Wednesday, January 29, 2025

बोतलबंद पाणी

 बोतलबंद पाणी 

*************

साफ़- सुथरे, ठन्डे पाणी वाले 

भरे -पुरे थींदे दरिया 

ओ पाणी दी मिठास 

असां कदे भुल  नहीं सकदे 


मुसाफ़रां वास्ते 

पियाऊ लगाएं वेंदे 

होण नयि मिलदा 

पियार रचिया 'गुड़ धानी '

ते बेमोल पाणी 


बदले महौल 

आ गया हे 

बोतलबंद पाणी 

नवे दौर दी 

इहो कहाणी /


रजनी छाबड़ा 




साडी रुक्सती तुं बाद 

***************


 इवेन वी किया जीवणा कि 

ज़िंदा रेहवणा मज़बूरी लगे 


क्यूँ न कर वंजिये 

कुझ इहो जया कि 

साडी रुक्सती तुं बाद 

एह दुनिया साढे बिना 

अधूरी लगे /



रजनी छाबड़ा 

Tuesday, January 28, 2025

असां ख़ुद नहीं जाणदे

 

 असां ख़ुद नहीं जाणदे 

*****************

असां ख़ुद नहीं जाणदे 

असां ज़िंदगी तुं किया चाह्न्दे हां 

कुझ कर गुजरण दी चाहत मन वेच समेटे 

अधूरी चाहतां नाल जिये वेंदे  हां 



उभरदी हे जद मन वेच 

लक़ीर तुं हट के, कुझ कर गुजरन दी चाहत 

संस्कारां दी लोरी सुणा के 

ऊस चाहत कुं सुलाए वेंदे हां 


सुनेहरी धुप नाल भरिया असमान सामने हे 

मन दे बंद हनेरे कमरे वेच सिमटे वेंदे हां 


चाह्न्दे हाँ ज़िंदगी वेच समन्दर वरगा फ़ैलाव 

हक़ीक़त वेच खू दे ड्डू वरगा जिये वेंदे हां  


चाह्न्दे हां ज़िंदगी वेच दरिया वरगी रवानगी

होर हंजु अखां वेच ज़ज़्ब कीते वेंदे हां 


चाह्न्दे हां फ़तेह करणा ज़िंदगी दी दौड़  

होर बैसाखियाँ दे सहारे चले वेंदे हां 


कुझ कर गुजरण दी हसरत 

कुझ न कर सकण  दी क़सक 

अजीब क़शमक़श वेच 

ज़िन्दगी जिए वेंदे हां 


असां ख़ुद नहीं जाणदे 

असां ज़िंदगी तुं किया चाह्न्दे हां 


 असां ज़िंदगी तुं किया चाह्न्दे हाँ 

कुझ कर गुजरण दी चाहत मन वेच समेटे 

अधूरी चाहतां नाल जिये वेंदे  हां 



उभरदी हे जद मन वेच 

लक़ीर तुं हट के, कुझ कर गुजरन दी चाहत 

संस्कारां दी लोरी सुणा के 

ऊस चाहत कुं सुलाए वेंदे हां 


सुनेहरी धुप नाल भरिया असमान सामने हे 

मन दे बंद हनेरे कमरे वेच सिमटे वेंदे हां 


चाह्न्दे हाँ ज़िंदगी वेच समन्दर वरगा फ़ैलाव 

हक़ीक़त वेच खू दे ड्डू वरगा जिये वेंदे हां  


चाह्न्दे हां ज़िंदगी वेच दरिया वरगी रवानगी

होर हंजु अखां वेच ज़ज़्ब कीते वेंदे हां 


चाह्न्दे हां फ़तेह करणा ज़िंदगी दी दौड़  

होर बैसाखियाँ दे सहारे चले वेंदे हां 


 

जड़ां नाल रिश्ता



जड़ां नाल रिश्ता 

************

बस्ती वेच रेह के वी 

महसूस थींदा हे वीराणा 

मन वेच हुण तक हे 

पेन्ड दी यादां दा आशियाना 


सनसन वेहंदी 

ठंडी हवा 

बगीचियाँ वेच 

कोयल दी  कूक 

दरिया दा 

साफ़  सुथरा , ठंडा  पाणी 

वगदा गुनगुणादे 

याद कर के 

दिल अमुझदा 


चुल्हे दी 

मधरी अग ते 

रेझा दिती दाल 

अंगारेया ते सिकि 

फुली फुली रोटियां 

सवांजणा ते कचनार 

डोली दी रोटी 

बेमिसाल 

ईना दी ख़ुश्बू ही 

भड़का देंदी भुख 


शहरी ज़िंदगी दी 

उलझनां वेच उल्झिया 

सारे दिन दी थकान तुं पस्त 

दो निवाले गले विच 

उतारण तुं  पैले 

कयीं वार ज़रूरत पैंदी हे 

'ऐपिटाईज़र ' दी 


नियाणे रोटी निगलदे 

टी. वी. वेच नज़रां धस्साए

उंहांकू होण परियां दे मुल्क  दियां 

कहाणियां कौण सुणावे 


ए. सी.  ते कूलर दी हवा  दा 

नयि कोई मुक़ाबला 

कुदरती हवा दे नाल 

खुली छत ते समणा  मुमकिन नयि 

नहीं वेख सकदे  होण 

तारियाँ दी अख- मिचौली 

चंदरमा दी रवानी 


वधिया होटल वेच 

आर्डर देने वक़त 

तुसां हजे  वी  मँगवादे हो 

धुएंदार 'सिज़्ज़्लर '

तंदूरी रोटी 

मखणी दाल 

मकई दी रोटी 

सरसों दा  साग 

देसी मखण ते मठ्ठा 

धुएं वाला रायता 

याद है हजे वी तुहानकु 

इंहा  दा ज़ायका 


रोज़ी रोटी दी जुग़ाड़ वेच 

किथे वी बसर करणा पवे 

नहि टूट सकदा 

जड़ां नाल रिश्ता 









Monday, January 27, 2025

MY PUBLISHED BOOKS BY INB


 


 

भटके मुसाफ़िर

 भटके मुसाफ़िर 

**************

हेक वक़्त 

एसा वी हाई 

भटके मुसाफ़िर 

रस्ता पुछ घिन्दे 

रस्ता चलदे 

अनजान लोगोँ तुं 

ते ओ वी ख़ुशी-ख़ुशी 

आपणा वक़्त देंदे 

रस्ता सुझावण वास्ते 


अज कल कोई किसे दा 

रहनुमां नयि बणदा 

न ही कोई पुछदा 

न ही कोई दसदा 

सब दा  होण 

अपणे आप नाल ही रिश्ता 


किसे  वी अनजान रस्ते ते 

अनजान शहर वेच भटक जावे कोई 

ग़ुम थीवण दा  कोई डर नयि 

'गूगल मैप'  सब दा  रखवाला 

भटकिया कुं रस्ता सुझावण वाला/



रजनी छाबड़ा 


 


अमूझने


अमूझने 

******

 अज कल 

उमर दे ठहरे पड़ाव  ते 

ज़िंदगी दी चाल हे 

सहज -सपाट 

वल यकायक 

क्यूँ थी वेंदे हाँ 

असां अमूझने 



शायद इहन वजाह नाल कि 

हेक लम्बे अरसे तुं 

कुझ नवा 

नहीं किता 

ढर्रे ते चलदी 

ज़िंदगी वेच 

करण वासते 

कुझ वी नयि बचिया /


रजनी छाबड़ा 

Sunday, January 26, 2025

जीवण दा वल

 जीवण दा  वल 

***********

जिथै मर्ज़ी 

किसे वी वेले 

जड़ तुं उखाड़ के 

नवे सिरे तुं 

ज़मीन वेच उगा घिनो 

दुबारा नवी ज़मीन वेच 

खिड़ वेंदी हे बिच्छु बूटी 

आपणी रंग बिरंगी 

शान दे नाल 

काश! जीवन दा  एह वल 

सांकु वी आ वंजे /


रजनी छाबड़ा 

यादां वेच

 

 यादां वेच

*******

होण  वी याद करदे ने 

मैंकु मैडे शहर दे बाशिन्दे 

ऐन उवेन हि जिवें

ओ मैडी यादां वेच वसदे ने 


नज़रां तुं दूर होवण नाल 

कोई दिल तुं दूर नयि थींदा /


रजनी छाबड़ा 



  


रिश्तियाँ दी उमर

 रिश्तियाँ दी उमर 

*************

मतलब दे रिश्तियाँ दी उम्र 

अमूनन निक्की होंदी हे 


इंहा  कुं परखण  वास्ते 

मतलब दी कसौटी होंदी हे 


बेमतलब रिश्ते  आपो -आप 

निभ वेंदे ने तमाम उमर 


इंहा रिश्तियाँ दी साह 

साडे साह वेच वस होंदी  हे/


रजनी छाबड़ा 



 मुक़्क़मल

********


मैडे रबा !

