नमक के आस्वादन के बाद, मिठास का स्वाद लेने के लिए/
Saturday, February 22, 2025
सर्ग ७ लस्टीटूटयूशन (लस्टस का सविंधान): दस आज्ञापत्र 62 to 68
नमक के आस्वादन के बाद, मिठास का स्वाद लेने के लिए/
Tuesday, February 18, 2025
लस्टस
ज़िंदगी के आख़िरी पड़ाव पर पहुंचे अशक्त वृद्ध, SATAN( शैतान) को, जिसने सारी उम्र अमानवीय कृत्यों के माध्यम से अराजकता ही फैलायी है, अपने अँधेरे साम्राज्य के द्वारा, मौत की कगार पर खड़े हुए भी उसे यह चिंता सत्ता रही है कि उसके बाद यह अधूरे काम कौन पूरे करेगा/ अपने चचेरे भाई LUSTUS (लस्टस ) में उसे सभी अमानवीय गुण दिखाई देते है, जो अपनी कूटनीतियों से मानव मात्र का जीना दूभर कर देगा/ अतः , वह उसका राज्याभिषेक करते हुए, उसे लस्टोनिया का राजकुमार घोषित कर देता है/
मानवीय गुणों का हनन कर, बुराई फ़ैलाने का यह सिलसिला अभी भी जारी है/ और अधिक जानने के लिए पढ़िए अंतर्राष्ट्रीय ख़्याति प्राप्त लेखक व् चिंतक, डॉ. जरनैल सिंह आनंद का इंग्लिश महाकाव्य LUSTUS. शीघ्र ही आपको इसका मेरे द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध होगा/
रजनी छाबड़ा
बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका
Monday, February 10, 2025
A DATE WITH ETERNITY
A DATE WITH ETERNITY
LUSTUS is a lucky chap. He was brought down from celestial spheres into Bengal by way of its translation into Bengali.
It has seen the beautiful landscape of Iran also after its Persian translation by Dr Roghayeh Farsi, Professor of English, Univ of Neyshabur Iran.
Now, I am thankful to Dr Rajni Chhabra, noted poet, translator and Numerologist who has decided to create it's Hindi Avataar. Trans- creating Lustus into Hindi is a great service to the cause of Indian literature for which I appreciate Dr Rajni Chhabra because translating an epic like Lustus is really a challenging job with its Neo-Mythology and technical exoerim jientation.
I congratulate Dr Rajni Chhabra and look forward to its publication in Hindi
आह्वान
आह्वान
मेरी लेखनी को नई ऊर्जा दो
मानव के पतन के कारण खोजने के लिए
और लस्ट्स के उत्थान के
बाध्य कर दिया जिसने प्रभु और उसके शक्तिवान फ़रिश्तों को
आत्म -विश्लेषण के लिए , क्यों परास्त होना पड़ा मानव को दानव से
और किसने विमुख किया मानव को
दैवीय शक्तियों से और बाध्य किया
लस्ट्स के दिन प्रतिदिन बढ़ते आधिपत्य और शक्ति की
शरण में जाने के लिए।
लस्ट्स जो इच्छुक था मानव के रवैये को देव के समक्ष उचित ठहराने का
खिलवाढ़ कर रहा था मानवीय मन की दुर्बलता के साथ
सम्मान, स्वतंत्रता और इच्छा शक्ति की आड़ में
और उसकी उच्च श्रेणी की बौद्धिक वाकपटुता ने
कैद कर दी उनकी कल्पना शक्ति
ताकि शीघ्र ही उन्हें यह आभास होने लगा
यदि वे चाहते हैं कि मन-वांछित ही घटे
केवल लस्टस और उसका राज्य ही है
जो उन्हें बेलग़ाम आज़ादी दे सकते हैं/
प्रभु और उसकी दिनों-दिन क्षीण होती जा रही सेना
अपने बलपूर्वक रवैये के साथ जारी रखे हुए थी
मृतकों की उपासना
और उनके अनुयायियों के लिए निर्धारित करती
आचरण की एक सारणी
जिससे आमआदमी साधारण खुशियों से भी वंचित हो जाता
इस तरह, उन्होंने मुख मोड़ लिए मंदिरों से
और भीड़ बढ़ ने लगी मदिरालयों, सिनेमाघरों
रेस्त्रां और क्लुबों में
लोग,जो मुक्ति चाहते थे
कमरतोड़ काम के बोझ से
एकत्रित होते खेल खेलने, महिलाओं से मिलने के लिए
और मदिरा पान व् मौज़ मस्ती के लिए
परन्तु, जैसे जैसे सामूहिक अर्थव्यवस्था की पकड़
बढ़ने लगी, राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था पर
अधिकाधिक युवा धकेल दिए गए नौकरियों की ओर
जहाँ न तो उन्हें खुशी मिलती, न आशा की कोई किरण
केवल आकांक्षा परोसी जाते उन्हें
मात्र स्व -केंद्रित अतिरंजित जुनून
रुग्ण मानसिकता और निरंतर दर्द से युक्त /
इस सशक्त लोगों की सेना
जो दानव के नाम पर जी रहे थे
दिखने में धार्मिक लगते थे
और प्रभु के प्रति पूर्णतः समर्पित
मंदिरों में अर्चना करते
धार्मिक स्थलों पे सजदे में सिर झुकाते
स्पष्ट रूप से अपनी दमित भावनाओं से मुक्ति पाने के लिए
फिर भी, उनकी निष्ठा तो शैतान के प्रति ही थी
मानवीय इच्छाओं की पूर्ण स्वतंत्रता में यकीन के साथ /
हे, सरस्वती! मुझे सामर्थ्य दो वर्णन करने की
कैसे घटित होता है यह देवत्व को लूटने का काम
कैसे यह दुष्ट लोग इस संसार को बदल देते हैं
आध्पित्य हो जाता हैं अन्धकार के साम्रज्य का,
और कैसे दैवीय साम्राज्य के दुर्ग एक के बाद एक
लस्ट्स के कोप के आगे धराशायी होने लगते है,
और किस तरह अंततः प्रभु प्रयास करता है
अपने खोये स्वर्ग को पुनः प्राप्त करने के लिए।
मुझे शक्तिदान दो इस अधार्मिक युद्ध के
