Monday, July 21, 2025
जड़ां नाल रिश्ता (काव्य संग्रह)
सभी सुधि पाठकों के साथ अपने सिरायकी भाषा में सद्य प्रकाशित प्रथम काव्य संग्रह 'जड़ां नाल रिश्ता' की समीक्षा साझा करते हुए हर्षित हूँ/ समीक्षक हैं सुप्रसिद्ध बहु भाषीय कवयित्री व् समीक्षक डॉ. अंजु दुआ जैमिनी/ समीक्षा तो उत्तम हैं ही, परन्तु इस में मेरे लिए एक और सुखद आश्चर्य भी सम्मिलित है/ इस काव्य संग्रह से 5 चयनित कविताओं को स्वर दिया है, स्वयं डॉ.अंजु ने व उनकी सखियों व् साहित्यकार मित्र रेनु अरोड़ा, रश्मि कक्कड़, विनीता कुकरेजा व् इंदु चांदना ने/ आप सभी के प्रति हार्दिक आभार/ यूं ही स्नेह बनाये रखिये/
यूट्यूब पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए प्रतीक्षारत हूँ /
प्रकाशक प्रो. चंद्र भानु आर्य जी के मार्गदर्शन व् डॉ.अंजु दुआ के प्रोत्साहन से मेरे मनोबल में वृद्धि हुई/ आप दोनों का हृदयतल से आभार/
रजनी छाबड़ा
Thursday, June 26, 2025
सशक्त
सशक्त
******
मधुमखियाँ संयुक्त प्रयास से
बनाती शहद का छत्ता
क़तरा क़तरा
प्रवाहित होता
पिघलते हिमखंड से
और नदी का रूप लेता
नदियाँ समाती जाती
सागर में
और सागर बन जाता
असीम, अथाह
जन मत का सागर भी
कुछ ऐसा ही है
एकजुटता से
बनता सशक्त /
रजनी छाबड़ा
एहसास/
नीले खुले आसमान तले
मंद मंद बयार का आनंद लेते
समुद्र तट पर
अजीब से खुशी मिलती है
क़ुदरत के ख़ज़ाने से
कुछ मिलने का एहसास /
Wednesday, June 25, 2025
Tuesday, June 24, 2025
काव्य-कृति 'निज से निजता '
प्राकथन
'निज से निजता' मेरा पंचम हिंदी काव्य संग्रह , आप सभी सुधि पाठकों के सुपुर्द करते हुए, असीम हर्ष का अनुभव कर रही हूँ /
आरम्भिक कवितायेँ प्राकृतिक-सौंदर्य की अनुभूतियों से प्रेरित हो कर रची, जब में श्रीनगर में अध्ययन रत थी और फिर एक लम्बे अंतराल के बाद, राजस्थान की सुनहरी धरा पर काव्य सृजन का जो सिलसिला शुरू हुआ, प्रभु कृपा और पाठकीय प्रतिक्रिया के फलस्वरूप, अनवरत चल रहा है/ हिंदी, अंग्रेज़ी, पंजाबी, राजस्थानी और मेरी मातृभाषा सिराइकी में स्वतंत्र लेखन के साथ ही साथ, हिंदी, पंजाबी, राजस्थानी, उर्दू व् नेपाली से अंग्रेज़ी में अनुसृजन में भी कार्यरत हूँ/ हाल ही में अंग्रेज़ी से हिंदी में एक महा काव्य का अनुवाद भी किया है/
जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ और यादों के मधुबन हमारी अमूल्य निधि हैं/ रिश्तों की गरिमा, अपनों का सानिध्य, अस्तित्व की पहचान और सौहार्द पूर्ण सह-अस्तित्व यही तो ताने -बाने हैं हमारे सामाजिक परिवेश के/ यदि यही सामजिक ताना -बाना तार-तार होने के कगार पर हो, कवि का संवेदनशील मन अछूता कैसे रह पायेगा/ यही अनुभूतियाँ कलमबद्ध करने का प्रयास किया है, अपनी काव्य-कृति 'निज से निजता ' के माध्यम से/
मैं लिखती नहीं
कागज़ पर मेरे जज़्बात बहते हैं
कह न पायी जो कभी
सिले, खामोश लबों से
वही अनकही कहानी कहते हैं/
बचपन से लेकर उम्र के आख़िरी पड़ाव तक का सफर, बहुआयामी चिंताएं, अन्याय, उत्पीड़न, नगरीकरण का दबाव, अपनी माटी की महक, जीवन मूल्यों के प्रति निष्ठा, संस्कारों के प्रति आस्था, प्रेम, विरह , प्रतीक्षा और आकुलता के अबोले बोल कागज़ पर उकरने का प्रयास किया है/ आधुनिककरण, प्रकृति के हरित आँचल में सिमटी सुंदरता, नभ और सागर का विस्तार, सिंदूरी सूरज और तारों जड़ी रात, ऐन्द्रिय धरातल पर कुछ बिम्ब बनाते हैं; इन्हे शब्दों का रूप दे कर उकेरा है/
ज़िंदगी की आपाधापी में, अपनी जड़ों से नाता टूटता जा रहा है/ अपने इर्द गिर्द, मकड़ी सम ताने बने बुनते , हम अपने ही जाल में उलझ कर रह गए हैं/ स्वयं से बतियाने और आत्म विश्लेषण का तो वक़्त ही नहीं मिलता कभी/
बेवज़ह सी लगती ज़िंदगी में
कोई वजह तलाशिये
ख़ुद के साथ लगाव
अक्सर कर देता है दूर तनाव
हम ईश की रची हुई
अतुलनीय रचना है
स्वाभिमान और
यह एहसास
लाता है जीवन में
सार्थकता और निख़ार/
रजनी छाबड़ा
बहु-भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका
Monday, June 23, 2025
समुद्र तट पर
समुद्र तट पर
**********
नीले खुले आसमान तले
मंद मंद बयार का आनंद लेते
समुद्र तट पर
सीपियाँ, शंख बटोरते
अजीब से खुशी मिलती है
क़ुदरत के ख़ज़ाने से
कुछ मिलने का एहसास /
अपनी कल्पना शीलता से
रेत के घरौंदे बनाते
और उस पर अपना नाम उकेरते
मासूम बच्चे, खिलखिलाते
पुलकित होते देख
सागर का विस्तार
अगले ही क्षण
तट से टकराती लहरें
बहा कर ले जाती
उनके सपनों का आशियाना
और सन्देश दे जाती
क्षण भंगुरता का/
रजनी छाबड़ा
मेटा AI द्वारा कविता का विश्लेषण