थोड़ा जिहा अधूरा रैहवण दे 

मैडी ज़िंदगी दा पियाला 

ताकि क़ोशिश ज़ारी रहवे 

हिंकु पूरा भरण वास्ते 


जदूं पियाला 

भर वैंदा हे लबालब 

डर रेह्न्दा हे 

इन्दे छलकन दा 

विखरन दा 

हिंदे वेच कुझ होर बूंदा 

समेटण दा बणन 


जो जुनून 

मुक़्क़मल बणन दी 

कोशिश वेच हे 

ओ मुक़्क़मल वेच किथे 


लबालब पियाले वेच 

होर भरण दे गुंजाईश नी  

रेहँदी ज़िंदगी तुं 

होर कोई फ़रमाइश नी 


मुक्कमलपन बणा देंदा 

रजीया होइया ते बेखबर  

मुक्कमल थीवण दी चाह देंदी 

क़ोशिश  कुं निख़ार 


 मेंकु थोड़े जहे 

अधूरेपण नाल ही जीवण दे 

बूँद बूँद ज़िन्दगी पीवण दे 

लगातार कोशिशां -भरी 

ज़िंदगी जीवण दे /

रजनी छाबड़ा 

Saturday, January 25, 2025

क़िरदार

 क़िरदार 

*******

वक़्त दे लंबे सफर विच 

क़िरदार ईवेन

बदल वेंदे ने 

ओ , जो कल 

चलदे रहे 

पकड़े उंगली साडी 

ओ ही , हुण अगे वध 

सांकु रस्ता सुझांदे /


रजनी छाबड़ा 

Friday, January 24, 2025

संझिआ दे अँधेरे वेच


संझिआ  दे अँधेरे वेच 

****************

 संझिआ 

दे झुटपुट

 अँधेरे वेच 

दुआ वास्ते हथ जोड़ 

किया मंगणा 

टुट्दै होए तारे तुं 

जो अपणा ही वज़ूद 

नयि रख सकदा क़ायम 


मंगणा ही हे, तां मंगो 

डुबदे हुए सूरज तुं 

जो अस्त हो के वी 

नहीं थिंदा पस्त 

अस्त थिंदा हे ओ 

हक नवे सवेरे वास्ते 

अपणी सुनहरी किरणा नाल 

रोशन करण वास्ते 

सारी ख़ुदाई /


रजनी छाबड़ा 

तुसां ही दसो

 तुसां ही दसो 

***********

मैडी नेंदर कुं पंख लगे जदों 

किया तुहाडी वी नाल 

उड़ा लै  गयी


या फ़ेर उन्दरियाँ रातां वेच 

तारे गिनण दी रस्म 

में हेक्तरफा निभा गयी /


रजनी छाबड़ा 

मेले वेच एकले

मेले वेच एकले 

***********

निगाहां दे आख़िरी सिरे तायीं 

जद बैचैन निगाहां तलाशदियां हेन तैंकु 


और तुसां किथे वी विखाई नहीं  देंदे आस पास

हौर वी गहरा थी वेंदा है, मेले वेच एकले 

भीड़ वेच तनहाई दा  एहसास /


रजनी छाबड़ा 

Thursday, January 23, 2025

हेक गुमशुदा औरत

हेक गुमशुदा औरत 

**************

शिक़वा नहि परायां नाल 

मैडे अपणेइयाँ ने ही ख़स घिदी  

मैडे तुं मैडी आपणी पछाण 


धी , नुं , कवार , माँ 

इंहा, रिश्तियाँ  वेच गुमीया 

मैडा मैं किथे 


कल राह चलदे सदिया मैंकु 

बचपन दी हाणी ने जद सदिया मैडा नां 

खुलण लगे बंद यादां दे झरोखें 

धुप छणी किरणाँ वेच उभरइया 

धुँधला धुँधला जिहा मैडा नां 


मैं वी कदी मेँ सी 

माँ -बाबुल दी सोनचिड़ी 

जोश, ख़ुशी नाल भरपूर 

उडदी राहँदी घर, चौबारे 

पेंड दी गलियां वेच दूर दूर 


मैडी आज़ादी दे किस्से थए मशहूर  

किरक वरगी चुभण लग पई 

रिश्तेदारां दी नज़रां वेच 

मैडी पंख पसारी आज़ादी 


मशवरा दिता गया, मैडे पंख नोचण दा 

खूबसूरत बहांनियाँ वेच उलझा के 

करवा दिति गयी कच्ची उमर वेच 

मैडी शादी  


पढ़ाई लिखाई बन के रह गयी ख़्वाब 

समझाया गया मैंकु 

घर दी सेवा करण वेच ही हे मेडा सवाब 

जद तक सुती रई अपणी पहचान दी चाह 

तद तक कुझ साल रही गृहस्थी विच ख़ुश 


हुण बच्चे अपणी ज़िंदगी वेच रमे 

घोट कुं नयि कामकाज तुं फुर्सत 


बलदी रेत वरगा मन मेरा 

हर पल सुलगदा 

तपदे रेगिस्तान वेच 

ख़ाली मटके वरगा मैडा मन 

तलाशदा फ़िरदा

रुंज वेच मैडी पहचान 


मैं फलाणे दी धी, फैलाने दी नुं 

फलाणे दी कवार ते फलाणे दी मां 

इना रिशताएँ दे  वाझालोरे वेच

किथे हां मैं 


कया शिक़वा करान गैरां नाल 

मैडे आपणयां ने ही खस  घिधी 

मैडे तुं मैडी पहचान /


रजनी छाबड़ा 



पुल

 पुल 

****

इंसान इंसान दे वेच 

हेक अजनबीपन जीया क्यूँ हे 

क्यूँ समेटे रखदे हाँ, असां अपणे आप कुं 

आपणे ही बणाएं क़िले वेच 

बणा घिन्दे हां ,आपणे आले दुवाले 

कछुवे जीहा हेक सुऱक्षा कवच 

ख़ौफ़ ते बेइतबारी नाल भरे 

सहमे सहमे , डरे डरे 

ज़रा जही अनजान आवाज़ सुणदे ही 

सिमट वेंदे हाँ ऊस कवच वेच 


हेक वार , सैर्फ  हेक वार 

कर वनजो पार,बेइतबारी दी दीवार 

गैरां दे सुःख दुःख साँझा कर 

ढहा सटो दूरीयां दी दीवार 


तुसां ओ  एंट बण के वेखौ 

जेहढ़ी दीवार वेच नहिय 

पुल वेच चिणी वैसी 

ज़िंदगी डा वल , तुहानकु 

आपो आप आ वैसी /


रजनी छाबड़ा 

घर

 घर 

****

पियार ते अपणापां 

जदूं दीवारां दी 

छत बण वैंदा हे 


ओ मक़ान 

घर अखवांदा हे/


रजनी छाबड़ा  


फैशन


फैशन 

*****


जे जिसम दी नुमाईश ही 

फैशन हे 

असां  डाढे अभागे हां 


जानवर ऐस दौड़ वेच 

असां तुं अवल्ल निकल गए/


रजनी छाबड़ा 


नवीं पछाण

 

नवीं पछाण 

*********


अँधेरे कु 

आपणे आप  वेच समेटे 

जिवें दीवा बणांदा हे 

अपनी रोशन पछाण 



ईवेन ही  तुसा 

अथरू समेटे रखो 

अपणे वेच 

दुनिया कु डियो 

बस मुसकान  



आपणी अनाम ज़िंदगी कुं 

ईवेन डियो नवीं पछाण /


रजनी छाबड़ा 

आज़ाद

 आज़ाद 

*******


झरने वांकु कलकल 

पंछियां वांकु चहक 

आज़ाद उडारी 

चंदनी हवा 

सावणी फ़ुहार 

इहो टैडी 

हँसी दी पछाण 



मोतियाँ वाले घर दा 

दरवाज़ा खोल चा 

नक़ली  मुलकना  

छोड़ चा/


रजनी छाबड़ा 



आस दा पंछी

आस दा पंछी 

**********


मन 

हेक आस दा पंछी 

न क़ैद करो हिंकु 

क़ैद थीवण वास्ते 

किया इंसान दा ज़िस्म  

घट हे/


रजनी छाबड़ा 

Wednesday, January 22, 2025

निखरी निखरी






 निखरी निखरी 

************


सर्द रातां दे बाद 

ओस वेच नहावण दे बाद 

जद अधखिली कली 

शबनमीं धुप वेच 

अपणा चेहरा सुखांदी हे 

क़ायनात निखरी निखरी 

नज़र आवन्दी हे /


रजनी छाबड़ा 

बंदगी

 बंदगी 

******

एहसास  कदे वी मरदे नहीं 

एहसास ज़िंदा हेन 

तां ज़िंदगी हे 


वक़्त दी झोली वेच समेटे 

पल पल दे एहसास 

रब दी बंदगी हेन /


रजनी छाबड़ा 


एह चाहत

 एह चाहत

********


 एह चाहत मैडी तैडी 

जे एह सोहणा सुफ़ना हे 

नींदर खुले न कदे मैडी 

जे एह हक़ीकत हे 

नींदर कदे न आवे मैंकु /


रजनी छाबड़ा 

Tuesday, January 21, 2025

गहरा राज़

 गहरा राज़ 

*********

सुफ़ने किसे दी 

इज़ाजत नाल नहि आंदे 

न ही सुफनियां ते 

 किसे दा पहरा 


बिना पंखां दे 

किवें पहुंचा देंदे 

सतरंगी दुनियां वेच 

राज़ हे एह डाढा गहरा /


रजनी छाबड़ा  

रिश्ता

 

