नाम : |
परिचय
रजनी छाबड़ा |
जन्म : | 3 जुलाई १९५५, देहली |
शिक्षा : |
एम.ए. (इंग्लिश) बी. एड.
|
व्यवसाय : | स्वैछिक सेवानिवृत लेक्चरर इंग्लिश, |
प्रकाशन : | हिंदी, इंग्लिश व् पंजाबी में कविता लेखन व उर्दू, राजस्थानीं, पंजाबी से हिंदी व इंग्लिश में अनुवाद कार्य, रचनाएं व इंटरव्यू प्रतिष्ठित समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका दैनिक भास्कर, राजस्थान डायरी,अमर उजाला, अनुवाद परिषद्, देहली, इंडियन लिटरेचर, साहित्य अकेडमी द्वारा प्रकाशित, प्रति वर्ष राजस्थान शिक्षा विभाग से प्रकाशित काव्य संग्रह व नया शिक्षक में कविता व लेख प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय काव्य संग्रह Wandering Cloud व Rustling Breezee, Poem poemhunter's.com व् साहित्य कुञ्ज में काव्य प्रकाशन, 1988 मैं राजस्थान से इंग्लिश ग्रामर ब्राइट इंग्लिश न्यू कोर्स प्रकाशित |
प्रसारण : | 1991 से 2011 तक आल इंडिया रेडियो ,बीकानेर से महिला जगत मैं निरन्तर काव्य पाठ प्रसारण |
अन्य : | स्थानीय,राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में भागीदारी |
संप्रति : | अंकशास्त्री @www .numeropath गत 33 वर्षों से अंकशास्त्र के क्षेत्र मैं कार्यरत,न्यूमरोलॉजी पर लेख विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं मैं प्रकाशित |
ब्लॉग्स : | www,expressionrajnichhabra. www.imprintsrajnichhabra. www.numerospiceformasses. |
यूट्यूब : | you tube chaanel therajni 56 |
Saturday, April 15, 2023
Thursday, April 13, 2023
प्रशंसनीय काव्य संग्रह बात सिर्फ इतनी सी :शकुन्तला शर्मा
प्रशंसनीय काव्य संग्रह
बात सिर्फ इतनी सी
सुप्रसिद्ध बहु-भाषीय कवयित्री, अंकशास्त्र की गहरी ज्ञाता एवं श्रेष्ठ अनुवादिका रजनी छाबड़ा के इस काव्य संग्रह में भाव एवं कला का अद्भुत संगम है। जहां भाषा का शिल्प आकर्षित करता है वहीं कविताओं में दार्शनिकता जीवन के विभिन्न पहलुओं को ऊर्जा से सींचती सी , प्रेरणा देती नजर आती है। रचनाओं में प्रकृति बोध, रिश्ते नाते, दुनियादारी, जीवन की विषमताओं व विडंबनाओं को बहुत गहराई से रेखांकित करती है। देखे, सुने और सहे हुए दर्द को शब्दों में ढालती चलती है / कवयित्री की जीवन शैली को देखने की अद्भुत व पैनी दृष्टि है। जमीन से जुड़े भाव व प्रतीक कविताओं को ऊंचाईयां प्रदान करते हैं। शब्द संयोजन व् शिल्प सौष्ठ प्रभावित करते हैं।अधूरी आरजू, ,खामोशी, दीवार, सिलसिला आदि कविताओं में कवयित्री का दृष्टि विस्तार काबिले तारीफ है।निश्चय ही साहित्य जगत में यह कृति अपना विशेष स्थान रखेगी। सकारात्मक दृष्टि कोण से पूर्ण इस काव्य संग्रह के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाईयाँ । कवयित्री की लेखनी अनवरत चलती रहे।
इसी मंगल कामना के साथ
शकुन्तला शर्मा सहायक निदेशक (सेवा निवृत्त)
हिन्दी साहित्यकार चिंतक और कवयित्री।
दामन गुलाब का
सुरंग
