 

अथरू समेटे रखो 

अपणे वेच 

दुनिया कु डियो 

बस मुसकान  



आपणी अनाम ज़िंदगी कुं 

ईवेन डियो नवीं पछाण /


रजनी छाबड़ा 

आज़ाद

 आज़ाद 

*******


झरने वांकु कलकल 

पंछियां वांकु चहक 

आज़ाद उडारी 

चंदनी हवा 

सावणी फ़ुहार 

इहो टैडी 

हँसी दी पछाण 



मोतियाँ वाले घर दा 

दरवाज़ा खोल चा 

नक़ली  मुलकना  

छोड़ चा/


रजनी छाबड़ा 



आस दा पंछी

आस दा पंछी 

**********


मन 

हेक आस दा पंछी 

न क़ैद करो हिंकु 

क़ैद थीवण वास्ते 

किया इंसान दा ज़िस्म  

घट हे/


रजनी छाबड़ा 

Wednesday, January 22, 2025

निखरी निखरी






 निखरी निखरी 

************


सर्द रातां दे बाद 

ओस वेच नहावण दे बाद 

जद अधखिली कली 

शबनमीं धुप वेच 

अपणा चेहरा सुखांदी हे 

क़ायनात निखरी निखरी 

नज़र आवन्दी हे /


रजनी छाबड़ा 

बंदगी

 बंदगी 

******

एहसास  कदे वी मरदे नहीं 

एहसास ज़िंदा हेन 

तां ज़िंदगी हे 


वक़्त दी झोली वेच समेटे 

पल पल दे एहसास 

रब दी बंदगी हेन /


रजनी छाबड़ा 


एह चाहत

 एह चाहत

********


 एह चाहत मैडी तैडी 

जे एह सोहणा सुफ़ना हे 

नींदर खुले न कदे मैडी 

जे एह हक़ीकत हे 

नींदर कदे न आवे मैंकु /


रजनी छाबड़ा 

Tuesday, January 21, 2025

गहरा राज़

 गहरा राज़ 

*********

सुफ़ने किसे दी 

इज़ाजत नाल नहि आंदे 

न ही सुफनियां ते 

 किसे दा पहरा 


बिना पंखां दे 

किवें पहुंचा देंदे 

सतरंगी दुनियां वेच 

राज़ हे एह डाढा गहरा /


रजनी छाबड़ा  

रिश्ता

 

रिश्ता

*****

मन ते अखां 

दे वेच 

गूढ़ा रिश्ता हे 


मन दा नासुर 

अखां तुं 

हंजु बण 

रिसदा हे /


रजनी छाबड़ा 

Monday, January 20, 2025

कौण परवाह करदा हे


कौण परवाह करदा हे 

*****************

 कौण परवाह करदा हे अंधेरियाँ दी 

हेक बडे तूफान तुं बाद 


हर ग़म छोटा थी वैंदा हे 

ऊस तुं वडे गम दे  बाद 

रजनी छाबड़ा 

मुक़म्मल ज़िंदगी

 मुक़म्मल ज़िंदगी 

**************

सारी उमर दा साथ 

नेभ वैंदा हे 

बस हेक ही 

पल वेच 


बुलबुले वेच 

उभरण वाले 

अक्स दी उमर 

होन्दी हे 

बस हेक ही 

पल दी /


रजनी छाबड़ा 

आपणी मिट्टी

 