रिश्ता

*****

मन ते अखां 

दे वेच 

गूढ़ा रिश्ता हे 


मन दा नासुर 

अखां तुं 

हंजु बण 

रिसदा हे /


रजनी छाबड़ा 

Monday, January 20, 2025

कौण परवाह करदा हे


कौण परवाह करदा हे 

*****************

 कौण परवाह करदा हे अंधेरियाँ दी 

हेक बडे तूफान तुं बाद 


हर ग़म छोटा थी वैंदा हे 

ऊस तुं वडे गम दे  बाद 

रजनी छाबड़ा 

मुक़म्मल ज़िंदगी

 मुक़म्मल ज़िंदगी 

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सारी उमर दा साथ 

नेभ वैंदा हे 

बस हेक ही 

पल वेच 


बुलबुले वेच 

उभरण वाले 

अक्स दी उमर 

होन्दी हे 

बस हेक ही 

पल दी /


रजनी छाबड़ा 

आपणी मिट्टी

 

आपणी मिट्टी

**********

बस्ती वेच रेह के 

जंगल दे वास्ते 

मन दा मोर 

कसमसांदा हे 


ऐस पेंडू मन दा 

क्या करां 

आपणी मिट्टी दी 

खुशबू वास्ते तरसदा हे 


किवें भुला देवां 

आपणे पिंड कुं 

रिश्तियाँ दी 

ख़ुश्बू वाली गलियाँ वेच 

उथे आपणेपण दा 

बदळ वरसदा हे /


रजनी छाबड़ा 


Sunday, January 19, 2025

बंजारा मन 

********

जद बंजारे  मन कुं 

ज़िंदगी दे किसे 

अनजान मोड़ ते 

मेल वेंदा हे 

मन-माफिक हमसफ़र 


जी चाहंदा हे, कदे वी 

न ख़तम थीवे ए सफ़र 

हेक  हेक पल बण वंजे 

हक जुग दा , ते 

सफ़र इवेन ही जारी रहवे 

जुगां जुगां तहीं 


ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਤੇਜਿੰਦਰ ਚਾਂਡਿਹੋਕ ਜੀ ਦਾ , ਮੇਰੀ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਲਈ /  'ਆਸ ਦੀ ਕੁੰਚੀ ' ਮੇਰੇ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਵਿਚ ਇਹ ਦੋਨੋ ਕਵਿਤਾ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹਨ / ਤੇਜਿੰਦਰ ਜੀ ਅਜੇ ਤੋਂ  ਵਰੇ ਪਹਲੇ ਮੇਰੇ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਹੋਨੇ ਦੇ ਨ ਹੋਨੇ ਤਕ ਅਤੇ ਪਿਘਲਤੇ ਹਿਮਖੰਡ ਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਕਰ ਚੁਕੇ ਹਨ/

ਮੈਂ ਸ਼ੁਕਰਗੁਜਾਰ ਹਾਂ ਸੰਪਾਦਕ, ਦੇਸ਼ ਸੇਵਕ ਅਖਬਾਰ ਦੀ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਛਾਪਣ ਲਈ /
ਰਜਨੀ ਛਾਬੜਾ 

Saturday, January 18, 2025

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ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਤੇਜਿੰਦਰ ਚਾਂਡਿਹੋਕ ਜੀ ਦਾ , ਮੇਰੀ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਲਈ /  'ਆਸ ਦੀ ਕੁੰਚੀ ' ਮੇਰੇ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਵਿਚ ਇਹ ਦੋਨੋ ਕਵਿਤਾ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹਨ / ਤੇਜਿੰਦਰ ਜੀ ਅਜੇ ਤੋਂ  ਵਰੇ ਪਹਲੇ ਮੇਰੇ ਦੋ ਹਿੰਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਹੋਨੇ ਦੇ ਨ ਹੋਨੇ ਤਕ ਅਤੇ ਪਿਘਲਤੇ ਹਿਮਖੰਡ ਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਅਨੁਵਾਦ ਕਰ ਚੁਕੇ ਹਨ/


ਮੈਂ ਸ਼ੁਕਰਗੁਜਾਰ ਹਾਂ ਸੰਪਾਦਕ, ਦੇਸ਼ ਸੇਵਕ ਅਖਬਾਰ ਦੀ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਛਾਪਣ ਲਈ /
ਰਜਨੀ ਛਾਬੜਾ 


तेडे इंतज़ार वेच 

************

आ, तूं मुड़  आ 

वरना, मैं इवेन ही

जागदी राहंसा 

सारी सारी रात  

मिटांदी राहसां 

लेख़ लेख़ के 

टेडा नां 

रेत ते 

ते हर सवेरे 

सुर्ख़ उनिदरी  अनखां  नाल 

नींदर तुं भारी पलकां नाल 

कटदी राहंसा 

कलेंडर तुं 

हेक होर तरीक़ 

आपणे सच्च दा  सबूत बणा  के कि 

हक होर रोज़ 

तेंकु याद किता 

टेडा नाम घिदा /


रजनी छाबड़ा 

काफ़ी हेन

 काफ़ी हेन 

********

हेक ख़्वाब 

बेनूर अखां वासते  

हेक आह 

चुप -चुपीते होठां वासते 

हेक पाबन्द 

तार तार जिग़र 

सीवण  वासते 


काफ़ी हें 

इतने समान 

मेडे जीवण दे वासते /


रजनी छाबड़ा 

मन दी पतंग : सिराइकी में मेरी कविता

 मन दी  पतंग :  सिराइकी में मेरी कविता 

***********

पतंग वांगु शोख़ मन 

आपणी चंचलता ते सवार 

नपणा चाह्न्दा हे 

पूरे आसमान दा  फ़ैलाव  

पहाड़, समंदर , उचियाँ इमारतां 

अन्वेखी कर के 

सब रुकवाटां 

क़दम अगे ही अगे वधावे 


ज़िंदगी दी थकान 

दूर करण वास्ते 

मुन्तज़र हाँ असां 

मन दी पतंग ते 

सुफ़नायें दे आसमान वास्ते 

जिथे मन घेन सके 

बेहिचक, सतरंगी उडारी   


पर क्यों पकडावां डोर 

पराये हथां वेच 

हर पल ख़ौफ़ज़दा 

रहवे मन 

रब जाणे,  कद कटीज़ वंजे 

कदों लुटीज़ वंजे 


शोख़ी नाल भरिया

 चंचल मन वेखे 

ज़िंदगी दे आईने 

पर सच दे धरातल ते 

टिके कदम ही देंदे 

ज़िंदगी कुं मायने /


रजनी छाबड़ा 





चाहत

 चाहत  (सिराइकी में मेरी कविता)

*****

जे चाहत 

हिक गुनाह हे 

क्यूँ झुकदा हे 

आसमान ज़मीन ते 


क्यूँ घुम्दी हे ज़मीन 

सूरज दे गिर्द /


रजनी छाबड़ा 


किवें भुला सकदे हाँ : सिराइकी में मेरी कविता

 

किवें भुला सकदे हाँ (सिराइकी में मेरी कविता)

**************


असां भुल सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे नॉल 

साडे सुख दे संमे 

लगाये कहकहे 


किवें भुला सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे दुख़ वेच 

वहाये हंजु बिना कहे /


रजनी छाबड़ा 

Wednesday, January 15, 2025

 जड़ों से नाता 

************

बस्ती में रह कर भी 

लगता वीराना है 

मन में अभी भी 

गाँवों की यादों का 

आशियाना है 


सन सन बहती 

ठंडी हवा  

अमराइयों में

कोयल की कूक 

नदिया का 

स्वच्छ , शीतल जल 

बहता कलकल 

याद कर के 

मन होता आकुल 


चूल्हे की 

सौंधी आंच पर  

राँधी गयी दाल 

अंगारो पर सिकी 

फूली -फूली रोटियां 

बेमिसाल 

नथुनों तक पहुँचती खुशुबू 

भड़का देती थी भूख 


शहरी ज़िंदगी की 

उलझनों में व्यस्त 

दिन भर की थकान से पस्त 

दो कौर खाना हलक से 

नीचे उतारने से पहले 

कई बार ज़रूरत रहती है 

एपीटाईज़र की 


बच्चे खाना खाते हैं 

टी वी में आँखें गढ़ाए 

उन्हें परी देश की कहानियां 

अब कौन सुनाये 


ए सी और कूलर की हवा 

नहीं है प्राकृतिक हवा की सानी 

खुली छत पर सोना मुमकिन नहीं 

नहीं देख पाते अब 

तारों की आँख मिचौली 

चँदा की रवानी 


बढ़िया होटल में 

खाना आर्डर करते हुए 

अब भी तुम मंगवाते हो

धुआंदार 'सिज़लर '