यह कविता मंत्र कविता कही जा सकती है। मंत्र सिद्धि से कामना सिद्धि होती है। कवयित्री ने प्रतिष्ठित शाश्वत प्रतीकों के माध्यम से जीवन के सत्य को शब्दों में बुना है। पहाङ को चीर कर जैसे सुरंग रास्ता देती है बनाती है ठीक उसी तरह जीवन के समीकरण कहते हैं। कठिनाइयों को पार करने के बाद ही जीवन सरल हो पाता है सुरंग रास्ता तो देती है पर सुरंग बनाने की मेहनत पर कवयित्री की पैनी पकङ है। कवयित्री प्रतीकों के माध्यम से जीवन के गूढ़ अर्थ सामने लाने के लिए सिद्ध हस्त है। सहजता बङी कठिन होती है। यही सहजता रजनी छाबङा की कविताओं की मूल विशेषता कही जा सकती है। जैतो नीचो ह्वै चले तेतो ऊंचो होय।। जमीन से जुड़े भाव व प्रतीक कविताओं को ऊंचाईयां प्रदान करते हैं। शब्द संयोजन, शिल्प सौष्ठव कविता को मंत्र की तरह प्रभावित करते हैं। सुन्दर सहज लेखनी को हार्दिक नमन।
दर्द
कविता में कवयित्री ने यह कहने की कोशिश की है कि जिन्दगी भर दर्द की कशमकश चलती रहती है। शायद यह शाश्वत सत्य है कि दर्द में जीना मुस्कुराना सोना उठना मनुष्य की नियति बन गया है। कवयित्री का बहुत बड़ा हौसला है कि दर्द कितना भी मिले मैं दर्द को शब्दों में बहा दूंगी। यही मनुष्य के लिए सात्विक प्रेरणा है। दर्द तो हमेशा का नया और पुराना साथी है उसे नकारा नहीं स्वीकारा जाना चाहिए। कवयित्री के प्रत्येक शब्द में मनुष्य के जीवन में व्याप्त दर्द को झकझोरने की ताकत समाई है। यही कविता का बीज मंत्र है सीखने की प्रेरणा देता है। हल्की सी चुटकी के साथ। स्मरणीय है यह कविता। लेखनी को नमन।
अधूरी आरजू
बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति की है कवयित्री ने। पूरी कविता में ऎसा महसूस होता है मानो कोई धीरे से कानों में सरका रहा है कि सुबह उठो तब करलेना। अधूरेपन से दुखी नहीं बल्कि प्रयास करते रहने से सपनें भी हकीकत में बदले जा सकते हैं। प्यार की थपकी देकर कर्म में प्रवृत्त करने वाले शब्द काबिलेतारीफ है। सर्व श्रेष्ठ भावानुभूति वाली यह कविता सबसे ज्यादा प्रेरक है। कवयित्री को बहुत बहुत साधुवाद। ऐसी कविताएँ साहित्य में नगीना कही जा सकती है। सहजता में संपुष्टता है।
बहती नदिया
भावनाओं के ज्वार के साथ आकाश तक का विस्तार दिया है बहती नदिया नें। नारी के समानांतर नदिया भी है। सरस और प्रवाहमान। नदी अनवरत बहती बहती समुद्र में विलीन हो जाती है नहीं है मलाल उसे कुछ खोने का। वह समर्पण की पराकाष्ठा तक अपने अस्तित्व की चिंता नहीं करती। ठीक इसी तरह नारी भी पूरा जीवन समर्पण में बिताती है। वह पूरे जीवन अपने अस्तित्व की चिंता ना करके पर सुख में अपने आपको विलीन कर देती है। त्याग और गुणों की खान नारी अपना जीवन पिता पति और बच्चों पर वार देती है। कविता में चाक्षुस बिम्ब नदी और नारी को सामने लाने में सफल हुआ है। कविता संक्षिप्त होते हुए भी नारी की अपरिमित शक्तियों को अभिव्यक्त करने की आशातीत संभावना दे देती है। दिल में उतर जाती है। नदी और नारी का रूपक शास्त्रीय और प्रचलित है जोकि सरल और सुग्राह्य है। इस कविता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं व कृतज्ञता।
तिनका तिनका नेह
कवयित्री की जीवन शैली को देखने की अद्भुत व पैनी दृष्टि है। चिङिया के द्वारा उसके बच्चों का पालन और फिर कालांतर में बच्चों द्वारा चिङिया का पालन पोषण भोजन,,,,, ।प्रकृति के कवयित्री का अवलोकन अध्ययन के साथ मानवीय धर्म की सापेक्षता। प्रकृति कभी प्रतिकूल नहीं चला करती।
