Sunday, August 17, 2025

सारथी

 सारथी 

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द्वन्द अक्सर 

हावी हो जाता है

दिल ओ दिमाग पर 

ज़िन्दगी के दोराहे पर 


दो कदम आगे बढ़ाते हैं 

कुछ हिम्मत जुटा के 

फ़िर, खुद ही पीछे 

सरक जाते हैं 

बनी बनाई राह पर 


लीक से हट के 

कुछ करने का 

इरादा क्यों  

डगमगा सा जाता है/


ओ , मेरे सारथी !

तुम्ही मेरी उलझन 

सुलझाओ ना 

मेरा स्वयं में 

विश्वास जगाओं ना 


नवीन और पुरातन में 

जंग छिड़ गयी है 

तोड़ना चाहती हूँ बेड़ियाँ 


पिघलते हिमखंड 

 शुचित झरना 

कल कल बहती नदिया 

पिंजरे से मुक्त 

उन्मुक्त पंछी 

नव विस्तार 

आह्वान कर रहा 


बदलते युग में 

तुम्हीं सार्थक राह 

दिखाओं ना 

ओ, मेरे सारथी!

तुम्हारे पथ-प्रदर्शन की 

मैं प्रार्थी /


रजनी छाबड़ा 



2 comments:

  1. मनःस्थिति का बहुत भावुक चित्रण करती हो रजनी।मन में चल रहे द्वंद से उत्पन्न मनोस्थिति से स्वयं को जुड़ा पाते हैं । लगता है कि कहीं अनजाने में मेरे मन को तो नहीं पढ़ लिया। On behalf of Veena Badgujar, clipped from fb

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  2. Thanks a lot, dear friend for your deep and comprehensive comment

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