तंदूरी रोटी 

मक्खनी दाल 

दाल -बाटी चूरमा 

मक्की की रोटी 

सरसों का साग 

मक्खन , छाछ 

धुंए वाला रायता 

याद है तुम्हे अभी भी 

इन का ज़ायका  



रोज़ी रोटी की जुगाड़ में 

कहीं भी बसर करे हम 

नहीं टूट सकता जड़ों से नाता/



2. वही है सूर्य 

   ********

सूर्य का स्वरूप वही है 

प्रकाश बदलता रहता है नित 


वही हैं नदियाँ, वही झरने 

पानी के वेग का अंदाज़ 

बदलता रहता है नित 


वही है हमारी ज़िंदगी 

दिन-प्रतिदिन 

पर कदम थामो नहीं 

प्रयत्नशील रहो 

नित नयी राह

तलाशने के लिए 

और नए आयाम 

खँगालने के लिए /




 


3. असर 

   *****

रेत सुबह से लेकर 

रात के आख़िरी प्रहर तक 

कई रंग बदलती 


सूरज के संग रहती 

सुनहरी रंगत पाती 

पूरा दिन 

तपती -सुलगती 


चाँद के संग रहती 

पूरी रात 

ठंडक  पाती 

ठंडक बरसाती     


  झरना बहता जब पहाड़ों से 

  उजली रंगत लिए 

 शीतल, मीठे  जल से 

  सबकी प्यास बुझाये 

  

पहुंचता जब मैदान में 

नदी के स्वरूप में 

वही पानी गंदला हो जाये 

झरने का पानी 

अपनी मिठास गंवाए 


सोन -चिरैय्या उड़ती जब

खुले आसमान में 

आज़ादी के गीत गुनगुनाये 

क़ैद हो जाये जब पिंजरे में 

सभी गीत भूल जाए/

- रजनी छाबड़ा


(सिराइकी में मेरी कविता ) PART 2

21. मैं मनमौजी

22.  मैडा  वसंत

23. किवें भुला सकदे हाँ

24.  चाहत 

25. मन दी  पतंग 

26. तेडे इंतज़ार वेच 

27. काफ़ी हेन 

28. बंजारा मन 

29. आपणी मिट्टी

30. मुक़म्मल ज़िंदगी 

31. कौण परवाह करदा हे 

32. रिश्ता

33. गहरा राज़ 

 34. एह चाहत

35.  बंदगी 

36.  निखरी निखरी 

37. आस दा पंछी 

38. आज़ाद 

39. नवीं पछाण 

40. फैशन 



21. मैं मनमौजी 

     **********


 मैं मनमौजी 

मैडे नाल किया होड़ पतंग दी 

मैं पँछी खुले आसमान दा 

सारा आसमान 

आपणे पनखां नाल नपिया 

डोर पतंग दी 

पराये हथां वेच 

उडारी आसमान वेच 

जुड़ाव  ज़मीन नाल /


22.   मैडा  वसंत

       **********

वक़त ने जेड़्हे जखमा तें 

मल्हम लगायी 

मौसम ने 

उनहा कुं  हरा करण दी 

रसम दुहराई 


मैडे  दर्द दी  

ना  कोई शुरुआत 

ना कोई अंत 

मुरझाये जखमां दा 

दोबारा हरा थीवणा 

इहो ही है 

मैडा  वसंत /




23. किवें भुला सकदे हाँ

     ****************


असां भुल सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे नॉल 

साडे सुख दे संमे 

लगाये कहकहे 


किवें भुला सकदे हाँ उनहानु 

जिन्हाने ने साडे दुख़ वेच 

वहाये हंजु बिना कहे /


24.  चाहत 

      *****

जे चाहत 

हिक गुनाह हे 

क्यूँ झुकदा हे 

आसमान ज़मीन ते 


क्यूँ घुम्दी हे ज़मीन 

सूरज दे गिर्द /



 25. मन दी  पतंग 

     ***********

पतंग वांगु शोख़ मन 

आपणी चंचलता ते सवार 

नपणा चाह्न्दा हे 

पूरे आसमान दा  फ़ैलाव  

पहाड़, समंदर , उचियाँ इमारतां 

अन्वेखी कर के 

सब रुकवाटां 

क़दम अगे ही अगे वधावे 


ज़िंदगी दी थकान 

दूर करण वास्ते 

मुन्तज़र हाँ असां 

मन दी पतंग ते 

सुफ़नायें दे आसमान वास्ते 

जिथे मन घेन सके 

बेहिचक, सतरंगी उडारी   


पर क्यों पकडावां डोर 

पराये हथां वेच 

हर पल ख़ौफ़ज़दा 

रहवे मन 

रब जाणे,  कद कटीज़ वंजे 

कदों लुटीज़ वंजे 


शोख़ी नाल भरिया

 चंचल मन वेखे 

ज़िंदगी दे आईने 

पर सच दे धरातल ते 

टिके कदम ही देंदे 

ज़िंदगी कुं मायने /



26. तेडे इंतज़ार वेच 

      ************

आ, तूं मुड़  आ 

वरना, मैं इवेन ही

जागदी राहंसा 

सारी सारी रात  

मिटांदी राहसां 

लेख़ लेख़ के 

टेडा नां 

रेत ते 

ते हर सवेरे 

सुर्ख़ उनिदरी  अनखां  नाल 

नींदर तुं भारी पलकां नाल 

कटदी राहंसा 

कलेंडर तुं 

हेक होर तरीक़ 

आपणे सच्च दा  सबूत बणा  के कि 

हक होर रोज़ 

तेंकु याद किता 

तेडा नाम घिदा /



27.  काफ़ी हेन 

      ********

हेक ख़्वाब 

बेनूर अखां वासते  

हेक आह 

चुप -चुपीते होठां वासते 

हेक पाबन्द 

तार तार जिग़र 

सीवण  वासते 


काफ़ी हें 

इतने समान 

मेडे जीवण दे वासते /





28. बंजारा मन 

      ********

जद बंजारे  मन कुं 

ज़िंदगी दे किसे 

अनजान मोड़ ते 

मेल वेंदा हे 

मन-माफिक हमसफ़र 


जी चाहंदा हे, कदे वी 

न ख़तम थीवे ए सफ़र 

हेक  हेक पल बण वंजे 

हक जुग दा , ते 

सफ़र इवेन ही जारी रहवे 

जुगां जुगां तहीं/


29. आपणी मिट्टी

      **********

बस्ती वेच रेह के 

जंगल दे वास्ते 

मन दा मोर 

कसमसांदा हे 


ऐस पेंडू मन दा 

क्या करां 

आपणी मिट्टी दी 

खुशबू वास्ते तरसदा हे 


किवें भुला देवां 

आपणे पिंड कुं 

रिश्तियाँ दी 

ख़ुश्बू वाली गलियाँ वेच 

उथे आपणेपण दा 

बदळ वरसदा हे /



30. मुक़म्मल ज़िंदगी 

   ***************

सारी उमर दा साथ 

नेभ वैंदा हे 

बस हेक ही 

पल वेच 


बुलबुले वेच 

उभरण वाले 

अक्स दी उमर 

होन्दी हे 

बस हेक ही 

पल दी /


31. कौण परवाह करदा हे 

      *****************

 कौण परवाह करदा हे अंधेरियाँ दी 

हेक बडे तूफान तुं बाद 


हर ग़म छोटा थी वैंदा हे 

ऊस तुं वडे गम दे  बाद 


 

32. रिश्ता

     *****

मन ते अखां 

दे वेच 

गूढ़ा रिश्ता हे 


मन दा नासुर 

अखां तुं 

हंजु बण 

रिसदा हे /



33.   गहरा राज़ 

       *********

सुफ़ने किसे दी 

इज़ाजत नाल नहि आंदे 

न ही सुफनियां ते 

 किसे दा पहरा 


बिना पंखां दे 

किवें पहुंचा देंदे 

सतरंगी दुनियां वेच 

राज़ हे एह डाढा गहरा /



 34. एह चाहत

      ********


 एह चाहत मैडी तैडी 

जे एह सोहणा सुफ़ना हे 

नींदर खुले न कदे मैडी 

जे एह हक़ीकत हे 

नींदर कदे न आवे मैंकु /



35.  बंदगी 

     ******

एहसास  कदे वी मरदे नहीं 

एहसास ज़िंदा हेन 

तां ज़िंदगी हे 


वक़्त दी झोली वेच समेटे 

पल पल दे एहसास 

रब दी बंदगी हेन /


36.  निखरी निखरी 

      ************


सर्द रातां दे बाद 

ओस वेच नहावण दे बाद 

जद अधखिली कली 

शबनमीं धुप वेच 

अपणा चेहरा सुखांदी हे 

क़ायनात निखरी निखरी 

नज़र आवन्दी हे /



37. आस दा पंछी 

      **********


मन 

हेक आस दा पंछी 

न क़ैद करो हिंकु 

क़ैद थीवण वास्ते 

किया इंसान दा ज़िस्म  

घट हे/



38.  आज़ाद 

     *******


झरने वांकु कलकल 

पंछियां वांकु चहक 

आज़ाद उडारी 

चंदनी हवा 

सावणी फ़ुहार 

इहो टैडी 

हँसी दी पछाण 



मोतियाँ वाले घर दा 

दरवाज़ा खोल चा 

नक़ली  मुलकना  

छोड़ चा/



 