अनपेक्षित विवरण करने हेतु
जोकि लस्ट्स और उसके समूह ने
प्रभु पर थोपा
जिसमें कितने ही फ़रिश्ते घातक रूप से घायल हुए
और, अंत में दुर्गा का आह्वान किया गया
दानवों के नरसंहार के लिए
अराजकता के अंत के लिए
और ईश्वरीय व्यवस्था के पुनर्स्थापन के लिए
मूल रचना: डॉ. जे. एस. आनंद
अनुवाद : रजनी छाबड़ा
Sunday, February 9, 2025
किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ
किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ ((सिराइकी में मेरी कविता )
********************
माँ , तूँ कयी वारी आखिया कर दी हावें
बबली, तूँ इतनी चुप चुपिती क्यों हें
कुझ दा बोलिया कर
मन दे दरवाज़े ते खड़का कर
शब्दां दी दस्तक नाल खोलिया कर
हुण जुबान तुं ताला हटाया हे
तूँ ही नहि सुणनं वास्ते
ख़यालां दा जो काफ़िला
तूँ छोड़ गयी हें
मेडे दिल-दिमाग वेच
वादा हे टेड़े नाल
इवें ही अगे वधाये रखसां
सारी दुनिया वेच टेडी झलक वेख
सीधे सादे हरफ़ां दी पेशक़श
साफ़ सुथरी नदी वरगा
इवेन ही वगण देसां
मेडी चुप्पी कुं होण
जुबान मिल गयी हे
किया तूँ सुणदी पयी हें ? माँ
रजनी छाबड़ा
Saturday, February 8, 2025
सिमटदे पर
सिमटदे पर
***********
पहाड़, समंदर, उचियाँ इमारतां
अणदेखी कर सारियां रुकावटां
अज़ाद उड्डण दी ख़्वाहिश नु
आ गया हे
अपणे आप ठहराव
रुकणा ही न जाणदे जो कदे
बंधे बंधे चलदे हुण ओही पैर
उमर दा आ गया हे ऐसा मुक़ाम
सुफ़ने थम गए
सिमटण लगे हेन पर
नहीं भांदे हुण नवे आसमान
बंधी बंधी रफ़्तार नाल
बेमज़ा हे ज़िंदगी दा सफ़र
अनकहे हरफ़ां नु
क्यूँ न आस दी कहाणी दे देवां
रुके रुके कदमा नु
क्यों न फेर रवानी दे देवां /
रजनी छाबड़ा
सूटकेस
मित्रों, आज आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ अंर्तराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त कवि व् चिंतक डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम SUITCASE का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/
Friday, February 7, 2025
SUITCASE / सूटकेस ENGLISH POEM WITH HINDI TRANSLATION
SUITCASE
अदृश्य बाग़बान / डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम Invisible Gardener का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/
मित्रों, आज आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ अंर्तराष्ट्रीय ख्यति प्राप्त कवि व् चिंतक डॉ. जे. एस. आंनद की इंग्लिश पोयम Invisible Gardener का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवाद/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/
अदृश्य बाग़बान
*************
बागबान
छटनीं करता है
उन शाखओं की
जो अधिक बढ़ जाती हैं
और उन शाखों को भी
जो नष्ट कर रही हों
सौंदर्य और आकार
साथ ही साथ हटा देता है
उस विस्तार को जो
अस्तव्यस्त कर रहा हो
इसके प्रारूप को
पत्तों के ढेर
जो काट डाले गए कैंची से
और बागबान की
सौंदर्य बोध सनी पैनी आँख
अक़्सर याद दिलाती हैं मुझे
उन लाखों करोड़ों लोगों के
नरसंहार की
धरा के विभिन्न महाद्वीपों में
मानव के इस संसार में
इतना अत्याचार !
जीवन की ज़ागीर से
कितनों को ही
रवाना कर दिया जाता है
हज़ारों मानवीय और अमानवीय
बहानों की आड़ में
प्रकृति में भी
झंझावात आते हैं (बिनबुलाये ?)
तटों को ले जाते हैं अपनी आग़ोश में
और जाते जाते पीछे छोड़ जाते है
कुछ बेरहम निशानियाँ
कचरे के ढेर में बदल देते हैं
हज़ारों घर और चूल्हे
मवेशियों के सिर, शरीर और अस्थियाँ
अदृश्य बागबान जानता है
कौन उसकी सृष्टि का रूप
विद्रुप कर रहा है
यह झंझावात
प्राकृतिक और मानव रचित
यह तो कार्यरत 'ब्यूटी सैलोन ' हैं
मूल रूप को क़ायम रखने के लिए /
रजनी छाबड़ा
THE INVISIBLE GARDENER
***************************
Dr Jernail S Aanand
The gardener
prunes
branches which outgrow
and also those which destroy
beauty and form
and growth which is unwanted
and disturbs its design.
The hordes of leaves
cut adrift by the scissors
and sharp sense of beauty
of the gardener
often remind me of killings
of people in millions
dotting the earth across continents
There is so much injustice
so much cruelty in the world of men,
thousands are despatched
out of the domain of life
for a thousand reasons
human and inhuman.
In nature too,
tempests arrive (uninvited?)
sweeping across human shores
and while going off
Reducing to rubble
thousands of homes, and hearths
heads of cattle, bodies and bones.
.
The invisible gardener
knows what is destroying
the beauty of its creation
these tempests,
natural and human,
are beauty saloons at work
to keep the original design intact.
