Wednesday, August 20, 2025

जड़ा नाल रिश्ता

 


जड़ा नाल रिश्ता,(सिरायकी भाषा) की सठ कवितावां दा संकलन, इसकी  कवयित्री हैं सुप्रसिद्ध न्यूमरोलाजिस्ट  और पंजाबी,राजस्थानी,नेपाली और हिंदी भाषा की अंग्रेजी में अनुवादिका , आदरणीया बहन Rajni Chhabra ji । आप एक प्रसिद्ध ब्लागर हैं रेडियो टेलीविजन से प्रायः कार्यक्रम आते रहते हैं।

   सिरायकी एक बहुत प्यारी मीठी भाषा ये भारत की पंजाबी से सिंधी से मिलती जुलती भाषा है। अधिकांशतः यह मुलतान में बोली जाती है जिसके लगभग 28 लाख से भी अधिक बोलने वाले हैं...

     मुलतः यह इंडो आर्यन परिवार की भाषा है यह भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी हिस्से में बहुत जनप्रिय है।

     ये फारसी,अरबी, संस्कृत, और उर्दू मिश्रित है। इस काव्य संग्रह की भूमिका सुप्रसिद्ध कवयित्री डा0 अंजु दुआ जेमिनी ने लिखी है।

     इसका संपादन सिरायकी के विशेषज्ञ वरिष्ठ लेखक और चिन्तक श्री चन्द्र भानु आर्य जी ने किया है।


Moosa Ashant 

Barabanki 


      वास्तव में ये कविताएं अपनी भाषा /मिट्टी से  बिछड़ जाने  की पीडाओ की उपज है , जिसे कवयित्री ने बहुत ही अनोखे ढंग से प्रस्तुत किया है।

      सिरायकी की एक छोटी मीठी कविता यूँ पढ़िये ...

      जे मेंकूँ रोक सकें, रोक घिन

   मैं हवा दे झोंके वांगु हाँ

   ख्यालां दी पतंग वाकण

   बारिश दी पलेठ बूंदां वाकण

   सूरज दी मधरी धुप्प

   चंद्रमा दी ठंकक वाकण

       ऐसे ही अनेक प्यारी प्यारी दर्द से डूबी, भावों से भरी रचनाओं का महत्वपूर्ण गुलदस्ता है। 

        मुझे यह कल मिला सारी रचनाओं को पढ़ गया। सभी रचनाओं में आनन्द है,पीड़ा है, भाव है, एक अलग कथा है । कवयित्री जो कहना चाहती है उसको सरलतम ढंग से कह सकी है। यही काव्य संग्रह की विशेषता है। आप भी इस भाषा की रचनाओं को पढ़िये... हिंदी रचना संसार इन कविताओं का अवश्य और इस जबान को प्यार देगा।

     इस भाषा के गीतों को कभी सुना था रेडियो मुलतान से आज इसको पढ़ने को भी राजेन्द्र नगर दिल्ली से छपकर आयी इस पुस्तक से एक बार रूबरू होने का अवसर मिला। बधाई ,शुभकामनाएं। हिंदी,अंग्रेजी,राजस्थानी के साथ सिरायकी में भी आप लिखती रहें यही कामना। 

     

Sunday, August 17, 2025

सारथी

 सारथी 

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द्वन्द अक्सर 

हावी हो जाता है

दिल ओ दिमाग पर 

ज़िन्दगी के दोराहे पर 


दो कदम आगे बढ़ाते हैं 

कुछ हिम्मत जुटा के 

फ़िर, खुद ही पीछे 

सरक जाते हैं 

बनी बनाई राह पर 


लीक से हट के 

कुछ करने का 

इरादा क्यों  

डगमगा सा जाता है/


ओ , मेरे सारथी !

तुम्ही मेरी उलझन 

सुलझाओ ना 

मेरा स्वयं में 

विश्वास जगाओं ना 


नवीन और पुरातन में 

जंग छिड़ गयी है 

तोड़ना चाहती हूँ बेड़ियाँ 


पिघलते हिमखंड 

 शुचित झरना 

कल कल बहती नदिया 

पिंजरे से मुक्त 

उन्मुक्त पंछी 

नव विस्तार 

आह्वान कर रहा 


बदलते युग में 

तुम्हीं सार्थक राह 

दिखाओं ना 

ओ, मेरे सारथी!

तुम्हारे पथ-प्रदर्शन की 

मैं प्रार्थी /


रजनी छाबड़ा 



Sunday, August 3, 2025

याद कीजिये वो दिन

याद कीजिये वो दिन 

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 याद कीजिये वो दिन 

जज़्बात  उभरा करते थे 

कल-कल करते निर्झर सी 

रवानी लिए 


कलम -कागज़ उठाया

उढेल दिए जज़्बात  

सरलता से लिख डाली 

मन की हर बात 


मुँह -जबानी भी 

शब्दों को मिलती थी  रवानी 

पीढ़ी  दर पीढ़ी 

सुनाए जाते थे 

वीर गाथाएँ और कहानी 


इंसान के दिलऔर दिमाग के बीच 

नहीं था कोई कंप्यूटर 

थिरकती उँगलियों से 

थिरकते जज़्बात  

लिख दिए जाते थे 

बरबस कोरे कागज़ पर 


कंप्यूटर के चलन ने 

बदल दिया लिखने का सलीका 

किताब और पाठक का रिश्ता 

उँगलियों में लग रहे जंग 

और सूखने लगी स्याही 

लेखनी कागज़ के संग 

रह गयी अनब्याही /


रजनी छाबड़ा

बहुभाषीय कवयित्री व अनुवादिका