Wednesday, October 12, 2022

ख़ामोशी

 ख़ामोशी 

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ख़ामोशी बोलती है 

तेरी आँखों की जुबान से 

अनकहे लफ़्ज़ों की 

कहानी बन जाती है 


हौले से स्पर्श कर 

पवन 

ख़िला जाती है 

अधखिली कली को 

वो छुअन 

ज़िंदगी की रवानी 

बन जाती है 


तेरी खुशबू ले के 

आती है बयार 

वो पल बन जाते हैं 

ज़िंदगी की यादगार/


रजनी छाबड़ा 

22/12/2004 

Thursday, October 6, 2022

अधूरी क़शिश

अधूरी क़शिश 

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हवा  के झोंके सा 
बंजारा मन 
संदली बयार 
सावनी फ़ुहार 
क़ुदरत पे निखार 
 भावनाओं केअंबार 

 पतंग सरीखा मन 
क्षितिज छूने की 
तड़पन  

और धरा की 
जुम्बिश 
रह गयी 
अधूरी क़शिश 


रजनी 
27/2/2009 

अनबन

 

अनबन 

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तपती धरती 

जल  से अनबन 

 कैसे बने 

जीवन मधुबन 


रजनी  छाबड़ा 

 25 /4 /2004 

कैसा गिला ?

 कैसा गिला ?

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सुर्ख,  उनीदीं आँखें 

पिछली रात की करवटें 

रतजगा 

न ख़त्म 

 होने वाला सिलसिला 


विरहन का यही 

 अमावसी नसीब 

 किस से शिकवा 

 कैसा गिला?


रजनी  छाबड़ा 

8 /5/2004 

सफर


सफर 

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आँखों से आंखों में 

समाहित होने का सफर 

कहीं कट जाता 

एक  पल में 

कभी अधूरा रहता 

युग युगान्तर 


रजनी छाबड़ा 

1 /5 /2004 

Tuesday, October 4, 2022

बहता मन


बहता मन



बहता मन , ठहरा तन 
जीवन अजब उलझन 

चाहता मन , उन्मुक्त धड़कन 
निभाता तन, संस्कारों की जकड़न 

बहता मन, ठहरा तन 
जीवन अजब उलझन 

रजनी छाबड़ा 
अप्रैल 2 , 2004 

बयार और बहार







बयार और बहार 
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सिर्फ़ बयार से ही आती है 
चमन में बहार 
ग़र सोचते हो ऐसा 
करते हो भूल 

वक़्त के थपेड़े 
खा कर भी 
केक्टस में 
खिलते हैं फ़ूल 

रजनी छाबड़ा 
मार्च 5, 2015