राम या रहमान
वह बोझिल मन लिए
उदास उदास
निहार रहा अपनी कुदरत
खड़ा क्षितिज के पास
मिल कर भी
नहीं मिलते जहाँ
दो जहान
अपनी अपनी आस्था की धरा पे
कायम हैं उसके बनाये इंसान
हो गए हैं जिनके मन प्रेम विहीन
बिसरा दिए हैं जिन्होंने दुनिया और दीन
इस रक्त रंजित धरा पर बिखरे
खून के निशान
वही नहीं बता सकता
उन् में कौन है राम
और कौन रहमान
बिसूरती मानवता के यह अवशेष
लुटती अस्मत, मलिन चेहरे, बिखरे केश
सुर्ख उनीदीं आँखें
जिन्हें सोने नहीं देता यह खौफ
जाने कौन घड़ी जला दिया जाये
उनका आशियाना
जब सारा समाज ही
हो रहा वहिशयाना
जहां सजता था
खुशियों का आशियाना
वहां बसर कर रहे
ख़ामोशी और वीराना
कुदरत बनाने वाला
शर्मिंदा है खुद
देख कर अपने
बन्दों के कर्म
और चाहता है सिर्फ
इंसानियत का धर्म
प्रेम,संवेदना और सहिष्न्नुता का मर्म
वरना न तो कुदरत रहेगी
न इंसान, न धर्म.
@ रजनी छाबड़ा
वह बोझिल मन लिए
उदास उदास
निहार रहा अपनी कुदरत
खड़ा क्षितिज के पास
मिल कर भी
नहीं मिलते जहाँ
दो जहान
अपनी अपनी आस्था की धरा पे
कायम हैं उसके बनाये इंसान
हो गए हैं जिनके मन प्रेम विहीन
बिसरा दिए हैं जिन्होंने दुनिया और दीन
इस रक्त रंजित धरा पर बिखरे
खून के निशान
वही नहीं बता सकता
उन् में कौन है राम
और कौन रहमान
बिसूरती मानवता के यह अवशेष
लुटती अस्मत, मलिन चेहरे, बिखरे केश
सुर्ख उनीदीं आँखें
जिन्हें सोने नहीं देता यह खौफ
जाने कौन घड़ी जला दिया जाये
उनका आशियाना
जब सारा समाज ही
हो रहा वहिशयाना
जहां सजता था
खुशियों का आशियाना
वहां बसर कर रहे
ख़ामोशी और वीराना
कुदरत बनाने वाला
शर्मिंदा है खुद
देख कर अपने
बन्दों के कर्म
और चाहता है सिर्फ
इंसानियत का धर्म
प्रेम,संवेदना और सहिष्न्नुता का मर्म
वरना न तो कुदरत रहेगी
न इंसान, न धर्म.
@ रजनी छाबड़ा