बहुत सहज सरल अभिव्यक्ति के साथ दाय और प्रदाय का दायित्व बोध समता और समयबद्धता को साधारण रूपक में नत्थी कर दिया है। मानव को प्रेरित किया है। आज बहुत बङी समस्या उभर कर सामने आ रही है बच्चे अपना दायित्व भूल रहे हैं वे माता-पिता का सानिध्य ही नहीं चाहते। बहुत सुन्दर शब्दों में संदेश है कि बङे होने पर चिङिया के बच्चे अपनीं मां के लिए चौंच में दाना लाकर देते हैं। वा ह वाह प्रकृति कितना सिखाती है मानव को। किसी तरह वह प्रकृति के प्रति कृतज्ञ बने। उसने जीवन दिया है सहज किया है प्रकृति के सभी उपादान मनुष्य को प्रेरित करते हैं। वह सीखे देखे और जीवन सरल बनाये। कविता गूढ भावों से गुम्फित है। भाषा संवेदनशील और शिल्प सुगठित है। सुन्दर प्रेरक प्रसंग के लिए कवयित्री की कलम को सौ-सौ नमन।
शकुन्तला शर्मा सहायक निदेशक (सेवा निवृत्त)
हिन्दी साहित्यकार चिंतक और कवयित्री।
प्रशंसनीय काव्य संग्रह बात सिर्फ इतनी सी: शुभकामनाएं और बधाईयाँ: शकुन्तला शर्मा
प्रशंसनीय काव्य संग्रह
बात सिर्फ इतनी सी
सुप्रसिद्ध बहु-भाषीय कवयित्री, अंकशास्त्र की गहरी ज्ञाता एवं श्रेष्ठ अनुवादिका रजनी छाबड़ा के इस काव्य संग्रह में भाव एवं कला का अद्भुत संगम है। जहां भाषा का शिल्प आकर्षित करता है वहीं कविताओं में दार्शनिकता जीवन के विभिन्न पहलुओं को ऊर्जा से सींचती सी , प्रेरणा देती नजर आती है। रचनाओं में प्रकृति बोध, रिश्ते नाते, दुनियादारी, जीवन की विषमताओं व विडंबनाओं को बहुत गहराई से रेखांकित करती है। देखे, सुने और सहे हुए दर्द को शब्दों में ढालती चलती है / कवयित्री की जीवन शैली को देखने की अद्भुत व पैनी दृष्टि है। जमीन से जुड़े भाव व प्रतीक कविताओं को ऊंचाईयां प्रदान करते हैं। शब्द संयोजन व् शिल्प सौष्ठ प्रभावित करते हैं।अधूरी आरजू, खामोशी, दीवार, सिलसिला आदि कविताओं में कवयित्री का दृष्टि विस्तार काबिले तारीफ है।निश्चय ही साहित्य जगत में यह कृति अपना विशेष स्थान रखेगी। सकारात्मक दृष्टि कोण से पूर्ण इस काव्य संग्रह के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाईयाँ । कवयित्री की लेखनी अनवरत चलती रहे।
इसी मंगल कामना के साथ
शकुन्तला शर्मा सहायक निदेशक (सेवा निवृत्त)
हिन्दी साहित्यकार चिंतक और कवयित्री
Wednesday, April 12, 2023
Forgiveness: Jud Bowness क्षमा करना: हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा
क्षमा करना
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सबसे कठिन कार्य है
क्षमा करना सीखना
तटस्थ रहते हुए
तनिक सोचो
और जानो
उसने क्षमा किया
उस दुनिया को
नहीं करती थी
जो उसकी परवाह
अगर , वह
मुझे क्षमा कर सकता हैं
तो मैं क्यों नहीं
और इस ज्ञान को
क्यों न करूँ सांझा
बाकी दुनिया के साथ
***********
Tuesday, April 11, 2023
मूल अंग्रेज़ी कविता : जुड बोवनेस् (अमेरिका ) हिंदी अनुवाद : रजनी छाबड़ा ( भारत)
Friends, I feel immensely happy to share with readers on global level, my Hindi Translation of English Poem, 'Who Am I?' composed by famous poet Jud Bowness from Boston, on his insistence. Hope, you all will enjoy original as well as trans-verted poem.