Dr. J.S. Aanand
Wednesday, January 29, 2025
बोतलबंद पाणी
बोतलबंद पाणी
*************
साफ़- सुथरे, ठन्डे पाणी वाले
भरे -पुरे थींदे दरिया
ओ पाणी दी मिठास
असां कदे भुल नहीं सकदे
मुसाफ़रां वास्ते
पियाऊ लगाएं वेंदे
होण नयि मिलदा
पियार रचिया 'गुड़ धानी '
ते बेमोल पाणी
बदले महौल
आ गया हे
बोतलबंद पाणी
नवे दौर दी
इहो कहाणी /
रजनी छाबड़ा
Tuesday, January 28, 2025
असां ख़ुद नहीं जाणदे
असां ख़ुद नहीं जाणदे
*****************
असां ख़ुद नहीं जाणदे
असां ज़िंदगी तुं किया चाह्न्दे हां
कुझ कर गुजरण दी चाहत मन वेच समेटे
अधूरी चाहतां नाल जिये वेंदे हां
उभरदी हे जद मन वेच
लक़ीर तुं हट के, कुझ कर गुजरन दी चाहत
संस्कारां दी लोरी सुणा के
ऊस चाहत कुं सुलाए वेंदे हां
सुनेहरी धुप नाल भरिया असमान सामने हे
मन दे बंद हनेरे कमरे वेच सिमटे वेंदे हां
चाह्न्दे हाँ ज़िंदगी वेच समन्दर वरगा फ़ैलाव
हक़ीक़त वेच खू दे ड्डू वरगा जिये वेंदे हां
चाह्न्दे हां ज़िंदगी वेच दरिया वरगी रवानगी
होर हंजु अखां वेच ज़ज़्ब कीते वेंदे हां
चाह्न्दे हां फ़तेह करणा ज़िंदगी दी दौड़
होर बैसाखियाँ दे सहारे चले वेंदे हां
कुझ कर गुजरण दी हसरत
कुझ न कर सकण दी क़सक
अजीब क़शमक़श वेच
ज़िन्दगी जिए वेंदे हां
असां ख़ुद नहीं जाणदे
असां ज़िंदगी तुं किया चाह्न्दे हां
असां ज़िंदगी तुं किया चाह्न्दे हाँ
कुझ कर गुजरण दी चाहत मन वेच समेटे
अधूरी चाहतां नाल जिये वेंदे हां
उभरदी हे जद मन वेच
लक़ीर तुं हट के, कुझ कर गुजरन दी चाहत
संस्कारां दी लोरी सुणा के
ऊस चाहत कुं सुलाए वेंदे हां
सुनेहरी धुप नाल भरिया असमान सामने हे
मन दे बंद हनेरे कमरे वेच सिमटे वेंदे हां
चाह्न्दे हाँ ज़िंदगी वेच समन्दर वरगा फ़ैलाव
हक़ीक़त वेच खू दे ड्डू वरगा जिये वेंदे हां
चाह्न्दे हां ज़िंदगी वेच दरिया वरगी रवानगी
होर हंजु अखां वेच ज़ज़्ब कीते वेंदे हां
चाह्न्दे हां फ़तेह करणा ज़िंदगी दी दौड़
होर बैसाखियाँ दे सहारे चले वेंदे हां
जड़ां नाल रिश्ता
जड़ां नाल रिश्ता
************
बस्ती वेच रेह के वी
महसूस थींदा हे वीराणा
मन वेच हुण तक हे
पेन्ड दी यादां दा आशियाना
सनसन वेहंदी
ठंडी हवा
बगीचियाँ वेच
कोयल दी कूक
दरिया दा
साफ़ सुथरा , ठंडा पाणी
वगदा गुनगुणादे
याद कर के
दिल अमुझदा
चुल्हे दी
मधरी अग ते
रेझा दिती दाल
अंगारेया ते सिकि
फुली फुली रोटियां
सवांजणा ते कचनार
डोली दी रोटी
बेमिसाल
ईना दी ख़ुश्बू ही
भड़का देंदी भुख
शहरी ज़िंदगी दी
उलझनां वेच उल्झिया
सारे दिन दी थकान तुं पस्त
दो निवाले गले विच
उतारण तुं पैले
कयीं वार ज़रूरत पैंदी हे
'ऐपिटाईज़र ' दी
नियाणे रोटी निगलदे
टी. वी. वेच नज़रां धस्साए
उंहांकू होण परियां दे मुल्क दियां
कहाणियां कौण सुणावे
ए. सी. ते कूलर दी हवा दा
नयि कोई मुक़ाबला
कुदरती हवा दे नाल
खुली छत ते समणा मुमकिन नयि
नहीं वेख सकदे होण
तारियाँ दी अख- मिचौली
चंदरमा दी रवानी
वधिया होटल वेच
आर्डर देने वक़त
तुसां हजे वी मँगवादे हो
धुएंदार 'सिज़्ज़्लर '
तंदूरी रोटी
मखणी दाल
मकई दी रोटी
सरसों दा साग
देसी मखण ते मठ्ठा
धुएं वाला रायता
याद है हजे वी तुहानकु
इंहा दा ज़ायका
रोज़ी रोटी दी जुग़ाड़ वेच
किथे वी बसर करणा पवे
नहि टूट सकदा
जड़ां नाल रिश्ता
Monday, January 27, 2025
भटके मुसाफ़िर
भटके मुसाफ़िर
**************
हेक वक़्त
एसा वी हाई
भटके मुसाफ़िर
रस्ता पुछ घिन्दे
रस्ता चलदे
अनजान लोगोँ तुं
ते ओ वी ख़ुशी-ख़ुशी
आपणा वक़्त देंदे
रस्ता सुझावण वास्ते
अज कल कोई किसे दा
रहनुमां नयि बणदा
न ही कोई पुछदा
न ही कोई दसदा
सब दा होण
अपणे आप नाल ही रिश्ता
किसे वी अनजान रस्ते ते
अनजान शहर वेच भटक जावे कोई
ग़ुम थीवण दा कोई डर नयि
'गूगल मैप' सब दा रखवाला
भटकिया कुं रस्ता सुझावण वाला/
रजनी छाबड़ा
अमूझने
अमूझने
******
अज कल
उमर दे ठहरे पड़ाव ते
ज़िंदगी दी चाल हे
सहज -सपाट
वल यकायक
क्यूँ थी वेंदे हाँ
असां अमूझने
शायद इहन वजाह नाल कि
हेक लम्बे अरसे तुं
कुझ नवा
नहीं किता
ढर्रे ते चलदी
ज़िंदगी वेच
करण वासते
कुझ वी नयि बचिया /
रजनी छाबड़ा
Sunday, January 26, 2025
जीवण दा वल
जीवण दा वल
***********
जिथै मर्ज़ी
किसे वी वेले
जड़ तुं उखाड़ के
नवे सिरे तुं
ज़मीन वेच उगा घिनो
दुबारा नवी ज़मीन वेच
खिड़ वेंदी हे बिच्छु बूटी
आपणी रंग बिरंगी
शान दे नाल
काश! जीवन दा एह वल
सांकु वी आ वंजे /
रजनी छाबड़ा
यादां वेच
यादां वेच
*******
होण वी याद करदे ने
मैंकु मैडे शहर दे बाशिन्दे
ऐन उवेन हि जिवें
ओ मैडी यादां वेच वसदे ने
नज़रां तुं दूर होवण नाल
कोई दिल तुं दूर नयि थींदा /
रजनी छाबड़ा
रिश्तियाँ दी उमर
रिश्तियाँ दी उमर
*************
मतलब दे रिश्तियाँ दी उम्र
अमूनन निक्की होंदी हे
इंहा कुं परखण वास्ते
मतलब दी कसौटी होंदी हे
बेमतलब रिश्ते आपो -आप
निभ वेंदे ने तमाम उमर
इंहा रिश्तियाँ दी साह
साडे साह वेच वस होंदी हे/
रजनी छाबड़ा
मुक़्क़मल
********
मैडे रबा !