आपणी मिट्टी

**********

बस्ती वेच रेह के 

जंगल दे वास्ते 

मन दा मोर 

कसमसांदा हे 


ऐस पेंडू मन दा 

क्या करां 

आपणी मिट्टी दी 

खुशबू वास्ते तरसदा हे 


किवें भुला देवां 

आपणे पिंड कुं 

रिश्तियाँ दी 

ख़ुश्बू वाली गलियाँ वेच 

उथे आपणेपण दा 

बदळ वरसदा हे /


रजनी छाबड़ा 


Sunday, January 19, 2025

बंजारा मन 

********

जद बंजारे  मन कुं 

ज़िंदगी दे किसे 

अनजान मोड़ ते 

मेल वेंदा हे 

मन-माफिक हमसफ़र 


जी चाहंदा हे, कदे वी 

न ख़तम थीवे ए सफ़र 

हेक  हेक पल बण वंजे 

हक जुग दा , ते 

सफ़र इवेन ही जारी रहवे 

जुगां जुगां तहीं 


ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਤੇਜਿੰਦਰ ਚਾਂਡਿਹੋਕ ਜੀ ਦਾ , ਮੇਰੀ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਲਈ /  'ਆਸ ਦੀ ਕੁੰਚੀ ' ਮੇਰੇ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਵਿਚ ਇਹ ਦੋਨੋ ਕਵਿਤਾ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹਨ / ਤੇਜਿੰਦਰ ਜੀ ਅਜੇ ਤੋਂ  ਵਰੇ ਪਹਲੇ ਮੇਰੇ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਹੋਨੇ ਦੇ ਨ ਹੋਨੇ ਤਕ ਅਤੇ ਪਿਘਲਤੇ ਹਿਮਖੰਡ ਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਕਰ ਚੁਕੇ ਹਨ/

ਮੈਂ ਸ਼ੁਕਰਗੁਜਾਰ ਹਾਂ ਸੰਪਾਦਕ, ਦੇਸ਼ ਸੇਵਕ ਅਖਬਾਰ ਦੀ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਛਾਪਣ ਲਈ /
ਰਜਨੀ ਛਾਬੜਾ 

Saturday, January 18, 2025

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ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਤੇਜਿੰਦਰ ਚਾਂਡਿਹੋਕ ਜੀ ਦਾ , ਮੇਰੀ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਲਈ /  'ਆਸ ਦੀ ਕੁੰਚੀ ' ਮੇਰੇ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਵਿਚ ਇਹ ਦੋਨੋ ਕਵਿਤਾ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹਨ / ਤੇਜਿੰਦਰ ਜੀ ਅਜੇ ਤੋਂ  ਵਰੇ ਪਹਲੇ ਮੇਰੇ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਹੋਨੇ ਦੇ ਨ ਹੋਨੇ ਤਕ ਅਤੇ ਪਿਘਲਤੇ ਹਿਮਖੰਡ ਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਕਰ ਚੁਕੇ ਹਨ/


ਮੈਂ ਸ਼ੁਕਰਗੁਜਾਰ ਹਾਂ ਸੰਪਾਦਕ, ਦੇਸ਼ ਸੇਵਕ ਅਖਬਾਰ ਦੀ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਛਾਪਣ ਲਈ /
ਰਜਨੀ ਛਾਬੜਾ 