39. नवीं पछाण 

     *********

अँधेरे कु 

आपणे आप  वेच समेटे 

जिवें दीवा बणांदा हे 

अपनी रोशन पछाण 



ईवेन ही  तुसा 

अथरू समेटे रखो 

अपणे वेच 

दुनिया कु डियो 

बस मुसकान  



आपणी अनाम ज़िंदगी कुं 

ईवेन डियो नवीं पछाण /



40. फैशन 

     *****


जे जिसम दी नुमाईश ही 

फैशन हे 

असां  डाढे अभागे हां 


जानवर ऐस दौड़ वेच 

असां तुं अवल्ल निकल गए/


रजनी छाबड़ा 



रजनी छाबड़ा 



रजनी छाबड़ा 






 








  


मैडा वसंत

 मैडा  वसंत (सिराइकी में मेरी कविता )

**********

वक़त ने जेड़्हे जखमा तें 

मल्हम लगायी 

मौसम ने 

उनहा कुं  हरा करण दी 

रसम दुहराई 


मैडे  दर्द दी  

ना  कोई शुरुआत 

ना कोई अंत 

मुरझाये जखमां दा 

दोबारा हरा थीवणा 

इहो ही है 

मैडा  वसंत /


रजनी छाबड़ा 

मैं मनमौजी

 मैं मनमौजी (सिराइकी में मेरी कविता )

**********


 मैं मनमौजी 

मैडे नाल किया होड़ पतंग दी 

मैं पँछी खुले आसमान  दा 

सारा आसमान 

आपणे पनखां नाल नापिया 



डोर पतंग दी 

पराये हथां वेच 

उडारी आसमान वेच 

जुड़ाव  ज़मीन नाल /



रजनी छाबड़ा 

ज़रा सोचो (सिराइकी में मेरी कविता )

 ज़रा सोचो (सिराइकी में मेरी कविता )


**********


दूजियाँ कुं ठोकरां मारण वालयों 

ज़रा सोचो हेक पल वास्ते 

पराये दर्द दा एहसास 

चुभसी तुहानकु वी 

जख़्मी थी वेसण 

तुहाडे हि पैर जदूं 

दुजिया नु ठोकरा मारदे मारदे/


रजनी छाबड़ा 

दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )


दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )

**********

 थींदी हे कदे 

फूलां तुं 

कंडियां वरगी चुभन 

कदे कंडिया वेच 

फुल खिड़दे ने 


बहार वेच विराणा  

कदे विराणे  वेच  

बहार दा एहसास 

एह दिल दे मौसम 

ईवेन बेमौसम 

बदलदे रेह्न्दे /

Tuesday, January 14, 2025

दीवार( सिराइकी में मेरी कविता )

 दीवार  ( सिराइकी में मेरी कविता )

******


घर दे वेह्ड़े वेच 

दीवार चनीज़ वेंदी हे 

जदूं दिलां वेच 

दरार पे वेंदी हे 


बटवारे दा  दरद 

सेंहदी मज़बूर माँ 

किंदे नाल रवें 

किथे वंजे 


दीवार दे दूजे सिरे 

गूँजदी बच्चे दी किलकारी 

अगे वधंण वासते बैचैन क़दम 

ऱोक घिनदी है जबरन 


पर किया रोक सकसी 

आपणे मन दी उडारी 


मन दे पँख लगा 

घुम आउंदी हे 

दीवार दे दूजे पार 

उनींदरी रातां वेच 
  
सुफ़ने सजा के 

 देंदी हे 

अपणी  बेवज़ह ज़िंदगानी कुं 

हेक वज़ह /


रजनी छाबड़ा 

वगदी नदी / बहती नदिया

 Friends,you can view same poem in Roman  English, just below Hindi poem


  वगदी नदी / बहती नदिया  (सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


*********************

होले होले वगदी नदी 

आपणी मस्ती वेच गुनगुणादी 

मगरूर, मुलकदी 

वगदी वैंदी 


मैं हुंकु रोकिया, टोकिया 

ईतनी उतावली क्या मचि हे 

किथान वनजण  दा  इरादा हे 

किता  किसे नाल कोई वादा हे 


नदी थोड़ा झिझकी 

थोड़ा शरमायी 

समंदर नाल मिलण दी आस हे 

इयो ही मैडी रवानगी दा  राज़ हे 


मैं चेताया हुंकु 

क्या सोचिया हे तु कदे 

समंदर नाल मेल कर के  

ग़ुम थी  वैसी तैडी अपणी पछाँड़ 

तैडी अपणी मीठास 



पर उह परेम पगली ने 

ना रोकी अपणी रवानगी 

मिठास दी तासीर ग़ुम थी गयी

ख़ारे पाणी वेच मिलयां बाद 

समंदर दी आग़ोश वेच वनजण तुं बाद  

ख़तम कर दिती अपणी रवानी 

अपणी ज़िंदगानी /

रजनी छाबड़ा 




Friends,you can view same poem in Roman  English, just below Hindi poem


बहती नदिया 

***********

कल कल बहती नदिया 

अपनी धुन में गुनगुनाती 

इठलाती, मुस्कुराती 

बहे जा रही थी 


मैंने  उसे रोका और टोका 

इतनी उतावली क्यों हो 

कहाँ जाने का इरादा है 

क्या किसी से कोई वादा है 


नदिया कुछ झिझकी 

सिकुची, शरमाई 

सागर से मिलने की आस है 

यही मेरी रवानगी का राज़ है 


मैंने चेताया  उसे 

क्या सोचा हैं तुमने  कभी 

सागर से मिल कर 

 खो देगी तुम निजता 

अपनी मिठास 

सहजता और सरसता 


पर उस प्रेम दीवानी ने 

नहीं रोकी अपनी रवानी 

मिठास का गुण खो दिया 

ख़ारे पानी में विलीन हो गया 

सागर की आगोश में जाने के बाद 

और ख़तम कर ली अपनी रवानी 

अपनी ज़िंदगानी 

रजनी छाबड़ा 


Kl kl bahtee nadia

Apnee dhun mein gungunati

Ithlatee, muskurati

Bahe Jaa rhee thee


Maine usko roka aur toka 

Itnee utawali kyon ho

Kahan Jane ka irada hai

Kya kisee se koi vada hai


Nadia kuch jhijhaki

Sikuchee, sharmayee

Sagar se milne kee aas hai

Yahi meri rawangee ka raaz hai


Maine chetaya usko

Kya socha hai tumne kabhi

Sagar se mil kr 

Kho dogi tum nijtaa

Apnee mithaas

Sahjata aur sarasta


Pr us Prem deewani

Ne nahi roki apnee rawani

Mithaas ka goon kho diya

Khare panee mein vileen ho gaya

Sagar kee aagosh mein  jane ke baad  

Aur khatam kr lee apnee rawani 

Apnee zindganee.

Rajni Chhabra 


























 











Kl kl bahtee nadia

Apnee dhun mein gungunati

Ithlatee, muskurati

Bahe Jaa rhee thee


Maine usko roka aur toka 

Itnee utawali kyon ho

Kahan Jane ka irada hai

Kya kisee se koi vada hai


Nadia kuch jhijhaki

Sikuchee, sharmayee

Sagar se milne kee aas hai

Yahi meri rawangee ka raaz hai


Maine chetaya usko

Kya socha hai tumne kabhi

Sagar se mil kr 

Kho dogi tum nijtaa

Apnee mithaas

Sahjata aur sarasta


Pr us Prem deewani

Ne nahi roki apnee rawani

Mithaas ka goon kho diya

Khare panee mein vileen ho gaya

Sagar kee aagosh mein  jane ke baad  

Aur khatam kr lee apnee rawani 

Apnee zindganee.

Rajni Chhabra 


























 








Sunday, January 12, 2025

मन दे बंद दरवाज़े / मन के बंद दरवाज़े ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )

 

मन दे बंद दरवाज़े / मन के बंद दरवाज़े ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


******************************


एस तुं पेहले कि 

अधूरेपण दी क़सक 

तुहानकु चूर चूर करें 

सारी उमर हसण खेलण तुं 

मज़बूर कर देवें 

खोलो अपणे 

मन दे बंद दरवाज़े 

ते दूर कर सटो 

घुटन कुं 



दर्द दा वसेरा तां 

सभाँ दे दिल वेच हे 

दर्द नाल सभाँ दा 

पुश्तैनी रिश्ता हे 

कुझ अपणी आखो 

कुझ उंहा दी सुणो 

दर्द कुं सब मिलजुल के सहो 

एस तुं पहलां कि दर्द 

रिसदे रिसदे बण वंजें नसूर 

लगा के हमदर्दी दा मल्हम 

करो दर्द कुं कोसां दूर 


वंड घिनो 

सुख दुःख कुं 

मन कुं , ज़िंदगी कुं 

पियार दे अमृत नाल 

करो चा भरपूर 

खोल सटो मन दे बंद दरवाज़े 

ते घुटन कुं करो चा दूर /


 मन के बंद दरवाज़े 

****************

इस से पहले कि

 अधूरेपन की कसक 

तुम्हें कर दे चूर-चूर

 ता-उम्र हँसने से कर दे मज़बूर 

खोल दो

 मन के बंद दरवाज़े 

और घुटन को

 कर दो दूर 


दर्द तो हर दिल में बसता है

 दर्द से सबका पुश्तैनी रिश्ता है 

कुछ अपनी कहो 

कुछ उनकी सुनो 

दर्द को सब मिलजुल कर सहो

 इस से पहले कि दर्द

 रिसते-रिसते बन जाए नासूर 

लगाकर हमदर्दी का मरहम 

करो दर्द को कोसों दूर

 बाँट लो

 सुख-दुःख को 

मन को, जीवन को 

स्नेहामृत से कर लो भरपूर 

खोल दो मन के बंद दरवाजे 

और घुटन को कर दो दूर /


तैडे बिना/तेरे बिना ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


तैडे बिना/तेरे बिना  (सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )

