Thursday, January 23, 2025

पुल

 पुल 

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इंसान इंसान दे वेच 

हेक अजनबीपन जीया क्यूँ हे 

क्यूँ समेटे रखदे हाँ, असां अपणे आप कुं 

आपणे ही बणाएं क़िले वेच 

बणा घिन्दे हां ,आपणे आले दुवाले 

कछुवे जीहा हेक सुऱक्षा कवच 

ख़ौफ़ ते बेइतबारी नाल भरे 

सहमे सहमे , डरे डरे 

ज़रा जही अनजान आवाज़ सुणदे ही 

सिमट वेंदे हाँ ऊस कवच वेच 


हेक वार , सैर्फ  हेक वार 

कर वनजो पार,बेइतबारी दी दीवार 

गैरां दे सुःख दुःख साँझा कर 

ढहा सटो दूरीयां दी दीवार 


तुसां ओ  एंट बण के वेखौ 

जेहढ़ी दीवार वेच नहिय 

पुल वेच चिणी वैसी 

ज़िंदगी डा वल , तुहानकु 

आपो आप आ वैसी /


रजनी छाबड़ा 

घर

 घर 

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पियार ते अपणापां 

जदूं दीवारां दी 

छत बण वैंदा हे 


ओ मक़ान 

घर अखवांदा हे/


रजनी छाबड़ा  


फैशन


फैशन 

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जे जिसम दी नुमाईश ही 

फैशन हे 

असां  डाढे अभागे हां 


जानवर ऐस दौड़ वेच 

असां तुं अवल्ल निकल गए/


रजनी छाबड़ा 


नवीं पछाण

 

नवीं पछाण 

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अँधेरे कु 

आपणे आप  वेच समेटे 

जिवें दीवा बणांदा हे 

अपनी रोशन पछाण 



ईवेन ही  तुसा 

अथरू समेटे रखो 

अपणे वेच 

दुनिया कु डियो 

बस मुसकान  



आपणी अनाम ज़िंदगी कुं 

ईवेन डियो नवीं पछाण /


रजनी छाबड़ा 

आज़ाद

 आज़ाद 

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झरने वांकु कलकल 

पंछियां वांकु चहक 

आज़ाद उडारी 

चंदनी हवा 

सावणी फ़ुहार 

इहो टैडी 

हँसी दी पछाण 



मोतियाँ वाले घर दा 

दरवाज़ा खोल चा 

नक़ली  मुलकना  

छोड़ चा/


रजनी छाबड़ा 



आस दा पंछी

आस दा पंछी 

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मन 

हेक आस दा पंछी 

न क़ैद करो हिंकु 

क़ैद थीवण वास्ते 

किया इंसान दा ज़िस्म  

घट हे/


रजनी छाबड़ा 

Wednesday, January 22, 2025

निखरी निखरी






 निखरी निखरी 

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सर्द रातां दे बाद 

ओस वेच नहावण दे बाद 

जद अधखिली कली 

शबनमीं धुप वेच 

अपणा चेहरा सुखांदी हे 

क़ायनात निखरी निखरी 

नज़र आवन्दी हे /


रजनी छाबड़ा