तेडे इंतज़ार वेच 

************

आ, तूं मुड़  आ 

वरना, मैं इवेन ही

जागदी राहंसा 

सारी सारी रात  

मिटांदी राहसां 

लेख़ लेख़ के 

टेडा नां 

रेत ते 

ते हर सवेरे 

सुर्ख़ उनिदरी  अनखां  नाल 

नींदर तुं भारी पलकां नाल 

कटदी राहंसा 

कलेंडर तुं 

हेक होर तरीक़ 

आपणे सच्च दा  सबूत बणा  के कि 

हक होर रोज़ 

तेंकु याद किता 

टेडा नाम घिदा /


रजनी छाबड़ा 

काफ़ी हेन

 काफ़ी हेन 

********

हेक ख़्वाब 

बेनूर अखां वासते  

हेक आह 

चुप -चुपीते होठां वासते 

हेक पाबन्द 

तार तार जिग़र 

सीवण  वासते 


काफ़ी हें 

इतने समान 

मेडे जीवण दे वासते /


रजनी छाबड़ा 

मन दी पतंग : सिराइकी में मेरी कविता

 मन दी  पतंग :  सिराइकी में मेरी कविता 

***********

पतंग वांगु शोख़ मन 

आपणी चंचलता ते सवार 

नपणा चाह्न्दा हे 

पूरे आसमान दा  फ़ैलाव  

पहाड़, समंदर , उचियाँ इमारतां 

अन्वेखी कर के 

सब रुकवाटां 

क़दम अगे ही अगे वधावे 


ज़िंदगी दी थकान 

दूर करण वास्ते 

मुन्तज़र हाँ असां 

मन दी पतंग ते 

सुफ़नायें दे आसमान वास्ते 

जिथे मन घेन सके 

बेहिचक, सतरंगी उडारी   


पर क्यों पकडावां डोर 

पराये हथां वेच 

हर पल ख़ौफ़ज़दा 

रहवे मन 

रब जाणे,  कद कटीज़ वंजे 

कदों लुटीज़ वंजे 


शोख़ी नाल भरिया

 चंचल मन वेखे 

ज़िंदगी दे आईने 

पर सच दे धरातल ते 

टिके कदम ही देंदे 

ज़िंदगी कुं मायने /


रजनी छाबड़ा 





चाहत

 चाहत  (सिराइकी में मेरी कविता)

*****

जे चाहत 

हिक गुनाह हे 

क्यूँ झुकदा हे 

आसमान ज़मीन ते 


क्यूँ घुम्दी हे ज़मीन 

सूरज दे गिर्द /


रजनी छाबड़ा 


किवें भुला सकदे हाँ : सिराइकी में मेरी कविता

 

किवें भुला सकदे हाँ (सिराइकी में मेरी कविता)

**************


असां भुल सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे नॉल 

साडे सुख दे संमे 

लगाये कहकहे 


किवें भुला सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे दुख़ वेच 

वहाये हंजु बिना कहे /


रजनी छाबड़ा 

Wednesday, January 15, 2025

 जड़ों से नाता 

************

बस्ती में रह कर भी 

लगता वीराना है 

मन में अभी भी 

गाँवों की यादों का 

आशियाना है 


सन सन बहती 

ठंडी हवा  

अमराइयों में

कोयल की कूक 

नदिया का 

स्वच्छ , शीतल जल 

बहता कलकल 

याद कर के 

मन होता आकुल 


चूल्हे की 

सौंधी आंच पर  

राँधी गयी दाल 

अंगारो पर सिकी 

फूली -फूली रोटियां 

बेमिसाल 

नथुनों तक पहुँचती खुशुबू 

भड़का देती थी भूख 


शहरी ज़िंदगी की 

उलझनों में व्यस्त 

दिन भर की थकान से पस्त 

दो कौर खाना हलक से 

नीचे उतारने से पहले 

कई बार ज़रूरत रहती है 

एपीटाईज़र की 


बच्चे खाना खाते हैं 

टी वी में आँखें गढ़ाए 

उन्हें परी देश की कहानियां 

अब कौन सुनाये 


ए सी और कूलर की हवा 

नहीं है प्राकृतिक हवा की सानी 

खुली छत पर सोना मुमकिन नहीं 

नहीं देख पाते अब 

तारों की आँख मिचौली 

चँदा की रवानी 


बढ़िया होटल में 

खाना आर्डर करते हुए 

अब भी तुम मंगवाते हो

धुआंदार 'सिज़लर '

तंदूरी रोटी 

मक्खनी दाल 

दाल -बाटी चूरमा 

मक्की की रोटी 

सरसों का साग 

मक्खन , छाछ 

धुंए वाला रायता 

याद है तुम्हे अभी भी 

इन का ज़ायका  



रोज़ी रोटी की जुगाड़ में 

कहीं भी बसर करे हम 

नहीं टूट सकता जड़ों से नाता/



2. वही है सूर्य 

   ********

सूर्य का स्वरूप वही है 

प्रकाश बदलता रहता है नित 


वही हैं नदियाँ, वही झरने 

पानी के वेग का अंदाज़ 

बदलता रहता है नित 


वही है हमारी ज़िंदगी 

दिन-प्रतिदिन 

पर कदम थामो नहीं 

प्रयत्नशील रहो 

नित नयी राह

तलाशने के लिए 

और नए आयाम 

खँगालने के लिए /




 