तैडे बिना 

*******

तैडे बिना 

हिक़ इवें 

अमूझना रेहंदा हे 


दिन उगदे हि 

शाम ढलण दी 

उडीक रेहँदी हे / 



 तेरे बिना 

*******

तेरे बिना 

दिल यूं 

बेक़रार रहता है 

दिन उगते ही 

शाम ढलने का 

इंतज़ार रहता है /



तैडे बिना 

*******

तैडे बिना 

हिक़ इवें 

अमूझना रेहंदा हे 


दिन उगदे हि 

शाम ढलण दी 

उडीक रेहँदी हे / 


Saturday, January 11, 2025

चौराहा ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )

  चौराहा ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


कैड़ा रस्ता चुण्यै 

पशेमानी दे चौराहे ते खड़े 

असां नयि सोच सकदे 


अतीत दियां कुझ हसीन यादां 

कुंझ खट्टे मिठे तज़ुर्बे 

बीत गए कल नाल जुड़ाव 


अतीत दे धागियां वेच उलझे 

आपणे आज कुं नयि जी सकदे  असां 

आ गया हे उमर दा  ओ पड़ाव 

अगे वधण तुं पहले ही 

बंधी बंधी थी वैंदी हे चाल 


नहीं कठा कर  पांदे 

आवण वाले कल दी 

चुनौतियां दा  सामना 

करण दी हिम्मत 

रब जाणे, क्या भेद छुपे होवण 

आण  वाले समे वेच 


कल , अज ते कल दे 

ताने बने वेच जकड़े 

आपने आले दुवाले 

अपनें ही कमां दे जाल वेच 

मकड़ी वरगा उलझे 

मुक्ति दा रस्ता 

साकूं इ बणावणा पैसी 


बीते समयाना दे  कुंझ यादगार पल 

ज दे कुझ सुनहरी पल 

आवण वाले वक़त वास्ते कुझ जुगाड़ 

सहेज के आपणी राह -खर्ची 

अगे वधदा चल 

ओ मुसाफ़िर 

रस्ता तेंकु आपणे आप रस्ता देसी 

मंजिल तकण पहुँचण वास्ते /


 

चौराहा 

*****


कौन सी  राह चुनें 

असमंजस के चौराहे पर खड़े 

 नहीं सोच पाते हैं हम 


अतीत की कुछ हसीन यादें 

कुछ खट्टे मीठे अनुभव 

बीते कल से जुड़ाव 


 

अतीत के धागों में उलझे 

अपने आज को ही नहीं जी पाते हम 

आ गया है उम्र का वह पड़ाव 

आगे बढ़ने से पहले ही 

बंधी बंधी हो जाती है चाल 


नहीं बटोर पाते 

आने वाले कल की 

चुनौतियों का सामना 

करने का साहस 

जाने क्या रहस्य छुपे हों 

भविष्य  की आगोश में 


भूत, वर्तमान और भविष्य  के 

ताने, बाने में  जकड़े 

अपने इर्द गिर्द व्यवस्तता के 

अपने ही बनाये जाल में 

मकड़ी से उलझे 

मुक्त गति की राह अब 

हमें ही  बनानी होगी 


अतीत के कुछ यादगार लम्हें 

वर्तमान के कुछ स्वर्णिम पल 

भविष्य की कुछ योजनाएँ 

सहेज कर अपने पाथेय में 

आगे बढ़ता चल 

ओ! राही 

राह तुम्हे खुद राह देगी 

मंज़िल तक पहुँचने की 


रजनी छाबड़ा 

बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका 





रजनी छाबड़ा 

बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका 



Friday, January 10, 2025

अमूझना /उदास ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )

 अमूझना /उदास ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )

कोण रेह सकिया हे 

इह दुनिया वेच 

हमेशा वास्ते 


फेर वी 

ऐ जिन्दड़ी 

तेडे तुं विछड़न दा  ख़याल 

क्यूँ  कर वैंदा हे बेहाल 

क्यूँ कर  वैंदा हे 

मेंकू अमूझना /



 उदास 

******

कौन रहा है 

इस दुनिया में 

हमेशा के लिए 


फिर भी 

ए ! ज़िंदगी 

तुझ से बिछुड़ने 

का ख़्याल 

क्यों कर जाता है बेहाल 

क्यों कर जाता है 

मुझे उदास 

@रजनी छाबड़ा 


Thursday, January 9, 2025

मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ डरदी हां मैं / पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं


 



मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ  डरदी हां मैं / पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ  डरदी हां मैं /

****************************


मुक़्क़मल थीवण तुं 

क्यूँ  डरदी हां मैं 

शायद हिक वजह नाल 

क्योंकि वेखदी रई हां कि 

पुण्या दा चद्रमा 

सारी दुनिया कुं 

चांदनी नाल सरोबार करण तुं  बाद 

नहीं रेवन्दा पूरा 

हौले हौले अंधेरी रातां दी तरफ़ 

सरकदा वैंदा हे 


भरे-पुरे ख़ुशी दे पलां दे बाद 

मैडी खुशियां दा चंद्रमा 

मदरे मदरे 

क्या वधण लगसी 

मसया दी तरफ़ 


उदास हनेरी रातां दे बाद 

चानण वापस आसी 

जिवें अमावस तुं  बाद 

चंद्रमा दुबारा हौले हौले 

चांदनी कुं आपणे  वेच समेटदा हे

वडणा घटणा 

एह सिलसिला 

ईवेन ही चलदा हे/



पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं 

____________________

पूर्णता से क्यों डरती हूँ मैं ?

शायद इस लिए कि 

देखती आयी हूँ 

पूनम का चाँद 

सकल विश्व को 

चांदनी से सरोबार करने के बाद 

पूर्णता खोने लगता है 

धीमे -धीमे अंधियारी रातों की ओर 

सरकने लगता है 


भरपूर खुशी के लम्हों के बाद 

मेरी खुशियों का चाँद भी 

धीमे -धीमे 

क्या अमावस की ओर  

अग्रसर होने लगेगा ?


उदास अधियारी रातों के बाद 

 उजास वापिस आएगा 

जैसे कि अमावस के बाद 

चाँद वापिस धीमे धीमे 

चांदनी को 

आग़ोश में समेटता है 

बढ़ना, घटना 

यह सिलसिला 

यूं ही चलता है/


रजनी छाबड़ा

असर

असर 

****


रेत सवेर तुं  लेके 

रात दी आख़री घड़ी ताईं 

कई रंग बदलदी 


सूरज दे नाल रेहवंदी 

सुनहरी रंगत पाँवदी 

सारी दिहाड़ी 

तपदी बलदी  

 