थोड़ा जिहा अधूरा रैहवण दे
मैडी ज़िंदगी दा पियाला
ताकि क़ोशिश ज़ारी रहवे
हिंकु पूरा भरण वास्ते
जदूं पियाला
भर वैंदा हे लबालब
डर रेह्न्दा हे
इन्दे छलकन दा
विखरन दा
हिंदे वेच कुझ होर बूंदा
समेटण दा बणन
जो जुनून
मुक़्क़मल बणन दी
कोशिश वेच हे
ओ मुक़्क़मल वेच किथे
लबालब पियाले वेच
होर भरण दे गुंजाईश नी
रेहँदी ज़िंदगी तुं
होर कोई फ़रमाइश नी
मुक्कमलपन बणा देंदा
रजीया होइया ते बेखबर
मुक्कमल थीवण दी चाह देंदी
क़ोशिश कुं निख़ार
मेंकु थोड़े जहे
अधूरेपण नाल ही जीवण दे
बूँद बूँद ज़िन्दगी पीवण दे
लगातार कोशिशां -भरी
ज़िंदगी जीवण दे /
रजनी छाबड़ा
Saturday, January 25, 2025
क़िरदार
क़िरदार
*******
वक़्त दे लंबे सफर विच
क़िरदार ईवेन
बदल वेंदे ने
ओ , जो कल
चलदे रहे
पकड़े उंगली साडी
ओ ही , हुण अगे वध
सांकु रस्ता सुझांदे /
रजनी छाबड़ा
Friday, January 24, 2025
संझिआ दे अँधेरे वेच
संझिआ दे अँधेरे वेच
****************
संझिआ
दे झुटपुट
अँधेरे वेच
दुआ वास्ते हथ जोड़
किया मंगणा
टुट्दै होए तारे तुं
जो अपणा ही वज़ूद
नयि रख सकदा क़ायम
मंगणा ही हे, तां मंगो
डुबदे हुए सूरज तुं
जो अस्त हो के वी
नहीं थिंदा पस्त
अस्त थिंदा हे ओ
हक नवे सवेरे वास्ते
अपणी सुनहरी किरणा नाल
रोशन करण वास्ते
सारी ख़ुदाई /
रजनी छाबड़ा
तुसां ही दसो
तुसां ही दसो
***********
मैडी नेंदर कुं पंख लगे जदों
किया तुहाडी वी नाल
उड़ा लै गयी
या फ़ेर उन्दरियाँ रातां वेच
तारे गिनण दी रस्म
में हेक्तरफा निभा गयी /
रजनी छाबड़ा
मेले वेच एकले
मेले वेच एकले
***********
निगाहां दे आख़िरी सिरे तायीं
जद बैचैन निगाहां तलाशदियां हेन तैंकु
और तुसां किथे वी विखाई नहीं देंदे आस पास
हौर वी गहरा थी वेंदा है, मेले वेच एकले
भीड़ वेच तनहाई दा एहसास /
रजनी छाबड़ा
Thursday, January 23, 2025
हेक गुमशुदा औरत
हेक गुमशुदा औरत
**************
शिक़वा नहि परायां नाल
मैडे अपणेइयाँ ने ही ख़स घिदी
मैडे तुं मैडी आपणी पछाण
धी , नुं , कवार , माँ
इंहा, रिश्तियाँ वेच गुमीया
मैडा मैं किथे
कल राह चलदे सदिया मैंकु
बचपन दी हाणी ने जद सदिया मैडा नां
खुलण लगे बंद यादां दे झरोखें
धुप छणी किरणाँ वेच उभरइया
धुँधला धुँधला जिहा मैडा नां
मैं वी कदी मेँ सी
माँ -बाबुल दी सोनचिड़ी
जोश, ख़ुशी नाल भरपूर
उडदी राहँदी घर, चौबारे
पेंड दी गलियां वेच दूर दूर
मैडी आज़ादी दे किस्से थए मशहूर
किरक वरगी चुभण लग पई
रिश्तेदारां दी नज़रां वेच
मैडी पंख पसारी आज़ादी
मशवरा दिता गया, मैडे पंख नोचण दा
खूबसूरत बहांनियाँ वेच उलझा के
करवा दिति गयी कच्ची उमर वेच
मैडी शादी
पढ़ाई लिखाई बन के रह गयी ख़्वाब
समझाया गया मैंकु
घर दी सेवा करण वेच ही हे मेडा सवाब
जद तक सुती रई अपणी पहचान दी चाह
तद तक कुझ साल रही गृहस्थी विच ख़ुश
हुण बच्चे अपणी ज़िंदगी वेच रमे
घोट कुं नयि कामकाज तुं फुर्सत
बलदी रेत वरगा मन मेरा
हर पल सुलगदा
तपदे रेगिस्तान वेच
ख़ाली मटके वरगा मैडा मन
तलाशदा फ़िरदा
रुंज वेच मैडी पहचान
मैं फलाणे दी धी, फैलाने दी नुं
फलाणे दी कवार ते फलाणे दी मां
इना रिशताएँ दे वाझालोरे वेच
किथे हां मैं
कया शिक़वा करान गैरां नाल
मैडे आपणयां ने ही खस घिधी
मैडे तुं मैडी पहचान /
रजनी छाबड़ा
पुल
पुल
****
इंसान इंसान दे वेच
हेक अजनबीपन जीया क्यूँ हे
क्यूँ समेटे रखदे हाँ, असां अपणे आप कुं
आपणे ही बणाएं क़िले वेच
बणा घिन्दे हां ,आपणे आले दुवाले
कछुवे जीहा हेक सुऱक्षा कवच
ख़ौफ़ ते बेइतबारी नाल भरे
सहमे सहमे , डरे डरे
ज़रा जही अनजान आवाज़ सुणदे ही
सिमट वेंदे हाँ ऊस कवच वेच
हेक वार , सैर्फ हेक वार
कर वनजो पार,बेइतबारी दी दीवार
गैरां दे सुःख दुःख साँझा कर
ढहा सटो दूरीयां दी दीवार
तुसां ओ एंट बण के वेखौ
जेहढ़ी दीवार वेच नहिय
पुल वेच चिणी वैसी
ज़िंदगी डा वल , तुहानकु
आपो आप आ वैसी /
रजनी छाबड़ा
फैशन
फैशन
*****
जे जिसम दी नुमाईश ही
फैशन हे
असां डाढे अभागे हां
जानवर ऐस दौड़ वेच
असां तुं अवल्ल निकल गए/
रजनी छाबड़ा
नवीं पछाण
नवीं पछाण
