






















कोशिश
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लाख की कोशिशें , पर ना सुलझे पहेली
काश! सुनती सबकी, पर चलती अकेली
छूटते हुए रिश्ते, उलझते जज़्बात
समझ ना पा रही ये हालात
उनकी खुशी नाखुश कर जाए, मालूम ना था
होते अकेले अच्छा होता, मनाने का बोझ तो ना था
कल की चिंता काल बन गई
आज की जीत होते हुए भी, हार बन गई
कल मरने का डर कैसा, जब आज जीने की शुरुआत नहीं
ये सोच सोच , बातें परेशान कर गईं
लाख की कोशिशें , पर ना सुलझे पहेली
1. सुरंग
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पहाड़ का सीना चीर के
बनायी जाती है सुरंग
अंधेरों की राह
पार कर के
जीवन में मिलते
उमंग और तरंग /
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सदियों से
अडिग खड़े हैं
राह किनारे
मौन तपस्वी से
सहते सहजता से
आँधी , तूफ़ान के थपेड़े
झुलसाती धूप
सिहराती, ठिठुराती सर्दी
पतझड़ और बहारें
हर हाल में तटस्थ
नहीं शिक़वा किसी से
कोई संग चलने के लिए
पुकारे या न पुकारे
भटकते राहगीरों को
दिशा दिखाते
हम मील के पत्थर
हम रहनुमा तुम्हारे/
मेरी यह कवितायेँ मौलिक व् अप्रकाशित हैं/
रजनी छाबड़ा
रजनी छाबड़ा ( 3 जुलाई, 1955)
सेवानिवृत व्याख्याता, बहुभाषीय कवयित्री अर अनुवादिका, ब्लॉगर, समीक्षक, Ruminations, Glimpses (UGC Journals) री संपादकीय टीम सदस्य, वर्ल्ड यूनियन ऑफ़ पोएट्स री इंटरनेशनल डायरेक्टर 20, ग्लोबल एम्बेसडर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड पीस (I.H.R.A.C), स्टार एम्बेसडर ऑफ़ वर्ल्ड पोइट्री, सी इ. ओव् सस्थापक www.numeropath.com. प्रकाशित पोथ्यां : हिंदी में- होने से न होने तक, पिघलते हिमखंड, सतरंगी खुशी, आस की कूंची से, अंग्रेजी में- Mortgaged, Maiden Step (कविता संग्रै), अंकशास्त्र और नामांक -शास्त्र पेटै 11 पोथ्यां अर अनूदित पोथ्यां: 6 काव्य संग्रै हिंदी, एक पंजाबी अर 9 राजस्थानी सूं अंग्रेजी मांय छप्योड़ा।
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रेत दिनूगै सूं
रात रै छेकड़लै पोर तांई
रंगत बदळै।
सूरज रै सागै रवै
सोनै बरणी संगत पावै
आखै दिन
तपै-बळै
चाँद रै सागै रमै
सगळी रात
ठंडक पावै
ठंडक बरसावै
झरणा बगै जद डूंगरां सूं
उजळी रंगत
ठंडै, मीठै पाणी सूं
सगळां री तिरस मिटावै
पूगै जद मैदानां मांय
नदी रै सरूप मांय
बो ही पाणी गूगळो हुय जावै
झरणै रो पाणी खुद री
मिठास गंवाय
सोन-चिड़कली उड़ै जद
खुलै आभै मांय
आजादी रो गावै गीत
जद होय जावै बंद
पिंजरै मांय
भूल जावै- सगळा गीत
रजनी छाबड़ा
बो ही है सूरज
रोशनी रूप बदले है नित
बे ही नदियां , बे ही झरने
पाणी रे बगणों रा ढब -ठौर l
बदले है नित
बो ही है, म्हारी जिंदगी
रोज़ाना
पण रोको न थारी चाल
कोसिस करो
नित, नुवी राह खोजै ताणी
अण नुवी मंज़िल ताईं
रजनी छाबड़ा
बहुभाषीय कवयित्री अर अनुवादिका
वही है सूर्य
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सूर्य का स्वरूप वही है
प्रकाश बदलता रहता है नित
वही हैं नदियाँ, वही झरने
पानी के वेग का अंदाज़
बदलता रहता है नित
वही है हमारी ज़िंदगी
दिन-प्रतिदिन
पर कदम थामो नहीं
प्रयत्नशील रहो
नित नयी राह
तलाशने के लिए
और नए आयाम
खँगालने के लिए /
रजनी छाबड़ा