चद्रमा  दे नाल रेहवंदी 

सारी रात 

ठंडक पावंदी 

ठंडक वरसांदी 


झरना वैहन्दा जद  पहाड़ां तुं 

 निखरी रंगत नाल 

ठंडे, मिठे पाणी नाल 

सबदी पियास बुझांदा 


पुगदा जदूं मैदान वेच 

नदी दी शक्ल अख्तियार कर 

ओही पाणी गंदला थिया 

झरने दा  पाणी 

आपणी मिठास गंवाए 


सोन-चिड़ी उडदी जद 

खुले असमान विच 

आज़ादी दे गीत गुनगुनादी 

क़ैद थी जावें जदूं पिंजरे वेच 

सारे गीत भूल वेंदी /


सिरायक़ी में मेरी 20 कवितायें

 सिरायक़ी में मेरी कवितायें  

1. जे मैंकु रोक सकें

2. डाढा फर्क हे 

3. मन दा  क़द 

4. रेत दी दीवार 

5. जीवण दी वह 

6. तिनका तिनका 

7.  निभावणा

8. ओ  ही हे सूरज 

9. पिंजरे दा पंछी

10. पाणी वेच नूण 

11. असर 

12. मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ  डरदी हां मैं  

13. अमूझना

14चौराहा

15. तैडे बिना 

16. मन दे बंद दरवाज़े

17. वगदी नदी 

18दीवार

19. दिल दे मौसम 

20. ज़रा सोचो 


रजनी छाबड़ा 


1. जे मैंकु रोक सकें

    *************

जे मैंकु रोक सकें, रोक घिन 

मैं हवा दे झोंके वांगु हाँ  

ख्यालां दी पतंग वाकण 

बारिश दी पलेठी बूंदा वाकण 

सूरज दी मधरी धुप्प  

चन्दरमा दी ठंडक वाकण 


मैं पिंजरे च कैद नही रैहवना 

खुला असमाँण सद्दे देवन्दा मैंकु 

 उच्ची उडारी वास्ते तयार हाँ मैं 



2 .डाढा फर्क हे 

  ***********

डाढा फर्क हे 

हंजु पीवण ते 

हंजु व्हावण च 

डाढा फर्क हे 

साह घिनण ते 

जीऊंण च 



3. मन दा  क़द 

  ***********

सुफ़ने तां ओ वी देखदे हण 

जिना दियां अनखा कोणी 

किस्मत तन उना दी वी हुंदी ऐ 

जिना दे हथ कोणी हुन्दे 


हौंसले उचे होवण जे 

बैसाखियाँ नाल चलण वाले वी 

जीत लींदे  ने 

ज़िंदगी दी दौड़ 


मन दा क़द 

रख उच्चा 

क़द काठी  तां आँदी वैंदी   हे 

एह दुनिया न रहसी हमेशा 

ज़िंदगी दी इहो कहाणी हे 

रजनी छाबड़ा 



4. रेत दी दीवार 

    
ज़िंदगी रेत दी दीवार 
ज़माने च 
अंधेरियाँ दी भरमार 

रब जाणे, कैड़े वेले 
ढे पवे, एह खोख़ली दीवार 
वल क्यूँ , ज़िंदगी नाल 
इना मोह, इना पियार  


5. जीवण दी वह 

तुहाडी ज़िदगी च 
न बचे जदु कोई जागण दी वजह 
न बचे जदु कोई सोवण दी वजह 


हिंकु दुनिया दे नाम 
करो चा 
जीण दी वजह 
अपणे आप मिल वेसी 


हंजू पीवण दी आदत 
बदल वैसि 
हंजू पूंजड़ दा वल 
रास आ वैसि 
जीवण दा वल 
निखर वैसि /


रजनी छाबड़ा 

6. तिनका तिनका 

   ************

हेक  हेक तिनका 

कठा कर 

अपणे घौंसले कूँ 

सोहणा सजांदी हे चिड़ी 

कुज धागे 

कुज रूई 

कठे कर लैंदी हे चिड़ी 

घौंसले कूं 

निग़ा रखण वास्ते 

अंडे सेवण तूं बाद 

ज़िम्मेवारी 

ख़तम नहीं थिंदी 

चिड़ी दी 

आपणे लाड़लिया वास्ते 

चुग्गा कठा करदी 

उंहा दी चुंज विच पानदी  

माँ होवण दा सुख 

हासल करेंदी चिड़ी 

घौंसले तू बाहर दी दुनिया नाल 

उंहा दी जाण  पछाण करवांदी 

निक्के पँखा नाल 

खुले असमाँण वेच 

उडारी भरना सिखांदी 

ज़िंदगी दा चरखा 

इवें ही चलदा राहंदा 

बीते वक़्त दे नाल ही नाल 

चिढ़ी दी ताकत 

घटदी वैंदी 

सवेर हुंदे ई 

पंखी घेण लेंदे उडारी 

कलली पई रेहँदी 

उंहा दी माँ विचारी 

शाम पवे पंखी 

मुड़ आवनदे   

अपणे ठिकाणे 

घेण के अपणी चोंच विच 

माँ वास्ते चुग्गा -दाणे 

ईहो रिश्ता फलदा हे 

आपनेपण दी दुनिया वेच 

पियार नाल भरिया घोंसला 

खुशियां दा ठिकाणा /

रजनी छाबड़ा 


7.  निभावणा

    **********

कुझ बन्देयाँ नु 

प्यार जतावणा  ही नहीं 

प्यार निभावणा वी आंदा ए 


कंडे लखान वारी 

छलनी कर देवण 

गुलाब दी झोली  

गुलाब अणवेखियाँ कर 

बस मुलकदा रेहँदा ए 

उंहा दे नाल/


8. ओ  ही हे सूरज 

   *************

सूरज तां ओ ही हे  

पर रोशनी बदलदा रैहन्दा रोज़ 


ओ ही हे  दरिया, ओ ही झरने 

पर पाणी दे वगण दा वल 

बदलदा रैहन्दा रोज़ 


ओ ही हे असां दी ज़िन्दगी 

रोज़ ब रोज़ 

पर रोको ना आपणी चाल 


कोशिश ज़ारी रखो

 रोज़ नवा रस्ता लभण दी 

नवियां मंज़िला 

तलाशण  दी/


9. पिंजरे दा पंछी

   ************

पिंजरा हि हे मैडा  घर 

हूण तकण मन कूं 

इहो समझाया 

आज़ाद उडारी भरदे 

परिंदे वेख 

अज क्यूँ मन विचलण लगया 


सारी उमर पिंजरे च कैद पंछी 

आज़ादी खातिर गिड़गिड़ाया 

बहेलिये ने तरस खा 

खोल दिता पिंजरे दा  दरवाज़ा 

पंछी ने कोशिश किती 

पंख फैला, उची उडारी भरण दी 

पर, क्या ओ  आसमान दी ऊचाई 

छू सकिया 


सहम गया 

उडदे बाज नू वेख के 

पिंजरे विच ही 

वापस रेहवण दा 

मन बणाया 


जीवण दा जो सलीक़ा 

रहिया सालों -साल 

उह कैद तों 

नहीं छुट सकिया /



10. पाणी वेच नूण 

  ***********

पाणी वेच 

नूण वरगा एहसास 

मेंकू लुभावंदा 

विखदा नहीं 

पर आपणा होवण  

जता वैंदा /



11. असर 

     ****


रेत सवेर तुं  लेके 

रात दी आख़री घड़ी ताईं 

कई रंग बदलदी 


सूरज दे नाल रेहवंदी 

सुनहरी रंगत पाँवदी 

सारी दिहाड़ी 

तपदी बलदी  

 

चद्रमा  दे नाल रेहवंदी 

सारी रात 

ठंडक पावंदी 

ठंडक वरसांदी 


झरना वैहन्दा जद  पहाड़ां तुं 

 निखरी रंगत नाल 

ठंडे, मिठे पाणी नाल 

सबदी पियास बुझांदा 


पुगदा जदूं मैदान वेच 

नदी दी शक्ल अख्तियार कर 

ओही पाणी गंदला थिया 

झरने दा  पाणी 

आपणी मिठास गंवाए 


सोन -चिरैय्या उड़ती जब

खुले आसमान में 

आज़ादी के गीत गुनगुनाये 

क़ैद हो जाये जब पिंजरे में 

सभी गीत भूल जाए/


सोन-चिड़ी उडदी जद 

खुले असमान विच 

आज़ादी दे गीत गुनगुनादी 

क़ैद थी जावें जदूं पिंजरे वेच 

सारे गीत भूल वेंदी /



12.मुक़्क़मल थीवण तुं क्यूँ  डरदी हां मैं 

     ****************************


मुक़्क़मल थीवण तुं 

क्यूँ  डरदी हां मैं 

शायद हिक वजह नाल 

क्योंकि वेखदी रई हां कि 

पुण्या दा चद्रमा 

सारी दुनिया कुं 

चांदनी नाल सरोबार करण तुं  बाद 

नहीं रेवन्दा पूरा 

हौले हौले अंधेरी रातां दी तरफ़ 

सरकदा वैंदा हे 


भरे-पुरे ख़ुशी दे पलां दे बाद 

मैडी खुशियां दा चंद्रमा 

मदरे मदरे 

क्या वधण लगसी 

मसया दी तरफ़ 


उदास हनेरी रातां दे बाद 

चानण वापस आसी 

जिवें अमावस तुं  बाद 

चंद्रमा दुबारा हौले हौले 

चांदनी कुं आपणे  वेच समेटदा हे

वडणा घटणा 

एह सिलसिला 

ईवेन ही चलदा हे/


13. अमूझना /उदास ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )

कोण रेह सकिया हे 

इह दुनिया वेच 

हमेशा वास्ते 


फेर वी 

ऐ जिन्दड़ी 

तेडे तुं विछड़न दा  ख़याल 

क्यूँ  कर वैंदा हे बेहाल 

क्यूँ कर  वैंदा हे 

मेंकू अमूझना /




  चौराहा ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


कैड़ा रस्ता चुण्यै 

पशेमानी दे चौराहे ते खड़े 

असां नयि सोच सकदे 


अतीत दियां कुझ हसीन यादां 

कुंझ खट्टे मिठे तज़ुर्बे 

बीत गए कल नाल जुड़ाव 


अतीत दे धागियां वेच उलझे 

आपणे आज कुं नयि जी सकदे  असां 

आ गया हे उमर दा  ओ पड़ाव 

अगे वधण तुं पहले ही 

बंधी बंधी थी वैंदी हे चाल 


नहीं कठा कर  पांदे 

आवण वाले कल दी 

चुनौतियां दा  सामना 

करण दी हिम्मत 

रब जाणे, क्या भेद छुपे होवण 

आण  वाले समे वेच 


कल , अज ते कल दे 

ताने बने वेच जकड़े 

आपने आले दुवाले 

अपनें ही कमां दे जाल वेच 

मकड़ी वरगा उलझे 

मुक्ति दा रस्ता 

साकूं इ बणावणा पैसी 


बीते समयाना दे  कुंझ यादगार पल 

ज दे कुझ सुनहरी पल 

आवण वाले वक़त वास्ते कुझ जुगाड़ 

सहेज के आपणी राह -खर्ची 

अगे वधदा चल 

ओ मुसाफ़िर 

रस्ता तेंकु आपणे आप रस्ता देसी 

मंजिल तकण पहुँचण वास्ते /



तैडे बिना 

*******

तैडे बिना 

हिक़ इवें 

अमूझना रेहंदा हे 


दिन उगदे हि 

शाम ढलण दी 

उडीक रेहँदी हे / 




मन दे बंद दरवाज़े / मन के बंद दरवाज़े ( सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