*********
अँधेरे कु
आपणे आप वेच समेटे
जिवें दीवा बणांदा हे
अपनी रोशन पछाण
ईवेन ही तुसा
अथरू समेटे रखो
अपणे वेच
दुनिया कु डियो
बस मुसकान
आपणी अनाम ज़िंदगी कुं
ईवेन डियो नवीं पछाण /
रजनी छाबड़ा
आज़ाद
आज़ाद
*******
झरने वांकु कलकल
पंछियां वांकु चहक
आज़ाद उडारी
चंदनी हवा
सावणी फ़ुहार
इहो टैडी
हँसी दी पछाण
मोतियाँ वाले घर दा
दरवाज़ा खोल चा
नक़ली मुलकना
छोड़ चा/
रजनी छाबड़ा
आस दा पंछी
आस दा पंछी
**********
मन
हेक आस दा पंछी
न क़ैद करो हिंकु
क़ैद थीवण वास्ते
किया इंसान दा ज़िस्म
घट हे/
रजनी छाबड़ा
Wednesday, January 22, 2025
निखरी निखरी
निखरी निखरी
सर्द रातां दे बाद
ओस वेच नहावण दे बाद
जद अधखिली कली
शबनमीं धुप वेच
अपणा चेहरा सुखांदी हे
क़ायनात निखरी निखरी
नज़र आवन्दी हे /
रजनी छाबड़ा
बंदगी
बंदगी
******
एहसास कदे वी मरदे नहीं
एहसास ज़िंदा हेन
तां ज़िंदगी हे
वक़्त दी झोली वेच समेटे
पल पल दे एहसास
रब दी बंदगी हेन /
रजनी छाबड़ा
एह चाहत
एह चाहत
********
एह चाहत मैडी तैडी
जे एह सोहणा सुफ़ना हे
नींदर खुले न कदे मैडी
जे एह हक़ीकत हे
नींदर कदे न आवे मैंकु /
रजनी छाबड़ा
Tuesday, January 21, 2025
Monday, January 20, 2025
कौण परवाह करदा हे
कौण परवाह करदा हे
*****************
कौण परवाह करदा हे अंधेरियाँ दी
हेक बडे तूफान तुं बाद
हर ग़म छोटा थी वैंदा हे
ऊस तुं वडे गम दे बाद
रजनी छाबड़ा
मुक़म्मल ज़िंदगी
मुक़म्मल ज़िंदगी
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सारी उमर दा साथ
नेभ वैंदा हे
बस हेक ही
पल वेच
बुलबुले वेच
उभरण वाले
अक्स दी उमर
होन्दी हे
बस हेक ही
पल दी /
रजनी छाबड़ा
आपणी मिट्टी
आपणी मिट्टी
**********
बस्ती वेच रेह के
जंगल दे वास्ते
मन दा मोर
कसमसांदा हे
ऐस पेंडू मन दा
क्या करां
आपणी मिट्टी दी
खुशबू वास्ते तरसदा हे
किवें भुला देवां
आपणे पिंड कुं
रिश्तियाँ दी
ख़ुश्बू वाली गलियाँ वेच
उथे आपणेपण दा
बदळ वरसदा हे /
रजनी छाबड़ा
Sunday, January 19, 2025
Saturday, January 18, 2025
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ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਤੇਜਿੰਦਰ ਚਾਂਡਿਹੋਕ ਜੀ ਦਾ , ਮੇਰੀ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਲਈ / 'ਆਸ ਦੀ ਕੁੰਚੀ ' ਮੇਰੇ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਵਿਚ ਇਹ ਦੋਨੋ ਕਵਿਤਾ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹਨ / ਤੇਜਿੰਦਰ ਜੀ ਅਜੇ ਤੋਂ ਵਰੇ ਪਹਲੇ ਮੇਰੇ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਹੋਨੇ ਦੇ ਨ ਹੋਨੇ ਤਕ ਅਤੇ ਪਿਘਲਤੇ ਹਿਮਖੰਡ ਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਕਰ ਚੁਕੇ ਹਨ/
तेडे इंतज़ार वेच
************
आ, तूं मुड़ आ
वरना, मैं इवेन ही
जागदी राहंसा
सारी सारी रात
मिटांदी राहसां
लेख़ लेख़ के
टेडा नां
रेत ते
ते हर सवेरे
सुर्ख़ उनिदरी अनखां नाल
नींदर तुं भारी पलकां नाल
कटदी राहंसा
कलेंडर तुं
हेक होर तरीक़
आपणे सच्च दा सबूत बणा के कि
हक होर रोज़
तेंकु याद किता
टेडा नाम घिदा /
रजनी छाबड़ा
काफ़ी हेन
काफ़ी हेन
********
हेक ख़्वाब
बेनूर अखां वासते
हेक आह
चुप -चुपीते होठां वासते
हेक पाबन्द
तार तार जिग़र
सीवण वासते
काफ़ी हें
इतने समान
मेडे जीवण दे वासते /
रजनी छाबड़ा
मन दी पतंग : सिराइकी में मेरी कविता
मन दी पतंग : सिराइकी में मेरी कविता
***********
पतंग वांगु शोख़ मन
आपणी चंचलता ते सवार
नपणा चाह्न्दा हे
पूरे आसमान दा फ़ैलाव
पहाड़, समंदर , उचियाँ इमारतां
अन्वेखी कर के
सब रुकवाटां
क़दम अगे ही अगे वधावे
ज़िंदगी दी थकान
दूर करण वास्ते
मुन्तज़र हाँ असां
मन दी पतंग ते
सुफ़नायें दे आसमान वास्ते
जिथे मन घेन सके
बेहिचक, सतरंगी उडारी
पर क्यों पकडावां डोर
पराये हथां वेच
हर पल ख़ौफ़ज़दा
रहवे मन
रब जाणे, कद कटीज़ वंजे
कदों लुटीज़ वंजे
शोख़ी नाल भरिया
चंचल मन वेखे
ज़िंदगी दे आईने
पर सच दे धरातल ते
टिके कदम ही देंदे
ज़िंदगी कुं मायने /
रजनी छाबड़ा
चाहत