3. असर 

   *****

रेत सुबह से लेकर 

रात के आख़िरी प्रहर तक 

कई रंग बदलती 


सूरज के संग रहती 

सुनहरी रंगत पाती 

पूरा दिन 

तपती -सुलगती 


चाँद के संग रहती 

पूरी रात 

ठंडक  पाती 

ठंडक बरसाती     


  झरना बहता जब पहाड़ों से 

  उजली रंगत लिए 

 शीतल, मीठे  जल से 

  सबकी प्यास बुझाये 

  

पहुंचता जब मैदान में 

नदी के स्वरूप में 

वही पानी गंदला हो जाये 

झरने का पानी 

अपनी मिठास गंवाए 


सोन -चिरैय्या उड़ती जब

खुले आसमान में 

आज़ादी के गीत गुनगुनाये 

क़ैद हो जाये जब पिंजरे में 

सभी गीत भूल जाए/

- रजनी छाबड़ा


(सिराइकी में मेरी कविता ) PART 2

21. मैं मनमौजी

22.  मैडा  वसंत

23. किवें भुला सकदे हाँ

24.  चाहत 

25. मन दी  पतंग 

26. तेडे इंतज़ार वेच 

27. काफ़ी हेन 

28. बंजारा मन 

29. आपणी मिट्टी

30. मुक़म्मल ज़िंदगी 

31. कौण परवाह करदा हे 

32. रिश्ता

33. गहरा राज़ 

 34. एह चाहत

35.  बंदगी 

36.  निखरी निखरी 

37. आस दा पंछी 

38. आज़ाद 

39. नवीं पछाण 

40. फैशन 



21. मैं मनमौजी 

     **********


 मैं मनमौजी 

मैडे नाल किया होड़ पतंग दी 

मैं पँछी खुले आसमान दा 

सारा आसमान 

आपणे पनखां नाल नपिया 

डोर पतंग दी 

पराये हथां वेच 

उडारी आसमान वेच 

जुड़ाव  ज़मीन नाल /


22.   मैडा  वसंत

       **********

वक़त ने जेड़्हे जखमा तें 

मल्हम लगायी 

मौसम ने 

उनहा कुं  हरा करण दी 

रसम दुहराई 


मैडे  दर्द दी  

ना  कोई शुरुआत 

ना कोई अंत 

मुरझाये जखमां दा 

दोबारा हरा थीवणा 

इहो ही है 

मैडा  वसंत /




23. किवें भुला सकदे हाँ

     ****************


असां भुल सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे नॉल 

साडे सुख दे संमे 

लगाये कहकहे 


किवें भुला सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे दुख़ वेच 

वहाये हंजु बिना कहे /


24.  चाहत 

      *****

जे चाहत 

हिक गुनाह हे 

क्यूँ झुकदा हे 

आसमान ज़मीन ते 


क्यूँ घुम्दी हे ज़मीन 

सूरज दे गिर्द /



 25. मन दी  पतंग 

     ***********

पतंग वांगु शोख़ मन 

आपणी चंचलता ते सवार 

नपणा चाह्न्दा हे 

पूरे आसमान दा  फ़ैलाव  

पहाड़, समंदर , उचियाँ इमारतां 

अन्वेखी कर के 

सब रुकवाटां 

क़दम अगे ही अगे वधावे 


ज़िंदगी दी थकान 

दूर करण वास्ते 

मुन्तज़र हाँ असां 

मन दी पतंग ते 

सुफ़नायें दे आसमान वास्ते 

जिथे मन घेन सके 

बेहिचक, सतरंगी उडारी   


पर क्यों पकडावां डोर 

पराये हथां वेच 

हर पल ख़ौफ़ज़दा 

रहवे मन 

रब जाणे,  कद कटीज़ वंजे 

कदों लुटीज़ वंजे 


शोख़ी नाल भरिया

 चंचल मन वेखे 

ज़िंदगी दे आईने 

पर सच दे धरातल ते 

टिके कदम ही देंदे 

ज़िंदगी कुं मायने /



26. तेडे इंतज़ार वेच 

      ************

आ, तूं मुड़  आ 

वरना, मैं इवेन ही

जागदी राहंसा 

सारी सारी रात  

