Sunday, August 3, 2025

याद कीजिये वो दिन

याद कीजिये वो दिन 

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 याद कीजिये वो दिन 

जज़्बात  उभरा करते थे 

कल-कल करते निर्झर सी 

रवानी लिए 


कलम -कागज़ उठाया

उढेल दिए जज़्बात  

सरलता से लिख डाली 

मन की हर बात 


मुँह -जबानी भी 

शब्दों को मिलती थी  रवानी 

पीढ़ी  दर पीढ़ी 

सुनाए जाते थे 

वीर गाथाएँ और कहानी 


इंसान के दिलऔर दिमाग के बीच 

नहीं था कोई कंप्यूटर 

थिरकती उँगलियों से 

थिरकते जज़्बात  

लिख दिए जाते थे 

बरबस कोरे कागज़ पर 


कंप्यूटर के चलन ने 

बदल दिया लिखने का सलीका 

किताब और पाठक का रिश्ता 

उँगलियों में लग रहे जंग 

और सूखने लगी स्याही 

लेखनी कागज़ के संग 

रह गयी अनब्याही /


रजनी छाबड़ा

बहुभाषीय कवयित्री व अनुवादिका 

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