अछोर
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क्षितिज़ सा अछोर
कभी संदली बयार सा
कभी सावनी फुहार सा
कभी शोख़ बहार सा इतराता
रुपहली किरणों से भरा
चांदनी में नहाया
कभी अँधेरे को अंतस में समेटे
नागिन सा बल खाता , लहराता
अपनी धुन में मग्न
दुनियावी दस्तूरों से विमुख
हिचकोले , हिलोरे लेता
रेत सरीख़े फ़िसलते लम्हों
ख़्वाबों और ख्यालों का
एक समन्दर
मेरे अन्दर/
रजनी छाबड़ा
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