मित्रों, मुझे खुशी हो रही है, आप सब के साथ एक अनुदित रचना सांझा करते हुए / अंग्रेजी में इस कविता के मूल रचनाकार हैं, अमेरिका के प्रसिद्ध कवि जुड बोवनेस्/ उनके अनुरोध पर हिंदी में अनुवाद किया है/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/
रजनी छाबड़ा
WHO AM I?
************
I crashed here a long ago
कौन हूँ मैं ?
********
मैं यहाँ
अनगिनत वर्षों पहले
आ कर धमाके से गिरी
इस से पहले कि
यह तुम जान पाते
ग्रह की उत्पति
अभी हुई ही थी
कोई चाँद न था
गगन में
और सूर्य रक्तिम आभा लिप्त
लगातार तूफान का सिलसिला
धरती पर विशाल जीवों का विचरण
समझने लायक, कुछ विशेष नहीं था
एक दिन, अनायास
एक धूमकेतु आया
धरा से टकराया
पहले जैसा , कुछ न रह पाया
ग्रह की धुरी में बदलाव आया
विशालकाय प्राणी , गिरे धरती पर
चहुँ ओर मौत का साया
छोटे प्राणियों का क़द हुआ लम्बा
सूर्य के रंग में , पीलापन आया
वर्षा ने अपना जलवा दिखाया
मैं गवाह हूँ उस सारे समय की
बाग़ उग गए नए सिरे से
समुद्र में आया उफ़ान
परिदों ने ली उड़ान
मैं तो यहीं थी सारा समय
देखती रही पुनर्व्यवस्थित
होने की प्रक्रिया
कौन हूँ मैं ?
क्या नहीं जानते तुम?
मैं धरती माँ हूँ
अपनी संतान को विकसित होने का
अवसर देती हुई/
मूल अंग्रेज़ी कविता : जुड बोवनेस् (अमेरिका )
हिंदी अनुवाद ; रजनी छाबड़ा ( भारत)
Saturday, March 18, 2023
बात सिर्फ इतनी सी CONTENT LIST
1. हम रहनुमा तुम्हारे
2. रेत के समन्दर से
3. तपती रेत
4.रिश्तों की उम्र
5. क्या शिक़वा करें गैरों से
6. पुल
7. भटके राही
8. अपनी माटी
9. कहीं भी
10. मैं मनमौजी
11 . वही है सूर्य
12. सांझ के अँधेरे में
13. जड़ों से नाता
14 . बोतलबंद पानी
15 . दीवार
45 . विश्वास के धागे
46 . जीने की वजह
47 . पूर्णता की चाह
Wednesday, March 15, 2023
‘बात सिर्फ इतनी सी’ : भावों और अभावों के संवेदनात्मक शब्द-चित्र : डॉ. नीरज दइया
भावों और अभावों के संवेदनात्मक शब्द-चित्र
डॉ. नीरज दइया
श्रीमती रजनी छाबड़ा कविता, अनुवाद और अंक-ज्योतिष के क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम है। यह मेरे लिए बेहद सुखद है कि उनके इस नए कविता संग्रह ‘बात सिर्फ इतनी सी’ के माध्यम से मैं आपसे मुखातिब हूं। उनके इस कविता संग्रह पर बात करने से पहले अच्छा होगा कि मैं यहां यह खुलासा करूं कि एक ही शहर बीकानेर में हम लंबे अरसे तक रहे, यहां उनका अंग्रेजी शिक्षिका के रूप में लंबा कार्यकाल रहा किंतु उनकी रचनात्मकता से परिचित होते हुए भी मेरी व्यक्तिशःमुलाकात नहीं हो सकी। पहली मुलाकात हुई बेंगलुरु में 14 नवंबर, 2014 को, जब मैं वहां साहित्य अकादेमी पुरस्कार अर्पण समारोह में भाग लेने गया। इसके बाद तो जैसे बातों और मुलाकातों का अविराम सिलसिला आरंभ हो गया।