मिटांदी राहसां 

लेख़ लेख़ के 

टेडा नां 

रेत ते 

ते हर सवेरे 

सुर्ख़ उनिदरी  अनखां  नाल 

नींदर तुं भारी पलकां नाल 

कटदी राहंसा 

कलेंडर तुं 

हेक होर तरीक़ 

आपणे सच्च दा  सबूत बणा  के कि 

हक होर रोज़ 

तेंकु याद किता 

तेडा नाम घिदा /



27.  काफ़ी हेन 

      ********

हेक ख़्वाब 

बेनूर अखां वासते  

हेक आह 

चुप -चुपीते होठां वासते 

हेक पाबन्द 

तार तार जिग़र 

सीवण  वासते 


काफ़ी हें 

इतने समान 

मेडे जीवण दे वासते /





28. बंजारा मन 

      ********

जद बंजारे  मन कुं 

ज़िंदगी दे किसे 

अनजान मोड़ ते 

मेल वेंदा हे 

मन-माफिक हमसफ़र 


जी चाहंदा हे, कदे वी 

न ख़तम थीवे ए सफ़र 

हेक  हेक पल बण वंजे 

हक जुग दा , ते 

सफ़र इवेन ही जारी रहवे 

जुगां जुगां तहीं/


29. आपणी मिट्टी

      **********

बस्ती वेच रेह के 

जंगल दे वास्ते 

मन दा मोर 

कसमसांदा हे 


ऐस पेंडू मन दा 

क्या करां 

आपणी मिट्टी दी 

खुशबू वास्ते तरसदा हे 


किवें भुला देवां 

आपणे पिंड कुं 

रिश्तियाँ दी 

ख़ुश्बू वाली गलियाँ वेच 

उथे आपणेपण दा 

बदळ वरसदा हे /



30. मुक़म्मल ज़िंदगी 

   ***************

सारी उमर दा साथ 

नेभ वैंदा हे 

बस हेक ही 

पल वेच 


बुलबुले वेच 

उभरण वाले 

अक्स दी उमर 

होन्दी हे 

बस हेक ही 

पल दी /


31. कौण परवाह करदा हे 

      *****************

 कौण परवाह करदा हे अंधेरियाँ दी 

हेक बडे तूफान तुं बाद 


हर ग़म छोटा थी वैंदा हे 

ऊस तुं वडे गम दे  बाद 


 

32. रिश्ता

     *****

मन ते अखां 

दे वेच 

गूढ़ा रिश्ता हे 


मन दा नासुर 

अखां तुं 

हंजु बण 

रिसदा हे /



33.   गहरा राज़ 

       *********

सुफ़ने किसे दी 

इज़ाजत नाल नहि आंदे 

न ही सुफनियां ते 

 किसे दा पहरा 


बिना पंखां दे 

किवें पहुंचा देंदे 

सतरंगी दुनियां वेच 

राज़ हे एह डाढा गहरा /



 34. एह चाहत

      ********


 एह चाहत मैडी तैडी 

जे एह सोहणा सुफ़ना हे 

नींदर खुले न कदे मैडी 

जे एह हक़ीकत हे 

नींदर कदे न आवे मैंकु /



35.  बंदगी 

     ******

एहसास  कदे वी मरदे नहीं 

एहसास ज़िंदा हेन 

तां ज़िंदगी हे 


वक़्त दी झोली वेच समेटे 

पल पल दे एहसास 

रब दी बंदगी हेन /


36.  निखरी निखरी 

      ************


सर्द रातां दे बाद 

ओस वेच नहावण दे बाद 

जद अधखिली कली 

शबनमीं धुप वेच 

अपणा चेहरा सुखांदी हे 

क़ायनात निखरी निखरी 

नज़र आवन्दी हे /



37. आस दा पंछी 

      **********


मन 

हेक आस दा पंछी 

न क़ैद करो हिंकु 

क़ैद थीवण वास्ते 

किया इंसान दा ज़िस्म  

घट हे/



38.  आज़ाद 

     *******


झरने वांकु कलकल 

पंछियां वांकु चहक 

आज़ाद उडारी 

चंदनी हवा 

सावणी फ़ुहार 

इहो टैडी 

हँसी दी पछाण 



मोतियाँ वाले घर दा 

दरवाज़ा खोल चा 

नक़ली  मुलकना  

छोड़ चा/



 

