Thursday, September 10, 2009

प्रेहेरी

आँख भेर आयी
निगाह
गहरी
और गहरी हुई
एक सागर
प्यार का
उमड़ आया
अंतस के
अछोर क्षितिज

तभी जगा
मन मैं
यह भय
तिरोहित न
हो जाए
खुली आँख का
स्वपन
और बस
झुक गई पलकें

किस खजाने की
भला
यह प्रेहेरी हुई

पूर्णता की चाह मैं

या खुदा!
थोड़ा सा अधूरा रहने दे
मेरी ज़िन्दगी का प्याला
ताकि प्रयास जारी रहे
उसे पूरा भरने का

जब प्याला
भर जाता है लबालब
भय रहता है
उसके छलकने का
बिखरने का
जब प्याला
रहता है अधूरा
प्रयास रहता, उसमे
कुछ और कतरे
समेटने का

जो जूनून
पूर्णता
पाने के प्रयास मैं है
वो पूर्णता मैं कहाँ

लबालब प्याले मैं
और भेरने की
गुन्जायिश नही
रहती ज़िन्दगी से
और कोई
ख्वाहिश नहीं

पूर्णता बना देती
संतुष्ट और बेखबर
पूर्णता की
चाह करती
प्रयास को मुखेर

मुझे थोड़े से
अधूरेपन मैं ही जीने दे
घूँट घूँट ज़िन्दगी पीने दे
सतत प्रयासशील
ज़िन्दगी जीने दे



Tuesday, September 8, 2009

सांझ के अंधेरे मैं

सांझ
के झुटपुट
अंधेरे मैं
दुआ के लिए
उठा कर हाथ
क्या
मांगना
टूटते
हुए तारे से
जो अपना
ही
अस्तित्व
नहीं रख सकता
कायम
माँगना ही है तो मांगो
डूबते
हुए सूरज से
जो अस्त हो कर भी
नही होता पस्त
अस्त होता है वो,
एक नए सूर्योदय के लिए
अपनी स्वर्णिम किरणों से
रोशन करने को
सारा ज़हान

Saturday, September 5, 2009

ज्योति

है जिनके जीवन का
हर दिन रात जैसा
और हर रात
अमावस सी काली
क्या तुम उनकी बनोगे दीवाली
वो महसूस कर सकते हैं
मंद मंद चलती बयार
पर नही जानते
क्या होती है बहार
नही जानते वो
बहारों के रंग
कैसे करती तितलियाँ
अठखेलियाँ
फूलों के संग
क्या होते हैं इन्द्रधुनुष के रंग
अपनी
आंखों से दुनिया देखने की उमंग
बाद अपने क्या तुम दोगे
उन्हें हसीं सपने
देख सकेंगे वो
दुनिया तुम्हारी आंखों से
न रहेगी उनकी दुनिया काली
उजाला ही
उजाला
हेर दिन खुशहाली
हेर रात उनकी
दीवाली















Friday, September 4, 2009

तेरे बगैर

तेरे बगैर
ऐसे जिए
जा रही हूँ मैं
जैसे कोई
गुनाह
किए जा रही हूँ
मैं

Thursday, September 3, 2009

मेरी
ज़िन्दगी के आकाश पे
इन्द्रधनुष सा
उभरे तुम
नील गगन सा विस्तृत
तुम्हारा प्रेम
तन मन को पुलकित
हेरा भेरा कर देता
खरे सोने सा सच्चा
तुम्हारा प्रेम
जीवन मैं
आस विश्वास के
रंग देता
तुम्हारे
स्नेह की
पीली ,सुनहली
धुप मैं
नारंगी सपनों का
ताना बाना बुनते
संग तुम्हारे पाया
जीवन मैं
प्रेम की लालिमा
सा विस्तार

सपनो से
सजा
संवरा
अपना संसार
बाद
तुम्हारे
इन्द्रेध्नुष के और
रंग खो गए
बस, बैंजनी विषाद
की छाया
दूनी है
बिन तेरे ,मेरी ज़िन्दगी
सूनी सूनी
है