******************************


एस तुं पेहले कि 

अधूरेपण दी क़सक 

तुहानकु चूर चूर करें 

सारी उमर हसण खेलण तुं 

मज़बूर कर देवें 

खोलो अपणे 

मन दे बंद दरवाज़े 

ते दूर कर सटो 

घुटन कुं 



दर्द दा वसेरा तां 

सभाँ दे दिल वेच हे 

दर्द नाल सभाँ दा 

पुश्तैनी रिश्ता हे 

कुझ अपणी आखो 

कुझ उंहा दी सुणो 

दर्द कुं सब मिलजुल के सहो 

एस तुं पहलां कि दर्द 

रिसदे रिसदे बण वंजें नसूर 

लगा के हमदर्दी दा मल्हम 

करो दर्द कुं कोसां दूर 


वंड घिनो 

सुख दुःख कुं 

मन कुं , ज़िंदगी कुं 

पियार दे अमृत नाल 

करो चा भरपूर 

खोल सटो मन दे बंद दरवाज़े 

ते घुटन कुं करो चा दूर /


17. वगदी नदी / बहती नदिया  (सिराइकी और हिंदी में मेरी कविता )


     *********************

होले होले वगदी नदी 

आपणी मस्ती वेच गुनगुणादी 

मगरूर, मुलकदी 

वगदी वैंदी 


मैं हुंकु रोकिया, टोकिया 

ईतनी उतावली क्या मचि हे 

किथान वनजण  दा  इरादा हे 

किता  किसे नाल कोई वादा हे 


नदी थोड़ा झिझकी 

थोड़ा शरमायी 

समंदर नाल मिलण दी आस हे 

इयो ही मैडी रवानगी दा  राज़ हे 


मैं चेताया हुंकु 

क्या सोचिया हे तु कदे 

समंदर नाल मेल कर के  

ग़ुम थी  वैसी तैडी अपणी पछाँड़ 

तैडी अपणी मीठास 



पर उह परेम पगली ने 

ना रोकी अपणी रवानगी 

मिठास दी तासीर ग़ुम थी गयी

ख़ारे पाणी वेच मिलयां बाद 

समंदर दी आग़ोश वेच वनजण तुं बाद  

ख़तम कर दिती अपणी रवानी 

अपणी ज़िंदगानी /



 18दीवार  ( सिराइकी में मेरी कविता )

      ******


घर दे वेह्ड़े वेच 

दीवार चनीज़ वेंदी हे 

जदूं दिलां वेच 

दरार पे वेंदी हे 


बटवारे दा  दरद 

सेंहदी मज़बूर माँ 

किंदे नाल रवें 

किथे वंजे 


दीवार दे दूजे सिरे 

गूँजदी बच्चे दी किलकारी 

अगे वधंण वासते बैचैन क़दम 

ऱोक घिनदी है जबरन 


पर किया रोक सकसी 

आपणे मन दी उडारी 


मन दे पँख लगा 

घुम आउंदी हे 

दीवार दे दूजे पार 

उनींदरी रातां वेच 
  
सुफ़ने सजा के 

 देंदी हे 

अपणी  बेवज़ह ज़िंदगानी कुं 

हेक वज़ह /



दिल दे मौसम (सिराइकी में मेरी कविता )

**********

 थींदी हे कदे 

फूलां तुं 

कंडियां वरगी चुभन 

कदे कंडिया वेच 

फुल खिड़दे ने 


बहार वेच विराणा  

कदे विराणे  वेच  

बहार दा एहसास 

एह दिल दे मौसम 

ईवेन बेमौसम 

बदलदे /




रजनी छाबड़ा 

बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका 








पाणी वेच नूण

 पाणी वेच नूण/ नमक सा आभास ( सिरायकी में मेरी कविता, हिंदी अनुवाद के साथ )

पाणी वेच नूण 

***********

पाणी वेच 

नूण वरगा एहसास 

मेंकू लुभावंदा 

विखदा नहीं 

पर आपणा होवण  

जता वैंदा /


नमक सा आभास 

***************

 पानी में 

नमक सा आभास 

मुझे है लुभाता 

अदृश्य रह के भी 

अपने होने का 

एहसास दिला जाता 


पिंजरे दा पंछी


सिरायकी में मेरी कविता, हिंदी अनुवाद के साथ 


 पिंजरे दा पंछी

************

पिंजरा हि हे मैडा  घर 

हूण तकण मन कूं 

इहो समझाया 

आज़ाद उडारी भरदे 

परिंदे वेख 

अज क्यूँ मन विचलण लगया 


सारी उमर पिंजरे च कैद पंछी 

आज़ादी खातिर गिड़गिड़ाया 

बहेलिये ने तरस खा 

खोल दिता पिंजरे दा  दरवाज़ा 

पंछी ने कोशिश किती 

पंख फैला, उची उडारी भरण दी 

पर, क्या ओ  आसमान दी ऊचाई 

छू सकिया 


सहम गया 

उडदे बाज नू वेख के 

पिंजरे विच ही 

वापस रेहवण दा 

मन बणाया 


जीवण दा जो सलीक़ा 

रहिया सालों -साल 

उह कैद तों 

नहीं छुट सकिया /


9/1/2025


पिंजरे का पंछी 

************

 पिंजरा ही है मेरा घर 

अब तक मन को था 

यही समझाया 

उन्मुक्त उड़ान लेते 

पंछी देख 

आज मन क्यों भरमाया 


ता उम्र पिंजरे में क़ैद पंछी 

आज़ादी के लिए गिड़गिड़ाया 

बहेलिये ने तरस खा पर 

खोल दिया पिंजरे का दरवाज़ा 

 पंछी ने कोशिश की 

पंख फ़ैला, ऊंची उड़ान लेने की 

पर क्या गगन की ऊंचाई 

छू पाया 


सहम गया 

उड़ते बाज़ को देख कर 

पिंजरे में ही 

वापिस बसने का मन बनाया/


जीने का जो अंदाज़ 

रहा बरसों 

उस की क़ैद से 

नहीं छूट पाया/


@रजनी छाबड़ा 

२८/१०/२०२३ 




Monday, January 6, 2025

GLMPSES OF RELEASE OF MY TWO BOOKS

मैं सौभाग्यशाली हूँ की मेरी दो सद्य प्रकाशित पुस्तकों  'अंकशास्त्र की व्यवहारिक गॉइड '  व्  'Merging with the  Divine ' का   लोकार्पण मेरी कर्मभूमि बीकानेर में  दिनांक ४/१/२०२५ को प्रतिष्ठित साहित्यकार मित्रों  के कर  कमलों से हुआ /  बीकानेर से  ३७ साल पुराना नाता है और वहां के साहित्य जगत से घनिष्ठ आत्मीयता है/  लोकार्पण की कुछ यादगार छवियां व्  प्रेस विज्ञप्तियां  आप सभी प्रबुद्ध पाठकों के साथ सांझा कर रही हूँ /

 कवि व् आलोचक डॉ . नीरज दइया की अध्यक्षता में  सम्पन्न  हुए  कार्यक्रम में, मुख्य  अतिथि वरिष्ठ कवि कथाकार राजेंद्र जोशी ने अनुवाद कार्य की महत्ता पर अपने विचार रखे/ विशिष्ट अतिथि राजभाषा सम्पर्क अधिकारी हरिशंकर आचार्य ने मेरे रचनाकर्म पर अपने विचार रखे/

मोनिका गौड़, अध्यक्ष  शब्दश्री साहित्य संस्थान व् अखिल भारतीय साहित्य परिषद् जोधपुर की  प्रान्त उपाध्यक्ष,          डॉ.  बसंती हर्ष अभिभावक सदस्य  शब्दश्री साहित्य संस्थान  एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद् , बीकानेर  महानगर इकाई अध्यक्ष एवं डॉ कृष्णा आचार्य , उपाध्यक्ष शब्दश्री संसथान व्  अखिल भारतीय साहित्य परिषद् , बीकानेर  महानगर इकाई  बीकानेर की उपाध्यक्ष की उपस्थित ने आयोजन  को  चार चाँद  लगा  दिए/ उनकी संस्था द्वारा सम्मानित किये जाने से व् उनकी साहित्यिक कृतियाँ उपहार स्वरुप पा  कर अभिभूत हूँ /
हार्दिक आभार /



रजनी छाबड़ा 
बहुभाषी कवयित्री, अनुवादिका व् अंकशास्त्री