Thursday, May 15, 2025

परिवार का परिचय

 परिवार का परिचय 

1 .दादा जी :   स्व. श्री चंद्र भान सरदाना 

 जन्म 1 /1 1901     स्वर्गवास 1971 

सेवानिवृत एकाउंट्स ऑफिसर , रेलवे 

सेवानिवृति के उपरान्त, लायंस क्लब ,जालंधर में होमियोपैथ के रूप में निशुल्क स्वयं दी/

उनके छोटे भाई मुल्तान में सन 1931 में प्रथम भारतीय सिविल इंजीनियर थे/

2 . दादी जी : स्व, श्रीमती ईश्वर देवी सरदाना 

जन्म वर्ष 1903        स्वर्गवास 1984 

उनके पिताश्री मुल्तान में डिस्ट्रिक्ट इंस्पेक्टर ऑफ़ स्कूल्स थे और उन्होंने बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देते हुए,  मुल्तान में प्रथम प्राइमरी बालिका विद्यालय खुलवाया था / दादी जी प्राइमरी पास थी/ उन्हें होमियोपैथी का  भी ज्ञान था और उनकी प्रेरणा से बाद में दादाजी ने होमेओपेथी का अध्ययन किया /

3 .  नाना जी :  स्व. श्री  लाल चंद मेहतानी 

जन्म वर्ष 1906          स्वर्गवास 1962 

स्टेशन मास्टर के रूप में कार्यरत थे /


4 .  नानी जी :  स्व. श्रीमती लक्ष्मी मेहतानी 

जन्म वर्ष 1910             स्वर्गवास 1984 


5.  डैडी जी :  स्व. श्री विशन देव सरदाना 

जन्म  तिथि 23 /12 /1924     स्वर्गवास   15/2/1985 

सेवानिवृत सीनियर बैरक स्टोर्स अफसर , मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसिज़   


6.  मम्मी जी :   स्व. श्रीमती शकुन्तला देवी सरदाना 

जन्म  तिथि  23/9/1931         स्वर्गवास    22 /3/1993 

Sunday, May 11, 2025

माँ

 माँ

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मातृत्व का अर्थ
जीवन का विस्तार
स्नेह, प्यार, आधार
विश्वास अपरम्पार
त्याग, सामंजस्य का भण्डार
सृजन से, विलीन होने तक
इस ममत्व का कभी न होता अंत
माँ जाने के बाद भी
आजीवन बसर करती
 यादों में अनंत

रजनी छाबड़ा 

Saturday, May 10, 2025

सहमी सहमी

 


सहमी सहमी 

****************

 मौत जब बहुत करीब से आकर गुज़र जाती है 

दहशत का लहराता हुआ साया-सा छोड़ जाती है 

सहमी-सहमी से रहती हैं दिल की धड़कनें 

दिल की बस्ती को बियाबान-सा छोड़ जाती है /


Sunday, April 20, 2025

लस्टस : उपसंहार

 

प्रकाशनाधीन 

शीघ्र ही उपलब्ध होगा/


लस्टस 

उपसंहार 

हमारा ब्रह्माण्ड तो एक विभाजित घर है,

बुराई की उपस्थिति से अच्छाई पूर्णतः संतुलित है/

दानव नमक की तरह हैं जो कि 

 सभी स्वर्गदूतों के, सभी शक्कर युक्त खाद्य पदार्थों को 

ख़लाओं  के लिए  सुपाच्य बनाते हैं/



अतीत में कौन से युग ,

सतयुग, त्रेता, द्वापर बुराइयों से मुक्त थे ?

कलयुग में जो एक मात्र भिन्नता हम देखते हैं, वह यह है  

कि बुराई का मानवीकरण किसी एक व्यक्ति के रूप में नहीं किया गया 

जैसे कि पहले रावण या कंस अथवा दुर्योधन के रूप में किया गया था /


कलयुग एक् टाइम कैप्सूल  है, जिस में 

ज्ञान ने अपनी बुरी शक्तियां दिखाई हैं 

लोग ईश्वर के प्रति आस्था-हीन हो जाते हैं/

हठधर्मी हो जाते हैं 

और अपने वैकल्पिक देवता बना लेते हैं/


लस्टस सेटन का एक काल्पनिक पुनः  रूप है/    

अधिक ख़ौफ़नाक  क्योंकि वह प्रयत्न करता है 

पौधों,  पक्षियों और जानवरों के साम्राज्य में   
उच्च -स्तरीय आत्म ज्ञान देने की/


 देवताओं और बुराईयों के संगठनों में 

युद्ध छिड़ जाता है 

युद्ध के वीभत्स हादसे बाध्य करते हैं दोनों पक्षों को 

एक युद्ध -संधि विराम के लिए ताकि 

अंतिम आक्रमण से पूर्व थोड़ा समय जुटाया जा सके/


लस्टस अभी भी अपने ओहदे पर क़ायम है/

अग्नि  के सबसे महत्वपूर्व प्रारूप सम 

यहाँ-वहाँ यदि कुछ उलट-फेर करने पड़ें  

इसे केवल कुछ क्षति ही आंका  जाएगा, व्यवसाय के साम्राज्य में /


अब समय आ गया है कि देवता पुनर्विचार करें 

किस तरह से वे पुनः प्राप्त  सकते हैं 

मानव हृदय पर अपनी खोयी हुई पकड़ /

उन्हें दूसरों को अधिक भावनात्मक समर्थन देना होगा  

और कम  लापरवाह और कम निर्दयी बनना पड़ेगा/


क्या वे सूचना मिलते ही तुरंत ध्यान देंगे 

यदि कहीं कोई मानवीय क्षति हुई हो/

दानवों जैसे, जो हमेशा मनुष्यों के आदेश मानते हैं 

और उनके लिए  तत्परता से कार्यशील रहते हैं?


दानव उनके मन की बात समझते हैं 

उनके  लिए मल्हम जुटाते हैं/

और उन्हें ऐसे स्थानों में जाने के लिए लालायित करते हैं 

जहाँ पर अंत में उनकी शांति नष्ट हो जाती है/


सृजना और कुशलक्षेम के देवताओ 

लस्टस और उसके  दानवों ने 

मानवता का संतुलन बिगाड़ दिया है /

लोग विक्षिप्त हो गए हैं/

पुनर्विचार कीजिये उन्हें इस उत्तेजना के संसार  से 

वास्तविकता और स्थिरबुद्धिता के  संसार में 

कैसे वापिस लाया जाये /

मूल लेखन (अंग्रेज़ी ): डॉ जरनैल सिंह आनंद 

हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा 

Thursday, April 17, 2025

 *लस्टस: मानवीय संवेदनाओं और नैतिकता का संवाद*

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'लस्टस' अंग्रेजी में डॉ.जे. एस. आनंद द्वारा रचित बहुचर्चित महाकाव्य है, जिसका हिंदी रूपांतरण रजनी छाबड़ा ने किया है। कवि और अनुवादक दोनों के प्रति मेरा बहुत सम्मान रहा है। ये अपने अपने क्षेत्र के दो बड़े नाम हैं, जिनकी कीर्ति भाषाओं और भौगोलिक सीमाओं से बहुत आगे पहुंच चुकी है। अनेक क्षेत्रों में कार्य करते हुए स्वयं को निरंतर गतिशील रखना ही बहुत बड़ी बात है। एक उम्र के बाद जब संसार ही अपनी महत्ता क्षीण करने लगता है, उस दौर में भी कुछ नया करने रचने का

Wednesday, April 16, 2025