रजनी छाबड़ा जी ने मेरी राजस्थानी कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद किए किंतु 12 फरवरी, 2018 का दिन उन्होंने मेरे लिए अविस्मरणीय बना दिया। वह दिन मेरे लिए खास था कि मुझे साहित्य अकादेमी द्वारा मुख्य पुरस्कार मिला किंतु उनका सरप्राइज मेरे राजस्थानी कविता संग्रह का अंग्रेजी अनुवाद पुस्तक के रूप में मेरे हाथों में सौंपना बेहद सुखद अनुभूति देने वाला रहा। यह तो जानकारी मुझे थी कि वे मेरी कविताओं का अनुवाद कर रही हैं किंतु उन्होंने या डॉ. संजीव कुमार जी ने कुछ पहले बताया नहीं था।
एक साथी रचनाकार-अनुवाद के रूप में समय के साथ हमारे संबंधों का सफर प्रगाढ़ होता चला गया और यह उनका अहेतुक स्नेह है कि मैं यहां उपस्थित हूं। ‘बात सिर्फ इतनी सी’ है पर आप और हम जानते हैं कि हर बात के पीछे उसका एक विस्तार समाहित होता है। हाल ही में प्रकाशित राजस्थानी कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद के दो संचयन मुझे बहुत महत्त्वपूर्ण लगते हैं, इन दोनों संकलनों के कवियों और कविताओं के चयन से लेकर अनुवाद तक सभी काम रजनी छाबड़ा ने किया है। आज हमारी क्षेत्रीय भाषाओं से अंग्रेजी-हिंदी भाषाओं द्वारा उनको व्यापक फलक देने वाले ऐसे अनेक कार्यों की महती आवश्यकता है।
‘बात सिर्फ इतनी सी’ है पर आप और हम जानते हैं कि हर बात के पीछे उसका एक विस्तार समाहित होता है। रजनी छाबड़ा की कविता-यात्रा की बात करें तो इससे पहले उनके तीन कविता संग्रह- ‘होने से न होने तक’ (2016), पिघलते हिमखंड (2016) और ‘आस की कूँची से’ (2021) प्रकाशित हुए हैं। अनुवाद और अंक-शास्त्र की सभी किताबों का मैं साक्षी रहा हूं कि वे बहुत जिम्मेदारी और जबाबदारी के साथ कार्य करती हैं। उनके पहले कविता संग्रह ‘होने से न होने तक’ के विषय में लिखते हुए मैंने उस आलेख का शीर्षक ‘स्वजन की अनुपस्थिति का कविता में गान’ रखते हुए लिखा था- ‘संग्रह की कविताओं की मूल संवेदना में स्मृति का ऐसा वितान कि फिर फिर उस में नए नए रूपों में खुद को देखना-परखना महत्त्वपूर्ण है। जैसे इस गीत का आरंभ उसके होने से था, किंतु उसका न होना भी अब होने जैसे सघन अहसास में कवयित्री के मनोलोक में सदा उपस्थित है।’
मैंने रजनी छाबड़ा के भीतर शब्दों और अंकों को लेकर एक जिद और जुनून देखा है। वे कविता रचती हो या भाषांतरण में शब्दों को एक भाषा से दूसरी भाषा में ले रहा रही हो अथवा अंकों के गणितय रहस्यों में उलझ रही हो, एक समय में एक काम और उसे पूरी तन्मयता के साथ करती हैं। मैं यहां केवल उनके गुण गान नहीं कर रहा आपसे कुछ सच्चाइयां साझा कर रहा हूं। उनकी कविताओं में मुझे भावों और अभावों के संवेदनात्मक शब्द-चित्र नजर आते रहे हैं और इस संग्रह ‘बात सिर्फ इतनी सी’ में भी यह क्रम जारी है। सकारात्मक सोच और आशावादी दृष्टिकोण के साथ वे अपने स्त्री-मन को खोलते हुए किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रखती हैं। जो है जैसा है उसे शब्दों के माध्यम से चित्रात्मक ढंग से प्रस्तुत करने का उनका हुनर प्रभावित करता है। बेशक ‘बात सिर्फ इतनी सी’ है किंतु उसे उल्लेखनीय बना कर रजनी छाबड़ा जैसे अपने समय और समाज को कविताओं में रेखांकित करती रही हैं। ‘अपनी माटी’ कविता की पंक्तियां देखें- ‘कैसे भूल जाऊं/ अपने गांव को/ रिश्तों की/ सौंधी गलियों में/ वहां अपनेपन का/ मेह बरसता है।’ इस संग्रह की कविताओं में अपनेपन के मेह की अनुभूतियां पाठक महसूस कर सकेंगे और यही इन कविताओं की सार्थकता है कि यहां भाषा के आडंबर से दूर सरलता-सहजता से कवयित्री अपने अहसासों से प्रस्तुत करती हैं। ‘जुबान मैं भी रखती हूं/ मगर खामोश हूं/ क्या दूं/ दुनिया के सवालों का जवाब/ जिंदगी जब खुद/ एक सवाल बन कर रह गयी। (कविता- खामोश हूं) इस खामोशी में ही हमें सवालों के जवाब ढूंढ़ने हैं।