39. नवीं पछाण 

     *********

अँधेरे कु 

आपणे आप  वेच समेटे 

जिवें दीवा बणांदा हे 

अपनी रोशन पछाण 



ईवेन ही  तुसा 

अथरू समेटे रखो 

अपणे वेच 

दुनिया कु डियो 

बस मुसकान  



आपणी अनाम ज़िंदगी कुं 

ईवेन डियो नवीं पछाण /



40. फैशन 

     *****


जे जिसम दी नुमाईश ही 

फैशन हे 

असां  डाढे अभागे हां 


जानवर ऐस दौड़ वेच 

असां तुं अवल्ल निकल गए/


रजनी छाबड़ा 



रजनी छाबड़ा 



रजनी छाबड़ा 






 








  


मैडा वसंत

 मैडा  वसंत (सिराइकी में मेरी कविता )

**********

वक़त ने जेड़्हे जखमा तें 

मल्हम लगायी 

मौसम ने 

उनहा कुं  हरा करण दी 

रसम दुहराई 


मैडे  दर्द दी  

ना  कोई शुरुआत 

ना कोई अंत 

मुरझाये जखमां दा 

दोबारा हरा थीवणा 

इहो ही है 

मैडा  वसंत /


रजनी छाबड़ा 

मैं मनमौजी

 मैं मनमौजी (सिराइकी में मेरी कविता )

**********


 मैं मनमौजी 

मैडे नाल किया होड़ पतंग दी 

मैं पँछी खुले आसमान  दा 

सारा आसमान 

आपणे पनखां नाल नापिया 



डोर पतंग दी 

पराये हथां वेच 

उडारी आसमान वेच 

जुड़ाव  ज़मीन नाल /



रजनी छाबड़ा 

ज़रा सोचो (सिराइकी में मेरी कविता )

 ज़रा सोचो (सिराइकी में मेरी कविता )


**********


दूजियाँ कुं ठोकरां मारण वालयों 

ज़रा सोचो हेक पल वास्ते 

पराये दर्द दा एहसास 

चुभसी तुहानकु वी 

जख़्मी थी वेसण 

तुहाडे हि पैर जदूं 

दुजिया नु ठोकरा मारदे मारदे/


रजनी छाबड़ा 

दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )


दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )

**********

 थींदी हे कदे 

फूलां तुं 

कंडियां वरगी चुभन 

कदे कंडिया वेच 

फुल खिड़दे ने 


बहार वेच विराणा  

कदे विराणे  वेच  

बहार दा एहसास 

एह दिल दे मौसम 

ईवेन बेमौसम 

बदलदे रेह्न्दे /

Tuesday, January 14, 2025

दीवार( सिराइकी में मेरी कविता )

 दीवार  ( सिराइकी में मेरी कविता )