चाहत (सिराइकी में मेरी कविता)
*****
जे चाहत
हिक गुनाह हे
क्यूँ झुकदा हे
आसमान ज़मीन ते
क्यूँ घुम्दी हे ज़मीन
सूरज दे गिर्द /
रजनी छाबड़ा
किवें भुला सकदे हाँ : सिराइकी में मेरी कविता
किवें भुला सकदे हाँ (सिराइकी में मेरी कविता)
**************
असां भुल सकदे हाँ उनहानु
जिन्हाने ने साडे नॉल
साडे सुख दे संमे
लगाये कहकहे
किवें भुला सकदे हाँ उनहानु
जिन्हाने ने साडे दुख़ वेच
वहाये हंजु बिना कहे /
रजनी छाबड़ा
Wednesday, January 15, 2025
जड़ों से नाता
लगता वीराना है
मन में अभी भी
गाँवों की यादों का
आशियाना है
सन सन बहती
ठंडी हवा
अमराइयों में
कोयल की कूक
नदिया का
स्वच्छ , शीतल जल
बहता कलकल
याद कर के
मन होता आकुल
चूल्हे की
सौंधी आंच पर
राँधी गयी दाल
अंगारो पर सिकी
फूली -फूली रोटियां
बेमिसाल
नथुनों तक पहुँचती खुशुबू
भड़का देती थी भूख
शहरी ज़िंदगी की
उलझनों में व्यस्त
दिन भर की थकान से पस्त
दो कौर खाना हलक से
नीचे उतारने से पहले
कई बार ज़रूरत रहती है
एपीटाईज़र की
बच्चे खाना खाते हैं
टी वी में आँखें गढ़ाए
उन्हें परी देश की कहानियां
अब कौन सुनाये
ए सी और कूलर की हवा
नहीं है प्राकृतिक हवा की सानी
खुली छत पर सोना मुमकिन नहीं
नहीं देख पाते अब
तारों की आँख मिचौली
चँदा की रवानी
बढ़िया होटल में
खाना आर्डर करते हुए
अब भी तुम मंगवाते हो
धुआंदार 'सिज़लर '
तंदूरी रोटी
मक्खनी दाल
दाल -बाटी चूरमा
मक्की की रोटी
सरसों का साग
मक्खन , छाछ
धुंए वाला रायता
याद है तुम्हे अभी भी
इन का ज़ायका
रोज़ी रोटी की जुगाड़ में
कहीं भी बसर करे हम
नहीं टूट सकता जड़ों से नाता/
2. वही है सूर्य
********
सूर्य का स्वरूप वही है
प्रकाश बदलता रहता है नित
वही हैं नदियाँ, वही झरने
पानी के वेग का अंदाज़
बदलता रहता है नित
वही है हमारी ज़िंदगी
दिन-प्रतिदिन
पर कदम थामो नहीं
प्रयत्नशील रहो
नित नयी राह
तलाशने के लिए
और नए आयाम
खँगालने के लिए /
3. असर
*****
रेत सुबह से लेकर
रात के आख़िरी प्रहर तक
कई रंग बदलती
सूरज के संग रहती
सुनहरी रंगत पाती
पूरा दिन
तपती -सुलगती
चाँद के संग रहती
पूरी रात
ठंडक पाती
ठंडक बरसाती
झरना बहता जब पहाड़ों से
उजली रंगत लिए
शीतल, मीठे जल से
सबकी प्यास बुझाये
पहुंचता जब मैदान में
नदी के स्वरूप में
वही पानी गंदला हो जाये
झरने का पानी
अपनी मिठास गंवाए
सोन -चिरैय्या उड़ती जब
खुले आसमान में
आज़ादी के गीत गुनगुनाये
क़ैद हो जाये जब पिंजरे में
सभी गीत भूल जाए/
- रजनी छाबड़ा
(सिराइकी में मेरी कविता ) PART 2
21. मैं मनमौजी
22. मैडा वसंत
23. किवें भुला सकदे हाँ
24. चाहत
25. मन दी पतंग
26. तेडे इंतज़ार वेच
27. काफ़ी हेन
28. बंजारा मन
29. आपणी मिट्टी
30. मुक़म्मल ज़िंदगी
31. कौण परवाह करदा हे
32. रिश्ता
33. गहरा राज़
34. एह चाहत
35. बंदगी
36. निखरी निखरी
37. आस दा पंछी
38. आज़ाद
39. नवीं पछाण
40. फैशन
21. मैं मनमौजी
**********
मैं मनमौजी
मैडे नाल किया होड़ पतंग दी
मैं पँछी खुले आसमान दा
सारा आसमान
आपणे पनखां नाल नपिया
डोर पतंग दी
पराये हथां वेच
उडारी आसमान वेच
जुड़ाव ज़मीन नाल /
22. मैडा वसंत
**********
वक़त ने जेड़्हे जखमा तें
मल्हम लगायी
मौसम ने
उनहा कुं हरा करण दी
रसम दुहराई
मैडे दर्द दी
ना कोई शुरुआत
ना कोई अंत
मुरझाये जखमां दा
दोबारा हरा थीवणा
इहो ही है
मैडा वसंत /
23. किवें भुला सकदे हाँ
****************
असां भुल सकदे हाँ उनहानु
जिन्हाने ने साडे नॉल
साडे सुख दे संमे
लगाये कहकहे
किवें भुला सकदे हाँ उनहानु
जिन्हाने ने साडे दुख़ वेच
वहाये हंजु बिना कहे /
24. चाहत
*****
जे चाहत
हिक गुनाह हे
क्यूँ झुकदा हे
आसमान ज़मीन ते
क्यूँ घुम्दी हे ज़मीन
सूरज दे गिर्द /
25. मन दी पतंग
***********
पतंग वांगु शोख़ मन
आपणी चंचलता ते सवार
नपणा चाह्न्दा हे
पूरे आसमान दा फ़ैलाव
पहाड़, समंदर , उचियाँ इमारतां
अन्वेखी कर के
सब रुकवाटां
क़दम अगे ही अगे वधावे
ज़िंदगी दी थकान
दूर करण वास्ते
मुन्तज़र हाँ असां
मन दी पतंग ते