रजनी छाबड़ा अपनी कविता ‘रेत के समंदर से’ में जिंदगी और रेत को समानांतर रखते हुए लिखती हैं कि रेत के कण जो फिसल गए वे पल कभी मेरे थे ही नहीं और उनका विश्वास है कि जो हाथों में है वही अपना है उस पर भसोसा किया जाना चाहिए, बेशक वह एक इकलौता रेत का कण जैसा ही क्यों ना हो। कवयित्री रेत में तपकर सोना होने की प्रेरणा देती हैं तो संबंधों में स्वार्थ से ऊपर उठकर रिश्तों को सांसों में बसा कर बचाकर जीने की बात करती हैं। ‘भटके राही’ कविता में वे लिखती हैं- ‘जब कोई किसी का/ पर्थप्रदर्शक नहीं बनता/ न कोई पूछता है/ न कोई बताता है/ सब का जब/ खुद से ही नाता है।’ ऐसे स्वार्थों की नगरी में भटके राही को तकनीक के साथ स्वयं के संसाधनों पर भरोसा करना होता है।
इस अकारण नहीं है कि संग्रह की अनेक कविताओं में विभिन्न अहसासों की कुछ-कुछ कहानियां अंश-दर-अंश हमारे हिस्से लगती हैं क्योंकि पूर्णता का अभिप्राय जिंदगी में ठहर जाना या थम जाना है जो कवयित्री को मंजूर नहीं है। ‘पूर्णता की चाह’ कविता की इन पंक्तियों को देखें- ‘या खुदा!/ थोड़ा सा अधूरा रहने दे/ मेरी जिंदगी का प्याला/ ताकि प्रयास जारी रहे/ उसे पूरा भरने का...’ एक अन्य कविता ‘हम जिंदगी से क्या चाहते हैं’ कि आरंभिक पंक्ति देखें- ‘हम खुद नहीं जानते/ हम जिंदगी से क्या चाहते हैं/ कुछ कर गुजारने की चाहत मन में लिए/ अधूरी चाहतों में जिए जाते हैं।’ यह दुविधा और अनिश्चय ही हमारा जीवन है।
कवयित्री रजनी छाबड़ा का मानना है- ‘जो दूसरों के दर्द को/ निजता से जीता है/ भावनाओं और संवेदनाओं को/ शब्दों में पिरोता है/ वही कवि कहलाता है।’ मैं यहां यह लिखते हुए गर्वित हूं कि रजनी छाबड़ा के अपने इस कविता संग्रह तक आते आते सांसारिक विभेदों के सांचों से दूर एक मनुष्यता का रंग हमारे समक्ष प्रस्तुत करती हुई सच के धरातल को अंगीकार करती हैं। उन्हीं की पंक्तियों का सहारा लेकर अपनी बात कहूं तो- ‘नहीं जीना चाहती/ पतंग की जिंदगी/ लिए आकाश का विस्तार/ जुड़ कर सच के धरातल से/ अपनी जिंदगी का खुद/ बनना चाहती हूं आधार।’ यह स्वनिर्मित आधार ही इन कविताओं की पूंजी है और मैं स्वयं इस पूंजी में शामिल होने के सुख से अभिभूत हूं।
अंत में रजनी जी को बहुत-बहुत बधाई देते हुए यहां शुभकामनाएं व्यक्त करता हूं कि वे अपने कविता के प्याले में थोड़े-थोड़े शब्दों के इस सफर को सच के धरातल से अभिव्यक्त करती रहेंगी। हमें उनके आने वाले कविता संग्रहों में रिश्तों की सौंधी गलियों में अपनेपन के मेह के अहसास को तिनका-तिनका सहेज कर सुख मिलेगा।
सी-107, वल्लभ गार्डन, पवनपुरी,
बीकानेर (राज.) 334003