******


घर दे वेह्ड़े वेच 

दीवार चनीज़ वेंदी हे 

जदूं दिलां वेच 

दरार पे वेंदी हे 


बटवारे दा  दरद 

सेंहदी मज़बूर माँ 

किंदे नाल रवें 

किथे वंजे 


दीवार दे दूजे सिरे 

गूँजदी बच्चे दी किलकारी 

अगे वधंण वासते बैचैन क़दम 

ऱोक घिनदी है जबरन 


पर किया रोक सकसी 

आपणे मन दी उडारी 


मन दे पँख लगा 

घुम आउंदी हे 

दीवार दे दूजे पार 

उनींदरी रातां वेच 
  
सुफ़ने सजा के 

 देंदी हे 

अपणी  बेवज़ह ज़िंदगानी कुं 

हेक वज़ह /


रजनी छाबड़ा 

वगदी नदी / बहती नदिया

 Friends,you can view same poem in Roman  English, just below Hindi poem


  वगदी नदी / बहती नदिया  (सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


*********************

होले होले वगदी नदी 

आपणी मस्ती वेच गुनगुणादी 

मगरूर, मुलकदी 

वगदी वैंदी 


मैं हुंकु रोकिया, टोकिया 

ईतनी उतावली क्या मचि हे 

किथान वनजण  दा  इरादा हे 

किता  किसे नाल कोई वादा हे 


नदी थोड़ा झिझकी 

थोड़ा शरमायी 

समंदर नाल मिलण दी आस हे 

इयो ही मैडी रवानगी दा  राज़ हे 


मैं चेताया हुंकु 

क्या सोचिया हे तु कदे 

समंदर नाल मेल कर के  

ग़ुम थी  वैसी तैडी अपणी पछाँड़ 

तैडी अपणी मीठास 



पर उह परेम पगली ने 

ना रोकी अपणी रवानगी 

मिठास दी तासीर ग़ुम थी गयी

ख़ारे पाणी वेच मिलयां बाद 

समंदर दी आग़ोश वेच वनजण तुं बाद  

ख़तम कर दिती अपणी रवानी 

अपणी ज़िंदगानी /

रजनी छाबड़ा 




Friends,you can view same poem in Roman  English, just below Hindi poem


बहती नदिया 

***********

कल कल बहती नदिया 

अपनी धुन में गुनगुनाती 

इठलाती, मुस्कुराती 

बहे जा रही थी 


मैंने  उसे रोका और टोका 

इतनी उतावली क्यों हो 

कहाँ जाने का इरादा है 

क्या किसी से कोई वादा है 


नदिया कुछ झिझकी 

सिकुची, शरमाई 

सागर से मिलने की आस है 

यही मेरी रवानगी का राज़ है 


मैंने चेताया  उसे 

क्या सोचा हैं तुमने  कभी 

सागर से मिल कर 

 खो देगी तुम निजता 

अपनी मिठास 

सहजता और सरसता 


पर उस प्रेम दीवानी ने 

नहीं रोकी अपनी रवानी 

मिठास का गुण खो दिया 

ख़ारे पानी में विलीन हो गया 

सागर की आगोश में जाने के बाद 

और ख़तम कर ली अपनी रवानी 

अपनी ज़िंदगानी 

रजनी छाबड़ा 


Kl kl bahtee nadia

Apnee dhun mein gungunati

Ithlatee, muskurati

Bahe Jaa rhee thee


Maine usko roka aur toka 

Itnee utawali kyon ho

Kahan Jane ka irada hai

Kya kisee se koi vada hai


Nadia kuch jhijhaki

Sikuchee, sharmayee

Sagar se milne kee aas hai

Yahi meri rawangee ka raaz hai


Maine chetaya usko

Kya socha hai tumne kabhi

Sagar se mil kr 

Kho dogi tum nijtaa

Apnee mithaas

Sahjata aur sarasta


Pr us Prem deewani

Ne nahi roki apnee rawani

Mithaas ka goon kho diya

Khare panee mein vileen ho gaya

Sagar kee aagosh mein  jane ke baad  

Aur khatam kr lee apnee rawani 

Apnee zindganee.

Rajni Chhabra 


























 











Kl kl bahtee nadia

Apnee dhun mein gungunati

Ithlatee, muskurati

Bahe Jaa rhee thee


Maine usko roka aur toka 

Itnee utawali kyon ho

Kahan Jane ka irada hai

Kya kisee se koi vada hai


Nadia kuch jhijhaki

Sikuchee, sharmayee

Sagar se milne kee aas hai

Yahi meri rawangee ka raaz hai


Maine chetaya usko

Kya socha hai tumne kabhi

Sagar se mil kr 

Kho dogi tum nijtaa

Apnee mithaas

Sahjata aur sarasta


Pr us Prem deewani

Ne nahi roki apnee rawani

Mithaas ka goon kho diya

Khare panee mein vileen ho gaya

Sagar kee aagosh mein  jane ke baad  

Aur khatam kr lee apnee rawani 

Apnee zindganee.

Rajni Chhabra