सुफ़नायें दे आसमान वास्ते
जिथे मन घेन सके
बेहिचक, सतरंगी उडारी
पर क्यों पकडावां डोर
पराये हथां वेच
हर पल ख़ौफ़ज़दा
रहवे मन
रब जाणे, कद कटीज़ वंजे
कदों लुटीज़ वंजे
शोख़ी नाल भरिया
चंचल मन वेखे
ज़िंदगी दे आईने
पर सच दे धरातल ते
टिके कदम ही देंदे
ज़िंदगी कुं मायने /
26. तेडे इंतज़ार वेच
************
आ, तूं मुड़ आ
वरना, मैं इवेन ही
जागदी राहंसा
सारी सारी रात
मिटांदी राहसां
लेख़ लेख़ के
टेडा नां
रेत ते
ते हर सवेरे
सुर्ख़ उनिदरी अनखां नाल
नींदर तुं भारी पलकां नाल
कटदी राहंसा
कलेंडर तुं
हेक होर तरीक़
आपणे सच्च दा सबूत बणा के कि
हक होर रोज़
तेंकु याद किता
तेडा नाम घिदा /
27. काफ़ी हेन
********
हेक ख़्वाब
बेनूर अखां वासते
हेक आह
चुप -चुपीते होठां वासते
हेक पाबन्द
तार तार जिग़र
सीवण वासते
काफ़ी हें
इतने समान
मेडे जीवण दे वासते /
28. बंजारा मन
********
जद बंजारे मन कुं
ज़िंदगी दे किसे
अनजान मोड़ ते
मेल वेंदा हे
मन-माफिक हमसफ़र
जी चाहंदा हे, कदे वी
न ख़तम थीवे ए सफ़र
हेक हेक पल बण वंजे
हक जुग दा , ते
सफ़र इवेन ही जारी रहवे
जुगां जुगां तहीं/
29. आपणी मिट्टी
**********
बस्ती वेच रेह के
जंगल दे वास्ते
मन दा मोर
कसमसांदा हे
ऐस पेंडू मन दा
क्या करां
आपणी मिट्टी दी
खुशबू वास्ते तरसदा हे
किवें भुला देवां
आपणे पिंड कुं
रिश्तियाँ दी
ख़ुश्बू वाली गलियाँ वेच
उथे आपणेपण दा
बदळ वरसदा हे /
30. मुक़म्मल ज़िंदगी
***************
सारी उमर दा साथ
नेभ वैंदा हे
बस हेक ही
पल वेच
बुलबुले वेच
उभरण वाले
अक्स दी उमर
होन्दी हे
बस हेक ही
पल दी /
31. कौण परवाह करदा हे
*****************
कौण परवाह करदा हे अंधेरियाँ दी
हेक बडे तूफान तुं बाद
हर ग़म छोटा थी वैंदा हे
ऊस तुं वडे गम दे बाद
32. रिश्ता
*****
मन ते अखां
दे वेच
गूढ़ा रिश्ता हे
मन दा नासुर
अखां तुं
हंजु बण
रिसदा हे /
33. गहरा राज़
*********
सुफ़ने किसे दी
इज़ाजत नाल नहि आंदे
न ही सुफनियां ते
किसे दा पहरा
बिना पंखां दे
किवें पहुंचा देंदे
सतरंगी दुनियां वेच
राज़ हे एह डाढा गहरा /
34. एह चाहत
********
एह चाहत मैडी तैडी
जे एह सोहणा सुफ़ना हे
नींदर खुले न कदे मैडी
जे एह हक़ीकत हे
नींदर कदे न आवे मैंकु /
35. बंदगी
******
एहसास कदे वी मरदे नहीं
एहसास ज़िंदा हेन
तां ज़िंदगी हे
वक़्त दी झोली वेच समेटे
पल पल दे एहसास
रब दी बंदगी हेन /
36. निखरी निखरी
सर्द रातां दे बाद
ओस वेच नहावण दे बाद
जद अधखिली कली
शबनमीं धुप वेच
अपणा चेहरा सुखांदी हे
क़ायनात निखरी निखरी
नज़र आवन्दी हे /
37. आस दा पंछी
**********
मन
हेक आस दा पंछी
न क़ैद करो हिंकु
क़ैद थीवण वास्ते
किया इंसान दा ज़िस्म
घट हे/
38. आज़ाद
*******
झरने वांकु कलकल
पंछियां वांकु चहक
आज़ाद उडारी
चंदनी हवा
सावणी फ़ुहार
इहो टैडी
हँसी दी पछाण
मोतियाँ वाले घर दा
दरवाज़ा खोल चा
नक़ली मुलकना
छोड़ चा/
39. नवीं पछाण
*********
अँधेरे कु
आपणे आप वेच समेटे
जिवें दीवा बणांदा हे
अपनी रोशन पछाण
ईवेन ही तुसा
अथरू समेटे रखो
अपणे वेच
दुनिया कु डियो
बस मुसकान
आपणी अनाम ज़िंदगी कुं
ईवेन डियो नवीं पछाण /
40. फैशन
*****
जे जिसम दी नुमाईश ही
फैशन हे
असां डाढे अभागे हां
जानवर ऐस दौड़ वेच
असां तुं अवल्ल निकल गए/
रजनी छाबड़ा
रजनी छाबड़ा
रजनी छाबड़ा
मैडा वसंत
मैडा वसंत (सिराइकी में मेरी कविता )
**********
वक़त ने जेड़्हे जखमा तें
मल्हम लगायी
मौसम ने
उनहा कुं हरा करण दी
रसम दुहराई
मैडे दर्द दी
ना कोई शुरुआत
ना कोई अंत
मुरझाये जखमां दा
दोबारा हरा थीवणा
इहो ही है
मैडा वसंत /
रजनी छाबड़ा
मैं मनमौजी
मैं मनमौजी (सिराइकी में मेरी कविता )
**********
मैं मनमौजी
मैडे नाल किया होड़ पतंग दी
मैं पँछी खुले आसमान दा
सारा आसमान
आपणे पनखां नाल नापिया
डोर पतंग दी
पराये हथां वेच
उडारी आसमान वेच
जुड़ाव ज़मीन नाल /
रजनी छाबड़ा
ज़रा सोचो (सिराइकी में मेरी कविता )
ज़रा सोचो (सिराइकी में मेरी कविता )
**********
दूजियाँ कुं ठोकरां मारण वालयों
ज़रा सोचो हेक पल वास्ते
पराये दर्द दा एहसास
चुभसी तुहानकु वी
जख़्मी थी वेसण
तुहाडे हि पैर जदूं
दुजिया नु ठोकरा मारदे मारदे/
रजनी छाबड़ा
दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )
दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )
**********
थींदी हे कदे
फूलां तुं
कंडियां वरगी चुभन
कदे कंडिया वेच
फुल खिड़दे ने
बहार वेच विराणा
कदे विराणे वेच
बहार दा एहसास
एह दिल दे मौसम
ईवेन बेमौसम
बदलदे रेह्न्दे /
Tuesday, January 14, 2025
दीवार( सिराइकी में मेरी कविता )
दीवार ( सिराइकी में मेरी कविता )
******
घर दे वेह्ड़े वेच
दीवार चनीज़ वेंदी हे
जदूं दिलां वेच
दरार पे वेंदी हे
बटवारे दा दरद
सेंहदी मज़बूर माँ
किंदे नाल रवें
किथे वंजे
दीवार दे दूजे सिरे
गूँजदी बच्चे दी किलकारी
अगे वधंण वासते बैचैन क़दम
ऱोक घिनदी है जबरन
पर किया रोक सकसी
आपणे मन दी उडारी
मन दे पँख लगा
घुम आउंदी हे
दीवार दे दूजे पार
वगदी नदी / बहती नदिया
Friends,you can view same poem in Roman English, just below Hindi poem
वगदी नदी / बहती नदिया (सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )
*********************
होले होले वगदी नदी
आपणी मस्ती वेच गुनगुणादी
मगरूर, मुलकदी
वगदी वैंदी
मैं हुंकु रोकिया, टोकिया
ईतनी उतावली क्या मचि हे
किथान वनजण दा इरादा हे
किता किसे नाल कोई वादा हे
नदी थोड़ा झिझकी
थोड़ा शरमायी
समंदर नाल मिलण दी आस हे
इयो ही मैडी रवानगी दा राज़ हे
मैं चेताया हुंकु
क्या सोचिया हे तु कदे
समंदर नाल मेल कर के
ग़ुम थी वैसी तैडी अपणी पछाँड़
तैडी अपणी मीठास
पर उह परेम पगली ने
ना रोकी अपणी रवानगी
मिठास दी तासीर ग़ुम थी गयी
ख़ारे पाणी वेच मिलयां बाद
समंदर दी आग़ोश वेच वनजण तुं बाद
ख़तम कर दिती अपणी रवानी
अपणी ज़िंदगानी /
रजनी छाबड़ा
Friends,you can view same poem in Roman English, just below Hindi poem
बहती नदिया
***********
कल कल बहती नदिया
अपनी धुन में गुनगुनाती
इठलाती, मुस्कुराती
बहे जा रही थी
मैंने उसे रोका और टोका
इतनी उतावली क्यों हो
कहाँ जाने का इरादा है
क्या किसी से कोई वादा है
नदिया कुछ झिझकी
सिकुची, शरमाई
सागर से मिलने की आस है
यही मेरी रवानगी का राज़ है
मैंने चेताया उसे
क्या सोचा हैं तुमने कभी
सागर से मिल कर
खो देगी तुम निजता
अपनी मिठास
सहजता और सरसता
पर उस प्रेम दीवानी ने
नहीं रोकी अपनी रवानी
मिठास का गुण खो दिया
ख़ारे पानी में विलीन हो गया
सागर की आगोश में जाने के बाद
और ख़तम कर ली अपनी रवानी
अपनी ज़िंदगानी
रजनी छाबड़ा
Kl kl bahtee nadia
Apnee dhun mein gungunati
Ithlatee, muskurati
Bahe Jaa rhee thee
Maine usko roka aur toka
Itnee utawali kyon ho
Kahan Jane ka irada hai
Kya kisee se koi vada hai
Nadia kuch jhijhaki
Sikuchee, sharmayee
Sagar se milne kee aas hai
Yahi meri rawangee ka raaz hai
Maine chetaya usko
Kya socha hai tumne kabhi
Sagar se mil kr
Kho dogi tum nijtaa
Apnee mithaas
Sahjata aur sarasta
Pr us Prem deewani
Ne nahi roki apnee rawani
Mithaas ka goon kho diya
Khare panee mein vileen ho gaya
Sagar kee aagosh mein jane ke baad
Aur khatam kr lee apnee rawani
Apnee zindganee.
Rajni Chhabra
Kl kl bahtee nadia
Apnee dhun mein gungunati
Ithlatee, muskurati
Bahe Jaa rhee thee
Maine usko roka aur toka
Itnee utawali kyon ho
Kahan Jane ka irada hai
Kya kisee se koi vada hai
Nadia kuch jhijhaki
Sikuchee, sharmayee
Sagar se milne kee aas hai
Yahi meri rawangee ka raaz hai
Maine chetaya usko
Kya socha hai tumne kabhi
Sagar se mil kr
Kho dogi tum nijtaa
Apnee mithaas
Sahjata aur sarasta
Pr us Prem deewani
Ne nahi roki apnee rawani
Mithaas ka goon kho diya
Khare panee mein vileen ho gaya
Sagar kee aagosh mein jane ke baad
Aur khatam kr lee apnee rawani
Apnee zindganee.
Rajni Chhabra